(electromagnetic waves in hindi) विद्युतचुम्बकीय तरंगें , विद्युत चुंबकीय तरंगों के उदाहरण , गुण , उदाहरण क्या है विद्युत चुम्बकीय तरंग किसे कहते है ?
परिभाषा : वे तरंगें जिन्हें संचरित होने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है उन्हें विद्युत चुम्बकीय तरंग कहते है अर्थात विद्युत चुंबकीय तरंगें निर्वात में भी संचरित हो जाती है। चूँकि इन तरंगों को संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए अन्तरिक्ष में संचार के लिए अर्थात वार्ता के लिए इन्ही तरंगों का उपयोग किया जाता है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगें प्रकाश के वेग से गति करती है , तथा ये तरंग फोटोन से मिलकर बनी होती है।
जब कोई चुम्बकीय क्षेत्र समय के साथ परिवर्तित हो रहा हो तो इसके कारण विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है और ठीक इसके विपरीत अर्थात एक परिवर्तनशील विद्युत क्षेत्र , चुम्बकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है।
मैक्सवेल ने बताया कि हमारी प्रकृति में एक तरंग ऐसी पायी जाती है जिसमें चुम्बकीय क्षेत्र और विद्युत क्षेत्र विद्यमान रहता है और दोनों समय के साथ परिवर्तित होते रहते है अत: दोनों ऐसे व्यवहार करती है जैसे ये एक दुसरे के कारण उत्पन्न हो रही है , इस तरंग को ही विद्युत चुम्बकीय तरंग कहते है अत: विद्युत चुंबकीय तरंगें चुम्बकीय क्षेत्र और विद्युत क्षेत्र के दोलन से उत्पन्न होने वाली अनुप्रस्थ तरंगें होती है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों के गुण निम्न है –
- इन तरंगों पर कोई आवेश विद्यमान नहीं रहता है अर्थात ये उदासीन तरंगें है।
- इन तरंगों में विद्युत क्षेत्र , चुम्बकीय क्षेत्र और संचरण सदिश , सभी एक दुसरे के लम्बवत स्थित रहते है।
- ये अनुप्रस्थ तरंगें होती है अर्थात इसमें इन तरंगों का दोलन , संचरण की दिशा के लम्बवत होता है।
- विद्युतचुम्बकीय तरंगें प्रकाश के वेग से संचरित होती है या गति करती है।
- इन तरंगों की अवधारणा सबसे पहले मैक्सवेल ने प्रस्तुत की थी इसलिए हम कह सकते है कि विद्युत चुंबकीय तरंगों की खोज मैक्सवेल ने की थी।
- इन तरंगों में संवेग और ऊर्जा दोनों निहित होती है।
- विद्युत चुम्बकीय तरंगों के उदाहरण : एक्स किरणें , रेडियों तरंगें आदि।
विस्थापन धारा : माना एक संधारित्र की धारिता C है , इसे एक ऐसे स्रोत से जोड़ा जाता है जिसमे धारा का मान समय के साथ परिवर्तित होता है। संधारित्र की प्लेटों के बाहर किसी बिंदु P पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करने के लिए r त्रिज्या के एक समतल लूप की कल्पना की जिसका तल धारावाही तार की दिशा के लम्बवत है।
एम्पियर के नियम से –
∫B.dl = u0i
B.2πr = u0i समीकरण-1
अब यदि बिंदु P पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान ज्ञात करने के लिए एक घड़े के आकार की कल्पना की जिसकी तली संधारित्र की दोनों प्लेटों के बीच में हो तो चुम्बकीय क्षेत्र का मान शून्य प्राप्त होगा।
अत: यहाँ पर एक विरोधाभास उत्पन्न होगा। पहली स्थिति में चुम्बकीय क्षेत्र प्राप्त हुआ जबकि दूसरी स्थिति में चुम्बकीय क्षेत्र का मान शून्य अत: यह सोचा गया कि कोई न कोई पद छुट रहा है और वह है प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन।
विद्युत क्षेत्र प्लेट संधारित्र के बिच –
E = σ/ε0
चूँकि σ = q/A
जहाँ q → प्लेटों पर आवेश
A → प्लेटों का क्षेत्रफल
चूँकि E = q/Aε0 समीकरण-2
विद्युत फ्लक्स
QE = EA
E का मान रखने पर –
QE = q/ε0
q = ε0 QE समीकरण-3
t के सापेक्ष अवकलन करने पर –
dq/dt = ε0 dQE/dt
id = ε0 dQE/dt समीकरण-4
अत: कुल धारा i चालक धारा ic तथा विस्थापन धारा id के बीजीय योग बराबर होगी।
i = ic + id समीकरण-5
अत: एम्पियर का नियम –
∫B.dl = u0i
∫B.dl = u0(ic + id)
∫B.dl = u0ic + u0id
id का मान रखने पर –
∫B.dl = u0ic + u0ε0 dQE/dt समीकरण-6
विद्युत चुम्बकीय तरंगे : स्थिर आवेश केवल विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है जबकि एक समान वेग से गतिशील आवेश विद्युत क्षेत्र के साथ साथ चुम्बकीय क्षेत्र भी उत्पन्न करता है।
परन्तु यह चुंबकीय क्षेत्र समय के साथ परिवर्तित नहीं होता अत: विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उत्पादन नहीं होता त्वरित आवेश से ही विद्युत चुम्बकीय तरंगो का उत्पादन संभव है अर्थात जब विद्युत क्षेत्र एवं चुम्बकीय क्षेत्र किसी आवृति के साथ दोलन करता है तो विद्युत चुंबकीय तरंगों का उत्पादन होता है।
यदि कोई आवेश किसी आवृत्ति से दोलन करता है तथा यह आवेश एक दोलनी विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है , यह दोलनी विद्युत क्षेत्र एक दोलनी चुम्बकीय क्षेत्र को जन्म देता है जो वापस दोलनी विद्युत क्षेत्र को संपोषित करता है , यदि प्रक्रिया चलती रहती है तथा विद्युत चुम्बकीय तरंगो की आवृति वही होती है तो त्वरित गति करते हुए आवेशित कण की होती है।
यदि हम पीले प्रकाश की उत्पत्ति करना चाहते है तो त्वरित आवेश की आवृति पीले प्रकाश की आवृति 6 x 1014 के बराबर होनी चाहिए परन्तु आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक परिपथों की अधिकतम आवृति 1011 हर्ट्ज़ है अत: उन तरंगो का उत्पादन संभव नहीं है जिनकी आवृति 1011 हर्ट्ज़ से अधिक हो अत: केवल रेडियो तरंगे सूक्ष्म तरंगों का उत्पादन ही संभव हो पाया।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रायोगिक उत्पादन सबसे पहले हर्ट्ज़ ने किया परन्तु हर्ट्ज द्वारा प्राप्त विद्युत चुम्बकीय तरंगो की तरंग दैधर्य अधिक होने के कारण इनका संचरण अधिक दूरी तक संभव नहीं हो सका।
हर्ट्ज़ के सात साल बाद भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने हर्ट्ज़ की तुलना में कम तरंगदैधर्य (25 मिलीमीटर से 5 मिलीमीटर’ तक) की विद्युत चुम्बकीय तरंगे प्राप्त हुई तथा इन्हें हर्ट्ज़ की तुलना में अधिक दूरी तक भेजना संभव हुआ परन्तु ये तरंगे भी प्रयोगशाला से बाहर नहीं जा सकी इसके कुछ समय पश्चात् मार्कोनी ने विद्युत चुम्बकीय तरंगों को कई किलोमीटर दूरी तक भेजने में सफलता प्राप्त की तथा मार्कोनी के योग के बाद ही संचार क्षेत्र में क्रांति आयी।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति : विद्युत चुम्बकीय तरंगो में विद्युत क्षेत्र E तथा चुम्बकीय क्षेत्र B परस्पर लम्बवत होते है साथ ही ये तरंग संचरण की दिशा के भी लम्बवत होता है अर्थात यदि विद्युत क्षेत्र के कम्पन्न x दिशा में हो तथा चुम्बकीय क्षेत्र के कम्पन्न y दिशा में हो तो तरंग z दिशा में संचरित होगी।
विद्युत चुम्बकीय तरंगो का वेग :
Kz – wt = नियतांक
समय t के सापेक्ष अवकलन
K (dz/dt) – wdt/dt = 0
Ke – w = 0
Kc = w
c = w/k समीकरण-1
चूँकि w = 2πv
यहाँ v = आवृति
K = 2π/λ
w व K के मान रखने पर –
C = vλ
या
v = C/λ
वायु या निर्वात में विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वेग :
C = 1/√u0ε0
चूँकि 1/4πε0 = 9 x 109
1/ ε0 = 4π x 9 x 109
u0/4π = 10-7
u0 = 4π x 10-7
1/ u0 = 1/4π x 10-7
1/ ε0 x 1/ u0 = ?
दोनों मान रखकर हल करने पर
1/ u0ε0 = 9 x 1016
वर्ग मूल करने पर –
1/√u0ε0 = 3 x 108 m/sec
C = 3 x 108 m/sec
माध्यम विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वेग :
V = 1/√uε0
C > V
यदि वायु या निर्वात में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता ε0 तथा चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B0 हो तो विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वेग –
C = ε0/B0
यांत्रिक तरंगों के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है अत: उस समय के वैज्ञानिकों ने यह माना कि विद्युत चुम्बकीय तरंगो के संचरण के लिए भी माध्यम की आवश्यकता होती है अत: ब्रह्माण्ड में एक सर्वव्यापी पदार्थ विद्यमान है जिसे ईथर नाम दिया परन्तु माइकलसन और मोरले ने अपने प्रयोग के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि विद्युत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में भी चल सकती है , इनके चलने के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है अत: ईथर की कल्पना छोड़ दी गयी।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों का वेग उनकी तरंग दैधर्य पर निर्भर नहीं करता , सभी विद्युत चुम्बकीय तरंगो का वेग नियत रहता है। वायु या निर्वात के लिए इसका मान 3 x 108 मीटर/सेकंड होता है।
विद्युत चुम्बकीय तरंगों में परावर्तन , अपवर्तन , व्यतिकरण , विवर्तन एवं ध्रुवण की घटना होती है। विद्युत चुम्बकीय तरंगे ध्रुवित होती है इसके लिए एक AM रेडियो में दूरदर्शी का एंटीना लगाया जाता है जो विद्युत चुम्बकीय तरंगो के विद्युतीय भाग के प्रति प्रतिक्रिया करता है। यदि एन्टीना को क्षैतिज कर दिया जाए तो सिग्नल अत्यधिक घट जाते है। कुछ रेडियो में क्षैतिज एंटीना लगे होते है जो विद्युत चुम्बकीय तरंगो के घटकों के प्रति प्रतिक्रिया करते है।
विद्युत क्षेत्र के कारण ऊर्जा घनत्व = ε0E2/2
चुम्बकीय क्षेत्र के कारण ऊर्जा घनत्व = B2/2u0
चूँकि विद्युत चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों होते है अत: विद्युत चुम्बकीय तरंगो का ऊर्जा घनत्व = ε0E2/2 + B2/2u0
विद्युत चुम्बकीय तरंगो में संवेग भी होता है।
आइन्स्टाइन के सिद्धांत से –
U = mc2
U = C (mc) समीकरण-1
mc = p संवेग
U = cp
P = V/C
विद्युत चुम्बकीय तरंगें (electromagnetic waves) : जिस प्रकार भौतिकी में मूल राशियों की व्युत्पत्ति संभव नहीं है , इसी प्रकार अनेक ऐसे मूल नियम जैसे न्यूटन के गति के नियम , गुरुत्वाकर्षण , ऊष्मागतिकी के नियम , कूलाम नियम आदि है , जिनकी व्युत्पत्ति संभव नहीं है परन्तु वे अनेक प्रायोगिक परिणामों की सफल व्याख्या करते है। इसी प्रकार विद्युत चुम्बकिकी में गॉस का नियम , एम्पियर का नियम और फैराडे के प्रेरण के नियम ऐसे मूल नियम है जिनके द्वारा सम्पूर्ण विद्युत चुम्बकिकी की घटनाओं की व्याख्या की जा सकती है। सन 1873 में जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने इन नियमों को अधिक व्यापक रूप देते हुए इन्हें अवकल समीकरण के रूप में प्रस्तुत किया। ये समीकरण इतने अद्भुत है कि इनके द्वारा प्रकाश (विकिरण) , विद्युत और चुम्बकत्व का एक प्रकार से एकीकरण हो गया तथा यह समीकरण अनेक विद्युत चुम्बकीय युक्तियों जैसे – मोटर , रडार , कंप्यूटर , टेलीवीजन आदि की कल्पनाओं का स्रोत सिद्ध हुए।
मैक्सवेल समीकरणों के संयोजन से प्राप्त अनेक महत्वपूर्ण परिणामों में से एक विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्र वेक्टरों की स्थिति और समय के साथ परिवर्तनों में सहसम्बन्ध था। यह सम्बन्ध उसी प्रकार प्राप्त होता है जैसा कि तरंग गति में उसके किसी लाक्षणिक गुण का होता है। इस प्रकार मैक्सवेल समीकरणों से विद्युत क्षेत्र (E) वेक्टर और चुम्बकीय क्षेत्र (B) वेक्टर के लिए तरंग समीकरण प्राप्त होते है।
E और B परस्पर सम्बन्धित होते है। चुम्बकीय क्षेत्र (B) के समय के साथ परिवर्तन से विद्युत क्षेत्र (E) उत्पन्न होता है और विद्युत क्षेत्र (E) के समय के साथ परिवर्तन से चुम्बकीय क्षेत्र (B) उत्पन्न होता है। स्पष्ट है कि इन सदिशों में एक का समय के साथ परिवर्तन दुसरे का स्रोत है और ये परिवर्तन किसी एक बिंदु पर सिमित नहीं रहते बल्कि आकाश में तरंग रूप में संचरित होते है। इन्ही तरंगों को विद्युत चुम्बकीय तरंगे (electromagnetic waves) कहते है।
मैक्सवेल समीकरणों से प्राप्त तरंग समीकरणों को हल करके जब निर्वात में इन तरंगों का वेग ज्ञात किया गया तो यह निर्वात में प्रकाश के वेग (3 x 108 m/s) के बराबर प्राप्त हुआ। ये तरंगे यांत्रिक तरंगों से भिन्न होती है। इनके संचरण के लिए किसी भी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है अर्थात ये निर्वात में भी गमन कर सकती है। प्रकाश तरंगों और विद्युतचुम्बकीय तरंगों के गुणों में समानता के आधार पर मैक्सवेल ने एक नए सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिसे प्रकाश का विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत (electromagnetic theory of light) कहते है।