कार्बनिक रसायन (organic chemistry) , केकुले का सिद्धान्त , वांट हाफ तथा ली-बेल का सिद्धांत ,हाइड्रोकार्बन

कार्बनिक रसायन (organic chemistry) : रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसमें कार्बनिक पदार्थो (हाइड्रोजन व उसके व्युत्पन्न) का अध्ययन किया जाता है , कार्बनिक रसायन कहलाता है।
सर्वप्रथम ‘व्होलर’ ने अकार्बनिक यौगिको से कार्बनिक यौगिक (यूरिया) का निर्माण किया।
कार्बन परमाणु चतु: संयोजकता : कार्बनिक यौगिको की मूल संरचना को समझाने के लिए निम्न दो महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए गए –
1. केकुले का सिद्धान्त : इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है –
  • कार्बन परमाणु चतु: संयोजकता दर्शाता है अर्थात इसकी संयोजकता चार होती है।
  • कार्बन परमाणु अन्य कार्बन परमाणुओं से बंधित होकर विभिन्न विवृत व संवृत श्रृंखला वाले यौगिक बना सकता है।
  • कार्बन परमाणु अन्य परमाणुओं के साथ एकल बंध , द्विबंध या त्रिबंध द्वारा बंधित हो सकता है।
2. वांट हाफ तथा ली-बेल का सिद्धांत : जब कार्बन परमाणु अपने यौगिकों में चार एकल बन्धो से जुड़ा होता है तो निम्न संरचनाएं संभव हो सकती है –
(i) वर्ग समतलीय : इस विन्यास में कार्बन परमाणु तथा चारों प्रतिस्थापी एक ही तल में होते है।
(ii) वर्ग पिरेमिड : इस विन्यास के चारो प्रतिस्थापी एक ही तल में एक ही वर्ग के चारो कोनो पर स्थित होते है तथा कार्बन परमाणु इस वर्ग के तल के ऊपर या तल के नीचे स्थित होता है।
(iii) चतुष्फलकीय : इस विन्यास में चारो प्रतिस्थापी एक समचतुष्फलक के चारों शीर्षों पर स्थित होते है तथा कार्बन परमाणु इस चतुष्फलक के केंद्र पर स्थित होता है , इसमें बंध कोण 109 डिग्री 28 मिनट का होता है।

कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण

कार्बनिक यौगिको को उनमें उपस्थित कार्बनिक श्रृंखला के आधार पर दो भागो में बांटा गया है –
(I) विवृत श्रृंखला या अचक्रीय यौगिक : इन यौगिको में कार्बन परमाणु की विवृत श्रृंखला होती है।  श्रृंखला के अंतिम कार्बन परमाणु एक दुसरे से बंधित नहीं होते है अत: इन यौगिको को अचक्रीय यौगिक कहते है।  इनमें कार्बन परमाणुओं की श्रृंखला शाखित व अशाखित हो सकती है।
(II) संवृत श्रृंखला या चक्रीय यौगिक : इन यौगिको में कार्बन परमाणु समचक्रीय या विषमचक्रीय के रूप में व्यवस्थित रहते है।  इस प्रकार के यौगिकों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है –
1. समचक्रीय यौगिक : वे यौगिक जिनमें वलय केवल कार्बन परमाणु की बनी होती है , समचक्रीय यौगिक कहलाते है।
इन्हें दो भागो में वर्गीकृत किया जाता है –
  • ऐलिसाइक्लिक यौगिक : वे समचक्रीय यौगिक जो गुणों में विवृत श्रृंखला यौगिको जैसा व्यवहार करते है , ऐलिसाइक्लिक यौगिक कहलाते है।
  • ऐरोमैटिक यौगिक : इन यौगिको में एक प्रकार की सुगंध पायी जाती है , इसलिए इन्हें एरोमैटिक यौगिक कहते है।  वे समचक्रीय यौगिक जिनमे एक या अधिक बेंजीन वलय पायी जाती है तथा एकांतर क्रम में द्विबंध होते है , ऐरोमेटिक यौगिक कहलाते है।
2. विषम चक्रीय यौगिक : वे चक्रीय यौगिक जिनकी वलय में कार्बन परमाणुओं के अतिरिक्त कम से कम एक विषम परमाणु जैसे नाइट्रोजन , सल्फर , ऑक्सीजन आदि उपस्थित होते है तो ऐसे यौगिक विषमचक्रीय यौगिक कहलाते है।
ये एरोमेटिक और एलिफेटिक दोनों प्रकार के होते है।

हाइड्रोकार्बन (hydrocarbon)

वे कार्बनिक यौगिक जिनमें अणु केवल कार्बन तथा हाइड्रोजन से बंधे होते है उन्हें हाइड्रोकार्बन कहते है।
ये कार्बनिक यौगिको के जनक माने जाते है।
सजातीय श्रेणी (homologous series) : संरचनात्मक गुणों में समानता रखने वाले यौगिको के समूह के सदस्यों को बढ़ते हुए अणुभार के क्रम में लिखने पर जो श्रेणी प्राप्त होती है उसे सजातीय श्रेणी कहते है।
सजातीय श्रेणी के प्रत्येक सदस्यों को सजात या सजातीय कहते है तथा इस गुण को समजातीयता कहते है।
सजातीयता श्रेणी के लक्षण :
  • सजातीय श्रेणी के सभी सदस्यों को एक सामान्य सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
  • सजातीय श्रेणी के क्रमागत सदस्यों के अणु सूत्रों में CH2 समूह का अंतर होता है।
  • प्रत्येक सजातीय श्रेणी के सदस्यों को सामान्य विधियों द्वारा बनाया जा सकता है।
  • सजातीय श्रेणी के सदस्यों के भौतिक गुणों में क्रमिक परिवर्तन अर्थात उतार चढाव होता है।
  • प्रत्येक सजातीय श्रेणी का एक विशिष्ट क्रियात्मक समूह होता है अत: सदस्यों के रासायनिक गुण समान होते है।

प्रेरणिक प्रभाव (inductive effect)

किसी कार्बन श्रृंखला के किनारे के कार्बन परमाणु के किसी अधिक विद्युत धनी परमाणु या परमाणुओं के समूह से जुड़े रहने के कारण श्रृंखला में बंध के इलेक्ट्रॉनो का स्थायी विस्थापन “प्रेरणिक प्रभाव” कहलाता है।
जैसे जैसे कार्बन श्रृंखला बढती जाती है यह प्रभाव कम होता जाता है।
इसे “I” से व्यक्त करते है।
प्रेरणिक प्रभाव दो प्रकार का होता है –
1. +I effect अर्थात धनात्मक प्रेरणिक प्रभाव : वे परमाणु या परमाणुओं के समूह जो साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म को अपने से दूर प्रतिकर्षित करते है , वे +I प्रभाव वाले समूह कहलाते है।
ऐसे समूह किसी कार्बन श्रृंखला से जुड़ने पर उसमें इलेक्ट्रॉन घनत्व को बढ़ा देते है।
2. -I effect या ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव :  वे परमाणु या परमाणुओं के समूह जो साझे के इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित करते है वे -I effect या ऋणात्मक प्रेरणिक प्रभाव वाले समूह कहलाते है।
ऐसे समूह किसी कार्बन श्रृंखला से जुड़ने पर उसमें इलेक्ट्रॉन घनत्व को घटा देते है।

इलेक्ट्रोमरी प्रभाव (Electromeric effect)

यह एक अस्थायी प्रभाव है।  यह बाह्य आक्रमणकारी अभिकर्मक की उपस्थिति में बहु-बंध युक्त कार्बनिक यौगिको द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
इसके परिणाम स्वरूप बहु बंध का पाई इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युत ऋणी परमाणु पर स्थानांतरित हो जाता है।
इसे ‘E’ से व्यक्त करते है।
यह दो प्रकार का होता है –
1. +E प्रभाव या धनात्मक इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव : यदि बंध का पाई इलेक्ट्रोन युग्म उस परमाणु पर स्थानान्तरित होता है , जिस पर की आक्रमण कारी अभिकर्मक जुड़ता है तो इसे +E effect कहते है।
2. -E effect या ऋणात्मक इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव : यदि बहुबंध का पाई इलेक्ट्रॉन युग्म उस परमाणु से दूर स्थानांतरित होता है जिस पर की आक्रमणकारी अभिकर्मक जुड़ता है तो इसे -E effect कहते है।
अतिसंयुग्मन प्रभाव (hyperconjugation effect) : किसी कार्बनिक यौगिक में σ बंध के इलेक्ट्रॉन एवं समीपस्थ π बन्ध के इलेक्ट्रॉन के मध्य संयुग्मन के फलस्वरूप यौगिक का स्थायित्व बढ़ जाता है इस स्थायीकरण को अतिसंयुग्मन प्रभाव कहते है।
अतिसंयुग्मन प्रभाव को आबंध विहीन अनुनाद भी कहते है।
यह प्रभाव ‘बेकर’ व ‘नाथन’ ने प्रतिपादित किया।
अनुनाद (resonance) : जब किसी यौगिक की दो या दो से अधिक संरचनाए संभावित होती है तथा कोई भी संरचना उस यौगिक के गुणों को स्वयं पूर्ण रूप से समझाने में असमर्थ होती है तो ऐसी स्थिति में वास्तविक संरचना उन सभी संरचनाओं जो की उस यौगिक की वास्तविक आणविक संरचना को निरुपित करने में योगदान देती है वे अनुनादी संरचनाएं कहलाती है तथा कार्बनिक यौगिको का यह गुण अनुनाद या मेसोमेरिक प्रभाव कहलाता है।