Plasmolysis in hindi , जीवद्रव्य कुंचन किसे कहते हैं , जीवद्रव्यकुंचन की परिभाषा महत्व क्या है
जाने Plasmolysis in hindi , जीवद्रव्य कुंचन किसे कहते हैं , जीवद्रव्यकुंचन की परिभाषा महत्व क्या है ?
जीवद्रव्यकुंचन (Plasmolysis)
अतिपरासरी विलयन में रखी कोशिका में से जल बहिःपरासरण द्वारा बाहर निकल आता है। सतत बहि:परासण से जीवद्रव्य संकुचित होकर कोशिकाभित्ति से अलग हो जाता है। इस क्रिया को जीवद्रव्यकुंचन (plasmolysis) कहते हैं तथा कोशिका को द्रव्यकुंचित (plasmolysed) कोशिका कहते हैं। द्रव्यकुंचित कोशिका में संकुचित जीवद्रव्य एवं कोशिका भित्ति के मध्य का स्थान बाह्य विलयन से भरा रहता है। इस स्थिति में जीवद्रव्य गोल (spherical) हो जाता है तथा कोशिका को श्लथ कोशिका (flaccid cell) कहते हैं (चित्र – 10 ) ।
जीवद्रव्यकुंचन की वह स्थिति जिस पर सर्वप्रथम कोशिका के घटकों का कोशिका भित्ति से संकुचन दिखना प्रारम्भ होता है उसे प्रारम्भी जीव द्रव्यकुंचन (incipient plasmolysis) कहते हैं । यहाँ कोशिका भित्ति कोशिका द्रव्य पर कोई दाब नहीं डालती है अतः दाब विभव (ψp) शून्य होता है तथा कोशिका का जल विभव (ψw), विलेय विभव (ψs) के बराबर होता है।
ψw = ψs + ψp (ψp = 0)
ψw = ψs
वह अधिकतम बहिःपरासरण जिस पर कोशिका द्रव्य गोल हो जाता है प्रत्यक्ष जीवद्रव्यकुंचन (evident plasmolysis) कहते हैं।
जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को शुद्ध विलायक अथवा अल्पपरासारी (hypotonic) विलयन में डालने से अन्तः परासरण (endosmosis) होता है जिससे जीवद्रव्य तथा कोशिका पुनः अपनी प्रारम्भिक आकार एवं स्थिति ग्रहण कर लेते हैं। इस क्रिया को जीवद्रव्यविकुंचन (deplasmolysis) कहते हैं।
उपरोक्त क्रिया को चुकन्दर के अनुप्रस्थकाट अथवा ट्रेडेस्केन्शिया (Tradescantia) की निचली अधिचर्म को नमक / शर्करा के घोल में स्लाइड पर कवरस्लिप के नीचे रखकर देखा जा सकता है।
जीवद्रव्यकुंचन का महत्व (Importance of plasmolysis
- जीवद्रव्यकुंचन के जीवित कोशिकाओं पर प्रभाव को खाद्य सामग्री के संरक्षण में प्रयोग किया जाता है। जेम, जैली अथवा अचार में शर्करा अथवा नमक की सांद्रता अधिक होती है। इससे इनका विघटन करने वाले जीव जैसे जीवाणु एवं कवकों की कोशिकाएं द्रव्यकुंचित हो जाती हैं।
- मछली एवं मांस (meat ) को बहुत अधिक नमक लगा कर संरक्षित किया जाता है।
- खेतों में खरपतवार के पौधों की जड़ में नमक डाल कर उन्हें सींचा जाता है जिससे जीवद्रव्यकुंचन के कारण पौधे नष्ट हो जाते हैं ।
- मृदा में अधिक मात्रा में रासायनिक खाद डालने से पौधों की जड़ों की कोशिकाऐं जीवद्रव्यकुंचन से नष्ट हो जाती
है जिससे पौधे मर जाते है।
- यह क्रिया जीवित कोशिकाओं में ही सम्पन्न होती है इसलिए यह कोशिका के जीवित होने का संकेत देती है। 6. जीवद्रव्यकुंचन के सीमित करने से कोशिका के परासरण दाब को निर्धारित किया जा सकता है।
पादपों द्वारा जल अवशोषण एवं स्थानांतरण
(Absorption and transport of water by plants)
मृदा जल सम्बन्ध (soil water relation ) – खनिज पोषण तथा जकड़ (anchorage) के अलावा मृदा जल के संचय एवं मूल को माध्यम प्रदान करने में विशेष भूमिका अदा करती है। भूमि में जल का स्रोत वर्षा होती है। भौम जलस्तर (water table), बर्फ का पिघलना तथा सिंचाई (irrigation) भूमि जल के अन्य स्रोत हैं।
मृदा में उपस्थित कुल जल की मात्रा को होलार्ड (holard) कहते हैं। इस जल से पादपों द्वारा अवशोषित जल को केसार्ड (Chesard) तथा वह जल जो पादपों द्वारा अवशोषित नहीं किया जाता उसे इकार्ड (echard) कहते हैं! मृदा में बची हुई जल की वह मात्रा जो मृदा कणों से संलग्न होती है एवं पादपों के अवशोषण हेतु प्राप्त नहीं होती, ग्लानि गुणांक (wilting coefficient) कहलाती है।
मृदा जल का वर्गीकरण (Classification of soil moisture)
1• वाह जल (Run-off water)- भारी वर्षा अथवा सिंचाई के बाद जल मृदा की सतह पर बहता रहता है तथा यह पादपों को उपलब्ध नहीं हो पाता। इस जल को वाह जल (run-way or run-off water) कहते हैं ।
- गुरूत्वीय जल (Gravitational water)- भारी वर्षा अथवा सिंचाई के बाद मृदा अस्थायी रूप से संतृप्त हो जाती है। यह जल जल्द ही गुरूत्वाकर्षण के कारण नीचे भौम जल की ओर चला जाता है। दो तीन दिन में यह सम्पूर्ण जल बहुत ही गहराई में पहुँच जाता है। मृदा का ऊपरी स्तर (upper horizon) एवं अकेशिकी रन्ध्र (non capillary space) पुनः वायु द्वारा भर जाते हैं। यदि यह गुरूत्वीय जल अधिक दिनों तक मृदा में ठहर जाता है तो यह हानिकारक होता है, क्योंकि इससे मूलों में वायु विनिमय प्रभावित होता है। इस प्रकार से यह जल भी पादपों के प्रत्यक्ष रूप से काम नहीं आता ।
- केशिका जल (Capillary water ) – गुरूत्वीय जल के बह जाने के बाद भी कुछ जल मृदा कणों पर झिल्ली के रूप में नॉन कोलॉइडी छोटे मृदा कणों एवं छोटे केशिकीय रन्ध्रों के मध्य पाया जाता है। यह जल पादपों को सरलतासे प्राप्य होता है तथा केशिका जल (capilary water) कहलाता है। उस स्थिति में मृदा में जल की मात्रा को मृदा मृदा जल धारिता (field capacity) कहते हैं।
- आद्वताग्राही जल (Hygroscopic water)- वायु शुष्क कोलॉयडी मृदा कणों द्वारा ससंजन बल से अनुबंधित जल को आद्रताग्राही जल (hygroscopic water) कहते हैं। सामान्यतः यह जल पौधों द्वारा अवशोषित नहीं किया जाता ।
- रासायनिक बन्धित जल (Chemically bound water)- कुछ जल के अणु रासायनिक रूप से मृदा के खनिजों (उदाहरण- सिलिकॉन (silicon), लौह तत्व (iron), एल्यूमिनियम (aluminium) इत्यादि) से बन्धित रहता है। जिसे रासायनिक बन्धित जल कहते हैं तथा यह जल पादपों को उपलब्ध नहीं होता है।
मूल तंत्र एवं जल अवशोषण (The root system and water absorption )
मूल का शीर्षस्थ भाग जल एवं खनिजों के अवशोषण में भाग लेता है। मूल शीर्ष (root tip) में चार स्पष्ट मूल प्रदेश होते हैं यथा (i) मूल गोप (root cap)- जो मूल के शीर्ष पर सुरक्षा ऊत्तक के रूप में उपस्थित होती है, (ii) विभज्योतक क्षेत्र (meristematic region)- जो मूल गोप के ठीक ऊपर उपस्थित होता है तथा इस क्षेत्र की कोशिकाऐं सक्रिय रूप से विभाजित होती रहती हैं, (iii) दीर्घीकरण क्षेत्र (region of cell elongation)- जो कि विभज्योतक क्षेत्र के ऊपर होता हैं। यहाँ मूल की लम्बाई में वृद्धि होती है, (iv) मूल रोम क्षेत्र (root hair zone ) – यह दीर्घीकरण क्षेत्र के ऊपर होता है तथा इस पर मूल रोम उपस्थित होते हैं।
मूल रोम (root hair) मूलीय त्वचा (epiblema cells) कोशिका की एक पतली रोम समान अतिवृद्धि होती है। यह पादपों का मुख्य अवशोषी अंग होता है। इनकी संख्या विभिन्न प्रजातियों में भिन्न होती है। जल अवशोषण मूल रोम की अनुपस्थिति भी होता है। उदाहरण के लिए शल्ककन्द (bulb), घनकन्द (corm), प्रकन्द (rhizome) की अपस्थानिक मूलों में, कुछ जलीय पादप एवं जिम्नोस्पर्मस (gymnosperms) में मूल रोम नहीं पाये जाते ।
मूल रोम की कोशिका भित्ति विलेय (solute ) एवं विलायक (solvent) दोनों ही अणुओं के लिए पारगम्य होती हैं। कोशिका भित्ति प्लाज्मा झिल्ली (plasma membrane) एवं कोशिका द्रव्य की पतली परत को घेरे रहते हैं। यह चयनात्मक पारगम्य झिल्ली (differentially permeable membrane) की भांति कार्य करती है। कोशिकाद्रव्य कोशिका रस से भरी बड़ी रिक्तिका को घेरे रहता है। यह खनिज लवणों, शर्करा एवं कार्बनिक अम्लों का जलीय विलयन होता है। जिसका परासरण दाब मृदा विलयन से अधिक होता है।
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