सलवा जुडूम आंदोलन क्या है की शुरुआत कब हुई , सुप्रीम कोर्ट , salwa judum in hindi

salwa judum in hindi सलवा जुडूम आंदोलन क्या है की शुरुआत कब हुई , सुप्रीम कोर्ट ?

सलवा जुडूम (Salwa Judum)
सलवा जुडूम एक गोंडी (आंचलिक आदिवासी भाषा) शब्द है जिसका अर्थ है ‘शांति का कारवाँ‘। हाल ही में सुकमा में नक्सलियों के हमले में मारे गए कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को ही सलवा जुडुम का जनक माना जाता है। छत्तीसगढ़ में जब नक्सली वारदातें बढ़ने लगी थी तब महेंद्र कर्मा ने 2005 में सलवा जमाकी शुरुआत की थी। जब यहः महसूस हुआ कि कवेल और प्रशासन के बल पर नक्सलियों का मुकाबला करना संभव नहीं होगा तब सलवा जुडूम का स्थापना की गई।
इसका उद्देश्य नक्सलवादियों या माओवादियों से मुकाबला करने में आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना था। सलवा जुडूम के द्वारा महेंद्र कर्मा में नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की तैयारी की। महेद्र कर्मा ने मधुकर राव जैसे अपने साथियों के साथ मिलकर सलवा जुडूम अभियान चलाकर ऐसे सशस्त्र ग्रामीण-बल तैयार किए जो नक्सलियों के खिलाफ लड़ सकें। छोटे स्तर से शुरू हुए आदिवासियों के इस आन्दोलन को बाद में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने भी अपना समर्थन देना शुरू कर दिया। सलवा जुडूम के कार्यकर्ताओं को नक्सलियों से सामना करने के लिए हथियार दिए गए। सलवा जुडूम की शुरुआत। छत्तीसगढ़ के बीजापुर के कुटरू क्षेत्र से हुई थी। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में आदिवासी इस आन्दोलन से जुड़ते गए।
प्रारंभ में सलवा जुडूम में शामिल आदिवासियों के पास टांगिया, कुल्हाड़ी और तीर-धनुष-जैसे परंपरागत हथियार होते थे। कालांतर में उन्हें विशेष पुलिस अधिकारी बनाने के अतिरिक्त, गाँवों से हटाकर विशेष रूप से निर्मित कैम्पों में बसाया जाने लगा। भारी संख्या में संलवा जुडूम से जुड़े आदिवासी कैम्पों में शरण लेने लगे। इन कैम्पों पर सलवा जुडूम का पूर्ण नियंत्रण था।
धीरे-धीरे नक्सलियों और सलवा जुडूम के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष की घटनाएँ बढ़ती गई। एक समय ऐसा आया जब नक्सली सलवा जुडूम से जुड़े सुरक्षाकर्मियों को विशेष रूप से अपना निशाना बनाने लगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिबन्ध लगाया
बार-बार यह बताने का प्रयास किया जाता रहा कि सलवा जुडूम एक स्वतःस्फूर्त आदोलन है जिसमें सरकार की कोई भागीदारी नहीं है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2008 में छत्तीसगढ़ सरकार को यह आदेश दिया कि वह सलवा जुडूम को किसी भी प्रकार की सहायता देना बंद कर दे। न्यायालय ने कहा कि कानून और व्यवस्था कायम रखने का उत्तरदायित्व साधारण नागरिक को नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे समाज में अराजकता फैल सकती है।
5 जुलाई 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने सलवा जुडूम को खत्म करने का आदेश पारित किया। सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि सरकार साधारण जनता को हथियार उठाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती और न उन्हें हथियार दे सकती है। यह सही है कि अपने नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है, लेकिन प्रश्न इसके तरीके को लेकर है। यदि सलवा जुडूम में शामिल हथियारबंद आदिवासी सरकार के विरुद्ध हो गए तो क्या होगा।
इस निर्णय के बाद राज्य सरकार ने नक्सल विरोधी अभियान में लगे सलवा जुडूम का विघटन कर आदिवासियों से हथियार लेद्य लिए और इन सभी को पुलिस बल में शामिल कर लिया। राज्य सरकार ने 28 जुलाई 2011 को अधिसूचित ‘द छत्तीसगढ़ क्जिलरी आम्र्ड पुलिस फोर्स बिल‘ लागू कर दिया। इस अध्यादेश में यह व्यवस्था थी कि अधिसूचना की तिथि से छह माह की अवधि तक विशेष पुलिस अधिकारी के तौर पर काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऑक्जिलरी आम्र्ड पुलिस फोर्स का सदस्य मान लिया जाएगा।

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