इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव समाज एवं संस्कृति पर , electronic media positive and negative effects
electronic media positive and negative effects in hindi इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या पड़ता है समझाइये ?
समाज एवं संस्कृति पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सकारात्मक प्रभाव
टेलिविजन, रेडियो एवं इंटरनेट जैसे मीडिया माध्यमों ने मिलकर लोगों की समग्र जागरूकता में वृद्धि की है। इन्होंने पूरे विश्व से सूचनाएं प्रदान कर हमारे सामाजिक ज्ञान में बढ़ोतरी की है। विभिन्न मीडिया द्वारा समाचार प्रसारण विश्व की दैनंदिन खबरें जागने में हमारी मदद करता है। सामाजिक विषयों के परिप्रेक्ष्य वाली खबरें, टेलीफिल्म्स और वृत्तचित्र बच्चों में सामाजिक जागरूकता बढ़ाते हैं और समाज
के प्रति उनके रुख का विकास करते हैं। वे हमारा ज्ञान, भाषा एवं शब्दकोश बढ़ाने में भी योगदान करते हैं। डिस्कवरी, बीबीसी एवं नेशनल ज्योग्राफिक जैसे चैनल्स प्रश्न-आधारित टीवी एवं रेडियो शोज तथा इतिहास, साहित्य, विज्ञान, दर्शनशास्त्र एवं कला एवं संस्कृति पर कई कार्यक्रमों द्वारा ज्ञान एवं संस्कृति का विस्तार, लोगों की प्रवृत्तियों एवं विचारों के विकास में योगदान करते हैं।
अनुसंधान ने प्रकट किया कि हमारे दैनंदिन जीवन के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने में मीडिया उत्तरदायी है। मीडिया ने लोगों के सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों के हस्तांतरण में योगदान किया है। मीडिया लोगों की सोच एवं विश्वासों के हस्तांतरण में भी परिवर्तन लेकर आया है। मीडिया द्वारा प्रस्तुत सामग्री चित्ताकर्षक प्रकृति की होने के कारण आम लोगों के विचारों एवं व्यवहारों को प्रभावित करती है। यह विचारों एवं प्रवृत्तियों को मोड़ने में भी मदद करती है। यह जीवन शैली एवं संस्कृति को प्रभावित करती है। पूरे संसार को एक छतरी के नीचे समेटने में मीडिया की भूमिका जिम्मेदार रही है। मीडिया जगत में हाल ही में ब्लाॅगिग और पब्लिक पोल और सिटीजन जर्नलिज्म जैसी प्रथाओं के आने से सामाजिक नियंत्रण की दिशा में एक नई उपलब्धि मिली है। इन अवधारणाओं के आने से मीडिया और आमजन के बीच संबंध सुदृढ़ हुए हैं और इसने राष्ट्रीय एवं सामाजिक विषयों पर जनमत के विकास में योगदान दिया है। मीडिया ने जातीयता, लिंग विभेद, और विश्व निर्धनता के विरुद्ध लड़ाई लड़ने जैसे सकारात्मक विकासों में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, और विश्व शांति की आवश्यकता को लेकर जागरूकता फैलाई है।
हाल ही के वर्षों में, भारतीय फिल्मों एवं टेलिविजन दर्शकों ने महसूस किया है कि महिलाओं की निर्दोष एवं अधीन प्रकृति के चित्रण से स्वतंत्र यौन व्यक्तित्व के तौर पर बदलाव हुआ है। जबकि भारत की सुदृढ़ परम्परागत विरासत ने हमेशा महिला को Ûृहिणी एवं मां के रूप में दिखाया है, लेकिन टेलिविजन पर बदली इस भूमिका ने इस आदर्श-रूप को चुनौती दी है, और इसलिए भारतीय महिलाओं के लिए महिला होने की एक नई अवधारणा तैयार की है।
टीवी पर कुछ टाॅक शोज ने समान प्रभाव डाला है, उदाहरणार्थ, जिन्होंने दहेज, सती, बाल विवाह,एवं समाज में मादक द्रव्यों के सेवन जैसे बुरी प्रथाओं पर विचार-विमर्श किया है।
समाज एवं संस्कृति पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नकारात्मक प्रभाव
मीडिया अक्सर मूल तथ्यों या सूचना को तोड़-मरोड़कर उछालती है और इस प्रकार प्रस्तुत करती है ताकि चीजों की अद्भुत अपील में वृद्धि हो। मीडिया पैसे, ग्लैमर, फिल्म कलाकारों, माॅडल्स और खेल, व्यवसाय, कला एवं राजनीति में सफल पुरुष एवं स्त्री को जरूरत से अधिक कवरेज देती है। यह भौतिकवादी मूल्यों पर बल देती है, और इससे सम्बद्ध अधिकतर लोग बनावटी एवं अल्पदृष्टि होते हैं। परिणामस्वरूप, मीडिया द्वारा समर्थित सांस्कृतिक मूल्य, जो आधुनिक समय की समाजों में स्थापित हैं, बनावटी, छिछली एवं धन एवं ग्लैमर उन्मुख हैं। सत्य यह है कि चाहे टेलिविजन, मैगजीन या इंटरनेट हो, मीडिया सर्वव्यापी हो गया है और हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर रहा है।
उपभोक्ता बेहद महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सांस्कृतिक दूत धारावाहिकों, संगीत वीडियो एवं विज्ञापनों के माध्यम से प्रकट होते हैं। विशेष रूप से टेलिविजन ने युवाओं पर काफी प्रभाव डाला है और देखने की इनकी आदतों को जीवन भर के लिए प्रभावित किया है।
प्रायः यह देखा गया है कि युवा लड़के एवं लड़कियां अपने रोल माॅडल्स का अंधानुकरण करते हैं। सेलिब्रिटीज द्वारा की गई नकारात्मक चीजों के बारे में अक्सर बातचीत होती है। सेलिब्रिटीज के जीवन के मतभेदों एवं विवादों को मीडिया द्वारा उछाला जाता है।
मीडिया के नकारात्मक प्रभावों का असर विशेष रूप से बच्चों पर होता है जो उनके बदलते मानसिक स्थिति एवं उनकी खराब जीवनशैली से परिलक्षित होता है। बच्चों, जिन्हें अच्छी किताबें पढ़ने, अध्ययन करने, आउटडोर खेल खेलने, कसरत एवं सामाजिक गतिविधियों में संलग्न होने में अपना समय बिताना चाहिए, आज अपनी शाम टेलिविजन के आगे बिताते हैं। मीडिया जो कि सुगमतापूर्वक पहुंच में है यहां तक कि छोटे बच्चों की भी,ऐसी चीजें उन तक उद्घाटित करती हैं जिन्हें जागने की उन्हें जरूरत नहीं है और वे उसे नहीं समझ पाएंगे। बच्चों की कोमलता छोटी उम्र में ही खत्म हो रही है।
मीडिया का नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव मीडिया द्वारा लोगों के जीवन के प्रति बदलते दृष्टिकोण के संदर्भ में देखा जागा चाहिए। मीडिया ने समाज के सांस्कृतिक एवं नैतिक मूल्यों में परिवर्तन किया है। युवा एवं बच्चे जनसंचार के प्रभाव के चलते अक्सर फिल्मी एवं वास्तविक जीवन को मिलाने का प्रयास करते हैं।
मीडिया ने लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य पर भी कुछ हद तक बुरा प्रभाव डाला है। जो लोग घंटों टेलिविजन या इंटरनेट सर्फिंग में बिताते हैं उन्हें आंख संबंधी और मोटापे की समस्या से सामना करना पड़ता है। संस्कृति को जीवन के एक ऐसे ढंग के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है जिसमें विश्वास, सौंदर्यता एवं सभ्यता के संस्थान शामिल हों। आज की जीवन शैली में, मीडिया निश्चित रूप से हमारी संस्कृति का एक प्रभावी तत्व बन गया है।
यद्यपि मीडिया के कार्यक्रम, जिस समाज में हम रहते हैं, उसका प्रतिबिम्बन करते हैं, लेकिन मनोरंजन के लिए वे उसमें फंतासी एवं अन्य मसाला जोड़ देते हैं। मीडिया सेलिब्रिटिज को पैदा करता है, और ये आराध्य वस्तु या प्रतिमा बन जाते हैं। एक खास किस्म के संगीत या फिल्म को मीडिया लोकप्रिय बनाता है।
भारत के सभी हिस्सों में जनसंचार की बढ़ती लोकप्रियता सजातीय भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित कर रही है, जिसकी सांस्कृतिक पहचान अत्यधिक मृदु एवं भंगुर बन रही है। आखिरकार, किसी भी प्रकार का प्रौद्योगिकीय उन्नयन, सामाजिक परिवर्तन के संदर्भ में इसके लाभ एवं हानि दोनों ही लिए होता है। प्रौद्योगिकीय उन्नयन, विशेष रूप से जनसंचार की बदलती भूमिका, परिवर्तित सांस्कृतिक विशेषताओं पर अधिक समय तक रहने वाला प्रभाव डालता है, जो विचारों, दृष्टिकोण एवं जीवनशैली में प्रकट होता है। क्या यह प्रभाव ‘सांस्कृतिक रूप से’ सतत् समाज के विकास के दृष्टिÛत् अच्छा है या नहीं,एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
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