jaunpur was founded by in hindi in the memory of जौनपुर नगर की स्थापना किसने की थी किसकी याद में बनाया गया था ?
जौनपुर (25.73° उत्तर, 82.68° पूर्व)
जौनपुर वाराणसी के समीप गोमती नदी के तट पर उत्तर प्रदेश में स्थित है। मध्यकाल में यह अत्यधिक महत्वपूर्ण शहर था। जौनपुर शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज तुगलक ने अपने भाई, मु. बिन तुगलक (जौना खा) की यादगार में की थी।
फिरोज तुगलक के शासनकाल में जौनपुर जफर खान नामक एक गवर्नर के नियंत्रण में आ गया तथा तुगलक वंश के पतनोपरांत इस पर जफर खान के उत्तराधिकारी शासन करते रहे। इन्होंने लगभग एक शताब्दी तक जौनपुर पर स्वतंत्रतापूर्वक शासन किया।
बाद में 1394 के लगभग, जौनपुर मलिक सरवर द्वारा स्थापित शर्की साम्राज्य का केंद्र बन गया। शर्की शासक कला एवं स्थापत्य के महान प्रोत्साहक एवं संरक्षक थे तथा इन्होंने जौनपुर में कई सुंदर मकबरों, मस्जिदों एवं मदरसों का निर्माण कराया। प्रसिद्ध अटाला मस्जिद एवं जामा मस्जिद शर्की स्थापत्य के दो सुंदर नमूने हैं। इन इमारतों की एक निश्चित कला शैली है तथा इन पर उत्तरकालीन तुगलक काल का प्रभाव परिलक्षित होता है। जौनपुर इस्लामी शिक्षा एवं अध्ययन का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र था तथा इसे श्पूर्व का सिराजश् की संज्ञा दी गई थी।
कालांतर में जौनपुर शेरशाह के अफगानी साम्राज्य का हिस्सा बन गया। 1569 में अकबर के समय इस पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। मुगलों के पतन के पश्चात 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यह अवध के नवाब के प्रभावाधीन हो गया।
इसकी स्थापत्य इमारतें जहां एक ओर इसके गौरवशाली इतिहास की गाथा कहती हैं, वहीं वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, तम्बाकू एवं मूली के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
जादिगेनहल्ली (लगभग 13° उत्तर, 77.8° पूर्व)
जादिगेनहल्ली कर्नाटक के बंगलुरू के ग्रामीण जिले में होस्कोत तालुक में एक गांव है। 1957 में हुए उत्खनन में, इस स्थान की खोज एक महापाषाण स्थल के रूप में हुई। यहां लोहे की वस्तुओं, मनके एवं चूड़ियों के अतिरिक्त काले मृदभांड, काले तथा लाल मृदभांड तथा लाल मृदभांड मिले हैं। कब्रगाह के गड्ढे में फर्श पर भूसे की खाटें मिली हैं। कब्रगाह के गढ़े में खंड बने हैं, जिसमें निम्न स्तर दो उपखंडों में बंटा है, जिनकी दीवार मिट्टी की बनी है। पत्थर की कब्रगाहों में कुछ सामग्री प्राप्त हुई हैं जिसमें कृषिगत औजारों सहित ऊंची गर्दन के मर्तबान, लोहे की वस्तुएं मिली हैं।
जगदला/जगद्दला/जग्गदला (25°8‘ उत्तर, 88°51‘ पूर्व)
ऐसा माना जाता है कि वर्तमान बांग्लादेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित धमोरहट उपजिला में स्थित जगदला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शासक रामपाल, जिसने बंगाल में 1077 से 1129 के मध्य शासन किया था, ने की थी। यह विश्वविद्यालय तांत्रिक, बौद्ध धर्म व बौद्ध धर्म के वज्रयान सम्प्रदाय के अध्ययन व प्रचार का केंद्र था। यहां पर काफी मात्रा में मूल पाठों, जो कि बाद में कंग्यूर और तंग्यूर के रूप में जाने गए, की रचना व अनुकृति की गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनतम संस्कृत काव्य ‘सुभाषितारत्नकोष‘ का विद्याकर द्वारा जगदला में ही संकलन किया गया था।
तिब्बती स्रोतों से पता चलता है कि, विक्रमशिला, नालंदा, सोमपुर, ओदंतपुर तथा जगदला ने एक संजाल (नेटवक) तैयार किया (संस्थानों का पारस्परिक रूप से जुड़ा एक समूह), जिसमें महान विद्वान एवं शोधार्थी सुगमतापूर्वक समान पद पर एक संस्थान से दूसरे संस्थान में आवागमन करते थे।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि जगदला विश्वविद्यालय को 1207 ई. में अंततः मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।
जयपुर (26.9° उत्तर, 75.8° पूर्व)
राजस्थान की राजधानी जयपुर को गुलाबी नगरी (Pink city) के नाम से भी जाना जाता है। इसका यह नाम शहर की सभी प्रमुख इमारतों के निर्माण में गुलाबी रंग के संगमरमर का उपयोग करने के कारण पड़ा। इस शहर का जयपुर नाम, इसके संस्थापक महाराजा जयसिंह द्वितीय (1693-1793 ई.) के नाम के कारण पड़ा, जिन्होंने 1727 से 1743 तक जयपुर में शासन किया।
प्रारंभ में जयपुर बूंदर क्षेत्र में था, जिसकी राजधानी आमेर या आम्बेर थी। जयपुर अपने श्सिटी पैलेसश् के लिए विख्यात है। इस पैलेस की रचना पूर्णरूपेण गुलाबी संगमरमर से की गई है तथा इसमें भारतीय इस्लामी वास्तुकला के दर्शन होते हैं। महाराजा जयसिंह ने यहां एक विशाल वेधशाला का निर्माण भी कराया, जिसे जंतर-मंतर के नाम से जाना जाता है। 1799 ई. में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा निर्मित ‘हवामहल‘ यहां की एक अन्य दर्शनीय इमारत जयपुर धार्मिक सम्प्रदायों एवं तीर्थयात्रा केद्रों से भी संबंधित है। गलताजी नामक प्रमुख धार्मिक स्थल एवं भगवान सूर्य का मंदिर जयपुर के धार्मिक महत्व को प्रतिबिंबित करते हैं आमेर (कछवाहा शासकों की पुरानी राजधानी) का किला भी जयपुर में ही स्थित है।
जयपुर के निकट बैराट से प्राचीनतम धार्मिक अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित एक स्तूप के प्रमाण मिले हैं। अशोक का भाव अभिलेख भी यहीं से पाया गया है। जयपुर मत्स्य जनपद की भी राजधानी था।
जैसलमेर (26.91° उत्तर, 70.91° पूर्व)
जैसलमेर राजस्थान के पश्चिमी हिस्से में स्थित है तथा राजस्थान की रेगिस्तान नगरी के रूप में जाना जाता है। यह देश के सबसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में से एक है।
मध्यकाल में जैसलमेर राजपूत शासकों के अधीन एक सशक्त दुर्ग नगरी थी। प्रारंभिक मध्यकाल में जैसलमेर पर राजपूतों के भाटी शासकों का शासन था। बाद में (लगभग 1570 में) जैसलमेर के राजा हरराय ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से कर दिया तथा मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
दिसंबर 1818 में जब लार्ड हेस्टिंग्स भारत का गवर्नर जनरल था तब जैसलमेर ने ईस्ट इंडिया कंपनी से सतत मित्रता एवं रक्षात्मक संधि संपन्न की। जैसलमेर की अंग्रेजों के साथ यह संधि स्वतंत्रता काल (1947) तक बनी रही।
जैसलमेर अपने वार्षिक ऊंट महोत्सव एवं जैन मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है।
जाजनगर वर्तमान समय के ओडिशा राज्य का नाम विभिन्न कालों में भिन्न-भिन्न था। समय-समय पर इसे उत्कल, कलिंग, एवं ओदरा देश इत्यादि नामों से पुकारा जाता रहा। ये सभी नाम मूलतः कुछ विशिष्ट लोगों से संबंधित थे। मध्यकाल (14वीं शताब्दी) में, मुस्लिम लेखक एवं इतिहासकार उत्कल को जाजनगर के रूप में उल्लिखित करते थे। जाजनगर ने सर्वप्रथम बलबन के समय अपनी ओर ध्यान आकर्षित किया, जब बंगाल के गवर्नर तुगरिल खान ने सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा प्रश्रय के लिए जाजनगर के जंगलों की ओर भाग गया। 1323 ई. में मु. बिन तुगलक ने उत्कल या जाजनगर पर आक्रमण किया तथा बहुत से हाथियों एवं काफी सामान लेकर वापस राजधानी पहुंचा। दिल्ली सल्तनत का जाजनगर पर आक्रमण करने वाला दूसरा शासक फिरोज तुगलक था, यद्यपि यह क्षेत्र 16वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य में सम्मिलित होने से पूर्व तक हिन्दू धर्म, कला एवं संस्कृति का प्रमुख स्थल बना रहा।
जालौर (23.35° उत्तर, 72.62° पूर्व)
जालौर को प्राचीन काल में ज्वालीपुर, ज्वालपुरा या जबलपुरा इत्यादि नामों से जाना जाता था। यह राजस्थान में स्थित है। 8वीं सदी में जालौर पर पृथ्वीराज चैहान ने शासन किया। यहां परमार एवं चाहमानों ने भी शासन किया। कालांतर में यह मारवाड़ साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
जंजीरा (18.29° उत्तर, 72.96° पूर्व)
महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर स्थित जंजीरा मुंबई के दक्षिण में 45 मील की दूरी पर स्थित एक टापू है। 15वीं शताब्दी के अंत में इस पर अबीसिनियनों ने अधिकार कर लिया तथा इसके पश्चात यह सीद्दियों या अबीसिनियाई प्रमुखों द्वारा ही शासित होता रहा। इन विदेशियों ने अपना सशक्त नौसैनिक बेड़ा तैयार किया तथा इस समुद्री क्षेत्र में व्यापक नियंत्रण स्थापित करने में सफल रहे तथा इस जलमार्ग के यात्रियों के लिए समस्याएं उत्पन्न करते रहे।
शिवाजी एवं उनके पुत्र शंभाजी ने जंजीरा पर अधिकार करने का प्रयास किया किंतु दुर्बल मराठा नौसैनिक शक्ति के कारण वे अपने प्रयासों में सफल नहीं हो सके। 19वीं शताब्दी तक जंजीरा एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहा किंतु इसके बाद वह अंग्रेजों के दबाव के आगे झुक गया तथा अंग्रेजों से मित्रता की संधि करने हेतु विवश हो गया।
जटिंग रामेश्वर (14°50‘ उत्तर, 76°47‘ पूर्व)
जटिंग रामेश्वर की वास्तविक जगह ब्रह्मगिरी से तीन मील दूर, कर्नाटक में स्थित है। यहां से मौर्य शासक अशोक का एक लघु शिलालेख पाया गया है। यह शिलालेख मैसूर समूह से संबंधित है। वर्तमान समय में यह अभिलेख जटिंग रामेश्वर मंदिर में है, जिससे यह अनुमान लगाया गया है कि यह स्थान कोई धार्मिक स्थान रहा होगा।
जौगढ़ (19°31‘ उत्तर, 84°48‘ पूर्व)
जौगढ़ रुसिकुल्य नदी के तट पर ओडिशा के गंजाम जिले में स्थित है। इस स्थान का अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि यहां से अशोक का एक शिलालेख पाया गया है, जिसमें वह सभी को बौद्ध धर्म का उपदेश देता है। कलिंग युद्ध के उपरांत अशोक ने वहां अपना अधिकार कर लिया था तथा अपने लेख उत्कीर्ण करवाए। इसी तरह का एक अन्य लेख धौली से प्राप्त किया गया है। इन लेखों में अशोक द्वारा हाल ही में जीते हुए कलिंग के दो प्रांतों के न्याय प्रशासन का विवरण है। यह राजाज्ञा सम्पा नगर जिसकी जौगढ़ के रूप में पहचान की गई, के मंत्रियों तथा सैन्याधिकारियों को संबोधित करती है, तथा उन्हें प्रजा के प्रति अपने आचरण में न्याय, बुद्धिमानी, न्यायपूर्वक रहने की शिक्षा दी गई है, जिससे अशोक की नीति इच्छित फल प्राप्त कर सके। अशोक यहां यह भी घोषित करता है कि सारी प्रजा उसकी संतान है तथा यह उसके प्रजा के लिए पितृत्व के भाव की ओर संकेत करती है। न्यायाधीश, जो ‘नगर व्यावहारिक‘ कहे जाते थे, उन्हें अशोक आदेश देता है कि वे अकारण किसी व्यक्ति को शारीरिक यातनाएं न दें न ही कैद करें। वह उन्हें क्रोध, ईष्र्या, अविवेक, निष्ठुरता तथा आलस्य इत्यादि दुर्गुणों से मुक्त रहने का निर्देश देता है। वह कहता है कि यदि वे निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे तो वे राजा के ऋण से मुक्त हो जाएंगे तथा उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी।
जौगढ़ से प्राक-मौर्य युगीन काल के चांदी के बने आहत सिक्के भी प्राप्त किए गए हैं। यहां से अर्द्ध-बहुमूल्य मनकों एवं स्थानीय सिक्कों की प्राप्ति से जौगढ़ के शहरी विशेषताओं से युक्त होने के संकेत मिलते हैं।
ऐसा अनुमान है कि तीसरी से चैथी शताब्दी के मध्य इस स्थान ने अपना महत्व खो दिया था।