JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: Biology

adrenal glands in hindi , अधिवृक्क ग्रंथि के हार्मोन की संरचना और कार्य क्या है , work and structure

पढों adrenal glands in hindi , अधिवृक्क ग्रंथि के हार्मोन की संरचना और कार्य क्या है , work and structure ?

अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal glands)

अधिवृक्क ग्रन्थियाँ प्रोटोकॉडेंट जंतुओं को छोड़कर सभी कशेरुकी जंतुओं में पायी जाती है। पेट्रोमाइजोन में अधिवृक्क ग्रन्थियाँ अन्तर वृक्क काय (inter renal bodies) एवं क्रोमेफिर ऊत्तक (chromaffin tissue) के रूप में पायी जाती है। अन्तर वृक्क काय रक्त वाहिनियों के निटक के आगे तथा क्रोमेफिर ऊत्तक पृष्ठीय महाधमनी एवं इसकी शाखाओं पर उपस्थित होता है। मछलियों में भी अधिवृक्क ग्रन्थि के उपरोक्त दोनों ऊत्तक अलग-अलग ही स्थित होते हैं। अन्त वृक्क काय, वृक्क आय के पश्च सिरे के मध्य तथा क्रोमेफिर ऊत्तकं पृष्ठीय महाधमनीय एवं कार्डिनल शिराओं पर स्थित होता है । उद्विविकास के दौरान उभयचारी ( amphibians) जन्तुओं में सर्वप्रथम अधिवृक्क ग्रन्थि एक संयुक्त इकाई के रूप में पाये जाते हैं किन्तु दोनों भाग परस्पर अन्यन्त शिथिल रूप से अन्तरगुथित (intermingled) होते हैं। सरीसृपों में ये दोनों भाग अत्यन्त घनिष्ठता से मिले रहते हैं। स्तनियों एवं पक्षियों में दोनों भाग अत्यन्त सन्निकट एवं दृढ़ बन्धन बनाते हुए उपस्थित होती है एवं दो भागों बाह्य कॉर्टेक्स (cortex) व भीतरी मैड्यूला (kmedulla) से मिलकर बनी होती है। दोनो भाग उद्भव एवं कार्य के अनुसार भिन्न प्रकृति के होते हैं।

इस ग्रन्थि की खोज यूस्टेकियस (Eustachius) द्वारा की गई एवं इसकी अन्तःस्रावी प्रकृति की खोज का श्रेय डब्ल्यू.बी.केनन (W.B. Canon) हो जाता है।

परिवर्धन (Development ) — अधिवृक्क ग्रन्थि एक संयुक्त ग्रन्थि हैं। इसके दो भाग होते हैं- (i) बाह्य भाग वल्कुट-कॉर्टेक्स (Cortex)

(ii) आन्तरिक भाग मध्याँश या मेड्यूला (Medulla)

उद्भव एवं क्रिया दोनों की ही दृष्टि से ये भाग भिन्नता रखते हैं। अतः दोनों भाग वास्तव में दो प्रकार की अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को निरूपित करते हैं ।

बाह्य भाग वल्कुट या कॉर्टेक्स देह गुहीय छत मध्यजन स्तर ( mesoderm) भ्रूणीय आद्य (embryonic primordia) से बनती है। इसी स्तर के मध्य भाग से जनदों (वृषण एवं अण्डाशय) तथा पार्श्व भाग से वृक्कों का निर्माण होता है। इन दोनों क्षेत्रों के बीच भाग से कॉर्टेक्स भाग का विकास होता है।

आन्तरिक भाग अर्थात् मध्याँश मैड्यूला का परिवर्धन एक्टोडर्मी कोशिकाओं से होता है जो भ्रूणीय आद्य के तंत्रिकीय शिखर (neural crest) से उत्पन्न होती है। इसी भाग से अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system) की गुच्छिका कोशिकाएँ (ganglion cells) विकसित होती । अतः कार्यिकीय स्वरूप में ये दोनों तंत्र समजात अंग है। इस भाग की कोशिकाओं का जीवद्रव्य काण युक्त होता है तथा क्रोमेट भिरंजनों की जाती है, अत: इन्हें क्रोमेफिर कोशिकाएँ कहते हैं।

संचरना (Structure)

मनुष्य में अधिवृक्क ग्रन्थियाँ संख्या में दो होती है। प्रत्येक ग्रन्थि त्रिभुजाकार पीले रंग की टोपी रचना होती है जो वृक्क के ऊपर की ओर स्थित रहती है। ये नर में बड़ी तथा मादा में अपेक्षाकृत छोटी होती है। प्रत्येक का भार लगभग 5 ग्राम होता है। ये अत्यधिक रक्त सम्भरित अंग होते हैं। प्रत्येक ग्रन्थि पर चारों ओर से घिरा सम्पुट (capusule) होता है जो संयोजी ऊत्तक से बना रहता है।

कॉर्टेक्स व मैड्यूला भाग विभिन्न कशेरूकी जंतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं। साइक्लोस्टोमेटा जंतुओं में दोनों प्रकार की कोशिकाएं पश्च प्रमुख शिरा (post cardinal vein) की भित्ति के साथ मध्यवृक्क (mesonephros) में एक साथ फैली हुई अवस्था में पायी जाती है। इस्मोब्रेक जंतुओं में ये रचनाएँ वृक्कों के बीच में उपस्थित होती है अतः अन्तरा वृक्क ग्रन्थियाँ (inter-renal glands) कहलाती है। कॉर्टेक्स व मैड्यूला अंश अलग-अलग या परस्पर मिश्रित अवस्था में उपस्थित रहते हैं । उभयचारियों ( amphibians), सरीसृपों (reptiles) व पक्षियों में ये भाग अधिक संहत (compact) एवं मिश्रिण होते हैं। छिपकलियों व सर्पों के मध्यांश भाग अर्थात् कोमेफिन कोशिकाएं अधिवृक्क की परिधि पर एक पट्टी के रूप में व्यवस्थित रहती है जो वल्कुट (cortex) भग को घेरे रहती है। कूर्मोएवं उभयचारियों में यह ग्रन्थि वृक्क के अधरतः अंशरतः पायी जाती है, किन्तु अन्य सभी सरीसृपों व पक्षियों में यह वृक्क के अग्रतः स्थित होती है । स्तनधारियों (mammals) में यह ग्रन्थि अत्यधिक संहत एवं मिश्रित होती है। इनमें कॉर्टेक्स भाग मैड्यूला को पूर्णत: सभी ओर से घेरे रहता है।

स्तनधारियों की अधिवृक्क ग्रन्थि में बाहर की ओर एक मोटा सम्पुट (capsule) भाग उपस्थित होता है, यह संयोजी ऊत्तक – से निर्मित होता है । इसके नीचे वल्कुट भाग उपस्थित होता है यह तीन स्पष्ट स्तरों में विभक्त किया जाता है।

  • गुच्छ स्तर ( Zona glomerulosa)
  • पूलीस स्तर (Zona fasciculata)

(iii) जालिका स्तर (Zona reticularis)

गुच्छ स्तर सम्पुट के नीचे पतले स्तर के रूप में पाया जाता है यह स्तम्भी (colummar) कोशिकाओं ओं द्वारा बना होता है। इस स्तर में ये कोशिकाएँ गुच्छों के रूप में व्यवस्थित रहती है। पूलीस स्तर कॉर्टेक्स भाग का सर्वाधिक चौड़ा भाग होता है यह बहुतलीय (polyhedral) कोशिकाओं द्वारा बना होता है जो कोशिकीय रज्जुओं द्वारा निर्मित होता है। ये रज्जु त्रिज्यात रूप से व्यवस्थित नहीं होता है।

मध्याँश (medulla) भाग क्रोमेफिर कोशिकाओं द्वारा रचित भाग है। इसमें रक्त वाहिनियों को सभी ओर से घेरे क्रोमेफिन कोशिकाओं के रज्जु एवं पिण्ड पाये जाते हैं। ये रक्त वाहिनियाँ ही इन रज्जुओं एवं पिण्डकों को अलग-अलग रखती है।

एड्रिनल कॉर्टेक्स द्वारा स्रावित हॉरमोन्स (Hormones secrted by adrenal-cortex)

अधिवृक्क ग्रन्थि के वल्कुट भाग स्टिरॉइड्स (steroids) प्रकृति के लगभग 50 हॉरमोन प्राप्त किये जा चुके हैं। इस समूह में मुख्य: कॉर्टिसोन (cortisone), कॉर्टिकोस्टिरॉन (corticosterone), डी-ऑक्सी कार्टिकोस्टिरॉन ( deoxy-corticosterone), एल्डोस्टिरॉन (aldosterone) एवं II-डी हाइड्रो कॉर्टिकोस्टिरॉन (II-Deydro corticosterone), एन्ड्रोजन्स (androgens), प्रोजेस्टिरॉन (projesterone) एवं एस्ट्रोजेन (oestrogen) मुख्य है। इन्हें तीन समूहों में विभक्त किया जा सकता है।

(i) ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स (Glucocorticoids)

(ii) मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स (Mineralocorticoids)

(iii) लिंग हॉरमोन्स (Sex hormones)

सामान्य मनुष्य द्वारा स्रावित विभिन्न हार्मोन्स एवं इनकी मात्रा सारिणी द्वारा प्रदर्शित की गयी

ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स (Glucocorticoids)

कॉर्टिक्स भाग के पूलीच स्तर (zona fasciculata) भाग से स्रवित इस समूह के हार्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को प्रभावित करते है। इस समूह से सबसे प्रभावी हॉरमोन कार्टिसोल (cortisol) है। शेष दोनों हॉरमोन कॉर्टिकोस्टिरॉन एवं कार्टिसान क्षी ग्लूकोकॉटिकोटिक प्रभावी होते हैं। इन हॉरमोंनों का सर्वाधिक प्रभाव यकृत पर होता है, पेशियाँ एवं अन्य अंगों पर इनका प्रभाव क्षीण होता है।

ये हार्मोन कार्बोहाइड्रेट्स एवं प्रोटीन्स के उपापचय की प्रभावित कर इनकी दर को बढ़ाते हैं तथा इनके उपापचय के विभिन पदों को देह की आवश्यकतानुसार निर्देशित करते हैं। ये रक्त ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाने, वसीय ऊत्तकों से वसीय अम्लों को मुक्त कराने, प्रोटीन एव वसाओं को कार्बोहाइड्रेट्स में परिवर्तित करने, सोडियम का संरक्षण एवं जल पोटेशिय का वृक्क द्वारा उत्सर्जन करने में भूमिका निभाते हैं। ये संघर्ष या प्रतिबल (stress) से प्रतिरोध (resistance) देने में सहायक होते हैं, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को अचानक ग्लाइकोजन से परिवर्तन कर बढ़ाने को ग्लूकोनिओजेनेसिस (gluconeogenesis) कहते हैं। ग्लूकोज द्वारा ऊर्जा उपलब्ध कराकर देह की भय, ताप परिवर्तन, रक्त स्राव, संक्रमण, शल्य चिकित्सा, अभिजात (trauma ), भूख (hunger) आदि से बचाने में सहायता करते हैं। ये प्रतिशोथज यौगिक (antiinflammatory compounds) का कार्य भी करते हैं अर्थात् देह में उपस्थित सूजन या शोथ (inflammation) में भाग लेने वाली कोशिकाओं व स्रावों का विरोध करते हैं।

इनके कार्यों को निम्न प्रकार से सूचीबद्ध किया जाता है ।

(i) कार्बोहाइड्रेट उपापचय पर प्रभाव (Effect on carbohydrate metabolism) – इनके प्रभाव से यकृत में उपस्थित अमीनों, अम्ल तथा अन्य उत्तकों में स्थित बाह्य तरल में उपस्थित अमीनों अम्ल ग्लूकोज में परिवर्तित किये जाते हैं। ग्लाइकोजन सिन्थीटेज (glycogen synthetase) नामक इंजाइम की मात्रा में वृद्धि में हो जाती है, अतः यकृत में ग्लाइकोजन (glycogen) की मात्रा में वृद्धि होती है। यह क्रिया ग्लाइकोजेनसिस (glycogenesis) कहलाती है किन्तु यकृत से बाहर देह में उपस्थित ग्लाइकोजन में कमी होती है। अतः अपरोक्ष रूप में ऊत्तकों द्वारा ग्लूकोज के उपयोग में कमी आती है। ग्लूकोनिओजेनि व ऊत्तकों द्वारा ग्लूकोज को उपयोग में कमी के कारण रक्त ग्लूकोज की सान्द्रता में वृद्धि हो जाती है। यह यकृत कोशिओं में ग्लूकोज -6 फॉस्फेटेज (glucose 6-phosphatase) की मात्रा में वृद्धि कर ग्लूकोज की रक्त में अतिरिक्त वृद्धि कर देता है। इस प्रकार रक्त में ग्लूकोज की अधिक सान्द्रता के फलस्वरूप अतिग्लूकोसरक्ता · (hyperglycemia) उत्पन्न हो जाती है, यह रोग अधिवृक्क मधुमेह ( adrenal diabetes) कहलाता है जो अधिक समय तक बने रहने पर अग्नाशय मधुमेह ( paneretic diabetes) में परिवर्तत हो जाता है।

(ii) प्रोटीन उपापचय पर प्रभाव (Effect on protein metabolism)

कॉर्टिसोल के प्रभाव से प्रोटीन्स का अपचय (catabolism) होता है अर्थात् प्रोटीन टूटकर अमीनों अम्ल में परिवर्तित हो जाते हैं, किन्तु यह क्रिया यकृत से बाहर ऊत्तकों में ही होती है। इस प्रकार हुई क्षति को यकृत में विशिष्ट प्रोटीन्स को अमीनों अम्लों से संश्लेषण द्वारा पूर्ण किया जाता है। इस प्रकार रक्त में अमीनो अम्लों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। ऊत्तकों से अमीनों अम्लों का अभिगमन यकृत है।

(iii) वसा उपापचय पर प्रभाव (Effect on lipid metabolism)

कार्टिसोल के प्रभाव से परिधीय वसाओं से वृद्धि होती है। यह क्रिया वसाभवन (lipogenesis) कहलाती है। रक्त में ग्लूकोज की सान्द्रता में वृद्धि होने पर इन्सुलिन की मात्रा में वृद्धि होती है। अतः ग्लूकोज वसाओं में परिवर्तित होने लगता है और देह में वसाओं का संरक्षण होने लगता है। इ हारमोन के प्रभाव से ही वसीय अम्ल चालन (mobilization) बढ़ता है। अतः रक्त प्लाज्मा, बढ़ जाती है। इनका उपयोग ग्लूकोज की भाँति ऊर्जा उत्पादन हेतु किया जाता है।

(iv) शोथ एवं प्रत्युर्जया अवस्था में प्रभाव (Effect on inflammation and allergic stages)

ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स के प्रभाव के देह में शोध क्रियाओं को घटाने की क्रिया होती है। यह इस क्षेत्र में उपस्थित बहुरूपकेन्द्र की श्वेताणुओं (polymorphonuclear leucoyctes) के प्रवेश को तथा तंतुकोरकों (fibroblasts) के विनाश को रोक कर शोध क्रियाओं में रोक लगाता है। अत: कॉर्टिसोल तीव्र ग्राही प्रतिक्रिया (araphylactic reaction) देह के अनेक संवेदी स्थलों पर शोध या प्रत्युर्जया (allergy) होने पर चिकित्स हेतु उपयोग किया जाता है।

(v) विद्युत् अपघट्यों एवं जल उपापचय पर प्रभाव (Effect on electroleyte and water metabolism)

कॉर्टिसोल एवं कॉर्टिसोन का विद्युत अपघट्यों एवं जल के उपापचय पर क्षीण प्रभाव होता है। यद्यपि यह प्रभाव एल्डोस्टिरॉन के प्रभाव के समान ही होता है। अतः ये सोडियम आयन्स के देह में संरक्षण वे पोटेशियम आयन्स का वृक्क द्वारा निष्कासन करने के प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यह मूत्रलता (diuresis) में वृद्धि करते हैं। डी-ऑक्सीकार्टिकोस्टिरॉन कोशिकाओं से बाहर अत्यधिक जल की मात्रा में कमी करते हैं। तथा कॉर्टिसोल इसके विपरीत दिशा में कार्य करने का प्रभाव रखता है कार्टिसोल ग्लूकोकॉर्टिकोइड्स के साथ मिलकर वृक्क नलिकाओं में ADH हॉरमोर के विरोध में कार्य करते हैं।

(vi) अन्य प्रभाव ( Othrer effects)

कॉर्टिसोल के प्रभाव से यकृत में आर. एन.ए का संश्लेषण बढ़ता है किन्तु अन्य उत्तकों में घटना है। किशोरियों में स्तन ग्रन्थियों के विकास में इन्सुलिन के साथ उपकला के प्रचुरोद्भवन (proliferation) में सहयोग करता है। यह रक्ताणुओं के उत्पादन में वृद्धि करता है। किन्तु इओसिनोफिल व लसीकाणुओं कोशिकाओं की संख्या में कमी करता है। इसके प्रभाव से प्रतिरक्षियों (antibodies) का उत्पादन भी कम होता हैं अतः प्राणी में प्रतिरक्षा (immunity) की कमी होने लगती

देह में ग्लूकॉर्टिकॉइड्स के अधिक स्रवण होने कुशिंग का रोग (Cushing’s disease) हो जाता है। इसके निम्न तीन लक्षण है-

  • अतिग्लूकोसरक्तता (hyperglycemia)
  • यकृत में ग्लाइकोजन का अति संग्रह
  • प्रोटीन्स का अधिक अपचय

(iv) पेशियों को क्षीण होना

(v) त्वचा एवं अस्थियों के अक्रम विकार (disorder)

(vi) डायबिटिल मेलेट्स

(vii) देह में जल एवं (Nat) आयन्स का संरक्षण

ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स के स्रावण का नियंत्रण (Regulation of glucocorticoids secretion) ‘हाइपोथैलेमस द्वारा स्रवित कोटिकोट्रिपिक मोचक हॉरमोन (corticotropic releasing hormone) CRH पीयूष ग्रन्थि के अग्रपिण्ड को प्रभावित कर एड्रिनोकोर्टिकोट्रोपिक हॉरमोन (adrenocorticotropic hormone) ACTH का स्रवण होता है। यह रक्त के साथ एड्रिनल ग्रन्थि तक ले जाया जाता है। यहाँ यह इस ग्रन्थि को ग्लूकोर्टिकॉइड्स हॉरमोन्स का सव्रण करने हेतु उत्तेजित करता है।

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

8 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now