एकार्थक शब्द | उदाहरण हिंदी व्याकरण | एकार्थक शब्द की परिभाषा क्या होती है | meaning in english किसे कहते है ?

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एकार्थक शब्द और उनमें सूक्ष्म शब्द
इस प्रकार के शब्दों के अर्थ निश्चित होते हैं । प्रायः हम इन एकार्थक शब्दों का प्रयोग, जिनके अर्थ में थोड़ी-बहुत समानता होती है, समानार्थी शब्दों के रूप में कर देते हैं। लेकिन ऐसा करना सही नहीं है । एकार्थक शब्दों के उदाहरण इस प्रकार हैं-
(1) अनुभव-इन्द्रियों के माध्यम से अनुभव होता है।
अनुभूति-अनुभव की तीव्रता अनुभूति है । अनुभव के बाद अनुभूति होती है ।
(2) अभिमान-प्रतिष्ठा में अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना अभिमान ।
घमंड-सभी स्थितियों में अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा समझना घमंड है।
अहंकार-मन का गर्व अथवा झूठे अपनेपन का बोध अहंकार है।।
दर्प-नियम के विरुद्ध काम करने पर भी घमण्ड करना ।
(3) अनुकूल-इससे उपादेयता और उपयोगिता का बोध होता है। जैसे-यहाँ की जलवायु – अंग्रेजों के अनुकूल नहीं है ।
अनुरूप-इससे योग्यता का बोध होता है । जैसे-दिनकर को उनकी रचना के अनुरूपइनाम मिला।
(4) अज्ञ-अनजान, किन्तु बताने पर जो जान जाय मूर्ख-बुद्धिहीन, किन्तु जो बताने पर भी न जाने ।
(5) अनुरोध-बराबर वालों से अनुरोध किया जाता है ।
प्रार्थना-भगवान से अथवा अपने से बड़ों से प्रार्थना की जाती है।
(6) अस्त्र-वह हथियार जो फेंककर चलाया जाय, जैसे-तीर ।
शस्त्र-वह हथियार जो हाथ में रख कर चलाया जाय, जैसे-तलवार ।
(7) अपराध-सामाजिक कानून का उल्लंघन अपराध है । जैसे-हत्या करना आदि ।
पाप-नैतिक नियमों को न मानना पाप है । जैसे-झूठ बोलना ।
(8) अवस्था-जीवन के कुछ बीते हुए काल को अवस्था कहते हैं । जैसे-इस समय आपकी क्या अवस्था होगी?
आयु-संपूर्ण जीवन की अवधि को श्आयुश् कहते हैं । जैसे-आपकी आयु लम्बी हो ।
(9) अपवाद-किसी पर झूठमूठ दोष लगाना ।
निन्दा-किसी के अवगुणों का उल्लेख करना ।
(10) अपयश-स्थायी रूप से दोषी होना । ।
कलंक-कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष लगाना ।
(11) अभिज्ञ-जिसे अनेक विषयों की साधारण जानकारी हो ।
विज्ञ-जिसे किसी विषय का अच्छा ज्ञान हो ।
(12) अलौकिक-जो संसार में दुर्लभ हो ।
असाधारण-जो कार्य आदि साधारण से बहुत बढ़कर हो ।
(13) अधिक-आवश्यकता से ज्यादा ।
काफी -जरूरत से न ज्यादा और न कम ।
(14) अजेय-जो किसी भी प्रकार जाना न जा सके ।
अगोचर-जो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य न हो, परन्तु ज्ञान अथवा बुद्धि से समझ में आ जाय ।
(15) अद्वितीय-जिसकी बराबर का दूसरा न हो ।
अनुपम-जिसकी किसी से उपमा न की जा सके।
(16) अनुराग-किसी विषय या व्यक्ति पर शुद्ध भाव से मन लगाना ।
आसक्ति-मोहजनित प्रेम आसक्ति है।
(17) अनबन-दो व्यक्तियों में आपस में न बनना और उनका अलग रहना ।
खटपट-दो व्यक्तियों में बहुत ही साधारण कहासुनी होना ।
(18) अन्वेषण- अज्ञात वस्तु, स्थान आदि का पता लगाना। .
अनुसन्धान-प्रत्यक्ष तथ्यों में से कुछ प्रच्छन्न तथ्यों की सूक्ष्म छानबीन ।
गवेषणा- किसी विषय की मूलस्थिति को जानने के लिए कुछ समय तक चलते रहने वाला विचारपूर्ण अध्ययन ।
(19) अंतःकरण-शुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति ।
आत्मा-एक अलौकिक और अतीन्द्रिय तत्व जिसका कभी नाश नहीं होता।
(20) अधिवेशन-किसी लक्ष्य के लिए होने वाली प्रतिनिधियों की बड़ी, परन्तु अस्थायी सभा अधिवेशन है।
परिषद्-यह एक स्थायी समिति होती है जो किसी विशेष विषय पर विचार-विमर्श के लिए बुलायी जाती है।
(21) अभिनन्दन-किसी श्रेष्ठ व्यक्ति को निमंत्रित करके स्वागत करना ।
स्वागत-अपनी प्रथा एवं सभ्यता के अनुसार किसी को सम्मान देना ।
(22) अर्चना-धूप, दीप आदि से देवता की पूजा करना ।
पूजा-बिना किसी वस्तु के भी भक्तिपूर्ण प्रार्थना ।
(23) अत्यन्त-जो चाहने या न भी चाहने पर जिम्मे आ पड़े ।
अतिरिक्त- जो इच्छित मात्रा से अधिक हो ।
(24) अध्यक्ष- किसी गोष्ठी, समिति, संस्था आदि के प्रधान को अध्यक्ष कहते है।
सभापति-किसी आयोजित बड़ी अस्थायी सभा के प्रधान को सभापतिकहते हैं।
(25) आजा-आदरणीय व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यनिर्देश ।
आदेश-किसी अधिकारी व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यनिर्देश ।
(26) आतंक-जहाँ शरण पाने की संभावना न हो।
आशंका-भविष्य में अमंगल होने का श्रम ।
भय-अनिष्ट का डर ।
(27) आधिदैविक-देवताओं से संबंधित ।
आधिभौतिक-पंचभूतों से संबंधित ।
(28) आगामी-्आगे आनेवाला जिसमें निश्चय का बोध हो ।
भावी-भविष्य का बोध जिसमें अनिश्चय हो ।
(29) आधि-मानसिक कष्ट, जैसे चिन्ता ।
व्याधि-शारीरिक कष्ट, जैसे ज्वर ।
(30) आराधना-किसी देवता के सामने की गयी दया की याचना ।
उपासना-किसी महान् उद्देश्य की पूर्ति कि लिए की गयी एकनिष्ठ साधना ।
(31) आदरणीय-अपने से बड़ों के प्रति सम्मानसूचक शब्द ।
पूजनीय-पिता, गुरु या महापुरुषों के प्रति सम्मानसूचक शब्द ।
(32) ईर्ष्या-दूसरे की सफलता देखकर मन में जलना ।
स्पर्धा-दूसरे को बढ़ते देखकर स्वयं बढ़ने की इच्छा करना ।
द्वेष-दूसरे के प्रति घृणा या शत्रुता का स्थायी भाव ।
(33) इच्छा-किसी भी वस्तु को पाने के लिए साधारण इच्छा ।
अभिलाषा-किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा ।
कामना-किसी विशेष वस्तु की सामान्य इच्छा ।
(34) उदाहरण-किसी नियम के विवेचन में दिया गया तथ्य ।
निदर्शन-साधारण रूप से किसी बात के समर्थन में दिया गया तथ्य ।
दृष्टान्त- किसी भी कथन के समर्थन में दिखलाया जानेवाला कथन, वस्तु या तथ्य ।
(35) उद्योग-किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए उत्साह से किया गया प्रयत्न ।
प्रयास- साधारण प्रयत्न ।
(36) उपकरण-ऐसी जुटायी गयी सामग्री जिससे कोई कार्य सिद्ध हो । जैसे, कपड़ा ।
उपादान-किसी वस्तु को बनानेवाली सामग्री ।
(37) उपयोग-किसी वस्तु को सुन्दर ढंग के काम में लाना ।
प्रयोग-किसी वस्तु को सामान्य रूप से व्यवहार में लाना ।
(38) उपक्रमणिका-विषय सूची जो ग्रंथ के शुरू में दी जाती है ।
अनुक्रमणिका-वर्णानुक्रम -विषयसूची जो ग्रंथ के अंत में दी जाती है ।
(39) उत्साह-काम करने की बढ़ती हुई रुचि ।
साहस-साधन न रहते हुए भी काम करने की तीव्र इच्छा ।
(40) ऋषि-ब्रह्मज्ञानी ।
मुनि-धर्म और तत्व पर विचार करनेवाला पुरुष ।
(41) ओज-वह आन्तरिक शक्ति जो मन और शरीर को चालित रखती है।
पौरुष-वीरतापूर्ण कार्य करने की अपूर्व क्षमता, जो ओज से प्राप्त होती है ।
(42) कृपा-दूसरे का कष्ट दूर करने की साधारण चेष्टा ।
दया-दूसरे के कष्ट को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा।
(43) कंगाल-जिसे भोजन के लिए भी भीख माँगनी पड़े।
दीन-गरीबी के कारण जिसका आत्मगौरव नष्ट हो चुका है।
(44) क्रोध-अपमानित होने पर क्रोध होता है ।
अप्रसन्नता-इसमें क्रोध जैसी तेजी नहीं होती । वस्तुतः उचित आदर न मिलने से अप्रसन्नता होती है।
(45) काल-भूत, वर्तमान और भविष्यत् के तौर पर बँधा हुआ श्समयश् का साधारण रूप ।
समय-काल का किसी घटना से बँधा हुआ ऐतिहासिक रूप ।
(46) कर्त्तव्य-जिस कार्य में धार्मिक अथवा नैतिक बन्धन हो ।
कार्य-कोई भी साधारण काम श्कार्यश् है।
(47) कष्ट- असमर्थता अथवा अभाव के कारण मानसिक एवं शारीरिक कष्ट होता है।
पीड़ा-रोग-चोट आदि के कारण शारीरिक पीड़ा होती है।
क्लेश- यह मानसिक अप्रिय अवस्था का सूचक होता है।
(48) कल्पना-मन की वह क्रिया विशेष जिससे मानसिक दृष्टि के समक्ष विचारों की मूर्ति खड़ी की जाती है।
भावना- मन का मूर्त रूप ।
चिन्तना-किसी विषय के सभी अंगों पर विधिवत् विचार करना ।
(49) करुणा- दूसरे के कष्ट को देखकर समान वेदना का अनुभव करना।
(50) दुख-साधारण कष्ट या मानसिक पीड़ा ।
क्षोभ-विफल होने पर अथवा असामाजिक स्थिति के कारण दुखी होना ।
खेद-किसी गलती पर दुखी होना ।
शोक-किसी की मृत्यु पर दुखी होना ।
(51) गर्व-अपने को बड़ा समझना और दूसरे को हीन दृष्टि से देखना ।
गौरव-अपनी महत्ता का यथार्थ ज्ञान होना ।
दंभ-झूठा अभिमान करना ।
(52) ग्रंथ-इससे पुस्तक के आकार की गुरुता और गम्भीरता का बोध होता है ।
पुस्तक-सामान्यतः सभी प्रकार की छपी रचना पुस्तक है ।
(53) ग्लानि-अपने कुकर्म पर एकान्त में दुख एवं पश्चात्ताप करना ।
लज्जा-अनुचित काम करने पर मुँह छिपाना ।
व्रीडा-दूसरे के सामने काम करने में संकोच ।
संकोच-किसी काम के करने में हिचक ।
(54) चिन्तनीय-चिन्तन से सम्बद्ध ।
चिंताजनक-चिन्ता से सम्बद्ध ।
चिन्त्य-साधारण सोच विचार ।
(55) चेष्टा-अच्छा काम करने के लिए शारीरिक श्रम करना ।
प्रयत्न-अच्छा या बुरा कोई भी कार्य करने के लिए क्रियाशील होना ।
उद्योग-किसी काम को पूरा करने की मानसिक दृढ़ता ।
(56) टीका-सामान्यतः साहित्यिक रचनाओं का अर्थ विश्लेषण और व्याख्या ‘टीका’ है ।
भाष्य-व्याकरण और दर्शन पर लिखी जाने वाली विशद व्याख्या एवं विवेचन भाष्य है ।
(57) तट-नदी, समुद्र अथवा सरोवर का किनारा ।
पुलिन-जल से निकली हुई जमीन ।
सैकत-किनारे फैली हुई बालूयुक्त जमीन ।
(58) वास-भय के अधिक तीव्र होने की स्थिति ।
भय-सम्भावित संकट के आने पर मन की चंचलता और विकलता ।
(59) तन्द्रा-मन-शरीर की शिथिलता के कारण आयी हलकी अँपकी ।
निद्रा-बाहरी चेतना एवं ज्ञान से रहित होकर चुपचाप सोना ।
सुषुप्ति-गहरी निद्रा ।
(60) दक्ष-हाथ से किया जानेवाला काम जो जल्दी और अच्छी तरह करता है, वह दक्ष कहलाता है । जैसे चित्र बनाने का काम ।
निषण-जो अपने कार्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर उसका अच्छा जानकार बन चुका है।
कुशल-जो प्रत्येक कार्य में मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का अच्छा प्रयोग करना जानता है।
कर्मठ-जिस कार्य में लगाया जाय उसमें लगा रहने वाला ।
(61) न-एक निषेधार्थक अव्यय ।
नहीं-किसी वस्तु अथवा विचार का पूर्ण निषेध । जैसे- मैं यह काम नहीं जानता।
मत-विधिक्रिया के निषेधार्थ श्मतश् का प्रयोग होता है । जैसे असत्य मत बोलो ।
(62) निबंध- यह ऐसी गद्य रचना होती है जिसमें विषय गौण होता है और लेखकीय
लेख- ऐसी गद्य रचना जिसमें विषय की प्रधानता रहती है।
(63) नायिका-उपन्यास अथवा नाटक की प्रधान स्त्रीपात्र ।
अभिनेत्री-नाटक आदि में नारी की भूमिका में काम करने वाली कोई स्त्री।
(64) निधन- महान् एवं लोकप्रिय व्यक्तियों की मृत्यु को निधन कहा जाता है ।
मृत्यु-सामान्य शरीरान्त को मृत्यु कहते हैं।
(65) निकट-सामीप्य का बोध, जैसे मेरे घर के निकट एक स्कूल है ।
पास-अधिकार के सामीप्य का बोध, राम के पास खूब पैसा है ।
(66) प्रेम-यह व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है ।
स्नेह-अपने से छोटों के प्रति श्स्नेहश् होता है । जैसे पुत्र से स्नेह ।
प्रणय-सख्य भाव वाला अनुराग, जैसे राधा और श्याम का प्रणय ।
(67) प्रमाद-जानबूझ कर किसी काम की परवाह नहीं करना ।
प्रम-अनजान में कोई भूल कर बैठना ।
(68) परामर्श-आपस में समझबूझ कर सलाह करना ।
मंत्रणा-किसी गूढ़ विषय पर गुप्त रूप से की गयी सलाह ।
(69) परिश्रम-मानसिक और शारीरिक किसी भी प्रकार का श्रम परिश्रम है ।
अभ्यास-इससे केवल मानसिक शक्ति अथवा श्रम का बोध होता है ।
(70) पारंगत-किसी विषय का पूर्ण पंडित ।
बहुदर्शी-जो विषय को सभी दृष्टियों से समझने की योग्यता रखता है।
(71) प्रणाम-अपने से बड़ों को श्प्रणामश् किया जाता है।
नमस्कार-अपनी समान अवस्था वाले को नमस्कार अथवा नमस्ते किया जाता है ।
(72) प्रलाप-महान् कष्ट अथवा मानसिक विकार के कारण प्रलाप होता है ।
विलाप-शोक अथवा वियोग में रोना-धोना ।
(73) परिमल-फूलों से निकलने वाली सुगन्ध जो कुछ ही दूर तक पहुँचती है।
सौरभ-वनस्पतियों और पेड़ों की फूल-पत्तियों से निकलने वाली वह सुगन्ध जो हवा के साथ फैलती है।
(74) पारितोषिक-पारितोषिक उस समय दिया जाता है जब कोई किसी प्रतियोगिता में विजयी हो।
पुरस्कार-किसी व्यक्ति की अच्छी सेवा से प्रसन्न होकर पुरस्कार दिया जाता है।
(75) प्रशस्ति-बढ़ाचढ़ाकर किसी व्यक्ति का वर्णन करना ।
स्तबन-किसी महान व्यक्ति के यश का विस्तारपूर्वक वर्णन ।
स्तुति-देवी-देवता का गुणानुवाद ।
(76) प्रतिमान-किसी बनाई जानेवाली वस्तु का वह आदर्श जिसकी सहायता से दूसरी वस्तु बनाई जाती है ।
मापदंड-किसी वस्तु का माप जानने का साधन ।
(77) पर्यटन- पर्यटन किसी विशेष उद्देश्य से होता है।
अमण-(ज्वनत) भ्रमण सैर-सपाटा के लिए होता है।
(78) पत्नी-किसी की विवाहिता स्त्री ।
स्त्री-कोई भी नारी।
(79) प्रतिकूल-अनुकूल का विपर्यय ।
प्रतिलोम- अनुलोम का विपर्यय । इसमें विपरीत भाव होता है।
(80) पुत्र-अपना बेटा ।
बालक-कोई भी लड़का ।
(81) पुष्प-इसके साथ गन्ध आवश्यक तत्व है।
कुसुम-इसके साथ गन्ध आवश्यक तत्व नहीं है ।
(82) बड़ा-यह आकार का बोधक होता है ।
बहुत-(डनबी) यह परिमाण का बोधक होता है ।
(83) बुद्धि-इससे कर्तव्य का निश्चय होता है।
ज्ञान-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हर अनुभव ।
(84) बहुमूल्य- बहुत ही मूल्यवान वस्तु, पर जिसका मूल्य आँका जा सके।
अमूल्य-जिसका मूल्य आँका न जा सके।
(85) प्रान्ति- उलझन में पड़ना ।
संशय-जहाँ वास्तविकता का कुछ भी निश्चय न हो।
सन्देह-जहाँ वास्तविकता आदि के संबंध में अनिश्चित भावना हो ।
(86) मित्र-वह पराया आदमी जिसके साथ आत्मीयता हो ।
बन्धु-आत्मीय मित्र, सम्बन्धी ।
(87) मन्त्री-राज्य में मंत्रिमंडल का सदस्य सचिव- सभा-समिति अथवा किसी सचिवालय में किसी विभाग का प्रधान ।
(88) महाशय-सामान्य लोगों के लिए प्रयुक्त होता है।
महोदय-अपने से बड़ों को श्महोदयश् कहा जाता है ।
(89) मन-यहाँ संकल्प- विकल्प होता है ।
चित्त-यहाँ बातों का स्मरण-विस्मरण होता है ।
(90) यंत्रणा-दुख का अनुभव (मानसिक) ।
यातना-चोट से उत्पन्न कष्टों की अनुभूति (शारीरिक) ।
(91) विश्वास-सामने हुई बात पर भरोसा करना ।
श्रद्धा-वह पूज्यभाव जो महान व्यक्तियों के प्रति होता है जिनसे प्रेरणा ग्रहण की जाय ।
भक्ति-देवता अथवा पूज्य व्यक्ति के प्रति अनन्य निष्ठा ।
(92) विलयन-जो असामान्य स्थिति में होते हुए हमें चकित करे ।
विचित्र-जो सामान्य से भिन्न आचरण करे ।
(93) वार्ता-किसी विषय से संबंधित कथन जो सामान्य ज्ञान प्रदान करे ।
वार्तालाप-किसी विषय पर दो या दो से अधिक लोगों की बातचीत।
(94) विषाद-अधिक दुखी होने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ होना ।
व्यथा-किसी आघात के कारण मानसिक अथवा शारीरिक कष्ट ।
(95) विहीन-अच्छी बातों का अभाव । पौरुष विहीन आदमी ।
रहित-बुरी बातों का अभाव । वह दोषरहित है।
(96) विरोध-किसी विषय पर दो व्यक्तियों का मतभेद ।
वैमनस-मन में रहने वाली शत्रुता का भाव ।
(97) सेवा-गुरुजनों की टहल ।
शुश्रूषा-दीन-दुखियों की सेवा ।
(98) सामान्य-जो बात दो या दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं में समान रूप से पायी जाय, वह सामान्य है।
साधारण-जो वस्तु अथवा व्यक्ति एक ही आधार पर आश्रित हो ।
(99) स्वतंत्रता-स्वतंत्रता का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है।
स्वाधीनता-यह राष्ट्र के लिए प्रयुक्त होता है।
(100) समीर-शीतल और धीरे-धीरे बहने वाली वायु को ‘समीर‘ कहते हैं।
पवन-कभी मन्द और कभी तेज चलने वाली वायु ‘पवन‘ है।
(101) सखा-जो आपस में एकमन किन्तु दो शरीर हो ।
सुहृद- अच्छा हदय रखने वाला।
(102) साहस-भय पर विजय पाना (मानसिक) ।
वीरता-साहस के बाद वीरता की स्थिति होती है । (मानसिक भाव का प्रकट रूप)।
(103) स्नेह-छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना ।
सहानुभूति-दूसरे के दुःख को अपना समझना ।
(104) सम्राट-राजाओं का राजा ।
राजा-एक साधारण भूपति ।
(105) समिति-आकार में गोष्ठी से छोटी, किन्तु स्थायी होती है जिसमें कुछ चुने हुए लोग कार्यवश भाग लेते हैं ।
सभा-आकार में बड़ी, किन्तु अस्थायी एवं सार्वजनिक होती है ।
गोष्ठी-आकार में छोटी किन्तु अस्थायी होती है जिसमें कुछ विशिष्ट व्यक्ति भाग लेते हैं।
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