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अहमदिया आंदोलन की स्थापना किसने की ahmadiyya movement was founded by in hindi

By   December 5, 2022

ahmadiyya movement was founded by in hindi अहमदिया आंदोलन की स्थापना किसने की ?
प्रश्न: अहमदिया आंदोलन
उत्तर: मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में एक आंदोलन शुरू किया, जो उन्हीं के नाम पर अहमदिया आंदोलन कहलाया। इन्होंने स्वयं को हजरत महम्मद के समकक्ष कहा तथा इस्लाम का मसीहा बताया। बाद में यह अपने आप को कृष्ण का अवतार कहने लगा।

प्रश्न: राधा स्वामी सत्संग
उत्तर: शिवदयाल साहिब द्वारा राधास्वामी सत्संग की स्थापना 1861 में दयालबाग आगरा में की गई। यह एक समाज सधार आंदोलन था।

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भाषा एवं साहित्य

बंगाली
लगभग 1000 ई. के आसपास बंगाली को एक पृथक् भाषा के रूप में पहचान प्राप्त हुई। बंगाली साहित्य की शुरूआत 11वीं-12वीं शताब्दी में लिखे गए गीतों से मानी जाती है। नाथ साहित्य बौद्ध सहजिया संप्रदाय के दर्शन से प्रेरित था। 14वीं शताब्दी में वैष्णववाद बंगाल में फैला और चांदीदास ने भक्तिगीतों की रचना की, जिनका साहित्य पर भी प्रभाव पड़ा। रामायण का रूपांतरण भी 15वीं शताब्दी में काफी लोकप्रिय हुआ। कृतिवास ओझा द्वारा रूपांतरित इस महाकाव्य की प्रस्तुति का पूर्व में उतना ही सम्मान किया जाता है, जितना उत्तर में तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ का। 16वीं शताब्दी में एक भिन्न प्रकार का वैष्णव साहित्य विकसित हुआ प्रकृति के हिसाब से यह आत्मचरित जैसा था और इसके केंद्र में चैतन्य का व्यक्तित्व था। इस शैली की उत्कृष्ट कृति कृष्णदास कविराज की चैतन्य चरितामृत है।
मंगल काव्य किसी देवी या देवता की उसके विरोधियों पर जीत और संघर्ष की स्तुति में लिखी गई लम्बी कविताएं बंगाली में संस्कृत की कृतियों को पेश करने के बाद काफी लोकप्रिय हुईं। ये मंगल काव्य तीन प्रकार के हैं मानस मंगल, चंडी मंगल, और धर्म मंगल।
उन्नीसवीं सदी में आधुनिक बंगाली साहित्य अस्तित्व में आया। बंगाली गद्य के विकास में ईसाई मिशनरियों की भूमिका को भी सराहना होगा। विलियम कैरे ने बंगाली व्याकरण लिखा, अंग्रेजी.बंगाली शब्दकोश का संकलन किया और बाइबिल का बंगाली में अनुवाद कराया। 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम काॅलेज की स्थापना से भी बंगाली साहित्य को काफी बढ़ावा मिला। राजाराम मोहन राय के पर्चों व निबंधों ने भी वांछित भूमिका निभाई। ईश्वरचंद्र विद्यासागर और अक्षय कुमार दत्त ने बंगाली गद्य की असीम संभावनाओं को प्रदर्शित किया और भाषा के प्रयोग को अनुशासित किया। इनके अतिरिक्त बंकिमचंद्र चटर्जी ने अपने उपन्यासों व कहानियों के बल पर बंगाली गद्य को प्रतिष्ठित किया। इन्हें भारत में आधुनिक उपन्यासों का जनक माना जाता है। यद्यपि इनके पहले भी सामाजिक और ऐतिहासिक उपन्यास लिखे गए थे जैसे पियारी चंद्र मित्रा का ‘आलालेर घरेर दुलाल’। इसी से ही उपन्यास के विकास की संभावना बनी थी। लेकिन बंकिमचंद्र ने उपन्यास को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा के रूप में स्थापित किया। शरतचंद्र चटर्जी भी 12वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल के एक अन्य स्थापित उपन्यासकार थे।
बंगाली भाषा की भाव प्रवणता और गेयता को समुचित स्थान कविता में मिला। माइकल मधुसूदन दत्त ने परंपरा तोड़ते हुए बंगाली कविता में नए प्रयोग किए। वह अपनी अतुकांत कविता मेघनाबंध के लिए जागे जाते हैं। यह रामायण के किसी प्रसंग की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त उनकी कुछ चतुर्दशपदी कविताएं भी हैं। बीसवीं शताब्दी में देशभक्ति की सरगर्मी ने काजी गजरूल इस्लाम जैसे कवि दिए।
कलकत्ता में ही बंगाल का आधुनिक नाटक जन्मा। बंगाल का पहला मौलिक नाटक कलीन कुलसर्वस्व था। इसे पंडित रामनारायण ने कुलीन ब्राह्मणों के बीच बहुपत्नी प्रथा को लेकर सामाजिक प्रहसन के रूप में लिखा था। मधुसूदन दत्त ने भी कई नाटक लिखे। इसके बाद दीनबंधु मित्र का नीलदर्पण और कमाले कामिनी आया। गिरीशचंद्र घोष भी एक अच्छे नाटककार थे। बंगाली नाटकों ने राष्ट्रवाद और सामाजिक परिवर्तन के विचारों को आम आदमी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बंगाली साहित्य को रविंद्रनाथ टैगोर की कृतियों में अपना अभीष्ट प्राप्त हुआ। टैगोर ने वैष्णव गीतिमयता, लोकसाहित्य के ओज और पश्चिमी प्रभावों का सुमिश्रण कर बंगाली साहित्य को नया तेवर दिया। कृष्णा कृपलानी ने कहा, ‘‘उनकी रचनाओं में पद्य क्या और गद्य क्या, हर विधा संपूर्णता को प्राप्त हुई। उपन्यास, लघुकथा; नाटक, निबंध और साहित्यिक आलोचना सभी उनके हाथों परिपक्व हुए.भारत के सांस्कृतिक पुगर्जागरण में टैगोर सबसे महत्वपूर्ण सृजनात्मक शक्ति थी और इसमें श्रेष्ठता भी टैगोर ने ही प्राप्त की।’’
टैगोर के बाद भी बंगाली साहित्य समृद्ध होता रहा। दो नाटककार बड़ी तेजी से बंग्ला थिएटर में बड़े बदलाव लेकर आए। एक नरुल मोमेन थे जिन्होंने पहला आधुनिक और प्रयोगात्मक नाटक बनायाए और जिन्हें आधुनिक बंगाली नाटक के पथप्रदर्शक के रूप में देखा जाता है, और अन्य दूसरा बिजोन भट्टाचार्य था।
द्विजेन्द्रलाल रे, जतीन्द्रमोहन बागची, कुमुद रंजन मुलिक, काजी गजरूल इस्लाम, अशरफ अली खान, फारूख अहमद, जीबेनंदा दास के साथ बुद्धदेव बोस ने टैगोर विरासत को आगे बढ़ाने के प्रमुख प्रयास किए।
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के एक बेहद लोकप्रिय उपन्यासकार थे जिनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र समकालीन ग्रामीण बंगाल में महिलाओं के जीवन एवं परेशानियों को उद्घाटित करने में थी। इस शताब्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकारों में हुमायूं अहमद, जगदीश गुप्ता, बलाई चन्द मुखोपाध्याय (बनफूल), सैयद शम्सूल हक, अख्तरुज्जमन इलियास, बिमल कार, समरेश बसु और मणिशंकर मुखर्जी शामिल हैं। प्रसिद्ध लघु कथा लेखकों में रबीन्द्रनाथ टेगोर, जगदीश गुप्ता, ताराशंकर बंधोपाध्याय, बिभूति भूषण बंधोपाध्याय, राजशेखर बसु (परासुरम), शिवराम चक्रवर्ती, सुबोध घोष, नरेन्द्रनाथ मित्रा, ज्योर्तिरिन्द्र नंदी, देबेश राॅय, सत्यजीत रे, रतन लाल बसु, सैयद वलीउल्लाह,शौकत ओसमान, हसन अजीजुल हक और शाहीदुल जाहिर शामिल हैं।
राजशेखर बसु बंगाली साहित्य में व्यंगयात्मक लघु कथा के सुप्रसिद्ध लेखक थे। विभूतिभूषण की पाथेर पांचाली और आर.यक संवेदनशील उपन्यास हैं। ताराशंकर बंधोपाध्याय का गण देवता और आरोग्य निकेतन को बहुत पढ़ा जाता है। अन्य महान उपन्यास पदमंदिर मगही है जिसे मणिक बंधोपाध्याय ने लिखा है। आशापूर्णा देवी के प्रथम प्राथी श्रति के लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। सुभाष मुखोपाध्याय बंगाली के एक प्रसिद्ध कवि हैं जिनके पदतिक और जा रे कागजीर नौका में सामाजिक प्रतिबद्धता प्रकट होती है। उन्हें भी ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
हंगरी जनरेशनः (या हगं रियलिज्म) को हाल ही के समय का बंगाली साहित्य में लीक से हटकर आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन के सुप्रसिद्ध कवि हैं मलय राॅय चैधरी,शक्ति चट्टोपाध्याय, बिनाॅय मजुमदार, समीर राय चैधरी, फालगुनी राॅय,शैलेश्वर घोष, प्रदीप चैधरी, सुबो आचार्य, अरुणेश घोष, और त्रिदिव मित्रा। संदीपन चट्टोपाध्याय, बासुदेव दासगुप्ता, सुबिमल बासक, मलय राॅय चैधरी और समीर राॅय चैधरी इस आंदोलन के फिक्शन-लेखकों में से हैं। वर्ष 2011 में, निर्देशक श्रीजित मुखर्जी ने हंगरी जनरेशन आंदोलन को मुख्यधारा के सिनेमा (बैसी स्राबोन) में शामिल किया वहीं गौतम घोष ने ‘हंगरियालिस्ट’ के विरुद्ध कवि की भूमिका चित्रित की।
प्रकल्पना आंदोलनः यह प्रकल्पना फिक्शन की एक नई शैली रही हैजिसका प्रारंभ 1960 के दशक के उत्तरार्द्ध से हुआ। यह भारत में एकमात्र द्विभाषी (बंगाली-अंग्रेजी) साहित्यिक आंदोलन रहा है जिसकी जननी बंगाली साहित्य रही है और इसमें सुप्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय लेखकों एवं कलाकारों ने भागीदारी की। वट्टचरजा चंदन, दिलीप गुप्ता, आशीष देव, बबलू राॅय चैधरी,श्यामोली मुखर्जी भट्टाचटर्जी, बोधयान मुखोपाध्याय, रामरतन मुखोपाध्याय, निखिल भौमिक, अरुण चक्रवर्ती और अभिजीत घोष जैसे उल्लेखनीय बंगाली कवियों, लेखकों एवं कलाकारों ने इस आंदोलन का प्रतिनिधित्व किया।