sex glands in hindi , जनद या लिंग ग्रन्थियाँ क्या है कौन कौनसी होती है नाम बताइए , कार्य लिखिए

जानेंगे sex glands in hindi , जनद या लिंग ग्रन्थियाँ क्या है कौन कौनसी होती है नाम बताइए , कार्य लिखिए ?

इन्सुलिन एवं ग्लूकागोन हार्मोन का नियमन(Regulation of insulin and glucagon hormone)

अग्नाशय द्वारा स्रावित इन हार्मोन्स का नियमन ऋणात्मक पुनर्भरण तंत्र (negative and feed back system) के द्वारा किया जाता है।

हाउजे (Hossay) के द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार ग्लूकोस, मैग्रोस एवं फ्रक्टोस की रक्त में बढ़ती सान्द्रता के कारण लैंगरहेन्स द्वीपिकाओं की B कोशिकाएँ एमिओसाइटोसिस (emeiocytosis) क्रिया जो कि पिनेकोसाइटोसिस क्रिया की विपरीत क्रिया है । के द्वारा इन्सुलिन

हार्मोन का स्रवण करती ल्यूसीन एवं आर्जिनीन अमीनों अम्ल भी B कोशिकाओं को उद्दीप्त कर इन्सुलिन हार्मोन का स्रवण करने में समर्थ होते हैं। वृद्धि हार्मोन एवं ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स भी अतिग्लूकोस रक्ता के प्रभाव से इस हार्मोन का स्रवण बढ़ाते हैं।,

चित्र 8.39 – ऋणात्मक पुनर्भरण तंत्र अग्नाशयी हार्मोन्स का नियमन

रक्त में शर्करा की मात्रा घटने पर अग्नाशय की कोशिकाएँ ग्लूकागोन हार्मोन का स्रवण आरम्भ करती है। रक्त में शर्करा – की सांद्रता बढ़ने के साथ ही ग्लूकागोन का स्रवण रूक जाता है। प्रोटीन युक्त आहार के लेने तथ खेलकूद, भाग-दौड़ एवं वर्जिश (exercise) जैसे क्रियाओं के कारण भी ग्लूकागोन का स्रवण अधिक होने लगता है।

अग्नाशयकर्तन (Pancreatomy) अग्नाशय को देह से शल्य क्रिया द्वारा अलग कर देने पर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है एवं देहली स्तर 160-180 मिग्रा. 100 मि.ली. रक्त प्लाज्मा को पार करने के उपरान्त वृक्कि से छनकर मूत्र के साथ निकलने लगती है । रक्म में ग्लूकोस की मात्रा 300-400 मिग्रा. प्रति 100 मि.ली. तक पहुँच जाती है। यह अवस्था ही मधुमेह (diabetes mellitus) कहलाती है। ग्लूकोस की अधिक मात्रा के उत्सर्जन हेतु प्राणी अधिक जल ग्रहण करता है। यह अवस्था अतिपिपासा (polydipasia) तथा मूत्र के साथ अधिक जल का उत्सर्जन भी करता है। यह अवस्था बहुमूत्रता (polyurea) कहलाती है। प्राणी की देह से ग्लूकोस का निष्कासन होन के कारण यह हमेशा भूखा अनुभव करता है। यह अवस्था अतिक्षुधा (polyphagia) के नाम से जानी जाती है। कई बार देह में जल की कमी एवं खनिज लवणों की कमी भी हो जाती है। प्रोटीन कर कीटोन – काय के रूप में मंत्र में उत्पन्न होने लगते हैं। रोग का उपचार न किये गये जाने की स्थिति में डायबिटिक कोमा ( coma) हो जाता है। प्लाज्मा की कमी के कारण वृक्क निष्क्रय हो जाते हैं ओर प्राणी की मृत्यु भी हो सकती है।

चित्र 8.40 – रुधिर में ग्लूकोज की सान्द्रता का इन्सुलिन तथा ग्लूकैगॉन द्वारा नियमन अग्नाशय के B कोशिकाओं वाले भाग में अर्बुद (tumor) बन जाने पर अतिइन्सुलिनकायता | (hyperinsulinism) हो जाती है अर्थात् इन्सुलिन की अत्यधिक मात्रा स्रावित होने के कारण रक्त में सर्करा का स्तर शीघ्रता से घट जाता है। इस अवस्था में पसीने आना, दौरे पड़ना, बेहोशी आना, शीघ्र, थकान मूर्छा व ऐंठन का होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। यह रोग आनुवंशिक भी हो सकता है।

जनद या लिंग ग्रन्थियाँ (sex glands)

जंतुओं में वृषण (testes ) एवं अण्डाशय (ovaries) के रूप में दो प्रकार की पायी जाती है। वृषण नर प्राणियों तथा अण्डाशय मादा प्राणियों में पाये जाने वाले कोशिका जननिक (gytogenic) अंग है जो शुक्राणु (sperms) एवं अण्डाणु (ooctye) युग्मों (gametes) को उत्पन्न करने का कार्य करते हैं। इन अंगों की संरचना विभिन्न जातियों में भिन्न प्रकार की होती है। इन अंगों के कार्यों पर पीयूषिका के अग्र पिण्ड एडीनोहाइपोफाइसिस का FSH, LH, एवं LTH ट्रोपिक हारमोनों का नियंत्रण रहता है । जनदों का युग्मक उत्पादन के अतिरिक्त एक अन्य कार्य अन्त:स्रावी स्रवण का भी है। इस कार्य के अर्न्तगत ये ग्रन्थियों लिंग हारमोन्स (sex hormones) का स्रावण करती है। लिंग हारमोन्स के प्रभाव से जंतुओं में द्वितियक लैंगिक लक्षणें (secondary sexual characters) के उत्पन्न होने की क्रिया होती है।

वृषण (Testes)

कशेरूकी जंतुओं के वृषण रेता नलिकाओं (seminiferous tubles) से बने होते हैं। संयोजी ऊत्तक एवं रेता नलिकाओं के बीच-बीच में अन्तराली कोशिकाएँ (interstitial cells) या लैडिंग कोशिकाएँ (Ledig cells) भी पायी जाती है। ये कोशिकाएँ ही अन्तःस्रावी स्रवण उत्पन्न करती है जिन्हें लिंग हॉरमोन ( sex hormones) या एन्ड्रोजन (androgens) कहते हैं। ये हॉरमोन स्टीरॉइड प्रकृति के होते हैं। लगभग 11 प्रकार के स्टीरॉइड नर हॉरमोन्स प्राप्त किये गये हैं।

चित्र 8.42: शुक्रजनन नलिकाओं का एक दृश्य ( आरेखीय )

चित्र 8.43: शुक्रजनन नलिकाओं एवं अन्तराली कोशिकाओं

नर हॉरमोन्स का सामान्य प्रभाव जंतुओं के द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को प्रभावित करने एवं जनन तंत्र के सामान्य कार्य करने पर होता है। इनके प्रभाव से पुरुषों में दाड़ी, मूँछ का उगना छाती एवं शुक्राणुजन क्रिया को प्रभावित करना, लैंगिक ग्रन्थियों का उचित स्रवण करना एवं बाह्य जननांगों का देह के भागों पर बालों की अधिकता, अधिक ऊँचाई, भारी आवाज, चाल, यौन व्यवहार, जनदों द्वारा समुचित विकास होना आदि क्रियाएँ होती है।

एस्ट्रोजन व एण्ड्रोलन परस्पर विपरीत दिशा में कार्य करते हैं। अल्प मात्रा में एण्ड्रोजेन्स का उत्पादन वृक्क तथा अण्डाशय भी करते हैं।

नर जनन हार्मोन्स (Male reproductive hormones)

चित्र 8.44: वृषण के कार्यों का नियंत्रण

जो अन्तराली या लैंडिंग की कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है। ये कोशिकाएँ नवजात शिशु (i). टेस्टोस्टिरॉन (Testosterone ) – यह अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं प्रभावी (potent) हार्मोन है एवं वयस्क पुरुष के वृषण में उपस्थित होती है किन्तु बच्चों के वृषण में ये अनुपस्थित रहती है। यह 18 कार्बन परमाणु युक्त स्टिरॉइड प्रकृति का एण्ड्रोजन है। इसका पूर्वगामा ( precurósr) प्रिगनोलोन (pregneolone) नामक रसायन है जो अधिवृक्ककीय हॉरमोन्स तथा प्रोजेस्टॉरान का भी पूर्वगामी होती है। यह हार्मोन परिपक्व नर में युवावस्था के आरम्भ से स्रवण होना आरम्भ होता है तथा 40 वर्ष की अवस्था के उपरान्त कम होता हुआ लगभग 80 वर्ष की आयु में बन्द हो जाता है।

(ii) एन्ड्रोस्टिरॉन (Androsterone ) — यह टेस्टोस्टिरॉन की अपेक्षा क्षीण प्रकृति का लिंग हार्मोन है जो वृषण में स्रावित होता है। पीयूष ग्रन्थि द्वारा स्रावित FSH एवं ISCH हार्मोनी की उपस्थिति में यह वृषण द्वारा स्रावित किया जाता है। एन्ड्रोस्टेनेडिऑन (Androstenedione) डीहाइड्रो एपीएड्रीस्टिान (Dehydro epinadrosterone) DHEA वृषण तथा अधिवृक्क द्वारा कम प्रभावी प्रकार के हॉरमोन्स हैं।

नर हॉरमोन्स विशिष्ट प्लाज्मा प्रोटीन्स के साथ ही भ्रमणशील होते हैं। टेस्टोस्टिरॉन, एन्ड्रोस्टिरॉन तथा DHRA के रूप में ही गतिमय बनते हैं।

नर हॉरमोन्स प्रभाव (Effect of androgens)

(i) जननांग (genital organs) — एन्ड्रोजन्स, शिश्न, अण्डकोष, प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि, एपिडिडीमिस, शुक्रवाहिनीओं, शुक्राशय आदि में वृद्धि एवं कार्यशीलता को प्रभावित करता है।

(ii) द्वितीयक लैंगिक लक्षण (Scondary sexual characters)—नर जंतु में बालों का चेहरे पर दाढ़ी व मूँछों व छाती पर अधिक होना, आवाज का भारी व मर्दाना होना इनके द्वारा प्रभावित होता है।

(iii) कंकाल एवं पेशियाँ (Skeleton and muscles)— एन्ड्रोजन्स के प्रभाव से अस्थियाँ पूर्ण लम्बाई तक वृद्धि करती है। पेशियों का अधिक बलिष्ठ होना तथा जन्तु का मादा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होना इन हार्मोनों द्वारा प्रभावित होता है।

चित्र 8.45 : नर जनन हॉरमोन

(iv) त्वचा की संरचना एवं वर्ण (Structure and colour of skin) — एन्ड्रोजन्स के प्रभाव से ही नर जंतुओं की त्वचा मजबूत व लाल रंग की तथ गहरे रंग की होती है। इन हार्मोन्स की कमी के प्रभाव से त्वचा कोमल, सलवटें युक्त तथा पीले वर्ण की हो जाती है। नर जंतु की तेल ग्रन्थियाँ (sebaceous glands) अधिक स्रवण उत्पन्न करती है ।

(v) उपापचय (Metabolism).—–— नाइट्रोजन, सोडियम, फॉस्फोरस तथा क्लोराइड आयन्स का उपापचय भी इनके द्वारा प्रभावित होता है। उपापचय की दर (metabolic rate) युवावस्था में इनके द्वारा 5-10% तक सामान्य अवस्था की अपेक्षा बढ़ जाती है। प्रोटीन उपापचय की दर इन हार्मोन्स के प्रभाव से अधिक हो जाती है। त्वचा में प्रोटीनों का संग्रह (deposition) अधिक होने युवास्था में इसके संगठन में तथा जंतु के द्वारा नाइट्रोजन संरक्षण की क्षमता में वृद्धि हो जाती है।

(vi) विभिन्न आयन एवं जल संग्रहण (Electrocyte and water balance ) — वृक्कों में स्थित वृक्क नलिकाओं पर प्रभाव उत्पन्न कर सोडियम आयन तथा जल का संरक्षण कर युवावस्था रक्त के आयतन में वृद्धि, भार के अनुपात में करने का प्रभाव भी इन हार्मोन्स के द्वारा होता है। (vii) लाल रक्त कणिकाओं पर प्रभाव (Effect on red blood corpuscles) –— पुरुषों में रक्ताणुओं की संख्या 5 से 10 लाख प्रति घन से.मी. के लगभग होती है जो मादाओं की अपेक्षा अधिक रहती है। सम्भवतः उपापचय के प्रभाव से ही यह क्रिया भी प्रभावित होती है।

अण्डाशय (Ovary)—–

कशेरूकी जंतुओं के अण्डाशय में अनेक पुटक (follicles) पाये जाते हैं। ये पुटक ही एस्ट्रोजन नामक हार्मोनों को उत्पन्न करते हैं। मादा लैंकिंग हार्मोनों (female sex hormones) को दो समूह में विभक्त करते हैं।

(I) पुटकीय या एस्ट्रोनेजिक हार्मोन (Folllicular or estrogenic hormone) (II) प्रोजेक्टेशनल हार्मोन (Progestational hormones)

चित्र 8.46 : मानव अण्डाशय की संरचना

(I) पुटकीय हार्मोन (Follicular hormones)

इस वर्ग में एन्ट्र्रेन (estrone) तथा एस्ट्राडायोल ( estradiol) नामक हार्मोन आते हैं। ये 18 कार्बन परमाणु युक्त स्टिरॉइड है। अण्डाशय, अपरा (placenta ) अधिवृक्क ग्रन्थि या वल्कुट या कॉर्टेक्स भाग एवं वृषण इनका स्रावण करते हैं।

एस्ट्राडायोल का स्रवण अण्डोत्सर्ग (ovulation) से पूर्व किया जाता है तथा विकासशील पुटक की अन्त:पर्व (theca interna) इसका स्रवण करती है। अण्डोत्सर्ग के उपरान्त इसके स्रवण का कार्य कणीय स्तर (theca granulosa) तथा ल्युटिन स्तर (theca lutein) की कोशिकाओं के द्वारा बनाये रखा है। गर्भाधारित (pregnant ) महिलाओं में अपरा (placenta ) इसका स्रवण करती है।

चित्र 8.48 : अण्डाशय के कार्य पर हार्मोन्स का नियंत्रण

मांदा में एस्ट्राडायोल हार्मोन का प्रभाव (Effect of estradiole in females)

(i) मादाओं में बचपन से युवावस्था तक होने वाले सभी परिवर्तन जैसे गर्भाशयी उपकला का श्रृंगित (cornity) होना, अण्डवाहिनी का परिवर्धन तथा स्तन ग्रन्थियों का विवर्धन होना, इस हार्मोन के प्रभाव से होने वाली क्रियाऐं है।

(ii) मादाओं में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास हेतु भी इस हार्मोन की आवश्यकता होती है। इनमें स्तनों, दुग्ध ग्रंथियों, अण्डवाहिनी, गर्भाशय, योनि, लेबिना (labia), भगशिश्न (clitoris) का विकास एवं स्वभाव में शीतलता, आवाज, का पतला होना, त्वचा का पतला होना, जनाना चाल, अपेक्षाकृत कम लम्बाई, देह पर रोगों का कम विकास, त्वचा का पतला व कोमल होना, पेशियों का कम बलिष्ठ होना आदि लक्षणों को सम्मिलित किया जाता है।

(iii) मादाओं में एस्ट्रस-चक्र ( estrus) तथा चक्र (menstrual cycle) का होना एवं मैथुनेच्छा जागृत होने हेतु भी यह हार्मोन ही उत्तरदायी होता है।

(iv) ये हार्मोन गर्भाशय लक्ष्य अंग को प्रभावित करते हैं तथा प्रोटीन अपचयिक ( anabolic) प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ये फॉस्फोलिपिड्स की मात्रा को बढ़ाते हैं तथा सरीम कैल्शियम व फॉस्फोरस की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

इनकी अधिकता अर्थात् अतिस्रवण की अवस्था में अस्थियों में अधिक कैल्शियम का जमाव, रजोस्राव चक्र (menstrusl cycle) का अव्यवस्थित होना एवं कैन्सर आदि रोग हो सकते हैं। इनकी कमी अर्थात् कमस्रवण की अवस्था में रज चक्र का न होना व जननवाहिकाओं का अल्प विकसित होना आदि क्रियाएँ होती है ।

एस्ट्रोजन्स पर नियंत्रण (Control of estrogens)

(i) एन्ड्रोजन्स पीयूष ग्रन्थि के अग्रपिण्ड एडिनोहाइपोफइसिस द्वारा स्रवावित FSH एवं LH

हारमोन्स के नियंत्रण में क्रियाशील होते हैं।

(ii) FSH तथा LH हाइपोथैलेमस से स्रावित ( FSH – RH) तथा LH-RH कारक या मोचक हारमोन द्वारा नियंत्रित होते हैं।

(II) प्रोजेस्टेशनल या ल्यूटियल हार्मोन (Progestational or luteal hormones)

प्रोजेस्टिरॉन हार्मोन 21 कार्बन परमाणु युक्त स्टिरॉइड है यह पूर्वगामी पदार्थ प्रिंगनेनोलॉन से उत्पन्न किया जाता है। यह हारमोन अपरा एवं अधिवृक्क ग्रन्थि के वल्कुट भाग द्वारा भी स्रावित होता है। अधिवृक्क वल्कुट द्वारा स्रावित यह हार्मोन अनेक अन्य हार्मोन्स का पूर्वगामी पदार्थ होता है। इस समूह में प्रिगेनेनोडायोल प्रिगेनेनोट्रायोल एवं प्रिगनेनोलॉन भी सम्मिलित किये गये हैं। यह हार्मोन पीप पिण्ड (corpus luteum) द्वारा स्रावित होता है।

चित्र 8.49: कार्पस ल्यूटियम

प्रोजेस्टरॉन का प्रभाव (Effect of progesterone)

(i) गर्भाशयी अन्त:स्तर या एण्डोमेट्रियम (endometrium) में स्रावी परिवर्तन लाने हेतु उत्तदायी होता है। अत: निषेचित अण्ड का रोपण (implantation) होना सम्भव होता है।

(ii) एस्ट्रोजन के साथ क्रियाशी होकर स्तन ग्रन्थियों का विवर्धन करता है।

(iii) गर्भधारण के पश्चात् स्तर ग्रन्थियों में होने वाले परिवर्तनों अर्थात् दुग्ध नलिकाओं एवं दुग्ध स्रवण कोशिकाओं को सक्रिय करने का कार्य भी इनके द्वारा किया जाता है अतः स्तन ग्रन्थियाँ फूल जाती है।

(iv) गर्भकाल में गर्भाकाल के संकुचन को संदमित करता है।

(v) यह रज्ज चक्र का भी नियमन करता है।

(vi) इसकी कमी होने पर गर्भधरण की क्रिया नहीं होती है।

(vii) यह अण्डोत्सर्ग एस्ट्रस-चक्र को एवं पीयूष ग्रन्थि के (LH) के स्रवण को संदमित करता

है।

(viii) कुछ प्रजिस्ट्रॉन मल के साथ एवं प्रिगनेनाडायोल तथा प्रिगनोनेट्रायोल मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है।

चित्र 8.50 : मादा लिंग हार्मोन्स