दूरदर्शी क्या है ? परिभाषा ,प्रकार,खगोलीय/अपवर्ती दूरदर्शी ,बनावट,सिद्धांत ,क्रियाविधि,आवर्धन , परावर्ती दूरदर्शी 

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दूरदर्शी (telescope in hindi) : वह प्रकाशिकी उपकरण जिसकी सहायता से दूर स्थित सूक्ष्म वस्तुओ का पास में स्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जाता है , दूरदर्शी कहलाता है।

दूरदर्शी मुख्यतया दो प्रकार की होती है –

(A) खगोलीय / अपवर्ती दूरदर्शी : वह दूरदर्शी जिसकी सहायता से ब्रहांड में स्थित आकाशीय पिण्डो का पास में सुस्पष्ट व बड़ा प्रतिबिम्ब देखा जाता है। खगोलीय या अपवर्ती दूरदर्शी कहलाती है।

बनावट : खगोलीय दूरदर्शी में अलग अलग अनुपृष्ठ काट क्षेत्रफल की एक बेलनाकार नली में दो उत्तल लेंस लगे रहते है।

बड़े द्वारक व अधिक फोकस दूरी का उत्तल लेंस वस्तु की ओर होने के कारण इसे अभिदृश्यक लेंस “O” कहते है तथा छोटे द्वारक व कम फोकस दूरी का उत्तल लेंस आँख की ओर होने के कारण इसे अभिनेत्री लेंस E कहते है। दोनों लैंसो को आगे पीछे करने के लिए दण्ड चक्रीय व्यवस्था होती है।

सिद्धांत एवं क्रियाविधि : दूर स्थित वस्तु से समान्तर आने वाली प्रकाश किरणें अभिदृश्यक लेंस पर α कोण से आपतित होती है। जिनका प्रतिबिम्ब अभिदृश्यक लेंस के मुख्य फोकस F0 पर A’B’ प्राप्त होता है।

यह प्रतिबिम्ब A’B’ अभिनेत्री लेंस के लिए आभासी बिम्ब का कार्य करता है।

प्रतिबिम्ब A’B’ को सूक्ष्मदर्शी के सिद्धान्त के अनुसार अभिनेत्री लेंस की प्रकाशिकी केंद्र E व फोकस Fe के मध्य दंड चक्रीय व्यवस्था द्वारा व्यवस्थित करते है जिसका आभासी , सीधा व बड़ा प्रतिबिम्ब A”B” प्रतिबिम्ब A’B’ की ओर ही प्राप्त होता है। [प्रतिबिम्ब A’B’ की तुलना में]

अपवर्ती दूरदर्शी का आवर्धन :-

m = α/β  समीकरण-1

समकोण त्रिभुज A’B’E से –

tanβ = A’B’/A’E

अत्यल्प कोण के लिए tanβ = β होगा –

अत:

β = A’B’/A’E   समीकरण-2

अनंत पर स्थित वस्तु का आकार बहुत बड़ा लेने के कारण वस्तु से आने वाली समान्तर किरणें α कोण पर आपतित होती है। जिसे वस्तु का दर्शन कोण α कोण माना जा सकता है।

अत: समकोण त्रिभुज A’B’O से –

tanα = A’B’/A’O

अत्यल्प कोण के लिए tanα = α होगा।

अत:

α = A’B’/A’O   समीकरण-3

समीकरण-2 व समीकरण-3 का मान समीकरण-1 में रखने पर –

m = A’O/A’E

चिन्ह परिपाटी के अनुसार –

A’O = +f0  तथा A’E = -ue

m = +f0/-ue

m = -f0/ue   समीकरण-4

अपवर्ती दूरदर्शी की लम्बाई L = |f0| + |u0|

स्थिति-प्रथम : जब वस्तु का व अंतिम प्रतिबिम्ब न्यूनतम स्पष्ट दूरी पर स्थित हो अर्थात Ve = -D हो तो अभिनेत्री लेंस के लिए –

V = -D , U = Ue तथा f = +fe

(1/-D) – (1/-Ue) = 1/+fe

-1/D + 1/Ue = 1/fe

1/Ue = 1/fe + 1/D

1/Ue = (fe + D)/feD

1/ue = 1/fe[1 + fe/D]

समीकरण-4  से –

अत:

m = -f0/fe(1+fe/D)

स्थिति-द्वितीय: जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर स्थित हो अर्थात Ve = ∞ हो तो अभिनेत्री लेंस के लिए –

V = – ∞ , u = -ue , f = +fe

(1/- ∞) – (1/-ue) = 1/+fe

-1/ ∞ + 1/ue = 1/fe

Ue = fe

अत: m = -f0/fe

अपवर्ती दूरदर्शी की लम्बाई L = |f0| + |fe|

परावर्ती दूरदर्शी

वह दूरदर्शी जिसमे दूर स्थित सूक्ष्म वस्तु का सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब देखने के लिए तथा गोलीय विपतन व वर्ण विपतन दोष से मुक्त प्रतिबिम्ब देखने के लिए अपवर्ती दूरदर्शी में बड़े द्वारक के अभिदृश्यक लेन्स के स्थान पर बड़े द्वारक का अवतल दर्पण लगा देते है तो इस सूक्ष्मदर्शी को परावर्ती दूरदर्शी कहते है।

बनावट : परावर्ती दूरदर्शी में दो अलग अलग अनुपृष्ठ काट क्षेत्रफल की अलग अलग बेलनाकार नलियाँ होती है। बड़े अनुप्रष्ठ काट क्षेत्रफल की नली में बड़े द्वारक का तथा अधिक फोकस दूरी का अवतल दर्पण लगाते है। इस नली का खुला सिरा वस्तु की ओर होता है इसलिए इस अवतल दर्पण को अभिदृश्यक अवतल दर्पण कहते है।

अभिदृश्यक अवतल दर्पण के सामने इसके मुख्य फोकस से पहले तथा मुख्य अक्ष पर 45 डिग्री के कोण पर समतल दर्पण लगा रहता है जिसका परावर्तक पृष्ठ अवतल दर्पण की ओर होता है।

छोटे अनुपृष्ठ काट क्षेत्रफल की नली में छोटे द्वारक व कम फोकस दूरी का उत्तल लेंस लगा रहता है जो आँख की ओर होने के कारण इसे अभिनेत्री लेंस कहते है।

सिद्धांत एवं क्रियाविधि : अनंत पर स्थित वस्तु से α कोण पर समान्तर आने वाली प्रकाश किरणें अभिदृश्यक अवतल दर्पण पर आपतित होती है। यह किरणें अभिदृश्यक दर्पण से परावर्तित होकर इसके मुख्य फोकस f0 पर फोकसित होने से पहले ही 45 डिग्री के कोण पर स्थित समतल दर्पण द्वारा परावर्तित होकर प्रतिबिम्ब A’B’ का निर्माण करती है जो वास्तविक व उल्टा प्राप्त होता है।

प्रतिबिम्ब A’B’ अभिनेत्री लेंस E के लिए आभासी बिम्ब का कार्य करता है।

सूक्ष्मदर्शी के सिद्धांत के अनुसार प्रतिबिम्ब A’B’ को अभिनेत्री लेंस के प्रकाशिकी केंद्र तथा इसके फोकस fe‘ के मध्य रखते है जिसका आभासी , सीधा व बड़ा प्रतिबिम्ब (प्रतिबिम्ब A’B’ की तुलना में ) A”B” प्राप्त होता है।

परावर्ती दूरदर्शी का आवर्धन m = -f0/fe

परावर्ती दूरदर्शी , अपवर्ति दूरदर्शी की तुलना में श्रेष्ठ होती है , क्योकि ?

  1. परावर्ती दूरदर्शी द्वारा गोलीय विपथन व वर्ण विपथन दोष से मुक्त सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब देखा जाता है।
  2. परावर्ती दूरदर्शी के बड़े द्वारक के अभिदृश्यक अवतल दर्पण को बनाने में , अपवर्ती दूरदर्शी के बड़े द्वारक का उत्तल लेंस बनाने की तुलना में अधिक सुविधाजनक रहता है।

नोट : सबसे बड़े द्वारक (लगभग 5 मीटर ) का परावर्ती दूरदर्शी कलिफोर्नियाँ के माउन्ट पोलोमार में स्थित है।