eyring theory of liquids in hindi , आयरिंग सिद्धांत क्या है द्रवों की संरचना STRUCTURE OF LIQUIDS in hindi

द्रवों की संरचना STRUCTURE OF LIQUIDS in hindi eyring theory of liquids in hindi , आयरिंग सिद्धांत क्या है यह किसने और कब दिया था ?

द्रवों की संरचना (STRUCTURE OF LIQUIDS)

  • आयरिंग सिद्धान्त (Eyring Theory) : आयरिंग (Eyring) ने 1993 में द्रवों की संरचना के सम्बन्ध में निम्न प्रकार (चित्र 6) का मॉडल दिया जिसके अनुसार द्रवों में कुछ ऐसा रिक्त स्थान होता है जिसे अणुओं ने घेरा हुआ नहीं होता, ऐसे स्थान को उन्होंने मुक्त आयतन (free volume) की संज्ञा दी। किसी द्रव में सामान्य ताप एवं दाब पर द्रव के कुल आयतन का लगभग 3% मुक्त आयतन होता है।

ब्रिजमैन (Bridgman) ने द्रवों की संपीड्यता का अध्ययन करके इस बात की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि किसी द्रव की संपीड्यता B का मान 1 वायुमण्डल एवं 1000 वायुमण्डलीय दाब के मध्य बड़ी तेजी से घटता है। प्रारम्भ में B का मान उच्च होता है अर्थात् द्रव तेजी से सिकुड़ता है, लेकिन जैसे ही द्रव का संपीडन 3% हो जाता है, B का मान अत्यन्त कम हो जाता है।

आयरिंग के द्रव संरचना के मॉडल (चित्र 4.6) से स्पष्ट होता है कि वाष्प F मुख्य रूप से रिक्त स्थान होता है जिसमें इधर-उधर कुछ अणु घूमते रहते हैं जबकि द्रव अणुओं द्वारा भरा हुआ स्थान है जिसमें कुछ रिक्तिताएं [रिक्त या खाली स्थान (vacancies)] घूमती रहती हैं। जब द्रवों का ताप बढ़ाया जाता है तो वाष्प अवस्था में अणुओं की सान्द्रता बढ़ने लगती है और साथ ही द्रव अवस्था में रिक्तिताओं की सान्द्रता बढ़ने लगती

इस प्रकार वाष्प का घनत्व तो बढ़ता जाता है और द्रव का घनत्व घटता जाता है और यह चलता रहता है जब तक कि क्रान्तिक बिन्दु नहीं आ जाता।

साम्यावस्था में द्रव तथा वाष्प का औसत घनत्व Pav एक स्थिराक होना चाहिए लेकिन वास्तव के साथ इस प्रकार की रेखीय कमी आती है कि

Pav = po – aT …(10)

जहां तथा a स्थिरांक हैं जो पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। इस नियम को सर्वप्रथम । एव मैथियास (L. Calletet and E. Mathias) ने 1886 म बताया था और इसे ‘रेखीय व्यास का (Law of rectilinear diameter) कहते हैं। समानीत ताप एव समानीत दाब (readine and reduced pressure) के रूप में कुछ गैसों के लिए इस नियम को चित्र 4.7 में गया है

अब प्रश्न उठता है कि द्रव में यह मुक्त आयनन किस प्रकार से वितरित रहता है। आयरिंग ने इस सम्बन्ध में सुझाव दिया कि रिक्तिताओं का आकार आन्तरिक आकार के बराबर ही होना चाहिए। यदि एक अणू किसी रिक्तिता के पास है तो उसका व्यवहार गैस की भांति हो जाता है, अतः द्रव में एक रिक्तिका उत्पन्न होने से उसकी एण्ट्रॉपी के मान में बहुत वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत यदि कोई अणु रिक्तिता के बजाय किसी अन्य अणु के पास है तो उसका व्यवहार ठोस की भांति होता है। यदि हम यह मान लें कि आण्विक आकार की रिक्तिताएं बिना किसी क्रम के द्रव में बिखरी हुई हैं तो एक रिक्तिता के पास के अणुओं का अंश (fraction) निम्न होगा

(V – Vs)/V

जहां V तथा Vs द्रव एवं ठोस अवस्था के मोलर आयतन हैं। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि किसी रिक्तिता के पास वाले अणुओं का व्यवहार गैस की भांति होता है. अतः उपर्युक्त भिन्न (V-Vs)/V गैस जैसे अणुओं का अंश है। शेष बचे हुए अणुओं का जो अंश V./V है वह ठोस जैसे अणुओं का अंश होगा।

अतः आयरिंग तथा री (Eyring and Ree) के अनुसार किसी एक परमाण्वीय द्रव अवस्था में ऊष्माधारिता निम्न समीकरण द्वारा दी जा सकती है Cv = [VS/V]6+ [V – VS/V]3 ………..(11)

इसके द्वारा परिकलित किये गये मान प्रायोगिक मानों से काफी मेल खाते हैं अतः इस सिद्धान्त का पुष्टि होती है।

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