WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

गैसों की द्रवों में विलेयता व प्रभावित करने वाले कारक , प्रकृति , ताप , दाब (solubility of gas in liquid in hindi)

(solubility of gas in liquid in hindi) गैसों की द्रवों में विलेयता व प्रभावित करने वाले कारक , प्रकृति , ताप , दाब : गैसे वह पदार्थ होती है जो जिनका विस्तार मुक्त रूप से सके तथा रिक्त स्थान में गैस के कण अपना स्थान बना लेते है। गैस का कोई भी एक निश्चित आकार या आकृति नहीं होती है। गैस के अणु आपस में दुर्बल वान्डरवाल बलों द्वारा बंधे रहते है। गैसों के कणों के मध्य ठोस तथा द्रवों के तुलना में बल दुर्बल पाया जाता है जिससे तुलनात्मक रूप से इसके कण कम बल द्वारा बंधे रहते है।

गैसो की द्रवों में विलेयता

सामान्य रूप से यह पाया जाता है कि जल या अन्य प्रकार के द्रवों में गैस एक निश्चित मात्रा में घुली हुई रहती है जैसे समुद्र आदि के पानी में जो मछली आदि पायी जाती है वे श्वसन के लिए पानी में घुली हुई ऑक्सिजन का उपयोग करती है क्यूंकि पानी में ऑक्सीजन प्राप्त मात्रा में घुली हुई रहती है।
किसी भी द्रव में गैस की विलेयता को हम अवशोषण गुणांक द्वारा व्यक्त कर सकते है जो निम्न प्रकार परिभाषित किया जाता है –
एक निश्चित ताप तथा एक वायुमंडलीय दाब पर किसी द्रव या विलायक के इकाई आयतन में घुली हुई गैस का आयतन , अवशोषण गुणांक कहलाता है। यह प्रत्येक द्रव के लिए अलग अलग हो सकता है क्यूंकि गैस की विलेयता अलग अलग द्रवों में अलग अलग हो सकती है।

गैस की विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक

किसी भी द्रव में गैस की विलेयता को निम्न कारक प्रभावित करते है या द्रवों में गैसों की विलेयता का मान निम्न कारको पर निर्भर करता है –
1. गैस की प्रकृति : जो गैसें द्रव के साथ मिलकर यौगिक बना लेती है या द्रव में आयनीकृत हो जाती है ऐसी गैसे द्रव में अधिक घुलनशील होती है। इसके दूसरी तरफ जो गैस , द्रवों के साथ कोई क्रिया नहीं करती है वे गैसे ऐसे द्रवों में कम घुलनशील होती है या कभी कभी नहीं घुलती है।
जैसा की हमें अवशोषण गुणांक का ऊपर अध्ययन किया जिसके अनुसार यदि किसी गैस के लिए अवशोषण का गुणांक का माना अधिक है तो उस गैस के लिए द्रव में विलेयता अधिक होती है।
2. द्रवों की प्रकृति : जिस प्रकार गैसों की विलेयता का मान गैसों की प्रकृति पर निर्भर करता है ठीक उसी प्रकार गैस की विलेयता का मान द्रवों की प्रकृति पर भी निर्भर करता है।
गैस की विलेयता में भी हम कह सकते है कि समान -समान को घोलता है , अर्थात ध्रुवीय गैसें , ध्रुवीय विलायको में अधिक घुलनशील होते है तथा ध्रुवीय गैसे , अध्रुविय द्रवों में कम घुलनशील होते है।
3. ताप का प्रभाव : जब एक निश्चित या स्थिर दाब पर ताप का मान बढाया जाता है तो ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रव में विलेयता कम हो जाती है ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि जब गैसे किसी द्रव में घुलती है तो इनके घुलने के कारण ऊष्मा बाहर निकलती है या यह क्रिया ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है , और जैसा हम जानते है कि ऊष्माक्षेपी अभिक्रियाओं में ताप का मान बढ़ाने पर विलेयता कम हो जाती है।
कुछ गैसे ऐसी भी होती है जो जब द्रव में घुलती है तब ऊष्मा ग्रहण की जाती है अर्थात यह ऊष्माशोषि अभिक्रिया है इसलिए ऐसे गैसों के लिए ताप का मान बढ़ाने पर विलेयता बढ़ जाती है।
अत: गैसों की विलेयता का मान ताप पर भी निर्भर करता है।
4. दाब का प्रभाव : जब गैस विलेय तथा द्रव विलायक हो तो उस स्थिति में दाब का मान बढ़ाने पर गैसों की विलेयता द्रवों के बढ़ जाती है। गैस की विलेयता पर दाब का कितना प्रभाव पड़ता है इसका मान हम हेनरी का नियम का उपयोग करके ज्ञात कर सकते है।