परासरण दाब से अणुभार का निर्धारण कैसे होता है , DETERMINATION OF MOLECULAR WEIGHT FROM OSMOTIC PRESSURE in hindi

(DETERMINATION OF MOLECULAR WEIGHT FROM OSMOTIC PRESSURE) परासरण दाब से अणुभार का निर्धारण कैसे होता है ? 

वाण्ट हॉफ ने उपर्युक्त नियमों के आधार पर एक सामान्य सिद्धान्त दिया जिसे तनु विलयनों का सिद्धान्त अथवा वाण्ट हॉफ सिद्धान्त (Theory of dilute solutions or van THoff’s theory) के नाम से जानत। हैं। इस सिद्धान्त के लिए वाण्ट हॉफ को 1901 का रसायनविज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उनक इस नियम के अनुसार, तनु विलयनों में विलय के अणु ठीक उस प्रकार व्यवहार करते हैं जिस प्रकार किसी गैस के अणु गैस में करते हैं और विलेय के अणुओं द्वारा लगाये गये परासरण दाब का मान ठीक उतना होता है जितना उन परिस्थितिया में गैस के अणुओं द्वारा लगाया गया गैसीय दाब होता है।

वाण्ट हॉफ की समीकरण से,

π =N1/V  RT …………………….(33)

अथवा              π = cRT ………………….(34)

C विलयन में विलेय की सान्द्रता मोल प्रति लिटर में है।

परासरण दाब का जैविक महत्व (Biological Importance of Osmotic Pressure)

जीवों की कोशिकाओं में शर्करा, लवण एवं अन्य कार्बनिक यौगिकों का विलयन रहता है और इन कोशिकाओं की भित्ति (cell wall) एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली का कार्य करती है। यदि किसी कोशिका को शब्द जल में रखा जाये तो परासरण द्वारा जल कोशिका के भीतर चला जायेगा जिससे कोशिका में दाब। स्थापित हो जायेगा। परासरण के कारण किसी कोशिका में उत्पन्न इस दाब को स्फीति दाब (turgor pressure) कहते हैं।

यद्यपि कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) की सान्द्रता शुद्ध जल के बराबर कभी नहीं हो सकती, फिर भी उस समय परासरण रुक जाता है जब कोशिका भित्ति द्वारा लगाया गया भित्ति दाब (wall pressure) स्फीति दाब के बराबर हो जाता है जैसा कि निम्न चित्र में प्रदर्शित किया गया है

एक ताजा कोशिका में स्फीति दाब के कारण कोशिका द्रव्य कोशिका भित्ति के साथ चिपका रहता है [चित्र 9.20(a)]; लेकिन यदि इस कोशिका को एक 7.5% शर्करा विलयन में रखा जाये जिसका परासरण दाब कोशिका द्रव्य से अधिक हो तो कोशिका द्रव्य से जल परासरण के द्वारा कोशिका से बाहर आ जायेगा और कोशिका द्रव्य सिकुड़ता जायेगा [चित्र 9.20(b) व (c)]| कोशिका द्रव्य का इस प्रकार धीरे-धीरे संकुचन होना जीवद्रव्य संकुचन (Plasmolysis) कहलाता है।

यदि कोशिकाओं को किसी ऐसे तन विलयन में डाला जाये जिसका परासरण दाब कोशिका द्रव्य के। बराबर हो तो परासरण की क्रिया सम्पन्न नहीं होती और जीवद्रव्य संकुचन नहीं होता। ऐसी स्थिति में हम कहते है कि अमुक विलयन कोशिका द्रव्य (cell sap) के समपरासारी (isotonic) है।। जब कोई दो विलयन एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पृथक किये गये हों और दोनों में परासरण की क्रिया न हो रही हो तो दोनों बिलयनों को समपरासारी (isotonic) कहा जाता है।

यदि अर्द्धपारगम्य झिल्ली सम्पूर्ण रूप से अर्द्धपारगम्य हो अर्थात् वह विलेय के लिए पूर्णरूप से अपारगम्य (impermeable) हो और विलायक के लिए पूर्णरूप से पारगम्य (permeable) हो, तो समपरासारी विलयन (isotonic solutions) समपरासरणदाबी (isosmotic) विलयन होते हैं, अर्थात् दोनों के परासरण दाब π का मान समान होता है।

दो विलयनों के परासरण दाब की तुलना के लिए इन जीव कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, मनुष्य की लाल रक्त कणिकाएं (Red Blood Corpuscles) RBC शरीर के ताप 309.9K पर 0.91% NaCl विलयन के समपरासारी होती हैं। अतः यदि 0.91% NaC1 से कम सान्द्रता वाले विलयन [जो हाइपोटोनिक (hypotonic) विलयन कहलाते हैं। में RBC को रखा जाये तो परासरण के कारण जल का प्रवाह कोशिकाओं की तरफ होगा जिससे ये फूलने लगती हैं यहां तक कि फट भी सकती हैं जिसे हम हीमोलाइसिस (haemolysis) कहते हैं। इसके विपरीत यदि इन्हें 0.91% NaCl से अधिक सान्द्रता वाले विलयन में रखा जाये जिसे हाइपरटोनिक (hypertonic) विलयन कहा जाता है तो जीवद्रव्य संकुचन के कारण ये कोशिकाएं सिकुड़ जाती है। माना कि दो विलयन I व II हैं जिनके V1 व V2 आयतन में विलेय के क्रमशः n1 व n2 मोल घुले हुए हैं। माना कि ताप T पर क्रमशः π1 व π2 उनके परासरण दाब हैं। अतः समीकरण (32) से,

Π1 V1 = n1RT   π1 = n1/V1 RT

Π2 V2 = n2RT   π2 = n2/V2 RT

यदि दोनों विलयन समपरासारी (isotonic) हों तो

Π2 = π2

उपर्युक्त दोनों समीकरणों का रूप निम्न हो जायेगा

n1/V1 = n2/V2 ………… …(37)

अथवा   W1/M1/V1 = W2/M2/V2…………… ….(38)

समीकरण (38) की सहायता से एक ज्ञात मोलर संहति वाले पदार्थ की सहायता से दूसरे अज्ञात पदार्थ की मोलर संहति ज्ञात की जा सकती है।

क्वथनांक में उन्नयन (ELEVATION IN BOILING POINT)

हमारे दैनिक जीवन का एक बड़ा साधारण-सा अनुभव या प्रेक्षण है कि दाल-चावल बनाते समय हम उसमें थोड़ा नमक डाल देते हैं, अथवा दाल कुएं के पानी में जल्दी गल जाती है। इसका कारण यह है कि कुएं के पानी में भी लवण घुले हुए होते हैं और नमक डालकर भी हम लवण ही डालते हैं और किसी लवण या अवाष्पशील विलेय के मिलाने से द्रवों का क्वथनांक बढ़ जाता है और उच्च तापमान के कारण दाल जल्दी गल जाती है।

किसी विलायक का क्वथनांक वह बिन्दु होता है जिस पर द्रव तथा वाष्प साम्य में रहते हैं और द्रव की सतह पर जो वाष्प दाब रहता है वह वायुमण्डलीय दाब के बराबर हो जाता है। हम पढ़ चुके हैं कि किसी भी विलयन का वाष्प दाब विलायक से कम होता है, यही कारण है कि किसी भी विलयन का क्वथनांक विलायक से सदैव अधिक होता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी विलेय के मिलाने से विलायकों के वाष्प दाब में अवनमन (lowering) होता है अतः क्वथनांक में उन्नयन होता है। किसी विलयन में विलेय की जितनी अधिक मात्रा होगी वाष्प दाब का अवनमन उतना ही अधिक होगा और उतना ही अधिक उसके क्वथनांक का उन्नयन (elevation) होगा। यदि वाष्प दाब व ताप के मध्य आलेख (graph) खींचा जाये तो चित्र 9.21 के अनुसार वक्र प्राप्त होते हैं।

चित्र में वक्र AB शुद्ध विलायक A के लिए वक्र है जबकि वक्र CD व EF क्रमशः विलयन I व विलयन II के वाष्प दाब परिवर्तन को प्रदर्शित करती हैं जहां विलयन II की सान्द्रता विलयन I से अधिक है। समान (1 वायुमण्डल) दाब पर शुद्ध विलायक, विलयन I व विलयन II के क्वथनांक (boiling point) क्रमश: To. T1 व T2 हैं और शुद्ध द्रव के क्वथनांक बिन्दु पर शुद्ध द्रव, प्रथम विलयन तथा द्वितीय विलयन के वाष्प दाब क्रमशः p°, P1 व P2 हैं। चित्र से स्पष्ट है कि ।

  • प्रथम विलयन के क्वथनांक में उन्नयन, TB = T1, -To = GH
  • द्वितीय विलयन के क्वथनांक में उन्नयन, TB2, = T2 – To = GI

बिन्दु G, J व K तापमान To पर क्रमशः विलायक, विलयन I व विलयन II के वाष्प दाब को प्रदर्शित करते हैं। अतः

(i) प्रथम विलयन के वाष्प दाब का अवनमन, p1 = p° – P1 = GJ

(ii) द्वितीय विलयन के वाष्प दाब का अमनमन, p2 = p0 – P2 = GK

चूंकि विलयन तनु हैं अतः इन विलयनों की वक्र विलायक की वक्र के समानान्तर ही है अतः त्रिभुज GHJ व GIK को समरूप मान सकते हैं और ज्यामिति के नियमानुसार, ।

GH/GI =  GJ/ GK

T1 – To /T2 – T0  = p0 – P1/P0 – P2

अथवा    TB1/TB2 = P1/P2

अथवा           TB1/TB2 = P1/P0 /P2/P0

अथवा        TB P/P0

P/P0 = X1       { X1 = विलेय की मोल भिन्न = n/ n+N }

अथवा     TB X1

अथवा    TB = AX1

TB = A. n/n +N

तनु विलयनों के लिए  n/n + N = n/N

TB = A, n/N = A, W1M0/M1W0

जहां W1 व M1 विलेय की क्रमशः मात्रा व मोलर संहति हैं जबकि W0 व Mo क्रमशः विलायक का। मात्रा व मोलर संहति हैं। चूंकि किसी विलायक के लिए उसके M0 का मान स्थिर है अतः उपर्युक्त समीकरण निम्न प्रकार लिखी जा सकती है

TB = kb W1/M1  x 1/W0 …………. ….(43)

जहाँ kb (= AM0) क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक (Boiling point elevation constant) अथवा एव्यूलियोस्कोपिक स्थिरांक (ebullioscopic constant) कहलाता है और

TB = kb  यदि W1/M1 = 1 तथा W0 = 1g

अर्थात् यदि एक ग्राम विलायक में विलेय का 1 मोल घोलकर विलयन बनाया जाये तो उस विलयन के क्वथनांक का उन्नयन उसके क्वथनांक उन्नयन स्थिरांक के बराबर होगा। लेकिन हम विलयन तनु बनाते हैं। अतः यदि एक मोलल विलयन बनाया जाये अर्थात् 1000 ग्राम विलायक में एक मोल विलेय घोला जाये तो ऐसे विलयन के लिए समी. (43) निम्न रूप की होगी ।

TB = KB  x W1/M1 x 1/W0  x 1000 …………..(44)

जहा Kb का मोलल उन्नयन स्थिरांक (Molal elevation constant) कहा जाता हजार kb/1000 के बराबर होता है।

ऊष्मागतिकी के आधार पर, KB = RT02/HV x 1000………………(45)

जहां hv = विलायक के वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा

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