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आहार नाल किसे कहते हैं | alimentary canal meaning in hindi | आहारनाल की परिभाषा , चित्र , कार्य

(alimentary canal meaning in hindi) आहारनाल का क्या कार्य होता है ? आहार नाल किसे कहते हैं आहारनाल की परिभाषा , चित्र ,संरचना लम्बाई कितनी होती है in english ?

पाचन

मनुष्य का पाचन तंत्र आहार नाल एवं सहायक ग्रंथियों से मिलकर बना होता है।

पाचन ग्रंथियां

मनुष्य के पाचन में पांच मुख्य ग्रंथियां सहायक होती हैंः

पित्ताशयी ग्रंथि

पित्ताशयी ग्रंथी अमाशय में होती है। ये ग्रंथियां हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और पित्ताशय रस का स्राव करती हैं और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय बनाता है।

लार ग्रंथि

लार ग्रंथी मुख में होती है। मनुष्य में तीन लार ग्रंथियां होती हैं जिनसे लार का स्राव होता है। लार में उपस्थित एन्जाइम को लार अमालेस कहते हैं जोकि मुंह से स्टार्च का विघटन करता है। लार ग्रास नली को जाते हुये भोजन को भी नम करता है।

आंत्रिक ग्रंथियां

छोटी आंत की दीवार में कई प्रकार की ग्रंथियां पायी जाती हैं। इन ग्रंथियों से रसित इन्जाइम भोजन के पूर्ण पाचक के लिए उत्तरदायी होते है।

यकृत

यह मनुष्य में सबसे बड़ी ग्रंथी होती है। लीवर में से बाइल द्रव का स्राव होता है जो कि पित्ताशय में होता है। यह पाचन में सहायक होती है। बाइल का मुख्य कार्य वसा को छोटे भागों में तोड़कर उसे पाचक बनाना है ताकि वह आसानी से पच सके। अमाशय का अम्लीय भोजन अब क्षारीय हो जाता है।

अग्नाशय (पैन्क्रिया)

यह लीवर के बाद दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथी है। यह ग्रहणी के वलय में होती है। इसमें पैन्क्रियाटिक रस का स्राव होता है जिसमें काफी सारे पाचक एन्जाइम होते हैं। ट्रिपसिन और कोमोट्रिपसिन प्रोटीन के विघटन में सहायक होते हैं। अमीलेस, पॉलीसेकराइड का विघटन करता है। लीपेस वसा का और न्यूक्लिएसिक न्यूक्लिक अम्ल का विघटन करता है। अग्नाशय न् आकार के ग्रहणी के बीच स्थिति एक लंबी ग्रंथि है जो बहिःस्रावी और अंतःस्रावी, दोनों ही ग्रंथियों की तरह कार्य करती है। बहिःस्राव भाग से क्षारीय अग्नाशयी स्राव निकलता है, जिसमें एंजाइम होते हैं और अतः स्रावी भाग से इंसुलिन और ग्लुकेगोन नामक हार्मोन का स्राव होता है।

ऽ जो पाचक एन्जाइम ड्यूडनम और इलियम में लाए जाते हैं वो क्षारीय खाद्य पदार्थ के विघटन में उत्प्रेरक होते हैं।

ऽ आंत्रिक ग्रंथियां आंत्रिक रस का स्राव करती हैं।

ऽ यकृत की कोशिकाओं से पित्त का स्राव होता है जो यकृत नलिका से होते हुए एक पतली पेशीय थैली-पित्ताशय में सांद्रित एवं जमा होता है।

मुखगुहा

यह एक छोटी ग्रसनी में खुलती है जो वायु एवं भोजन, दोनों का ही मार्ग है। एक उपास्थिमय घॉटी ढक्कन, भोजन को निगलते समय श्वासनली में प्रवेश करने से रोकती है। ग्रसिका एक पतली लंबी नली है, जो गर्दन, वक्ष एवं मध्यपट से होते हुए पश्च भाग में थैलीनुमा आमाशय में खुलती है।

ऽ छोटी आंत के तीन भाग होते हैंः श्श्रश् आकार की ग्रहणी, कुंडलित मध्यभाग अग्रक्षुदांत्र और लंबी कुंडलित क्षुद्रांत्र ।

ऽ आमाशय का ग्रहणी में निकास जठरनिर्गम अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित होता है।

ऽ क्षुदांत्र बड़ी आंत में खुलती है जो अंधनाल, वृहदांत्र और मलाशय से बनी होती है।

आहारनाल

आहारनाल अग्र भाग में मुख से प्रारंभ होकर पश्च भाग में स्थित गुदा द्वार बाहर की ओर खुलता है। मुख, मुखगुहा में खुलता है। मुखगुहा में कई दांत और एक पेशीय जिहा होती है। प्रत्येक दांत जबड़े में बने एक सांचे में स्थित होता है। इस तरह की व्यवस्था को गर्तदंती कहते

हैं।

ऽ मनुष्य सहित अधिकांश स्तनधारियों के जीवन काल में दो तरह के दांत आते हैंः

ऽ अस्थायी दंत समूह अथवा दूध के दांत जो वयस्कों में स्थायी दांतों से प्रतिस्थापित हो जाते हैं। इस तरह की दंत-व्यवस्था को द्विबारदंती कहते हैं।

ऽ वयस्क मनुष्य में 32 स्थायी दांत होते हैं, जिनके चार प्रकार होते हैं, जैसे- कृतकय प्, रदनकय ब् अग्र-चवर्णक च्ड और चवर्णकय, डप् ऊपरी एवं निचले जबड़ों के प्रत्येक आधे भाग में दांतों की व्यवस्था प्ए ब्ए च्डए ड में एक दंतसूत्र के अनुसार होती है जो मनुष्य के लिए 2123,2123 है।

ऽ इनैमल से बनी दांतों की चबाने वाली कठोर सतह भोजन को चबाने में मदद करती है। जिहा स्वतंत्र रूप से घूमने योग्य एक पेशीय अंग है जो फेनुलम द्वारा मुखगुहा के आधार से जुड़ी होती है। जिहा की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे उभार के रूप में पिप्पल और पैपिला होते हैं, जिनमें कुछ पर स्वाद कलिकाएं होती हैं।

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