Exons and Introns in hindi difference between exons and introns class 12 एक्सॉन व इंट्रॉन क्या है

जीव विज्ञान में Exons and Introns in hindi difference between exons and introns class 12 एक्सॉन व इंट्रॉन क्या है ?

एक-जीन-एक एन्जाइम परिकल्पना (One gene – One enzyme hypothesis) :

जैसा कि विदित है कि किसी भी जीव के परिवर्धन ( development) में अनेकों जीन्स का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है अर्थात् जीन्स किसी भी जीव के विभिन्न लक्षणों को नियंत्रित करते हैं। यह नियंत्रण प्रोटीन संश्लेषण द्वारा सम्भव हो पाता है जिस पर जीन्स का सीधा नियन्त्रण होता है। जीनों द्वारा संश्लेषित होने वाले प्रोटीन्स अधिकतर संरचनात्मक प्रोटीन्स होते हैं, किन्तु कुछ प्रोटीन्स एन्जाइम्स के रूप में होता हैं, जो कि जीवों में घटित होने वाली जैव रासायनिक क्रियाओं हेतु विभिन्न जैव संश्लिट मार्गों (Biosynthetic pathways) को नियंत्रित करते हैं । सर्वप्रथम सन् 1941 में जी.डब्लू. बोडल एवं ई.एल. टेटम (G. W. Beadle and E.L. Tatum) ने यह प्रदर्शित किया कि सामाचन्यतः किसी भी जीव में जीन्स की अभिव्यक्ति एन्जाइम के संश्लेषण पर निर्भर करती है। न्यूरोस्पोरा कवक में जैव रासायनिक उत्परिवर्तनों के अध्ययन के पश्चात् इस ज्ञान की प्राप्ति हुई। बीडल व टेटम ने अपने अध्ययनों के आधार पर एक परिकल्पना प्रस्तुत की जिसे एक जान एक एन्जाइम परिकल्पना (One gene – One enzyme hypothesis) कहा जाता है। इस परिकल्पना का अर्थ है कि यदि किसी एक जैव संश्लिष्ट मार्ग में कई चरण ( steps) हैं तो उसमें से प्रत्येक चरण एक विशिष्ट एन्जाइम द्वारा नियंत्रित होता है तथा इस प्रकार प्रत्येक चरण हेतु आवश्यक विशिष्ट एन्जाइम का संश्लेषण एक विशिष्ट जीन द्वारा नियंत्रित होता है (चित्र 5.6 ) ।

प्रोकैरियोटिक व यूकैरियोटिक जीन संरचना

(An idea about Prokaryotic and Eukaryotic Structure of Gene)

प्रोकैरियोटिक जीन संरचना :

ओपेरॉन मॉडल (The Operon Model)—

सर्वप्रथम जैकब एवं मोनाड (Jacob and Monad 1961) ने ई. कोलाइ जीवाणु का अध्ययन करने पर प्रोकेरियोट्स के जीन नियमन को समझाने के लिए ओपेरॉन मॉडल (Operon Model) प्रस्तुत किया। उन्होंने ई कोलाइ (E. Coli) में 3 गैलेक्टोसाइडेज एन्जाइम के संश्लेषण से सम्बन्धित प्रेरण तंत्र का अध्ययन करते हुए जीन नियमन की प्रेरणएवं मंदन अवधारणा विकसित की।

इस कार्य के लिए जेकब एवं मोनाड को सन् 1965 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ई. कोलाई का लेक ओपेरॉन माडल प्रमुखतः एन्जाइम B गैलेक्टोसाइडेज के संश्लेषण कार्य पर आधारित है। यह एन्जाइम लेक्टोस शर्करा का विघटन ग्लूकोस एवं गैलेक्टोस में करता है। इस माडल को इसीलिए लेक ओपेरॉन (Lac Operon) मॉडल भी कहते हैं।

लेक ओपेरॉन में एक वर्तुलाकार (Circular DNA) होता है, जिसमें जीवाणु का अधिकांश आनुवांशिक पदार्थ समाहित होता है। इस ओपेरॉन में चार मुख्य घटक पाये जाते हैं जो कि समन्वित रूप से कार्य करते हैं। ये घटक निम्न प्रकार से हैं (चित्र 5.7)-

(1) संरचनात्मक जीन (Structural Gene) — ये ओपेरॉन के प्रमुख कार्यकारी घटक जीन हैं, प्रोटीन के लिए कोड करते हैं। E. coli के लेक ओपेरॉन में तीन प्रकार के संरचनात्मक जीन क्रमश: 2. y पाये जतो हैं एवं ये एक दीर्घ (Elongated) पॉलीस्ट्रिॉनिक m-RNA अणु का अनुलेखन (Transcription) करते हैं। यहm-RNA अणु तीन विभिन्न एन्जाइमी – प्रोटीनों क्रमश: 3 गैलेक्टोसाइडेस, गैलेक्टोसाइड परमिएस एवं गैलेक्टोसाइड ट्रान्स-एसिटाइलेस के संश्लेषण का नियंत्रण करता है। इन इन्जाइमों में क्रमश: 4, 1 व 2 प्रोटीन इकाइयाँ होती हैं । ई. कोलाई में लगभग 2500 संरचनात्मक जीन उपस्थित होते हैं, जिनमें 800 विभिन्न प्रकार के एन्जाइमों को उत्पन्न करने की क्षमता होती है। इनमें से कुछ विशेष प्रकार के एन्जाइमों का संश्लेषण तो नियंत्रित होता है अर्थात् जरूरत एवं उपलब्धता के आधार पर होता है जबकि कुछ एन्जाइम्स का निरन्तर संश्लेषण होता रहता है।

लेक ओपेरॉन में B गैलेक्टोसाइडेस में चार पॉलीपेप्टाइड इकाइयाँ (प्रोटीन) होती है। इनमें से प्रत्येक इकाई का अणुभार 1,25,000 डाल्टन होता है एवं यह 1021 अमीनों अम्लों की बनी होती हैं। गैलेक्टोसाइडेस परमियेस एन्जाइम एक पॉलीपेप्टाइड शृंखला (प्रोटीन) द्वारा निर्मित होता है, जिसमें 275 अमीनो अम्ल होते हैं तथा इसका अणुभार 30,000 डाल्टन होता है। यह एन्जाइम लेक्टोस के कोशिका में प्रवेश को आसान बनाता है।

दो पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएँ मिलकर मिलकर गैलेक्टोसाइडेस-ट्रांसएसिटाइलेस नामक एन्जाइम का निर्माण करती हैं । इनमें से प्रत्येक पॉली पेप्टाइड श्रृंखला 275 अमीनो अम्लों की बनी होती है, इसका अणुभार 30,000 डाल्टन होता है। यह एन्जाइम लेक्टोस प्रेरण के समय बहुत थोड़ी मात्रा में पाया जाता है ।

( 2 ) रेगुलेटर या नियामक जीन (Regulator Gene) – यह ओपेरॉन माडल में अवस्थित विशेष प्रकार की जीन होती है, जो प्रमोटर जीन के पहले अवस्थित पाई जाती है। इनका विशेष कार्य संरचनात्मक जीन्स को नियंत्रित (Regulate) करने का है। ये आवश्यकतानुसार दमनकारी (Repressor) पदार्थ उत्पन्न करते हैं। इस प्रोटीनीय पदार्थ को ” जीन भी कहते हैं तथा यह आपरेटर जीन के पास स्थित होता है। इस प्रकार यह जीन एन्जाइम प्रोटीनों की संरचना का निर्धारण न करके ओपेरॉन के अन्य जीनों जैसे संरचनात्मक एवं प्रमोटर  की अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation) करते हैं।

जीन होती है। मॉडल में कार्य विभाजन के अनुसार ओपरेटर जीन, अनुलेखन क्रिया का दमन (Repression) | ( 3 ) ओपरेटर या प्रचालक जीन (Operator Gene) – यह प्रथम संरचनात्मक जीन के पास अवस्थित करता है एवं इस प्रकार संरचनात्मक जीनों पर ऋणात्मक नियंत्रण (Negative Control) करता है। E. coli में ऑपरेटर जीन 21 क्षार क्रमों द्वारा निर्मित होता है ।

(4) प्रवर्धक या प्रमोटर जीन (Promotor Gene) – यह ऑपरेटर जीन के आगे पाया जाने ओपेरॉन का विशिष्ट भाग होता है क्योंकि एन्जाइम RNA – पॉलीमेरेस इससे सम्बद्ध रहता है। इसका कार्य प्रोटीन निर्माण का नहीं होता, अपितु पॉलीमेरेस की उपस्थिति के कारण प्रवर्धक जीन, संरचनात्मक जीनों के अनुलेखन प्रारम्भ (Initiation) करता है। प्रिब्नोऊ (Pribnow 1975) के अनुसार इस जीन में तीन स्थल पाये जाते हैं, जिनको (1) अभिज्ञान क्रम (Recognition site), (2) बन्धक क्रम (Binding sequence), एव (3) m – RNA प्रारम्भ स्थल (121-RNA Initiation site ) कहते हैं। ई. कोलाई में लगभग 100 प्रकार की प्रवर्धक जीनों के बारे में अध्ययन किया गया है। विभिन्न वर्धक जीनों में दो छोटी समान अनुक्रम प्राप्त हुई है।

यूकैरियोटिक जीन संरचना

एक्जोन्स व इनट्रोन्स (Exons and Introns) —

यद्यपि प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक, दोनों ही प्रकार के DNA की संरचना व संगठन में विभिन्नताएँ होती हैं, किन्तु फिर भी वे कुछ समानताएँ प्रदर्शित करते हैं। दोनों ही समूहों में DNA द्विकुण्डलित (Double holical) होता है तथा सूचना संचयन तन्त्र की तरह कार्य करता है। यद्यपि दोनों समूहों में प्रोटीन संश्लेषण मशीनरी में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं किन्तु फिर भी दोनों में RNA ही मध्यवर्ती अणु होता है तथा समान आनुवंशिक कूट का उपयोग किया जाता है ।

उपरोक्त समानताओं के उपरान्त भी दोनों प्रकार के DNA में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं जिन्हें नवीन तकनीकों द्वारा प्रदर्शित किया गया है। जब प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं को सीजीयम क्लोराइड डेनसिटी ग्रेडिएट में सेन्ट्रीफ्यूज किया जाता है तो एक जाति विशेषण का सम्पूर्ण DNA एक बेन्ड (One band) के रूप में दिखायी देता है अर्थात् उस जाति के सभी DNA खण्डों में क्षारीय संगठन समान होता है। किन्तु अलग-अलग जातियों के जीनोम में DNA के क्षारीय संगठन में भिन्नता पायी जाती है।

इसके विपरीत जब यूकैरियोटिक कोशिकाओं को सीजीयम क्लोराइड डेनसिटी ग्रेडिएन्ट में सेन्ट्रीफ्यूज किया जाता है तो एक जाति विशेष का DNA एक से अधिक बैन्ड्स (Bands) में पृथक् होता है। इससे यह ज्ञात होता है कि यूकैरियोटिक DNA में बीच-बीच में ऐसे विभिन्न क्षेत्र होते हैं जिनका क्षारीय संगठन भिन्न-भिन्न होता है ।

अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुआ है कि कोई भी जीव जितना अधिक बड़ा (large) होगा, उसके गुणसूत्रों सैं जीन्स की संख्या उतनी ही अधिक होगी, जिससे अधिक सूचनाएँ निहित हो सकें। उदाहरणार्थ, वाइरस, ई. कोलाई, जीवाणु व मानव कोशिका में जीनोम का आकार क्रमश: 3.0 × 100, 2.8 x 10 व 3.5 x 102 होता है। औसतन एक जीन में लगभग 10 क्षार अनुक्रम होते हैं, जो कि 1 Kb लम्बाई प्रदर्शित करते हैं। यह जीन 3 × 104 डाल्टन भार की एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला को कोडित करता है ।

यूकैरियोट्स में जितनी संख्या में जीन्स की आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक मात्रा म DNA उपस्थित होता है। आवश्यकता से अधिक DNA की उपस्थिति को प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है तथा यह स्पष्ट किया जा चुका है कि इस DNA का बहुत सारा भाग क्रियाशील (Functional) नहीं होता है, अर्थात् वह भाग किसी भी पॉलीपेप्टाइड, अणु संश्लेषण को कोडित नहीं करता है। इस DNA में बीच-बीच में कुछ ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिनमें विशिष्ट न्यूक्लिओटाइड ‘अनुक्रमों की प्रतियों की पुनरावृत्ति ( Repetition) पायी जाती है, इनके अलावा कुछ क्षेत्र विभिन्न कार्यों से सम्बन्धित होते हैं । अतः यूकैरियोट्स में उपस्थित अतिरिक्त DNA नॉन-कोडिंग (Non-coding) क्षेत्र के रूप में पाया जाता है।

यह पूर्णरूपेण स्पष्ट किया जा चुका है कि यूकैरियोटिक जीन लगातार फैला हुआ (Continuous stretch) नहीं होता है, बल्कि इसके बीच में कहीं-कहीं छोटे व बड़े DNA अनुक्रम होते हैं जो कि कोडिंग (Coding) का कार्य नहीं करते हैं । इन्हें स्पिलिट जीन्स (Split genes) कहा जाता है | DNA (जीन) को कोडिंग अनुक्रम एक्जोन्स (Exons) तथा नॉन-कोडिंग अनुक्रम इनट्रोन्स (Introns) कहलाते हैं (चित्र 5.8)। ऐसा माना गया है कि इन्ट्रोन्स क्षेत्र नियमन का कार्य करते हैं जबकि एक्जोन्स प्रोटीन संश्लेषण को कोडित करते हैं। जीन में कोडिंग व नॉन-कोडिंग क्षेत्रों की उपस्थिति को जैकब व मोनाड (Jacob & Monad) द्वारा प्रस्तुत ऑपेरॉन अवधारणा (Operon concept) द्वारा भी समझाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि DNA में कुछ अनुक्रम ऑपेरॉन के रूप में पाये जाते हैं जो कि एक विशिष्ट जीन उत्पाद को कोडित करते हैं, किन्तु इनके अतिरिक्त जीन में नॉन-कोडिंग अनुक्रम क्षेत्र भी उपस्थित होते हैं, जो कि जीन अभिव्यक्ति (Gene expression) को नियंत्रित करते हैं

अभ्यास-प्रश्न

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न अथवा रिक्त स्थानों की पूर्ति :

  1. DNA को सर्वप्रथम……………………ने वियोजित किया ।
  2. DNA अणु का द्विकुण्डलीय प्रतिरूप प्रस्तावित करने वाले वैज्ञानिक …………………….
  3. सर्वप्रथम ……………………ने जीवाणु रूपान्तरण का अध्ययन किया ।
  4. सर्वप्रथम ‘जीन’ शब्द……………………..प्रस्तुत किया था।
  5. रिकोन………………….की सूक्ष्मतम इकाई है।
  6. म्यूटोन………………….. की सूक्ष्मतम इकाई है।
  7. DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है, न कि प्रोटीन प्रमाणित करने वाले वैज्ञानिकों के नाम लिखिए।
  8. एक जीन – एक एन्जाइम सिद्धान्त………………. ने दिया ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short answer questions) :

  1. संरचनात्मक जीन का विवरण दीजिए ।
  2. ऑपेरान को परिभाषित कीजिए ।
  3. एक्जोन्स व इनट्रोन्स अनुक्रम समझाइए ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type of Questions ) :

  1. DNA ही आनुवंशिक पदार्थ है, इसे प्रमाणित करने हेतु हर्षे तथा चेज द्वारा किये गये प्रयोग का वर्णन कीजिए ।
  2. ‘जीन संकल्पना’ का वर्णन कीजिए ।
  3. न्यूरोस्पोरा कवक में बीडल व टेटम द्वारा किये गये जैव-रासायनिक उत्परिवर्तनों के अध्ययन का वर्णन कीजिए ।
  4. एक जीन – एक एन्जाइम परिकल्पना पर टिप्पणी लिखिए ।
  5. ई. कोलाई जीवाणु में ओपेरॉन मॉडल का विस्तृत वर्णन कीजिए ।
  6. प्रोकेरियोट्स व यूकेरियोट्स में जीन संगठन का वर्णन कीजिए ।

उत्तरमाला (Answers)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न / रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. मीशर ने
  2. वॉटसन व क्रिक
  3. एफ. ग्रिफिथ (1928)
  4. जोहनसन (1903)
  5. पुनर्योजन की
  6. उत्परिवर्तन की
  7. ऐवेरी व उनके साथी
  8. बीडल व टेटम, (1940)