तत्वों का निष्कर्षण का सिद्धांत एवं प्रक्रम , धातु का निष्कर्षण / धातुकर्म (metallurgy in hindi)

तत्वों का निष्कर्षण का सिद्धांत एवं प्रक्रम :
खनिज (Minerals) : ऐसे धातु एवं उनके यौगिक जो रेत , कंकड़-पत्थर एवं अन्य अशुद्धियो के साथ प्राकृतिक रूप में पाए जाते है तथा जिन्हें खनन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है , खनिज कहलाते है।
अयस्क (Ores) : ऐसे खनिज जिनसे धातु का निष्कर्षण कम खर्च में एवं सुगमता से किया जा सके , अयस्क कहलाते है।
‘अत: सभी खनिज अयस्क नहीं होते लेकिन सभी अयस्क खनिज होते है। ‘
अपयस्क / आधात्री / गैंग : अयस्क में धातु के अलावा उपस्थित अवांछनीय पदार्थ जैसे – रेत , कंकड़ , मिट्टी , सिलिकेट आदि अशुद्धियो को अपयस्क या आद्यात्री या गैंग कहा जाता है।
अयस्क में धातु की उपलब्धता : अयस्को में धातु दो रूपों में उपलब्ध होती है –
1. मुक्त अवस्था में
2. संयुक्त अवस्था में
1. मुक्त अवस्था में : कम क्रियाशील धातुएं अयस्क में मुक्त अवस्था में उपस्थित होती है क्योंकि यह धातुएँ वातावरण में उपस्थित ऑक्सीजन , नमी , कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य पदार्थो से क्रिया नहीं करती है।
उदाहरण : Ag , Au , Pt आदि।
2. संयुक्त अवस्था में : अधिक क्रियाशील धातुएं अयस्क में संयुक्त अवस्था में उपस्थित होती है क्योंकि यह धातुएं ऑक्सीजन , कार्बन डाइ ऑक्साइड व नमी और अन्य पदार्थो से क्रिया कर लेती है।
संयुक्त अवस्था में उपस्थित धातु अयस्को के उदाहरण निम्न है –
i. Cu (कॉपर) के अयस्क :-
कॉपर पाइराइटीज : CuFeS2
क्यूप्राइट (रूबी कॉपर) : Cu2O
कॉपर ग्लान्स : Cu2S
मैलाकाईट : CuCO3.Cu(OH)2
ii. जिंक (Zn) के अयस्क :-
जिंककाईट : ZnO
जिंक ब्लेण्ड : ZnS या स्फेलेराइट
कैलामाइन : ZnCO3
विलेमाइट : Zn2SiO4
फ्रेकलिनाइट : ZnFe2O4
iii. Fe के अयस्क
आयरन पाइराईट : FeS2
हेमेटाइट (लाल) : Fe2O3
मैग्नेटाइट : Fe3O4
सिडेराईट : FeCO3
लिमोनाइट (भूरा हेमेटाइट) : 2Fe2O3.3H2O
iv. Al (एल्यूमिनियम) के अयस्क :-
बोक्साइड – Al2O3.2H2O
डायस्पोर – Al2O3.H2O
कोरैंडम – Al2O3
केयोलिनाइट – Al2(OH)4Si2O5
फेल्सपार – KAlSi3O8
अभ्रक – 3Al2O3.6SiO2.2H2O
क्रायोलाइट – Na3AlF6

धातु का निष्कर्षण / धातुकर्म (metallurgy)

धातु अयस्को से शुद्ध धातु प्राप्त करने के प्रक्रम को धातु कर्म कहते है।  धातुकर्म की प्रक्रिया निम्न पाँच चरणों में संपन्न होती है –
1. अयस्क को पीटना या पिसना : इस चरण में अयस्क के बढे टुकडो को जो-क्रेशर (jaw crusher) की सहायता से पहले छोटे टुकडो में तोडा जाता है , अब इन छोटे टुकडो को स्टैम्प मिल या बॉल मिल की सहायता से महीन चूर्ण के रूप में पिस लिया जाता है।
2. चूर्णित अयस्क का सांद्रण / प्रसादन / सज्जीकरण : चूर्णित अयस्क में उपस्थित रेत कंकड़ , पत्थर इत्यादि अशुद्धियो को हटा देना ही चूर्णित अयस्क का सांद्रण या प्रसादन या सज्जीकरण कहलाता है।
अयस्क के सांद्रण की विधियाँ निम्न है –
i. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि / द्रवीय धावन विधि : यह विधि अयस्क और अशुद्धि के घनत्व के अंतर पर आधारित है।  इनमे से अयस्क का घनत्व अधिक व अशुद्धि का घनत्व कम होता है।
इस विधि में पहले चूर्णित अयस्क को जल में अच्छी तरह मिलाया जाता है अब इसे जल की प्रबल धारा के साथ ढालदार एवं नालीनुमा मेज पर प्रवाहित किया जाता है इस प्रक्रिया में अयस्क के कारण भारी होने के कारण नालीनुमा मेज पर रह जाती है तथा अशुद्धियाँ हलकी होने के कारण जल के साथ बहकर आगे चली जाती है , इस प्रकार सांद्रित अयस्क प्राप्त होता है।
उदाहरण :
हेमेटाइड अयस्क (Fe2O3)
केसिरेटाइड अयस्क (SnO2)
ii. चुम्बकीय पृथक्करण विधि : यह विधि अयस्क और अशुद्धि के चुम्बकीय गुणों के अन्तर पर आधारित है।  इस विधि में अयस्क व अशुद्धि में से कोई एक पदार्थ चुम्बकीय होना चाहिए तथा दूसरा अचुम्बकीय होना चाहिए।

इस विधि में चूर्णित अयस्क को एक चुम्बकीय रोलर पर घूमते हुए पट्टे पर गिराया जाता है।  इस प्रक्रिया में चुम्बकीय पदार्थ रोलर के नजदीक गिरते है तथा अचुम्बकीय पदार्थ इससे दूर गिरते है।  इस प्रकार चुम्बकीय व अचुम्बकीय पदार्थो की अलग अलग ढेरियाँ बनने से अयस्क का सांद्रण हो जाता है।
उदाहरण : टिन के अयस्क केसिरेटाइड अयस्क (SnO2) में हेमेटाइड अयस्क (Fe2O3) व FewO4 (वोल्फामाइड) की चुम्बकीय अशुद्धियाँ उपस्थित होती है अत: इसका सान्द्रण इस विधि द्वारा करते है।
iii. झाग प्लवन विधि / फेन प्लवन विधि / froth flotation method : यह विधि सल्फाइड अयस्को के सांद्रण में प्रयुक्त होती है।
जैसे : CuFeS2

Ag2S
PbS

ZnS

यह विधि  अधिशोषण सिद्धांत पर कार्य करती है।
यह विधि अयस्क व अशुद्धि के तेल व जल में भीगने के अंतर पर आधारित है , इसमें अयस्क के कण तेल से एवं अशुद्धियाँ जल से भीगती है।
इस विधि में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ व उनकी उपयोगिता इस प्रकार है –
(a) झागकारक (Frothing agent) : यह पदार्थ वायु की उपस्थिति में झाग (फेन) बनाने का कार्य करते है।
जैसे –
वसा अम्ल (Fatty acid)
चिढ का तेल (pine oil)
नीलगिरी का तेल (Eucalyptus oil)
(b) प्लवन कारक (Floatation agent) : यह पदार्थ अयस्क के कणों को भिगोकर उन्हें जल प्रतिकर्षी बना देते है , इस प्रकार उनमे प्लवन (तैरने) का गुण आ जाता है।
उदाहरण : सोडियम एथिल जेंथेट।
इसे संग्राही भी कहते है।
(c) फेन स्थायी कारक (Stabiliser) : यह कारक या पदार्थ फेन या झाग को स्थायी रखने का कार्य करते है।
उदाहरण : क्रिसोल , एनिलिन।
(d) सक्रीय कारक (activator) : यह पदार्थ अयस्क कणों की प्लवन क्षमता में वृद्धि कर देते है।
उदाहरण : कॉपर सल्फेट।
(e) अवनमक (Depressant) : यह पदार्थ झाग को कम करने का कार्य करते है।
उदाहरण : NaCN , Na2CO3 आदि।
जब दो धातुओ के सल्फाइड अयस्क आपस में मिश्रित हो तो उन्हें पृथक करने के लिए अवनमक का उपयोग करते है।
यह अवनमक एक धातु सल्फाइड अयस्क को झाग में आने देता है लेकिन दुसरे को नहीं।
जैसे : ZnS व PbS अयस्क आपस में मिश्रित हो तो उनके पृथक्करण के लिए NaCN अवनमक का उपयोग करते है।  यह NaCN , PbS को झाग में आने देता है लेकिन ZnS को नहीं।
इस विधि में पहले चूर्णित अयस्क का जल में निलंबन तैयार करते है अब इस निलम्बन में झागकारक (चिड का तेल) व प्लवन कारक (सोडियम एथिल जेंथेट) मिलाते है तथा इसमें थोड़ी मात्रा में फेनस्थायी कारक (क्रिसोल एनिलिन) भी मिलाते है।  अब इस विलयन को वायु की उपस्थिति में विलोडक की सहायता से विलोड़ित करते है इससे झाग बनते है।  यह झाग विलयन में ऊपर की ओर आ जाते है तथा प्लवन कारक के कारण अयस्क के कण इन झागो में आ जाते है तथा अशुद्धियाँ पात्र के पैंदे में बैठ जाती है।  इस प्रकार इन झागो को अलग करके इन्हें सुखाकर इनसे सांद्रित अयस्क प्राप्त करते है।