फ्लोएम द्वारा स्थानांतरित पदार्थ क्या है , Materials translocated in the phloem in hindi

जानिये फ्लोएम द्वारा स्थानांतरित पदार्थ क्या है , Materials translocated in the phloem in hindi ?

फ्लोएम की संरचना (Structure of phloem)

पदार्थों के स्थानांतरण की क्रिया विधि को भली प्रकार समझने के लिए फ्लोएम की संरचना की जानकारी आवश्यक है- यह एक जटिल ऊतक है जिसमें 4 मुख्य घटक होते हैं-

(i) चालनी तत्व (Sieve elements)

(ii) सहचर कोशिकाएं (Companion cells)

(iii) फ्लोएम मृदूतक (Phloem parenchyma)

(iv) फ्लोएम अथवा पोषवाह तंतु (Phloem fibres )

  1. चालनी तत्व (Sieve elements)

चालनी तत्व में दो प्रकार के तत्व होते हैं- चालनी कोशिका (Sieve cell) तथा चालनी नलिका (Sieve tube) : (A) चालनी कोशिका (Sieve cell)

ये एकक कोशिकाएँ होती है। इनमें चालनी पट्टिका नहीं पायी जाती है तथा चालनी क्षेत्र सभी भित्तियों पर समान रूप से विकसित हो सकता है।

(B) चालनी नलिका (Sieve tube)

ये नलिका कोशिकाओं के एक के ऊपर एक व्यवस्थित होने से बनती हैं। ये चालनी कोशिकाएं दीर्घित व बेलनाकार होती हैं। सामान्यतः इनकी लंबाई 100-150um तक होती है परन्तु विभिन्न पादपों में भिन्न-भिन्न होती हैं तथा चौड़ाई लगभग 10-70 pm तक हो सकती है। आवृतबीजी पादपों की द्वितीयक फ्लोएम में इनकी लंबाई 500 um तक हो सकती है जबकि शंकु वृक्षों में चालनी कोशिकाओं की लंबाई बहुत अधिक (1400-4800 pm लम्बी होती है। स्थानांतरण की दृष्टि से इनकी संरचना विशिष्ट होती है। दो चालनी कोशिकाओं के मध्य छिद्र युक्त कोशिका भित्ति होती है, इसे चालनी पट्टिका (sieve plate) कहते हैं तथा छिद्रों के समूह को चालनी क्षेत्र (sieve area) कहते हैं।

परिपक्व चालनी नलिका की संरचना विशिष्ट (unique) होती है। तरुण चालनी कोशिकाएं सजीव व केन्द्रक युक्त होती हैं। परिपक्व चालनी नलिका की कोशिका जीवित परन्तु केन्द्रक रहित होती हैं। इनमें टोनोप्लास्ट झिल्ली नहीं होती। इनमें गॉल्गीकाय, राइबोसोम नहीं होते परन्तु लवक, माइटोकोन्ड्रिया अंतप्रद्रव्यी जालिका रूपान्तरित रूप में उपस्थित होते हैं। इनमें बड़ी रिक्तिका के चारों ओर जीवद्रव्य होता है तथा चालनी पट्टिका के छिद्रों में से जीवद्रव्य तंतुओं द्वारा दूसरी कोशिकाओं . के जीवद्रव्य से सम्पर्क में रहता है। चालनी तत्वों की कोशिका भित्ति समीपस्थ मृदूतकी कोशिकाओं की भित्ति से मोटी परन्तु सेलुलोज युक्त प्राथमिक भित्ति होती है परन्तु कभी-कभी इनमें श्लेष्मी प्रकृति का स्थूलन अथवा निक्षेपण पाया जाता है।

चालनी क्षेत्र (Sieve areas )

चालनी नलिकाओं की सर्वाधिक विशिष्ट रचना चालनी क्षेत्र है। चालनी नलिका में चालनी क्षेत्र अनुप्रस्थ पट पर होते परन्तु पार्श्व भित्ति पर भी चालनी क्षेत्र होते हैं जो पार्श्व चालनी क्षेत्र कहलाते हैं। ये अपेक्षाकृत कम विकसित होते हैं। इन छिद्रों का व्यास 1 pm से 15 um तक होता है। चालनी छिद्रों की परिधि पर कैलोस (callose) निक्षेपण होता है।

चालनी पट्टिका पर चालनी छिद्रों की परिधि पर कैलोस (callose) निक्षेपण होता है। परिपक्व चालनी नलिकाओं में जीवद्रव्य की परीधीय परत में प्रोटीनीय प्रकृति के ( proteinaceous) अवपंकी (slimy) पदार्थ पाए जाते हैं जो अवपंक पिण्ड (slime bodies) भी कहलाते हैं तथा एकल अथवा समूह में हो सकते हैं। अवपंक पिंड तरुण चालनी तत्वों में नलिकाओं (tubules) के समूह के रूप में तथा परिपक्व तत्वों में धारीदार रेशों (striated fibrils) के रूप में होते हैं। इन्हें क्रमश: P1 प्रोटीन तथा P2 प्रोटीन कहते हैं। निकटवर्ती कोशिकाओं के प्रोटीन तंतु छिद्रों द्वारा परस्पर सम्पर्क में रहते हैं। P प्रोटीन: आवृतबीज़ियों में ही पाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि P प्रोटीनों के कारण ही चालनी तत्वों के छिद्र बंद रहते हैं।

  1. सहचर कोशिकाएं (Companion cells) ..

ये विशिष्ट मृदूतकी कोशिकाएं हैं जो चालनी नलिकाओं के पार्श्व में एक अथवा अधिक संख्या में उपस्थित होती हैं। इनकी व चालनी कोशिका की उत्पत्ति एक ही जनक कोशिका से असमान विभाजन ( unequal division ) के कारण होती है। सहचर कोशिकाएं जीवद्रव्यतंतु (plasmodesmata) द्वारा चालनी नलिका जीवद्रव्य से घनिष्ठ सम्पर्क में रहती हैं। अनावृतबीजियों में इनके स्थान पर एल्बूमिनस कोशिकाएं (albuminous cells) होते हैं। इसी प्रकार कुछ पादपों में चालनी कोशिकाओं के सम्पर्क में स्थानांतरण कोशिकाएं (transfer cells) भी पायी जाती हैं। स्थानांतरण कोशिकाओं की भित्ति ऊपर की ओर वलयित (ingrowth) होती है। अतः इनकी अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है।

ऐसा माना जाता है कि ये कोशिकाएं चालनी कोशिका को आवश्यक ऊर्जा ATP के रूप में प्रदान करते हैं तथा प्रकाशसंश्लेषी उत्पादों को पर्णमध्योतक कोशिकाओं से चालनी नलिकाओं तक पहुँचाने में मदद करते हैं। ये अन्य मृदूतकी कोशिकाओं के साथ मिलकर दाब प्रवणता (pressure gradient) बनाए रखने में सहायता करते हैं। स्थानांतरण कोशिकाएं पदार्थों, विशेषकर लवणों, के एकत्रण एवं पार्श्व स्थानांतरण के लिए विशिष्टिकृत (specialised) होती हैं। उपापचयज के अधि क आवश्यकता वाले स्थलों पर ये अधिक विकसित होती हैं।

  1. प्लोएम मृदूतक (Phloem parenchyma)

ये पतली भित्ति युक्त जीवित कोशिकाएं होती हैं जो फ्लोएम में पायी जाती हैं तथा सामान्यतः अरीय अथवा पार्श्व स्थानांतरण में मदद करती है। ये कोशिकाएं चालनी तत्वों में दाब प्रवणता बनाए रखने में सहायता करते हैं।

  1. पोषवाह तंतु (Phloem fibres)

प्राथमिक एवं द्वितीयक पोषवाह में उपस्थित मोटी भित्ति युक्त तंतुमय कोशिकाएं होती है जो इन्हें यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।

फ्लोएम द्वारा स्थानांतरित पदार्थ (Materials translocated in the phloem)

पोषवाह अथवा फ्लोएम एक जटिल ऊतक है एवं इसमें चालनी तत्वों के अतिरिक्त अन्य कोशिकाएं भी होती हैं, अतः पोषवाह रस का विश्लेषण करना कठिन होता है। C14 समस्थानिक के उपयोग द्वारा एवं ऊतक के प्रत्यक्ष अध्ययन से भी पोषवाह रस का विश्लेषण करना कठिन है व इसके लिए पूर्व में बताए एफिड की शूकिका का प्रयोग करते हुए पोषवाहरस का बाहर की ओर निरस्त्रवण होता है क्योंकि चालनी नलिकाओं में अत्यधिक दाब पर रस होता है। एफ़िड को बेहोश करने के लिए CO2 का प्रयोग किया जाता है। यह तरीका बेहतर है क्योंकि एफिड एक ही कोशिका से रस का चूषण करते हैं, अतः किसी अन्य कोशिका से मिश्रित होने (contamination) की संभावना नहीं होती। इसी विधि द्वारा पोषवाह रस निकाल कर इस के रासायनिक संगठन का अध्ययन किया जाता है।

रेबिड्यू एवं बर (Rabideau and Burr, 1945 ) ने C14O2 द्वारा अध्ययन कर सुझाया कि भोजन फ्लोएम में चालन करता है तथा पत्ती से ऊपर व नीचे दोनों ओर गति करता है।

मिट्लर (Mittler, 1958) ने एफिड के शूकिका (stylet) द्वारा पोषवाह रस एकत्रित करने की विधि की खोज की पोषवाह अथवा फ्लोएम में सर्वाधिक मात्रा जल की होती है जिसमें विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ घुलनशील अवस्था में स्थानांतरित होते हैं। विलेय पदार्थों में मुख्यतः कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो शर्करा के रूप में होते है। सूक्रोस (sucrose) सर्वाधि कमात्रा में पाई जाती है एवं इसके साथ ही रैफिनोस, ग्लूकोस, फ्रक्टोस, स्टैकिओस एवं वर्बेस्कोस इत्यादि शर्कराएं भी भिन्न-भिन्न मात्रा में पाई जाती हैं। सेब में सूक्रोस के स्थान पर सोर्बिटॉल (sorbitol) पाई जाती है। नाइट्रोजन अमिनो अम्ल एवं एमाइड (amide) मुख्यतया ग्लूटमेट, एस्पार्टेट (glutamate, aspartate) एवं उनके एमाइड, ग्लूटेमिन तथा एस्पार्जिन (glutamine, aspargine) के रूप में पाई जाती है। इसकी मात्रा विभिन्न पादपों में भिन्न-भिन्न परन्तु शर्करा से कम होती है। इसके अतिरिक्त हॉल एवं साथियों ने अरंडी में विभिन्न पादप हार्मोन यथा ऑक्सिन (auxins); जिबरिलिन (gibberelins), सायटोकाइनिन (cytokinins), एबसिसिक अम्ल (abscisic acid) इत्यादि भी सूक्ष्म मात्रा में देखे। इन सभी के अतिरिक्त सूक्ष्म मात्रा में कुछ प्रोटीन भी पाई गई है। कुछ अकार्बनिक विलेय यथा पोटाशियम, मैग्नीशियम फास्फेट एवं क्लोराइड इत्यादि भी पोषवाह रस में पाए जाते हैं।

तालिका-1: अरंडी (रिसिनस कमूनिस Ricinus Communis) में पोषवाह निःस्राव ( exudate) का संघटन (स्रोत- हॉल एवं बेकर, 1972)

पदार्थ सान्द्रता (mg/mL)

 

शर्करा

अमिनो अम्ल

कार्बनिक अम्ल

प्रोटीन

क्लोराइड

फास्फेट

पोटाशियम

मैग्नीशियम

 

 

80-106.0

5.2

2.0-3.2

 

1.4-2.2

0.355-0.675

0.35-0.55

2.3-4.4

0.109-0.122

 

कार्बनिक विलेयों के स्थानांतरण की दिशा (Direction of translocation of organic solutes)

पत्तियों द्वारा संश्लेषित भोज्य पदार्थों का स्थानांतरण विभिन्न दिशाओं में हो सकता है।

  • निम्नवर्ती स्थानान्तरण (Downward translocation)- पत्तियों में संश्लेषित कार्बनिक विलेय नीचे की ओर, तने सुषुप्त कलिकाऐं एवं मूल आदि में स्थानांतरित होता है। कभी-कभी मूल में भी कार्बनिक पदार्थों का संग्रहण होता है।

(ii) उर्ध्ववतीं स्थानान्तरण (Upwards transloca – tion)- पत्तियों द्वारा संश्लेषित भोजन ऊपर की ओर नवीन कलिकाओं, पुष्प एवं फल इत्यादि की ओर होता है जहाँ इस का उपयोग नये ऊतक इत्यादि बनाने तथा भोजन संग्रहण के लिए होता है। बीजांकुरण के समय संचयित भोजन का स्थानांतरण, बीजपत्र अथवा भ्रूणपोष से प्रांकुर की ओर होता है। इसी प्रकार संचयी क्षेत्रों से नई विकासशील शाखाओं की ओर भी स्थानांतरण होता है।

(iii) अरीय अथवा पाश्र्वय स्थानांतरण (Radial or lateral translocation ) – तने एवं जड़ में मज्जा (pith) से अधिचर्म एवं वल्कु (cortex) तक भोज्य पदार्थों का स्थानांतरण होता है जो मुख्यतः अरीय किरणों (med- ullary rays) के माध्यम से होता हैं एवं अरीय अथवा पार्श्वीय स्थानांतरण कहलाता है।

ऐसा देखा गया है कि फ्लोएम से शर्करा की पाश्र्वय अथवा अरीय (lateral or radial ) स्थानांतरण भी होता है। फ्लोएम में नाइट्रोजनी पदार्थों का स्थानांतरण कार्बनिक पदार्थों के रूप में होता है तथा जायलम में नाइट्रेट अथवा कार्बनिक अणु के घटक के रूप में होता है। सामान्यतः इसी अणु के रूप में जायलम एवं फ्लोएम में नाइट्रोजन का स्थानांतरण होता है।