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युग्मविकल्पी या ऐलीलोमॉर्फ या एलील किसे कहते हैं Allelle or Allelomorph in hindi definition

जानिये युग्मविकल्पी या ऐलीलोमॉर्फ या एलील किसे कहते हैं Allelle or Allelomorph in hindi definition ?

पारिभाषिक तकनीकी शब्दावली (Terminology)

किसी भी जिज्ञासु कार्यकर्ता के लिए मेण्डल के प्रयोगों एवं इनके आधार पर प्रस्तुत आनुवंशिकता के नियमों को समझने के लिए कुछ विशिष्ट तकनीकी शब्दों (Technical terms) की भली-भाँति जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। ये निम्न प्रकार से है-

  1. संकर (Hybrid) — जब दो विपर्यासी लक्षणों (Contrasting characters) वाले पौधों, जैसे लम्बे व बौने पौधों का क्रॉस (Cross) करवाया जाता है तो इस क्रॉस के परिणामस्वरूप प्राप्त पौधों को संकर (Hybrid) कहते हैं तथा इस प्रक्रिया को संकरण (Hybridization) कहा जाता है।
  2. प्रतीक (Symbol) — अँग्रेजी वर्णमाला का वह अक्षर (Letter) जो किसी कारक या जीन की स्थिति को परिलक्षित करता है, प्रतीक ( Symbol) कहलाता है । अर्थात् प्रभावी कारक या जीन (Dominant factor or gene) को बड़े अक्षर (Capital letter) से जैसे लम्बेपन के लिये “T” से और अप्रभावी जीन या कारक (Recessive factor or gene) को छोटे अक्षर ( Small letter) से जैसे बौनेपन के लिए “k” से निरूपित करते हैं। प्रतीक का चयन प्रभावी गुण या जीन के प्रथम अँग्रेजी शब्द के आधार पर करते हैं
  3. कारक (Factors)— वे आनुवंशिक घटक जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक अथवा एक से अधिक लक्षणों की वंशागति के लिए उत्तरदायी होते हैं, मैण्डेलियन कारक (Mendelian factors) कहलाते हैं। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में इनको जीन कहा जाता है।
  4. युग्मविकल्पी या ऐलीलोमॉर्फ या एलील (Allelle or Allelomorph ) — किसी एक लक्षण को अभिव्यक्ति करने वाले एक जीन के दो वैकल्पिक या विपर्यासी प्रारूपों को युग्मविकल्पी या ऐलीलोमोर्फ (Allelomorph) कहते हैं। मेण्डल के पश्चात् किये गये अध्ययनों के अनुसार एक जीन या कारक के दो से अधिक वैकल्पिक प्रारूप भी हो सकते हैं। परन्तु मेण्डल के अनुसार प्रत्येक कारक या जीन या निर्धारक ( Determinant) के दो वैकल्पिक प्रारूप होते हैं, जिनमें से एक प्रारूप प्रभावी (Dominant) होता है जबकि दूसरा अप्रभावी (Recessive) होता है। प्रभावी विकल्प अपने लक्षण को आने वाली संतति पीढी में अभिव्यक्त करता है, एवं इसे अँग्रेजी के बड़े अक्षर (Capital letter) के द्वारा निरूपित करते हैं। इसके विपरीत अप्रभावी (Recessive) ऐलील या विकल्प अपने लक्षण को आनेवाली पीढ़ी में अभिव्यक्त करने की सामर्थ्य नहीं रखता एवं इसको अँग्रेजी के छोटे अक्षर ( Small letter) के द्वारा निरूपित करते हैं। जीनों या कारकों के ये दोनों वैकल्पिक या विपर्यासी प्रारूप या दोनों ऐलील एक ही समजात गुणसूत्र जोड़े (Homologous chromosome pair ) के ऊपर एक ही विस्थल (Locus) या स्थान पर स्थित होते है, अतः ये विपर्यासी प्रारूप युग्मविकल्पी या ऐलीलोमॉर्फ कहलाने हैं, क्योंकि ये एक-दूसरे का विकल्प हैं । युग्मविकल्पियों के उदाहरण को भली-भाँति समझाने के लिए मटर के पौधे की लम्बाई का लक्षण प्रयुक्त किया जा सकता है। इस लक्षण को नियन्त्रित करने वाले युग्मविकल्पी जीन क्रमशः ‘“T” एवं “” हैं, जिनमें से “T” प्रभावी ऐलील एवं “t” अप्रभावी ऐलील को निरूपित करता है। (Alleles are contrasting forms of a gene situated at the same locus on homologous chromosome pair)। इस प्रकार पुष्प के लाल रंग को निरूपित करने वाले प्रभावी एवं अप्रभावी युग्मविकल्पियों को क्रमशः “R” एवं “” शब्दों के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यहाँ इस प्रमुख तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है कि “T” व “R” या “t” व “” परस्पर युग्मविकल्पी नहीं हैं क्योंकि वे एक ही लक्षण के विपर्यासी प्रारूपों (contrasting forms) को निरूपित नहीं करते, अपितु अलग- अलग लक्षणों के प्रभावी या अप्रभावी प्रारूपों को प्रदर्शित करते हैं ।
  5. प्रभाविता (Dominance) – एक युग्मविकल्पी जोड़े में उपस्थित कारक या जीन जो दूसरे कारक की अभिव्यक्ति को दबाकर ( Suppress) स्वयं के लक्षण को आने वाली पीढ़ी में अभिव्यक्त करता है।
  6. समयुग्मजी (Homozygous ) – जब किसी सजीव में एक युग्मविकल्पी जोड़े पर उपस्थित दोनों कारक या जीन एकसमान हों जैसे “TT” या “rr” ।
  7. विषमयुग्मजी (Heterozy gous ) -जब किसी सजीव में एक युग्मविकल्पी जोड़े (Allelomorph pair) पर उपस्थित दोनों ऐलील या जीन असमान हो, जैसे- “Tt” । इनमें से एक अर्थात् “T” प्रभावी प्रारूप एवं “” अप्रभावी लक्षण प्रारूप को निरूपित करता है ।
  8. समजीनी या जीन प्रारूप ( Genotype ) — एक प्रजाति के जीव जो किसी लक्षण की आकारिकीय संरचना एवं जीनीय संरचना दोनों में एकसमान हों, जैसे मटर में सभी पौधे लम्बे हों एवं इनकी सभी की जीन संरचना “TT” हो तो इनको समजीनी या जीन प्रारूप (Genotype) कहेंगे।

१. समलक्षणी या लक्षणप्रारूप ( Phenotypes) – किसी भी एक प्रजाति के वे समस्त सजीव जो किसी एक लक्षण की बाह्य आकारिकी में तो एकसमान दिखाई देते हैं, परन्तु इनकी जीनीय संरचना में दो अलग-अलग प्रकार के कारक या जीन (युग्मविकल्पी) उपस्थित होते हैं, जैसे मटर के लम्बे पौधे की जीनीय संरचना “TT” व “Tt” दोनों प्रकार की हो सकती है, तो इनको सम लक्षणी या लक्षणप्रारूप (Phenotype) कहते हैं।

(I) जनक पादप ( Plant Parents ) संतति प्राप्त करने के लिये जिन पौधों में संकरण करवाया जाता है, उनको जनक पादप कहते हैं, इसे अँग्रेजी अक्षर P से इंगित किया जाता है।

(II) F, पीढ़ी (Filial), F1, Generation)—संकरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रथम पीढ़ी ।

(III) F2 पीढ़ी (Filial2, F2, Generation ) – संकरण के परिणामस्वरूप उत्पन्न द्वितीय पीढ़ी । (IV) त्रिसंकर संकरण (Trihybrid cross)—इस प्रकार के संकरण में तीन लक्षणों को लेकर दो विभिन्न जनक पादपों का क्रॉस करवाया जाता है।

(V) अप्रभावी विकल्पी ( Recessive allele ) —– जो वैकल्पिक जीन विषमयुग्मजी (Heterozygous) हों, एवं आने वाली पीढ़ी में अपने गुणों को प्रदर्शित न करें, उनको अप्रभावी विकल्पी कहते हैं तथा इस अवस्था को अप्रभाविता कहा जाता है।

(VI) द्विअप्रभावी (Double recessive ) — दो सम्बन्धित गुणों के अप्रभावी प्रारूप वाली प्रजाति अथवा व्यष्टि (Individual)।

(VII) द्विक जीन क्रिया (Duplicate gene action ) — इस प्रक्रिया में, दो जीनों की पारस्परिक क्रिया के परिणामस्वरूप एक ही लक्षण दो जीनों के द्वारा नियन्त्रित होता है, जिसमें दोनों जीन जब अप्रभावी होते हैं तो इनके विपर्यासी अथवा वैकल्पिक गुण परिलक्षित होते हैं, किन्तु प्रभावी होने पर (एक या दोनों) जीन अपने गुणों को अभिव्यक्त करते हैं ।

(VIII) द्विगुणित ( Diploid ) — जिस प्रजाति की सामान्य कोशिका में एक जीनोम (n) की दो प्रतियाँ उपलब्ध हों, उसे द्विगुणित (Diploid, 2n) कहते हैं ।

(IX) संदमन कारक ( Inhibitory factor ) – जो कारक अथवा जीन किसी अन्य जीन या कारक (Factor) की अभिव्यक्ति को रोक देता है उसे संदमन कारक कहते हैं।

(X) प्रभावी घातक ( Dominant lethal ) — वह प्रभावी कारक या जीन जो समयुग्मजी (Homozygous) अवस्था में घातक सिद्ध होता है, प्रभावी घातक कहलाता है, जैसे-चूहों की त्वचा में पीले रंग को अभिव्यक्त करने वाला जीन (y)

(XI) पूरक जीन क्रिया (Complementary gene interaction )—– जब दो प्रभावी कारक मिलकर एक ही गुण को नियन्त्रित या अभिव्यक्त करते हैं। ये दोनों कारक अथवा जीन अप्रभावी अवस्था में विपर्यासी गुण को परिलक्षित करते हैं ।

(XII) मेण्डलीय वंशागति (Mendelian Inheritance ) — केन्द्रक जीनों (Nuclear gene) द्वारा नियन्त्रित वंशागति जिसमें एक संकर व द्विसंकर क्रॉस में क्रमश: 3:1 एवं 3:1 के अनुपात में संतति प्राप्त होती है ।

(XIII) विपर्यासी लक्षण (Contrasting Characters ) – एक ही गुण विभिन्न रूप जैसे मटर की फली का हरा या पीला रंग अथवा बीज की आकृति में गोल या झुर्रीदार बीज ।

(XIV) सहप्रभावी कारक (Codominant) – जब दोनों वैकल्पिक जीन विषम युग्मजी अवस्था (Heterozygous condition) में अपने आप को परिलक्षित करते हैं ।

  1. एक संकर क्रॉस (Monohybrid cross ) – एक प्रजाति के दो जनक पौधों में किसी एक लक्षण (जो एक ही जीन से नियन्त्रित होता है) की वंशागति का अध्ययन करने के लिए क्रॉस या संकरण करवाया जाता है, तो उसे एकसंकर क्रॉस (Monohybrid cross) कहते हैं।
  2. द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid cross ) – वह क्रॉस दो लक्षणों की वंशागति का अध्ययन करने के लिए करवाया जाता है। ये दो लक्षण दो कारकों या जीनों के द्वारा नियन्त्रित होते हैं।
  3. व्युत्क्रम क्रॉस (Reciprocal cross ) – इस प्रकार के क्रॉस या संकरण में दोनों जनक …पौधों का अलग-अलग प्रयोगों में भिन्न प्रकार से उपयोग किया जाता है, जैसे पहले क्रॉस में “X” पौधे को नर एवं “Y” पौधे को मादा जनक के रूप में प्रयुक्त किया गया हो, तो दूसरे प्रयोग में “X” पौधे को मादा एवं “Y” पौधे को नर जनक (Male parent) के तौर पर प्रयुक्त करते हैं। इस प्रकार के संकरण को व्युत्क्रम क्रॉस या संकरण कहते हैं। इस क्रॉस के द्वारा प्राप्त परिणाम प्राय: समान होते हैं।
  4. संकरपूर्वज क्रॉस या प्रतीप क्रॉस तथा परीक्षण क्रॉस (Back cross and Tem विभिन्न समलक्षणी ( Phenotypes) पौधों की जीनीय संरचना या जीनप्रारूपों की जानकारी प्राप्त की cross ) – इस प्रकार की संकरण प्रक्रियाओं या क्रॉस के द्वारा पौधों के विभिन्न लक्षणों की वंशागति एवं जा सकती है।

(A) प्रतीप कास या संकरपूर्वज क्रॉस (Back cross)—ऐसा क्रॉस या संकरण जो F पीढ़ी के पौधे एवं जनकपीढ़ी के दोनों पौधों में से किसी एक जनक के मध्य करवाया जाता है उसे प्रतीप क्रॉस या संकरपूर्वज क्रॉस (Back cross) कहते हैं । इस प्रतीप क्रास में जब F, पीढ़ी के पौधे का क्रॉस, प्रभावी जनक (Dominant Parent) से करवाते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप प्राप्त सभी पौधे प्रभावी लक्षणों वाले होते हैं, “अत: F, पीढ़ी एवं प्रभावी जनक पौधों के बीच सम्पन्न प्रतीप संकरण (Back cross) को बहिरक्रॉस या बहिर – संकरण (Outcross) भी कहते हैं।” इस प्रकार के संकरण को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

(B) परीक्षण क्रॉस (Test cross)—इस प्रकार का प्रतीप क्रॉस (Back cross) प्राय: लक्षणों की शुद्धता का परीक्षण करने के लिये करवाया जाता है। यहाँ F पीढ़ी के पौधे एवं अप्रभावी जनक के बीच संकरण करवाने पर 50 प्रतिशत पौधे अप्रभावी लक्षण वाले शेष 50 प्रतिशत संकर (अशुद्ध) प्रभावी लक्षणप्ररूप प्रदर्शित करते हैं। यह निम्न प्रकार समझाया जा सकता है-

प्रभावी लक्षण वाले लम्बे पौधे संकर या विषमयुग्मजी (Tt) या (Heterozygous) होंगे ।

परीक्षण संकरण का महत्त्व (Importance of test cross)

  1. प्रभावी लक्षण बाह्य रूप से दो विभिन्न जीन प्रारूपों (Genotypes) के कारण परिलक्षित होते हैं जैसे-(1) विषम युग्मजी (Tt) एवं (2) समयुग्मजी प्रभावी (TT) । लेकिन इन लक्षणों को बाह्य लक्षण प्ररूप (Phenotype) द्वारा नहीं पहचाना जा सकता। ऐसी अवस्था में इन दोनों स्थितियों का पता लगाने के लिये परीक्षण क्रॉस का उपयोग किया जाता है। पौधों में वैकल्पिक जीनों की स्थिति ज्ञात करने के लिए ही परीक्षण क्रॉस करवाया जाता है।
  2. परीक्षण क्रॉस द्वारा ही हमें यह ज्ञात होता है कि वास्तव में पादप में वैकल्पिक जीन समयुग्मजी (TT अथवा tt) रूप में उपस्थित है, या विषम युग्मजी प्ररूप में ।
  3. इससे लक्षणों की शुद्धता भी ज्ञात होती है ।