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acid base strength and hardness and softness in hindi अम्ल-क्षार सामर्थ्य क्या होता है अम्ल क्षार सामर्थ्य किसे कहते है ?
(acid-base strength and hardness and softness in hindi) अम्ल-क्षार सामर्थ्य और कठोरता और मृदुता : किसी भी अम्ल या क्षार को कठोर या मृदु इस आधार पर माना जाता है कि प्रत्यक्ष रूप से उसकी प्रायिकता कठोर क्रियाकारक से क्रिया करने की है अथवा मृदु क्रियाकारक से क्रिया करने को उद्यत रहता है।
उदाहरण : एक क्षारक B कठोर है या मृदु है यह निम्नलिखित अभिक्रिया के साम्य स्थिरांक K के मान पर निर्भर करेगा –
BH+ + CH3Hg+ ⇌ CH3HgB+ + H+ . . . . . . . . . समीकरण-1
इस साम्य के लिए –
K = [CH3HgB+][H+]/[BH+][CH3Hg+] . . . . . . . . . समीकरण-2
BH+ ⇌ B + H+
इस साम्य के लिए –
Ka = [B][H+]/[BH+] . . . . . . . . . समीकरण-3
CH3Hg+ + B ⇌ CH3HgB+
इस साम्य के लिए –
Ks = [CH3HgB+]/[CH3Hg+][B] . . . . . . . . . समीकरण-4
समीकरण-1 , 2 , 3 और 4 से –
K = Ka x Ks . . . . . . . . . समीकरण-5
या
log K =log Ka + log Ks . . . . . . . . . समीकरण-6
(1) यदि K का मान इकाई से कम है तो B को कठोर क्षारक कहा जाता है तथा यदि K का मान इकाई से अधिक है तो B को मृदु क्षारक कहा जायेगा।
(2) समीकरण-4 में Ks का मान [CH3Hg+] और [B] से CH3HgB+ के निर्माण स्थिरांक को दर्शाता है जबकि समीकरण-3 में Ka का मान संयुग्मी अम्ल BH+ के वियोजन स्थिरांक को दर्शाता है। Ka और Ks के मानों से भी यह निर्धारित किया जा सकता है कि B एक कठोर क्षारक होगा या मृदु क्षारक होगा।
यदि pKa का मान log Ks से अधिक है तो B को कठोर क्षारक कहा जायेगा तथा यदि pKa का मान log Ks से कम है तो B को मृदु क्षारक कहा जायेगा।
(3) समीकरण-2 से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि B एक कठोर क्षारक होगा तो अभिक्रिया-1 बाएं हाथ की तरफ चलेगी तथा यदि B एक मृदु क्षारक होगा तो अभिक्रिया-1 दायें हाथ की ओर चलेगी।
(4) प्रश्न उठता है कि इन व्याख्याओं में मैथिल मर्करी (II) धनायन को सन्दर्भ के रूप में क्यों लिया गया है , इसके निम्नलिखित कारण है –
- यह एक प्रारूपिक मृदु अम्ल है।
- यह प्रोटोन की भाँती एकसंयोजी है अत: गणनाएं सरलता से की जा सकती है।
प्रश्न उठता है कि अम्लों और क्षारों की कठोरता और मृदुता का इनकी अम्ल अथवा क्षारक सामर्थ्य से क्या सम्बन्ध है ? उत्तर है , कुछ नहीं , ये बिल्कुल भिन्न भिन्न बातें है। कठोरता और मृदुता केवल कठोर कठोर और मृदु मृदु अन्तर्क्रिया को प्रदर्शित करते है।
उदाहरणार्थ , F– और OH– दोनों ही कठोर क्षारक है परन्तु दोनों की क्षारीय सामर्थ्य में बहुत अंतर है। OH– आयन (pKa = 15.7) फ्लुओराइड F– आयनों (pKa = 2.85) की तुलना में 1013 गुना अधिक क्षारीय है।
कुछ ऐसे उदाहरण भी ज्ञात है जिनमें एक प्रबल अम्ल अथवा एक प्रबल क्षार किसी दुर्बल अम्ल अथवा दुर्बल क्षार को प्रतिस्थापित करता हो , यद्यपि यह SHAB अन्तर्क्रिया के सिद्धान्त का उल्लंघन होगा। उदाहरणार्थ , निम्न अभिक्रिया में एक प्रबल मृदु क्षार सल्फाइड SO32- आयन एक दुर्बल कठोर क्षार फ्लुओराइड
F– आयनों को कठोर अम्ल प्रोटोन से प्रतिस्थापित कर देता है।
SO32- + HF ⇌ HSO3– + F–
Keq = 104
SO32- की क्षारीय सामर्थ्य F– से कही अधिक है।
इसी प्रकार अत्यंत प्रबल कठोर क्षार OH– आयन दुर्बल मृदु क्षार SO32- को मृदु मैथिल मर्करी (II) धनायन में से प्रतिस्थापित कर देते है –
OH– + CH3HgSO3– ⇌ CH3HgOH– + SO32- ,
Keq = 10
OH– की क्षारीय सामर्थ्य SO32- से कहीं अधिक है।
उपर्युक्त प्रतिस्थापन अभिक्रियाएँ SHAB सिद्धान्त के विपरीत संपन्न होती है परन्तु यदि सामर्थ्य तथा कठोरता दोनों का ध्यान रखा जाए तो SHAB सिद्धांत सफलतापूर्वक कार्य करता है।
उदाहरण , निम्नलिखित अभिक्रियाओं को देखते है :
CH3HgF + HSO3– ⇌ CH3HgSO3– + HF , Keq = 103
CH3HgOH + HSO3– ⇌ CH3HgSO3– + HOH , Keq > 107
इन अभिक्रियाओं में क्षारीय प्रबलता के साथ साथ कठोर कठोर और मृदु मृदु सिद्धांत का भी पालन हो रहा है।
निम्नलिखित सारणी में प्रोटोन (H+) और मैथिल मर्करी धनायन (CH3Hg+) दोनों के प्रति विभिन्न क्षारको की सामर्थ्य दी जा रही है :
क्षारक | बंधी परमाणु | pKs (CH3Hg+)* | pKh(H+)** |
F– | F | 1.50 | 2.85 |
Cl– | Cl | 5.25 | -7.0 |
Br– | Br | 6.62 | -9.0 |
I– | I | 8.60 | -9.5 |
OH– | O | 9.37 | 15.7 |
HPO42- | O | 5.03 | 6.79 |
S2- | S | 21.20 | 14.2 |
HOC2H4S– | S | 16.12 | 9.52 |
SCN– | S | 6.05 | 4 |
SO32- | S | 8.11 | 6.79 |
S2O32- | S | 10.90 | ऋणात्मक |
NH3 | N | 7.60 | 9.42 |
*pKs = log[CH3HgB]/[CH3Hg+][B]
**pKh = log[HB]/[H+][B]
सल्फाइड (S2-) और ट्राइएथिल फास्फिन (Et3P) जैसे – क्षारक प्रबल तो मैथिल मर्करी आयन और प्रोटोन दोनों के लिए है परन्तु इनकी प्रबलता प्रोटोन की तुलना में मैथिल मरकरी आयन के लिए कही अधिक है अत: मृदु क्षारक की श्रेणी में आते है। OH आयन जैसी स्पीशीज यो तो दोनों के प्रति प्रबल है परन्तु मेथिल मर्करी आयन की तुलना में प्रोटोन के प्रति कही अधिक प्रबल है अत: ये कठोर क्षारक की श्रेणी में माने जाते है।
फ्लुओराइड आयन यद्यपि दोनों अम्लों के प्रति दुर्बल क्षारक है परन्तु प्रोटोन के प्रति कुछ अधिक प्रबल है अत: यह एक कठोर क्षारक है।
निहित अम्लता का गुण है तथा कठोर मृदु कारक इन दोनों के संयुक्त प्रभाव को इरविंग विलियम्स श्रेणी और कुछ नाइट्रोजन , ऑक्सीजन , सल्फर किलेटों के स्थायित्व द्वारा आसानी से समझा जा सकता है।
श्रेणी में Ba2+ से Cu2+ तक के किलेटों का स्थायित्व बढ़ता जाता है , यह धातुओं के निहित बढ़ते हुए अम्लता के गुण का माप है , यह प्रमुखत: इनके आकार पर निर्भर करता है। Ba2+ से Cu2+ तक के आयनों का आकार घटते हुए क्रम में है। इसके साथ ही कठोरता और मृदुता का कारक कार्य कर रहा है। श्रेणी में बाद में आने वाले धातु आयनों में d इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ने के साथ मृदुता का गुण बढ़ता जा रहा है तथा लिगेंडो के प्रति उनका आकर्षण S > N > O क्रम में घटता जा रहा है। इसी प्रकार श्रेणी के (a) वर्ग के कठोर क्षारीय मृदा धातु के कम d इलेक्ट्रॉनों वाले प्रारंभिक संक्रमण धातु आयनों से कठोरता का गुण बढ़ने के साथ लिगेंडो के प्रति आकर्षण O > N > S के क्रम में घटता जा रहा है।
सहजीवन (symbiosis) : सहजीवन यह बताता है कि अम्ल अथवा क्षारक की कठोरता अथवा मृदुता किसी परमाणु विशेष का निहित गुण नहीं है वरन परिस्थितियां बदलकर उसकी प्रकृति को बदला जा सकता है। अर्थात किसी परमाणु के साथ जुड़े हुए प्रतिस्थापी परमाणुओं की प्रकृति बदलकर उस परमाणु की कठोर अथवा मृदु अम्लीय या क्षारीय प्रकृति को बदल सकते है। यदि किसी परमाणु के साथ मृदु ध्रुवित होने वाला प्रतिस्थापी जुड़ा हुआ हो तो उसकी प्रकृति मृदु हो जाएगी तथा इसके विपरीत यदि इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने वाला प्रतिस्थापी जुड़ा हुआ हो तो उसकी प्रकृति कठोर हो जाएगी।
उदाहरणार्थ , बोरोन कठोर और मृदु के मध्य की सीमा रेखा का तत्व है अब यदि इसके साथ तीन कठोर इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने वाले प्रतिस्थापी के रूप में F परमाणुओं को जोड़ दिया जाए तो वह (BF3) एक प्रारूपिक कठोर लुईस अम्ल हो जायेगा।
R2S.BF3 + R2O → R2O.BF3 + R2S
मृदु-कठोर कठोर-कठोर
उपर्युक्त के विपरीत यदि सीमारेखा पर स्थित बोरोन परमाणु के साथ तीन मृदु धन विद्युती हाइड्रोजन परमाणु जोड़ दिए जाए तो वह (BH3) एक प्रारुपिक मृदु लुइस अम्ल हो जायेगा।
R2O.BH3 + R2S → R2S.BH3 + R2O
कठोर-मृदु मृदु-मृदु
इसी प्रकार कठोर BF3 अणु दुसरे कठोर फ्लुओराइड आयन F– के साथ प्रायिकता के साथ जुड़ते है।
जबकि मृदु BH3 अणु दुसरे मृदु हाइड्राइड आयन H– के साथ जुड़ने को प्रायिकता देते है।
BF3 + F– → BF4–
B2H6 + 2H– → 2BH4–
इसी कारण निम्न अभिक्रिया दायें हाथ की ओर पूर्णता को प्राप्त करती है।
BF3H– + BH3F– → BF4– + BH4–
कठोर-मृदु मृदु-कठोर कठोर-कठोर मृदु-मृदु
इसके समइलेक्ट्रॉनिक स्पीशीज फ्लुओरीनकृत मेथेन का व्यवहार भी इसी प्रकार का होता है।
CF3H + CH3F → CF4 + CH4–
कठोर-मृदु मृदु-कठोर कठोर-कठोर मृदु-मृदु
तीन फ्लुओरीनयुक्त CF3H की चौथे फ्लुओरीन के साथ जुड़ने की प्रवृति , इसी प्रकार तीन हाइड्रोजनयुक्त CH3F की चौथे हाइड्रोजन के साथ जुड़ने की प्रवृत्ति को जोर्जेन्सन ने 1964 में सहजीवन का नाम दिया। अकार्बनिक रसायन में इस सहजीवन की अवधारणा से ऐसी कई अभिक्रियाओं की व्याख्या की जा सकती है जिनमें मिश्रित प्रतिस्थापी अणु सममित प्रतिस्थापन की दिशा में अभिक्रियाओं को संपन्न करते है तथा इससे कठोर कठोर और मृदु-मृदु अभिक्रियाओं के संपन्न होने की भी पुष्टि होती है।
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