JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

alcoholic beverages in hindi , definition , मादक या एल्कोहलिक पेय पदार्थ किसे कहते हैं , परिभाषा

जाने alcoholic beverages in hindi , definition , मादक या एल्कोहलिक पेय पदार्थ किसे कहते हैं , परिभाषा ?

मादक या एल्काहलिक पेय (Alcohlic beverages)

विहस्की, रम, जिन, ब्राण्डी तथा वोडका सभी एल्कोहलिक किण्वन के उत्पाद हैं। ये पेय अनाज, मोलासस, आलू तथा अनेक फलों से बनाये जाते हैं। इनमें आसुत (distilled) उत्पाद भी होते हैं। ये पर्य एक्लोहॉल, मदिरा या बीयर होते हैं। इन पेय पदार्थों को बनाने हेतु शुद्ध स्प्रिट तैयार की जाती है। विभिन्न पदार्थों के एल्कोहॉलिक आसवन द्वारा ये पेय पदार्थ तैयार किये जाते हैं। विहस्की अंकुरित अनाज से, रम, शीरा या मोलेसस से, ब्राण्डी अंगूरों से, मदिरा तथा वोडका आलू से तैयार किया जाता है। ये पदार्थ लम्बे समय तक लकड़ी या मिट्टी के संग्रहकों में रखकर छोड़ दिये जाते हैं। अधिक पुराने पेय अधिक मंहगे तथा प्रभावी होते हैं। इन पेय पदार्थों में गन्ध, स्वाद, आदि लक्षण भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रिया द्वारा उत्पन्न होते हैं। इन पेय पदार्थों के निर्माण में प्रयुक्त, पदार्थ, निर्माण विधि एवं एल्कोहॉल की प्रतिशत के आधार पर इन्हें वर्गीकृत किया जाता है।

  1. मदिरा ( Whine ) : फलों के रस का किण्वन करके यह पेय तैयार किया जाता है। फलों, सामान्यतः अंगूरों का रस किण्वन हेतु उपयोग में लाया जाता है । किण्वन के लिए यीस्ट जैसे सेकेरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisiac) तथा सेके. एलिप्सॉइड्स (Saccharomyces ellipsoideus) रस में डालकर छोड़ दिये जाते हैं। यीस्ट शर्कराओं का किण्वन करके एथेनॉल तथा कार्बन डाई ऑक्साइड बनाते हैं। एल्कोहॉल बनने की मात्रा फलों के रस की प्रकृति तथा यीस्ट विभेद पर निर्भर करती है। किण्वन हेतु आवश्यक अनुकूल परिस्थितियों का होना अत्यन्त आवश्यक होता है। किण्वन क्रियाएँ विभिन्न डिस्टीलरीज में भिन्न प्रकार की उपयोग में लायी जाती हैं. यह क्रिया मदिरा की किस्म के अनुरूप बदल दी जाती है। सामान्य प्रक्रिया जो डिस्टीलरीज में अपनायी जाती है। चित्र 27.1 में दर्शायी गयी है। किण्वन की क्रिया तापक्रम (5-6°C) पर 7-11 या अधिक दिनों तक होने दी जाती है, इस मदिरा को पकने के लिए कम तापक्रम पर लम्बे समय तक छोड़ दिया जाता है। परिपक्वन के दौरान रासायनिक परिवर्तन होते हैं। इस दौरान विशिष्ट गन्ध उत्पन्न होती है। यदि उपयुक्त परिरक्षक न उपयोग किये जायें तो यह जीवाणुओं द्वारा संदूषित होकर एसिटिक एसिड में बदल दी जाती है तथा सिरका बनने की क्रिया हो सकती है। एल्कोहॉल की सान्द्रता इन पेय पदार्थों में 10% से अधिक आवश्यकतानुसार रखी जाती है।

सारणी 27.2: एल्कोहलिक पेय पदार्थ

क्र.सं.

 

मादक पेय

 

निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ

 

विधि

 

1. मदिरा

 

फलों का रस प्रायः अंगूर

 

प्राकृतिक किण्वन 12-22%

 

2. बीयर

 

अंकुरित जौ (माल्ट )

 

प्राकृतिक किण्वन 2.73-

4.75%

 

3. ब्राण्डी

 

फलों का रस प्रायः अगूर

 

प्राकृतिक किण्वन एवं आसवन द्वारा एल्कोहॉल प्रतिशत में वृद्धि 60-70%

 

 

4. विहस्की

 

अंकुरित अन्न

 

50-51%

 

5. रम

 

शीरा (मोलासस)

 

40%

 

6. वोडका

 

आलू

 

40%

 

फेनी

 

काजू

 

40%

 

जिन

 

अंकुरित जौ (माल्ट )

 

40%

 

 

वाइन का निर्माण अच्छे किस्म के अंगूरों से किया जाता है। अंगूरों को धोकर कुचलने हेतु क्रशर (crusher) डाला जाता है। इनके डन्ठल पृथक् किये जाते हैं। छिलका, बीज, गूदे एवं रस को मस्ट (must) कहते हैं। लाल वाइन बनाने के लिये मस्ट को किण्वन टंकी में किण्वन हेतु रखते हैं किन्तु श्वेत वाइन बनाने के लिये मस्ट से छिलका व बीज भी पृथक् किये जाते हैं। किण्वन की क्रिया सेकेरोमाइसेस सेरविसी (Saccharomyces cerevisiae) के विशिष्ट विभेदों को किण्वन टंकी में संचारित कर की जाती है। कुछ विधियों में अन्य सूक्ष्मजीवों का प्रवाह भी कभी-कभी यीस्ट की वायुवीय वृद्धि हेतु किया जाता है । किण्वन नियंत्रित ताप व निर्धारित गति की वायुवीय वृद्धि हेतु किया जाता है। किण्वन नियंत्रित ताप व निर्धारित गति पर होने वाली प्राकृतिक क्रिया है । वाइन की प्रकृति के अनुरूप इसमें कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह का समय लिया जाता है, इस दौरान अधि कांश शर्करा का किण्वन होने से ईथाइल एल्कोहॉल व कार्बनडाई ऑक्साइड बनती है। किण्वन के पश्चात् प्राप्त मलवे का अवसादन ( settling) कर छनन (filtration) हेतु ले जाया जाता है, इसके उपरान्त परिपक्वन (ageing) हेतु लकड़ी के बड़े-बड़े बर्तनों (barrels) में भर देते हैं। इस क्रिया में वाइन की किस्म के अनुसार वर्षों तक का समय लगता है जिसके फलस्वरूप विशिष्ट स्वाद, महक  एवं सान्द्रता युक्त वाइन तैयार होती है, इस दौरान भी अनेक सूक्ष्मजीवों द्वारा अभिक्रियाएँ की जाती हैं। परिपक्वन के उपरान्त मदिरा को निकाल कर बोतलों में पैक कर के बाजार में बिक्री हेतु भेजा जाता है।

मदिरा बनाये जाने के दौरान किण्वन व परिपक्वन की क्रियाओं के अन्तर्गत अनेक जटिल क्रियाएँ होती हैं जिनका ठीक से ज्ञान नहीं है, इस दौरान विभिन्न, शर्कराओं, कार्बनिक अम्ल, अमीनों अम्ल, रंगा पदार्थों जो कि फलों के रसों में पाये जाते हैं, के संगठन में अनेक परिवर्तन होते हैं।

मदिरा निर्माण भी एक कला है जिसका ज्ञान आदिकाल से मानव को ज्ञात है। द्राक्षासव या सुरा बनाने एवं उपयोग करने का वर्णन आदिकालीन कथाओं में मिलता है। अंगूरों पर पायी जाने वाली मोम की पर्त जिसे ब्लूम (bloom) कहते हैं विशिष्ट आवश्यक जीवाणुओं द्वारा लदी रहती है। एक अंगूर की सतह पर लगभग 1 करोड़ यीस्ट कोशिकाएँ पायी जाती हैं।

मदिरा के प्रकार (Types of wine) : अंगूरों की जाति, सूक्ष्मजीवों के उपयोग किये गये प्रभेद, किण्वन के प्रकार एवं उपयोग किये जाने वाले तत्वों के अनुसार अनेक प्रकार की मदिरा बाजार में बिक्री हेतु लायी जाती है। इनमें से मुख्य निम्न हैं-

(a) लाल मदिरा (Red wines) : इनमें लाल रंग अंगूरों के छिलके व बीजों के कारण पाया जाता है। इनमें एल्कोहॉल 11 21% होता है, इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ाकर शैम्पन बनाई जाती है।

(b) ड्राई वाइन (Dry wines) : इनमें शर्करा की मात्रा अल्पतम होती है, एल्कोहॉल की मात्रा 19-20% रखी जाती है।

(c) मीठी मदिरा ( Sweet wines) : किण्वन की क्रिया शर्करा की अधिक मात्रा के दौरान ही रोक दी जाती है अतः ये मीठी होती है।

(d) शेरी वाइन (Sherry wines) : विशिष्ट जाति के यीस्ट द्वारा किण्वन कराकर बनाई जाती है अतः गन्ध व स्वाद में भिन्नता रखती है।

(e) स्टिल वाइन (Still wines) : इनमें कार्बन डाई ऑक्साइड नहीं रखी जाती, एल्कोहॉल की मात्रा 12-15% पायी जाती है।

(f) फोर्टीफाइड वाइन (Fortified wines ) : सामान्य मदिरा में अन्य प्रकार की स्प्रिट, ब्राण्डी मिलाकर बनाते हैं ।

  1. बीयर (Beer) : बीयर भी एल्कोहॉल की भाँति एल्कोहॉलिक किण्वन से तैयार किया जाने वाला पेय पदार्थ है, यह अंकुरित अनाज जैसे जौ को यीस्ट द्वारा किण्वन से तैयार किया जाने वाला पेय पदार्थ है। इसमें मंड (starch) को शर्करा में बदला जाता है। शर्करा को अन्त में एल्कोहॉल में परिवर्तित करने की क्रिया की जाती है। बीयर में एल्कोहॉल की मात्रा मदिरा से कम होती है, यह माल्टेड जौ (बारले), मक्का या चावल से तैयार किया जाता है।

इसमें विशिष्ट कडुवा स्वाद (bitter taste) हाप्स के कारण होता है जो परिरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। हाप्स लता स्वरूप पादप पुष्प होते हैं जिनका उपयोग बीयर बनाने में करते हैं। यीस्ट की दो प्रजातियों विशिष्ट कर सेकेरोमाइसेस सेरेविसे (Saccharomyces cerevisae) एवं से. केरिसबरजेन्सिस (S. carisbergensis) को किण्वन हेतु उपयोग में लाते हैं। बीयर को औद्योगिक रूप से तैयार करने में पाँच अवस्थाएँ होती हैं-

(i) मार्टिंग (malting) (ii) मसलना (mashing ) (iii) किण्वन ( fermenting) (iv) परिपक्वन (maturing) (v) परिष्करण (finishing ) ।

(i) माटिंग (Malting) : इस क्रिया में अनाज की मंड को शर्करा में बदल दिया जाता है, माल्ट बनाने के लिये अनाज को भिगों कर अंकुरित होने देते हैं यह क्रिया 17°C पर की जाती है, इस दौरान एमाइलेज बनता है जो मुंह को किण्वित कर शर्करा में बदल देता है। अंकुरण होने के उपरान्त अनाज को 65°C पर सुखाया जाता है, यह ग्रीन माल्ट कहलाता है जो वोर्ट (wort) बनाने हेतु कच्चा माल होता है। माल्ट को इसी अवस्था में या अन्य मंड युक्त पदार्थों के साथ मिलाकर काम में लेते हैं।

(ii) मसलना (Mashing ) : ग्रीन माल्ट में अन्य अनाज जैसे मक्का (corn), राई (rve), ज्वार (sorghum), गेहूं (Wheat), मिलाये जाते हैं, इसे आधारीय माल्ट (ground malt) कहते हैं। इसमें गर्म जल मिलाकर तापक्रम 70°C व pH 5.0 बनाते हैं, इस प्रकार आंशिक अपघटन की क्रिया के दौरान मंड व प्रोटीन का पाचन होता है, इसे छानने पर बीयर वोर्ट (bear wort) प्राप्त होता है. यह सूक्ष्मजीवों के वृद्धि हेतु उचित माध्यम का कार्य करता है, इसमें हाप्स डाल कर उबालते हैं। हाप्स हाप वाइन ह्यूलस ल्यूप्यूलस (Humulus lupulus) नामक पौधे के मादा फूलों की सूखी पंखुडियाँ होती हैं। इनके कारण बीयर में विशिष्ट गन्ध, रंग व परिरक्षण की गुणवत्ता प्राप्त होती है।

(iii) किण्वन (Fermenting) : बीयर वोर्ट में सेकेरामाइसेसे सेरेविसे (Saccharomyces cerevisae) या से. केरिसबर्जेन्सिस (Sa. carisbergensis) के शुद्ध संवर्धन का प्रवेश कराते हैं। किण्वन की क्रिया 5°C – 14°C पर होने दी जाती है, इसमें 5-10 दिन का समय लगता है।

(iv) परिपक्वन (Maturing) : किण्वित बीयर को °C पर लगभग 6-8 माह के लिये परिपक्वन होने हेतु छोड़ देते हैं। इस प्रकार तीखी गंध व अन्य अनावश्यक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।

(v) परिष्करण (Finishing ) : अंतिम चरण के रूप में परिपक्त्रित बीयर में कार्बन डाई ऑक्साइड मिलाने (carbonation), छानने (filtration ) व बोतलों में भरने (canning or bottling) का कार्य होता है, इससे पूर्व बीयर को 60°C पर 20 मिनट के लिये पास्तेरीकृत करते हैं। विभिन्न प्रकार की बीयर में 2.7% से 4.75% एल्कोहॉल होता है।

स्वाद, रंग, लम्बे समय तक संग्रहित बीयर व एल्कोहॉल की मात्रा के अनुसार अनेक नामों से जानी जाती है। विश्व में विभिन्न प्रकार की बीयर की खपत 700 खरब लीटर से अधिक है।

3 आसुत मद्य (Distilled Liquors) : किण्वन क्रिया एल्कोहॉल की अधिकता होने पर कम होने लगती है, यह 18% एल्कोहॉकि माध्यम में बंद हो जाती है। अतः अधिक सान्द्र पेय बनाने हेतु आसवन क्रिया की जाती है, इस प्रकार तैयार मदिरा को हार्ड लिकर (hard liquor) कहते हैं। द्रवों के आसवन की प्रकृति के अनुसार मुख्यतः 3 वर्गों में रखी गयी है-

(1) वे पेय जो मंड युक्त पदार्थों से एन्जाइम द्वारा उत्पन्न किये गये हैं।

(2) वे पेय जो शर्करा पदार्थों से तैयार किये गये हैं।

(3) वे पेय जो शुद्ध एल्कोहॉल में गंध युक्त पदार्थ डालकर बनाये गये हैं।

असवित मद्य के प्राथमिक निर्माण चरण बीयर के समान ही होते हैं। इसमें माल्ट को उबालते नहीं है, स्टार्च का निर्माण किण्वन द्वारा ही होता है । किण्वन के उपरान्त आसवन (distillation) की क्रिया की जाती है।

इसमें परिपक्वन एवं परिष्करण की विधियाँ भी भिन्न होती है। ये भी अनेक प्रकार की जाती हैं। माल्ट विहस्की माल्टेड जौ से बनाकर आसुत की जाती है। ग्रेन विहस्की माल्टैड व बिना माल्टेड जौ से तथा मक्का से तैयार की जाती है। माल्ट व ग्रेन विहस्की पका कर व विशिष्ट गंध युक्त तथा सौरभ उत्पन्न कर स्कांच विहस्की (Scotch whisky) बनायी जाती है, यह स्काटलैंड में बनाये जाने वाली विख्यात विहस्की है जिसे परिपक्वन हेतु अनेक वर्षों तक लकड़ियों की टकियों (cask) में रखा जाता है, इस प्रकार प्राप्त पेय विशिष्ट स्वाद, रंग व सौरभ युक्त होता है । आयरिश विहस्की राई से तथा बॉरवोन विहस्की मक्का से बनायी जाती है। अरक व सेक ( sake) चावल से तैयार किया जाता है। ब्राण्डी फलों के रस से तैयार की जाती है। रस किण्वित मोलॉसेस या गन्ने से तैयार की जाती है। जिन जूनियर बेरीज व एल्कोहॉल से आसवन द्वारा तैयार करते हैं। कार्डियल्स तथा लिकर फलों, फूलों तथा पत्तों के मीठे एल्कोहॉल युक्त पेय होते हैं।

सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा विभिन्न भोज्य पदार्थों का किण्वन कर ईथाइल एल्कोहॉल, एसिटिक एसिड, लेक्टिक एसिड, सिट्रिक एसिड व अनेकों प्रकार के एन्जाइम बनाने की उच्च क्षमता होती है।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

12 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

13 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now