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allelic and non allelic gene interaction in hindi , युग्म विकल्पी एवं युग्मविकल्पी जीन अन्तःक्रिया

युग्म विकल्पी एवं युग्मविकल्पी जीन अन्तःक्रिया allelic and non allelic gene interaction in hindi ?

युग्मविकल्पी एवं अयुग्मविकल्पी जीन अन्तर्क्रियाएँ   (Allelic and Non-allelic Gene Interaction)

मेण्डल द्वारा सम्पादित एक संकर क्रॉस (Monohybrid Cross ) एवं द्विसंकर क्रॉस (Dihybrid Cross) के परिणामों से यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक लक्षण केवल एक कारक या जीन के द्वारा नियन्त्रित होता है परन्तु इसके बाद कुछ वैज्ञानिकों द्वारा सम्पादित प्रयोगों के आधार पर यह तथ्य उभर कर सामने आया कि लक्षण विशेष को नियन्त्रित करने में दो अथवा दो से अधिक जीनों की सक्रिय भूमिका होती हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि गुणसूत्र पर उपस्थित अनेक जीनों के ऐलील केवल एक लक्षण विशेष के लिए ही उत्तरदायी होते हैं। अत: विभिन्न जीनों द्वारा किये गये पुनर्संयोजन (Recombinations) में यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि सभी जीन किसी एक विशेष परिणाम के लिए उत्तरदायी हों, अपितु जीन अनेक अन्तर्क्रियाओं (Interactions) द्वारा एक लक्षण विशेष की अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इनका प्रमुख कार्य लक्षण विशेष के रूपान्तरण (Modification), निरोध (Inhibition ), प्रतिकार (Opposition), या सम्पूरण (Supplementation) में योगदान करने का होता है ।

जीन्स की विभिन्न अन्तर्क्रियाओं या पारस्परिक क्रियाओं (Interactions of genes) को इनकी प्रकृति एवं जीन की संख्या के आधार पर दो श्रेणियों में अग्र प्रकार से बाँटा जा सकता है-

(A) युग्मविकल्पी अन्तर्क्रियाएँ (Allelic Gene interaction)

इस प्रकार की अन्तर्क्रियाएँ केवल अंतराजीनी ( Intragenic) होती हैं। इसमें एक जीन के दो के परिणामों में भी मेण्डल के सामान्य संकरण परिणामों से स्पष्ट विचलन (Deviation) दिखाई पड़ता युग्मविकल्पियों (alleles) की कार्य-प्रणाली या व्यवहार में असामान्यता उत्पन्न हो जाती है। अतः वंशागत है । जीवों में अपूर्ण प्रभाविता ( Incomplete Dominance), सहप्रभाविता (Codominance), या घातक जीन्स (Lethal Genes) का पाया जाना इस प्रकार की युग्मविकल्पी एवं अन्तर्क्रियाओं या अन्तराजीनी पारस्परिक क्रियाओं (Intragenic interaction) के उपयुक्त उदाहरण हैं ।

(B) अयुग्मविकल्पी अन्तर्क्रियाएँ या अन्तरजीनी पारस्परिक क्रियाएँ (Non-allelic gene interactions or Intergenic interactions)

इस प्रकार की अन्तर्क्रियाएँ (Interactions) दो या दो से अधिक जीन्स (Intergeric) के बीच होती हैं। यहाँ दो या अधिक अलग-अलग जीन्स के आपसी व्यवहार या कार्यप्रणाली में असामान्यता दिखाई पड़ती है, जिसके परिणामस्वरूप मेण्डल के सामान्य द्विसंकर क्रॉस (9 : 1) के लक्षणप्ररूपी एवं जीनप्ररूपी अनुपात ( Phenotypic and Genotypic ratio) से स्पष्ट विचलन (Deviation) दिखाई पड़ता है। किसी एक जीन का युग्मविकल्पी (Allele) दूसरे जीन के ऐलील के साथ सहयोग या निरोध कर (Inhibition ) सकता है । इनके कुछ प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार से है-

(1) एक लक्षण को प्रभावित करने वाले दो जीन युग्म (Two Gene Pairs effecting the Same character)—मेण्डल द्वारा सम्पादित सामान्य द्विसंकर क्रॉस के अनुसार, दो जीन स्वतन्त्र अपव्यूहन के द्वारा अलग-अलग लक्षणों को नियन्त्रित करते हैं । परन्तु बेटसन एवं पुन्नेट (Bateson and Punnet, 1905) के अनुसार कुक्कुटों (Fowls) में पाई जाने वाली कलंगी (Comb) संरचना एवं आकृति के लिए दो जीन उत्तरदायी होते हैं। कुक्कुटों में निम्न चार प्रकार की कलंगी पाई जाती हैं – ( 1 ) रोज (Rose) जो ‘R’ जीन के द्वारा नियन्त्रित होती है।

(2) पी या मटर (Pea) कलंगी जे ‘P’ जीन के द्वारा नियन्त्रित होती है;

(3) सिंगल (Single) कलंगी; जो अप्रभावी जीनों r व p की समयुग्मजता में पाई जाती है, व

(4) वालनट (Walnut) कलंगी (चित्र 8.3)।

यहाँ ‘रोज’ एवं ‘पी’ कलंगी दोनों ही सिंगल कलंगी के ऊपर प्रभावी होते हैं। परन्तु यदि किसी कुक्कुट में दोनों जीन अर्थात् ‘R’ एवं ‘P’ उपस्थित हों (RRPP) या ( RrPp) तो ऐसे कुक्कुट में वालनट (Walnut) कलंगी बनती है। इसके विपरीत जिस कुक्कुट में दोनों अप्रभावी जीन ‘F’ एवं ‘p’ मौजूद हों (rrpp) तो उसमें सिंगल कलंगी पाई जाती है। इस प्रकार कुक्कुटों में कलंगी की आकृति के लिये दो जीन उत्तरदायी होते हैं। बेटसन एवं पुन्नेट के अनुसार जब दोनों प्रभावी समयुग्मजी जीन (RRPP) मौजूद हों तो वालनट कलंगी एवं जब दोनों अप्रभावी समयुग्मजी जोन (rrpp) मौजूद हों तो सिंगल कलंगी का लक्षण प्रकट होता है। इसके विपरीत रोज एवं पी कलंगी वाले तब प्रकट होते हैं जब केवल एक प्रभावी युग्मविकल्पी समयुग्मजी या विषमयुग्मजी अवस्था में मौजूद होता है ( Rrpp या RRpp) रोज कलंगी के लिए एवं (mPp या rrPP- पी कलंगी के लिए) । उपरोक्त तथ्यों को अग्र संकरण द्वारा समझाया जा सकता है-

उपरोक्त क्रॉस से यह भी स्पष्ट होता है कि-

  1. कुक्कुटों (Fowls) में कलंगी की संरचनात्मक आकृति के लिए 2 निम्न जीन संयुक्त या पृथक् रूप से जिम्मेदार होती हैं।
  2. जब केवल ‘R’ जीन प्रभावी रूप में हो तो रोज आकृति और जब ‘P’ जीन प्रभावी हो तो पी आकृति की कलंगी का लक्षण प्रकट होता है ।

III. रोज आकृति एवं पी आकृति की कलंगी वाला लक्षण, सिंगल आकृति की कलंगी के लक्षण पर प्रभावी है।

  1. जब कुक्कुट में दो प्रभावी जीन ‘R’ एवं ‘P’ सम या विषम युग्मजी अवस्था में साथ-साथ हों तो वालनट आकृति की कलंगी का लक्षण प्रकट होता है।
  2. वालनट प्रकार का कलंगी लक्षण इस प्रकार सभी पर प्रभावी है ।

(2) मनुष्यों के रक्त समूह में सहप्रभाविता (Codominance in human blood group)

मनुष्यों में रक्त समूह या रुधिर वर्ग, लाल रक्त कणिकाओं (R.B.C.) पर उपस्थित विशेष प्रकार के प्रतिजन या एंटीजन (Antigen ) के कारण निरूपित होता है, तथा यह चार प्रकार का पाया जाता है-

(I) रक्त समूह ‘A’–जिसमें मनुष्यों की लाल रक्त कणिकाओं (R.B.C. ‘s) पर ‘A’ ऐन्टीजन पाया जाता है।

(II) रक्त समूह ‘B’ (Blood Group ‘B’ ) – जिसमें मनुष्यों की R. B.C.’s पर ‘B’ ऐन्टीजन पाया जाता है।

(III) रक्त समूह ‘AB’–जिसमें R.B.C.’s पर दोनों प्रकार के ऐंटीजन ‘A’ व ‘B’ पाये जाते

(IV) रक्त समूह ‘0’—जिसमें मनुष्यों की लाल रक्त कणिकाओं (R.B.C.’s) पर कोई ऐंटीजन नहीं होता ।

ये ‘A’ एवं ‘B’ ऐंटीजन्स अलग-अलग जीनों के द्वारा नियन्त्रित होते हैं। दोनों प्रकार के जीन्स के एक साथ होने पर ही मनुष्यों में लाल रक्त कणिकाओं पर ‘A’ व ‘B’ ऐंटीजन एक साथ मौजूद होते हैं, जैसा कि ‘AB’ रुधिर वर्ग के मनुष्यों में पाया जाता है । यह सहप्रभाविता (Codominance) का एक उदाहरण है, जिसमें दोनों प्रकार के ऐन्टीजन्स की एकसमान अभिव्यक्ति होती है।

(3) प्रबलता (Epistasis)

प्रबलता या Epistasis ग्रीक भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है-” ऊपर खड़ा Standing upon ) । सजीवों में ऐसे अनेक उदाहरण देखे गये हैं जहाँ अलग-अलग युग्मविकल्पियों के सदस्य दो भिन्न जीनों या ऐलीलों में, एक जीन दूसरे जीन की अभिव्यक्ति या प्रभाव को छिपा देता है (Masked ) । दूसरे शब्दों में एक विस्थल (Locus) का जीन, किसी दूसरे विस्थल के जीन द्वारा नियन्त्रित लक्षण को प्रकट होने से रोक देता है। ऐसे जीन जो कि दूसरे जीन की अभिव्यक्ति को रोकने का काम करता है उसे प्रबल जीन (Epistatic gene) कहते हैं, एवं जीन के इस विशिष्ट लक्षण को प्रबलता (Epistasis) कहा जाता है। इसके साथ ही कारक या जीन के प्रकटीकरण या अभिव्यक्ति को अवरुद्ध किया जाता है अथवा छिपाया जाता है उसे अबल जीन (Hypostatic gene) कहते हैं एवं इस गुण को अबलता (Hypostasis) कहा जाता है । यहाँ इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि मेण्डेलियन द्विसंकर क्रॉस में एक युग्मविकल्पी जोड़े के एक ऐलील द्वारा दूसरे ऐलील की (जो समान विस्थल पर मौजूद हो) अभिव्यक्ति को दबाने ( Suppress) या रोकने के लक्षण को प्रभाविता (Dominance) कहा जाता है। अतः प्रभाविता एक अन्तराजीनी (Intragenic ) प्रक्रिया है, जबकि प्रबलता एक अन्तरजीनी (Intergenic) निरोध (Inhibition) है । अर्थात् यहाँ किसी लक्षण की अभिव्यक्ति अयुग्मविकल्पी जीन से नियन्त्रित होती है एवं इस प्रकार के दोनों जीन स्वतन्त्र रूप से अलग-अलग विस्थलों (Loci) पर पाये जाते हैं। प्रबलता ( Epistasis) दो प्रकार की होती है-

(a) अप्रभावी प्रबलता (Recessive epistasis)

(b) प्रभावी प्रबलता (Dominant epistasis)

(a) अप्रभावी प्रबलता या न्यूनता पूरक जीन अभिक्रिया (Recessive epistasis or Supplementary gene action) इस प्रकार की प्रबलता या जीन अभिक्रिया में –

(I) किसी एक जीन का प्रभावी युग्म विकल्पी, जो एक लक्षण को नियन्त्रित करता है, उसकी अभिव्यक्ति के द्वारा सजीव में विशेष लक्षण की अभिव्यक्ति होती है ।

(2) दूसरे जीन का प्रभावी युग्मविकल्पी, स्वयं किसी लक्षण की अभिव्यक्ति के लिए उत्तरदायी नहीं होता अर्थात् लक्षण को नियन्त्रित करने में अप्रभावी होता है। लेकिन इस प्रकार का जीन, जब पहले जीन के प्रभावी युग्मविकल्पी के साथ उपस्थित होता है तो यह इस प्रभावी जीन द्वारा नियन्त्रित लक्षण की अभिव्यक्ति या इससे उत्पन्न लक्षणप्ररूप को परिवर्तित कर देता है।

अत: न्यूनतापरक जीन अभिक्रिया में, किसी एक जीन का प्रभावी प्रारूप तो लक्षण विशेष को और उत्पन्न करता है जबकि दूसरी जीन का प्रभावी प्रारूप स्वयं कोई लक्षण तो पैदा नहीं करता ह इससे आगे बढ़ कर पहली प्रभावी जीन के साथ जब हो तो, इससे उत्पन्न लक्षण को भी बदल देता है, या सामान्य लक्षण को विकसित नहीं होने देता। जब ऐसे दो जीन अभिक्रिया करते हैं तो एक नया लक्षण प्ररूप (Phenotype ) प्रकट होता है।

अप्रभावी प्रबलता या न्यूनतापूरक जीन अभिक्रिया को चूहों में त्वचा के रंग की वंशागति के अध्ययन द्वारा समझाया जा सकता है। चूहों (Mice) की त्वचा के जंगली रंग को अगॉटी ( कहते हैं, जिसमें बालों की पट्टी में ऊपर पीला व नीचे काला रंग होता है। यहाँ एक जान (प्रभावी) होता है तो प्रभावी युग्मविकल्पी ‘C’ के कारण रंगीन चूहे उत्पन्न होते हैं, परन्तु जब दोनों युग्मविकल्पी ‘A’ पर दूसरी जीन का अप्रभावी युग्मविकल्पी ” ” प्रबल (epistatic) होता है। जब जीन ‘A’ अनुपस्थित) ‘C’ व ‘A’ एक साथ मौजूद हो तो अगॉटी रंग के चूहे उत्पन्न होंगे। वहीं दूसरी ओर जब प्रभावी युग्मविकल्पी ‘A’ मौजूद हो एवं ‘c’ अप्रभावी युग्मविकल्पी इसके साथ शुद्ध अवस्था में हो तो सफेद या एल्बिनो (Albino) चूहे प्राप्त होंगे, जैसा कि अग्रांकित संस्करण या क्रॉस से स्पष्ट है-

लक्षण प्ररूपी अनुपात ( Phenotypic ratio) = 9 : 3:4

(b) प्रभावी प्रबलता (Dominant Epistasis)

इस परिघटना में दो स्वतन्त्र अयुग्मविकल्पी जीन (Non-allelic gene) किसी सजीव के केवल एक लक्षण को प्रभावित करते हैं एवं इस प्रकार की प्रबलता जीन अभिक्रिया (Epistatic gene action) एक जीन दूसरे जीन की अभिव्यक्ति को प्राच्छादित कर देता है (Over masking) या दबा देता है यह जीन अन्तर्क्रिया मेण्डल की वंशागति प्रक्रिया से अलग हैं क्योंकि मेण्डलीय संकरण प्रयोगों में जब दो युग्मविकल्पी या 2 विपर्यासी लक्षणों में केवल प्रभावी लक्षण ही F में प्रकट होता है, अर्थात् प्रभाविता एक ही जीन के दो ऐलील्स के बीच में अभिव्यक्त होती है, दो अलग-अलग जीन्स के बीच नहीं । अतः प्रभावी प्रबलता में प्रबल जीन का प्रभावी युग्मविकल्पी दूसरे जीन की अभिव्यक्ति को दबा देता है ।

दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि प्रबलता के अन्तर्गत शामिल या प्राच्छादन जीन अभिक्रिया (Masking Gene Action) में सक्रिय दोनों जीन समान लक्षण को प्रभावित करते हैं । ये दोनों जीन जब पृथक् या अकेले होते हैं, तो दोनों ही बिल्कुल अलग प्रकार के लक्षणों की अभिव्यक्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं या भिन्न लक्षण प्ररूप ( Phenotype) बनाते हैं।

लेकिन जब ये दोनों एक जीन एक साथ होते हैं तो एक जीन, दूसरी जीन द्वारा नियन्त्रित लक्षण को प्रकट नहीं होने देता, अपितु दबा (Over-mask) देता है । परन्तु जब प्रबल जीन अप्रभावी अवस्था में एवं पहले प्राच्छादित होने वाली जीन प्रभावी अवस्था में मौजूद हो तो एक अलग ही प्रकार का लक्षण प्ररूप (Phenotype) उत्पन्न होता है ।

प्रभावी प्रबलता (Dominant Epistasis) की प्रक्रिया को कद्दू में फलों के रंग (Fruit colour hin Cucurbita pepo) की वंशागति के उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता हैं। यहां फलों में सफेद, हरा व पीला रंग होना प्रभावी प्रबलता का उदाहरण है । सिनोट (Sinnot 1914) के अनुसार फल का सफेद रंग, कद्दू के हरे एवं पीले रंगों पर प्रभावी है, जबकि फल का पीला रंग केवल हरे रंग पर ही प्रभावी है।

अगर सफेद फल वाले कद्दू (WWYY) का क्रॉस हरे रंग के फल वाले कद्दू (wwyy) के पौधे से करवाया जावे तो F, पीढ़ी में प्राप्त सभी पौधों में फलों का रंग सफेद (WwYy) होगा।

F, पीढ़ी के पौधों में स्वनिषेचन करवाने के बाद F2 में प्राप्त सफेद, पीले व हरे रंग के फल वाले कद्दू के पौधों का अनुपात क्रमश: 12 : 3 : 1 होगा । जनक पीढ़ी में पहले लक्षण प्ररूपी फलों का रंग पीला नहीं देखा गया था परन्तु इस प्रक्रिया में F2 पीढ़ी में पीले रंग के फल वाले कद्दू के पौधे प्राप्त होते हैं, जैसा कि निम्न संस्करण से स्पष्ट है-

रूपान्तरित लक्षण प्ररूपी अनुपात (Modified Phenotypic ratio)

उपरोक्त क्रॉस से स्पष्ट है कि-

(a) फलों के पीले रंग के लिए प्रभावी जीन ‘Y’ उत्तरदायी है ।

(b) फलों के हरे रंग के लिए अप्रभावी जीन ‘y’ उत्तरदायी है ।

(c) फलों के सफेद रंग के लिए प्रभावी प्रबलता जीन ‘W’ उत्तरदायी है ।

(d) इस क्रॉस के परिणामस्वरूप यह भी स्पष्ट होता है कि यहाँ एक जीन ‘W’ की अभिव्यक्ति इतनी प्रबल या तीव्र होती है, कि इसकी प्रभावी अवस्था ‘W’ की उपस्थिति में दूसरे प्रभावी जीन ‘Y’ की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती परिणामस्वरूप जिस जीन प्ररूप में ‘W’ जीन उपस्थित होता है, वहाँ यदि ‘Y’ जीन मिले तब भी फल का रंग सफेद ही होगा, पीला नहीं, क्योंकि ‘W’ जीन प्रभावी रूप में प्रभाव ‘Y’ के प्रभाव ( पीले रंग) को दबा देता है।

(e) अप्रभावी रूप में ‘w’ जीन का ‘Y’ पर कोई प्रभाव नहीं होता है, व पीले रंग के फल प्राप्त होते हैं | अत: जीन ‘WY’ या ‘Wy’ होने पर सफेद रंग के फल मिलेंगे। जीन ‘wY’ होने पर पीले फल मिलेंगे एवं जीन ‘wy’ होने पर हरे रंग के फल मिलेंगे ।

(f) इस प्रकार यदि समयुग्मजी अप्रभावी जीनप्ररूप ‘ ww’ उपस्थित है, तो इसके साथ प्रभावी ‘Y’ जीन पीला रंग उत्पन्न करता है ।

(g) दोनों जीनों के अप्रभावी समयुग्मजी ‘ wwyy’ उपस्थित होने के कारण फल का रंग हरा होता है ।

(h) उपरोक्त क्रॉस के अनुसार F2 पीढ़ी के 16 पौधों में कम से कम 12 में एक प्रभावी ‘W’ जीन है, अतः इनमें फलों का रंग सफेद है। तीन में कम से कम एक प्रभावी जीन ‘Y’ तो उपस्थित है, लेकिन प्रबल जीन ‘W’ नहीं है, अत: इनमें पीले रंग के फल पाये जाते हैं, में न तो प्रभावी एवं प्रबल जीन ‘W’ और न ही दूसरा प्रभावी जीन ‘Y’ उपस्थित है । अत: यहाँ . जबकि एक पौधे अप्रभावी समयुग्मजी अवस्था “wwyy” में फलों का रंग हरा है ।

(i) इस प्रकार कद्दू में फलों का रंग दो पृथक् अयुग्मविकल्पी जीनों (Non-allelic genes) क्रमश: ‘W’ एवं ‘Y’ के द्वारा नियन्त्रित होता है ।

प्रभावी प्रबलता (Dominant Epistasis) को अन्य कई उदाहरणों जैसे, जौ में बीज आवरण का रंग कुत्तों में त्वचा आवरण के रंग की वंशागति के द्वारा भी समझाया जा सकता है।

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