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तत् वाद्य यंत्र कौन-कौन से हैं या किसे कहते है | तारदार वाद्य यंत्रों के नाम क्या है tat vadya in hindi

tat vadya in hindi तत् वाद्य यंत्र कौन-कौन से हैं या किसे कहते है | तारदार वाद्य यंत्रों के नाम क्या है ?

तत् वाद्य – तारदार वाद्य
तत् वाद्य, वाद्यों का एक ऐसा वर्ग है, जिनमें तार अथवा तन्त्री के कम्पन से ध्वनि उत्पन्न होती है। यह कम्पन तार पर उंगली छेड़ने या फिर तार पर गज चलाने से उत्पन्न होती हैं। कम्पित होने वाले तार की लम्बाई तथा उसको कसे जाने की क्षमता स्वर की ऊंचाई (स्वरमान) निश्चित करती है और कुछ हद तक ध्वनि की अवधि भी सुनिश्चित करती है। तत् वाद्यों को मोटे पर दो भागों में विभाजित किया गया है- तत् वाद्य और वितत् वाद्य। आगे इन्हें सारिका (पर्दा) युक्त और सारिका विहीन (पर्दाहीन) वाद्यों के रूप में पुनः विभाजित किया जाता है। हमारे देश में तत् वाद्यों का प्राचीनतम प्रमाण धनुष के आकार की बीन या वीणा है। इसमें रेशे या फिर पशु की अंतड़ियों से बनी भिन्न-भिन्न प्रकार की समानांतर तारें होती थीं। इसमें प्रत्येक स्वर के लिए एक तार होती थी, जिन्हें या तो उंगलियों से छेड़ कर या फिर कोना नामक मिजराब से बजाया जाता था। संगीत के ग्रंथों में तत् (तारयुक्त वाद्यों) वाद्यों के लिए सामान्य रूप से श्वीणाश् शब्द का प्रयोग किया जाता था और हमें एक-तंत्री, संत-तंत्री वीणा आदि वाद्यों की जानकारी मिलती है। चित्रा में सात तारें होती हैं और विपंची में नौ। चित्रा को उंगलियों द्वारा बजाया जाता था और विपंची का मिजराब से।
प्राचीन समय की बहुत-सी-मूर्तियों और भित्तिचित्रों से इनका उल्लेख प्राप्त होता है। जैसे भारूत और सांची स्तूप, अमरावती के नक्काशीदार स्तम्भ आदि। दूसरी शताब्दी ईसवी के प्राचीन तमिल ग्रंथों में याड़ का उल्लेख प्राप्त होता है। धार्मिक अवसरों और समारोहों में ऐसे वाद्यों को बजाना महत्वपूर्ण रहा है। जब पुजारी ओर प्रस्तुतकर्ता गाते थे तो उनकी पत्नी वाद्यों को बजाती थीं।
डेलसिमर प्रकार के वाद्य तारयुक्त वाद्यों का एक अन्य वर्ग है। इसमें एक लकड़ी के बक्से पर तार खींच कर रखे जाते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण है- सौ तारों वाली वीणा अर्थात् सत-तंत्री वीणा। इस वर्ग का निकटतम सहयोगी वाद्य है- संतूर। यह आज भी कश्मीर तथा भारत के अन्य भागों में बजाया जाता है।
बाद में तारयुक्त वाद्यों के वर्ग में डांड़ युक्त वाद्यों के भी एक वर्ग का विकास हुआ। यह राग-संगीत से जुड़े, प्रचलित वाद्यों के लिए उपयुक्त था। चाहे वह पर्दे वाले वाद्य हों अथवा पर्दा विहीन वाद्य हों, उंगली से तार छेड़ कर बजाए जाने वाले वाद्य हों. अथवा गज से बजाए जाने वाले- सभी इसी वर्ग में आते हैं। इन वाद्यों का सबसे बड़ा महत्व है- स्वर की उत्पत्ति की समद्धता और स्वर की नरंतरता को बताए रखना। डांड युक्त वाद्यों में सभी आवश्यक स्वर एक ही तार पर, तार की लम्बाई को उंगली द्वारा या धातु अथवा लकड़ी के किसी टुकड़े से दबा कर, परिवर्तित करके उत्पन्न किए जा सकते हैं। स्वरों के स्वरमान में परिवर्तन के लिए कंपायमान तार की लम्बाई का बढ़ना या घटना महत्वपूर्ण होता है।
गज वाले तार वाद्य आमतौर पर गायन के साथ संगत के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं तथा गीतानुगा के रूप में इनका उल्लेख किया जाता है। इन्हें दो मुख्य वर्गों में बांटा जा सकता है। पहले वर्ग में सारंगी के समान डांड़ को सीधे ऊपर की ओर रखा जाता है और दूसरे वर्ग में तुम्बे की कंधे की ओर रखा जाता है तथा श्डंडीश् या डांड़ को वादक की बांह के पार रखा जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे- रावण हस्तवीणा, बनाम तथा वायलिन में।
कमैचा
कमेचा पशिचत राजस्थान के मगनियार समुदाय द्वारा गज की सहायता से बजायी जाने वाली वीणा है। यह संपूर्ण वाद्य लकडी के एक ही टुकड़े से बना होता है, गोलाकार लकड़ी का हिस्सा गर्दन तथा डांड का रूप लेता हैय अनुनादक (तुबस) चमड़े से मढ़ा होता है और ऊपरी भाग लकड़ी से ढका होता है। इसमें चार मुख्य तार होते हैं और कई सय तार होते हैं, जो पतले ब्रिज (घुड़च) से होकर गुजरते हैं।
कमैचा वाद्य उप महाद्वीप को पश्चिम एशिया और अफ्रीका से जोड़ता है और इसे कुछ विद्वान रावन हत्ता अथवा राव हस्त वीणा के अपवाद स्वरूप प्राचीनतम वाद्य के रूप में स्वीकार करते है।
लम्बवत् गजयुक्त वाद्यों के प्रकार सामान्यतः देश के उत्तरी भागों में पाए जाते हैं। इनमें आगे फिर से दो प्रकार होने की सारिका (पर्दा) युक्त और सारिकाविहीन (पर्दाविहीन)।
(क) तारदार वाद्य के विविध हिस्से,
अनुनादक (तुम्बा)-अधिकतर तारदार वाद्यों का तुम्बा या तो लकड़ी काबना होता है या फिर विशेष रूप से उगाए गए कह का। इस तुम्बे के ऊपर एक लकड़ी की पट्ट होती है, जिसे तबली कहते हैं।
अनुनादक (तुम्बा), उंगली रखने की पट्टिका-डांड से जुड़ा होता है, जिसके ऊपरी अंतिम सिरे पर खूटियां लगी होती हैं। इनको वाद्य में उपयुक्त स्वर मिलाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
तबली के ऊपर हाथीदांत से बना ब्रिज (घुड़च) होता है। मुख्य तार इस ब्रिज या घुड़च के ऊपर से होकर जाते हैं। कल वाद्यों में इन मुख्य तारों के नीचे कुछ अन्य तार होते हैं, जिन्हें तरब कहा जाता है। जब इन तारों को छेड़ा जाता है तो यह गूंज पैदा करते हैं।
कुछ वाद्यों में डांड पर धातु के पर्दे जुड़े होते हैं, जो स्थाई रूप से लगे होते हैं या फिर ऊपर-नीचे सरकाए जा सकते हैं। कुछ तार वाद्यों को उंगलियों से छेड़ कर या फिर कोना नामक छोटी मिजराब की सहायता से बजाया जाता है। जबकि अन्य तार वाद्यों को गज की सहायता से बजाया जाता है।