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कोयला एवं पेट्रोलियम , coal and petroleum class 10 notes in hindi , कुल्ह , चेक डैम , बांध हानिया

coal and petroleum class 10 notes in hindi , कोयला एवं पेट्रोलियम :-

जल संग्रहित करने का अन्य पारंपरिक तरीका जो की निम्न है

कुल्ह

लगभग 400 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्र में नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली का विकास हुआ जिन्हें की ‘कुल्ह’ कहा जाता है। झरनों से बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। इन क्षेत्र के सभी गाँवों की सहमति से ही कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन किया जाता था। कृषि के मौसम में जल सर्वप्रथम दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोतर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंधन के लिए दो अथवा तीन लोग रखे जाते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इन कुल्ह से जल का भूमि में अंतःस्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता रहता था। सरकार द्वारा इन कुल्ह के अधिग्रहण (ले लेने के बाद) के बाद इनमें से अधिकतर निष्क्रिय हो गए तथा कुल्ह जैसी व्यवस्था समाप्त हो गई।

बांध बनाने से होने वाली हानिया

1.जैव विविधता का नष्ट होना।

2. बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।

3. खेती करने हेतु जमीन की कमी हो जाती है।

4. स्थानीय लोग विस्थापित हो जाते है टीथा उन्हें घर के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है।

पुरानी जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ का आज भी उपयोग किया जाता है। जल संग्रहण तकनीक स्थानीय होती हैं जिसके कारण इसका लाभ भी स्थानीय/सीमित क्षेत्र को होता है। स्थानीय निवासियों को जल-संरक्षण का नियंत्रण देने से इन संसाधनों के अकुशल प्रबंधन एवं अतिदोहन कम होते हैं अथवा पूर्णतः समाप्त हो सकते हैं।

चेक डैम

चेक डैम जल के संग्रहण के लिए बड़े समतल भूभाग में स्थल मुख्यतः अर्धचंद्राकार मिट्टी के गड्ढे अथवा निचले स्थान वर्षा ऋतु में पूरी तरह भर जाने वाली नालियाँ/प्राकृतिक जल मार्ग पर बनाए जाते है जो की कंक्रीट अथवा छोटे कंकड़ पत्थरों द्वारा बनाए जाते हैं। इन छोटे बाँधों के अवरोध के कारण इनके पीछे मानसून का जल तालाबों में भर जाता है। केवल बड़े जलाशयों में जल पूरे वर्ष रहता है। परंतु छोटे जलाशयों में यह जल 6 महीने या उससे भी कम समय तक रहता है उसके बाद यह सूख जाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य जल का संग्रहण करना नहीं होता है परंतु जल-भौम स्तर में सुधार करना है। जल के भौम जल के रूप में संरक्षण के कई लाभ हैं। भौम जल से अनेक लाभ हैं जो की कुछ इस प्रकार से है

1. भौम जल वाष्प बन कर उड़ता नहीं है परंतु यह आस-पास में फैल जाता है

2.बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है।

3.इसके अतिरिक्त इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती।

4.भौम जल मानव एवं जंतुओं के अपशिष्ट से झीलों तालाबों में ठहरे पानी के विपरीत संदूषित होने से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है।

जल का प्रदूषित होने के कारण

1.मरे हुए जीवो को जल में डाल देने के कारण जल प्रदूषित होता है।

2.जलाशयों में उधोगो का कचरा डालने के कारण।

3. नदियों के नजदीक कपडे धोने , उसमे नहाने के कारण ।

4. नदियों में ऐसे प्रदाथो का मिलाना जो की इससे प्रदूषित कर देते है जैसे की मिट्टी, अन्य प्रकार के अम्ल आदि।

जल को प्रदूषित करने में मनुष्य के क्रियाकलाप

1.घर एवं कारखानों दवारा विषेला या रसायन वाला पानी नदियों में छोड़ने पर।

2. नदियों में मरे हुए जीवो को छोडना।

3. खेती में काम आने वाने वाले पीडकनाशी तथा उर्वरक के उपयोग से भी जल प्रदूषित होता है।

कोयला एवं पेट्रोलियम

जीवाश्म ईंधन अर्थात कोयला एवं पेट्रोलियम जो की ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। औद्योगिक क्रांति के समय से हम उत्तरोत्तर अधिक ऊर्जा की खपत कर रहे हैं। जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग हम दैनिक ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति तथा जीवनोपयोगी पदार्थों के उत्पादन हेतु करते हैं। ऊर्जा संबंधी यह आवश्यकता हमें कोयला तथा पेट्रोलियम से प्राप्त होती है। आज भी हम अपनी उर्जा का 70 % भाग इससे प्राप्त करते है।

जीवाश्मी ईधन से प्राप्त ऊर्जा स्रोतों का प्रबंधन अन्य संसाधनों की अपेक्षा कुछ अलग तरीके से किया जाता है। पेट्रोलियम एवं कोयला लाखों वर्ष पूर्व बहुत सारे जीवों की जैव-मात्रा के अपघटन से प्राप्त होते हैं। अतः चाहे हम जितनी भी सावधानी से इनका उपयोग करें फिर भी यह स्रोत भविष्य में समाप्त हो जाएँगे। अतः तब हमें ऊर्जा के अन्य स्रोतों की खोज करने की आवश्यकता होगी। यह संसाधन यदि वर्तमान दर से अर्थात् अभी जितना उपयोग में आता है ही उपयोग में लेते रहे तो हमारे पेट्रोलियम के संसाधन लगभग अगले 40 वर्षों में तथा कोयला अगले 200 वर्षों तक ही उपलब्ध रह सकते हैं।

कोयला एवं पेट्रोलियम जैव-मात्रा से बनते हैं जिनमें कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर (गंधक) भी होते हैं। जब इन्हें जलाया (दहन किया) जाता है तो कार्बन डाइऑक्साइड, जल, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा सल्फर के ऑक्साइड बनते हैं।

अपर्याप्त वायु (ऑक्सीजन) में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है। इन उत्पादों में से नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड विषैली गैसें हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीन हाउस गैस है।

कोयला एवं पेट्रोलियम कार्बन के विशाल भंडार हैं और कोयला एवं पेट्रोलियम में उपस्थित कार्बन की संपूर्ण मात्रा को जलाने पर यह कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है तो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जाती है जिससे तीव्र वैश्विक ऊष्मण होने की संभावना है। अतः इन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।