पारितंत्र किसे कहते है | पारितंत्र की परिभाषा क्या है अर्थ मीनिंग उदाहरण दीजिये ecosystem meaning in hindi

ecosystem meaning in hindi पारितंत्र किसे कहते है | पारितंत्र की परिभाषा क्या है अर्थ मीनिंग उदाहरण दीजिये |

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –
इस इकाई में आपने सीखा कि
ऽ सजीव जीवधारियों में स्वयं एक-दूसरे के बीच तथा उनके एवं भौतिक पर्यावरण के बीच के परस्परसंबंधों के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।
ऽ विभिन्न स्पीशीज की समष्टियों को एक मिलाकर जैविक समुदाय कहलाते हैं। जैविक समुदायों की भौतिक पर्यावरण के साथ लगातार जारी परस्परक्रिया से परिस्थितिक तंत्र (पारितंत्र) बनता है।
ऽ पारितंत्र को पर्यावरण का एक समग्रात्मक (holistic) घटक माना जाता है क्योंकि इसमें जैविक समुदाय तथा पर्यावरण के भौतिक (अजैविक) घटक दोनों ही शामिल होते हैं। जैविक समुदाय की भौतिक पर्यावरण के साथ लगातार परस्परक्रिया के कारण सुनिश्चित होता है कि समुदाय के भीतर सतत् ऊर्जा-प्रवाह बना रहे और समुदाय की सुस्पष्ट पोषण संरचना भी गठित रह सके। ब्रह्मांड में ऊर्जा का अंतिम स्रोत सूर्य ही है। सूर्य की ऊर्जा को हरे पौधे अपने भीतर पकड़ लेते हैं और फिर विषमपोषी जीव अपने लिए आवश्यक ऊर्जा को सीधे अथवा परोक्ष रूप में पौधों से ही प्राप्त करते हैं ।
ऽ एक स्पीशीज के खाने और पलट कर स्वयं के खाए जाने में ऊर्जा के प्रवाह को खाद्य-श्रृंखला कहते हैं। खाद्य श्रृंखलाओं की परस्पर जुड़े ताने-बाने को खाद्य जाल कहते हैं। खाद्य जालों के बनने से पारितंत्र को स्थायित्व प्रदान होता है। जैसे-जैसे ऊर्जा का एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर पर स्थानांतरण होता है वैसे-वैसे उसकी 90 प्रतिशत की हानि होती जाती है। ऊर्जा की उपलब्धता में कमी होने पर उच्चतर पोषण स्तरों पर जैव संहति में कमी आती जाती है।
ऽ जीवों में बहुत उच्च जैविक विभव पाया जाता है परंतु पर्यावरण में प्रतिरोध के कारण प्रकृति में वह कभी भी प्राप्त नहीं हो पाता। पर्यावरण प्रतिरोध में वे सभी जैविक तथा अजैविक कारक आते हैं जिनसे जीवों की मृत्यु होती है।
ऽ जीवों की समष्टि में J- अथवा S-आकृति की वृद्धि हो सकती है। अधिकतर पीड़क प्रजातियों में J-आकृति की वृद्धि पायी जाती है, जिन्हें अपने संसाधन मिल जाने पर वे बहुत तेजी से बढ़ते-पनपते है। ऐसी प्रजातियों की समष्टि का नियंत्रण अजैविक मृत्युता कारकों के द्वारा होता है। इसके विपरीत S-आकृति की समष्टि वृद्धि उन प्रजातियों में होती पायी जाती है जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं और उनकी समष्टियों का नियंत्रण जैविक मृत्युता कारकों द्वारा होता है।
ऽ नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता जानने के लिए समष्टि का आकलन करना आवश्यक होता है और यह जानने के लिए भी कि क्या समष्टि आर्थिक क्षतिकारी स्तर पर पहुंची है या नहीं। खेत में पीड़क समष्टि के आकलन हेतु प्रतिचयन किया जाता है। फसलों पर पीड़क समष्टि के मूल्यांकन हेतु प्रतिचयन विधियों जैसे कि सरल यादृच्छिक प्रतिचयन तथा क्रमबद्ध प्रतिचयन का व्यापक उपयोग किया जाता है।
ऽ पीड़क समष्टि आकलन तीन प्रकार के होते हैं – निरपेक्ष आकलन, आपेक्षिक आकलन तथा समष्टि सूचकांक। आपेक्षिक आकलन कम खर्चीले हैं तथा नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता के विषय में इनसे काफी सूचना मिलती है।
ऽ पीड़कों द्वारा होने वाली हानियां सामान्यतरू उनकी समष्टि के घनत्व का कार्य होती हैं। पीड़कों के कारण होने वाली हानियों के आकलन से हमें उनका आपेक्षिक महत्व एवं बचे जाने वाली हानि की मात्रा का पता चल जाता है। हानियों का मूल्यांकन दो प्रकार से किया जा सकता है – प्राकृतिक ग्रसन के दौरान ग्रसित तथा अग्रसित पौधों की उपज की तुलना करके अथवा रसायनों या भौतिक अवरोधों के प्रयोगों द्वारा पीड़कों को दूर रखते हुए मिलने वाली उपज की तुलना करके या प्रतिरोधी और सुग्राही किस्मों की उपज की तुलना करके।
ऽ अपनी विशिष्टताओं के आधारभूत पीड़कों को r-पीड़कों तथा k-पीड़कों की श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। r-पीड़कों तथा ा-पीड़कों के नियंत्रण की नीतियां अलग अलग हैं।

कुछ प्रश्न
1) स्वपारिस्थितिकी किसे कहते हैं?
2) पारितंत्र किसे कहते हैं?
3) पारितंत्र स्तर पर पर्यावरण के अध्ययन को समाग्रात्मक क्यों कहा जाता है ?
4) चारण खाद्य श्रृंखला तथा अपरद खाद्य श्रृंखला में विभेद कीजिए।
5) शाकभक्षी तथा मांसभक्षी में अंतर बताइए।
6) स्वपोषी तथा विषमपोषी में विभेद कीजिए। .
7) परजीव्याभ और परभक्षी में क्या अंतर है?
8) एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर पर हस्तांतरण के दौरान कितनी ऊर्जा का ह््रास होता है?
9) पोषण स्तर के बढ़ते जाने पर जीवों की जैव संहति में कमी क्यों आ जाती है?
10) पारिस्थिति अनुक्रम किसे कहते हैं?
11) क्या कृषि-पारितंत्रों में अनुक्रमण चरम पर पहुंच जाता है?
12) J-आकृति तथा S-आकृति की समष्टि वृद्धि में अंतर बताइए।
13) कृषि-पारितंत्रों में कम विविधता क्यों पायी जाती है?
14) जैविक विभव किसे कहते हैं?
15) पर्यावरण प्रतिरोध क्या होता है?
16) बाह्यगत पीड़क नये पर्यावरणों में उच्चतर समष्टि क्यों बना लेते हैं?
17) जैविक मृत्युता कारकों की कार्यविधि क्या है?
18) प्रतिचयन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
19) प्रतिचयन किसे कहते हैं?
20) निरपेक्ष समष्टि आकलन क्या होता है?
21) स्तरित यादृच्छिक प्रतिचयन क्या होता है?
22) अनुक्रमी प्रतिचयन किसे कहते हैं?
23) विप्रधान मृत्युता कारक क्या होता है?
24) पीड़कों द्वारा फसल हानियां क्यों निर्धारित की जाती हैं?
25) प्राप्रयोग्य उत्पादन तथा वास्तविक उत्पादन में विभेद कीजिए।
26) समष्टि मापन की आठ आपेक्षिक विधियां सूचीबद्ध कीजिए तथा उनमें से किन्हीं दो का विस्तार से वर्णन कीजिए।
27) त पीड़कों तथा k पीड़कों में विभेद कीजिए।
28) पीड़क पूर्वघोषणा किसे कहते हैं?

अंत में कुछ प्रश्न
1) जीवों की एकल प्रजाति की पारिस्थिति को स्वपारिस्थितिकी कहते हैं।
2) एक ऐसी व्यवस्था का बनना जो जैविक समुदाय की भौतिक पर्यावरण के साथ सतत् परस्पर क्रिया के कारण बनती है, पारितंत्र कहलाता है।
3) पारितंत्र में जैविक समुदाय तथा अजैविक घटक आते हैं और इसलिए पारितंत्र स्तर पर किए जाने वाले अध्ययन को समग्रात्मक
अध्ययन कहते हैं।
4) चारण खाद्य श्रृंखला का आरंभ हरे पौधों से प्रारंभ होता और आगे शाकभक्षी, प्राथमिक मांसभक्षी, द्वितीयक मांसभक्षी आदि में चलता
जाता है। इससे दूसरी ओर अपरद खाद्य श्रृंखला का आरंभ मृत जैविक पदार्थ (अपरद) से होता है तथ आगे सूक्ष्मजीवों, परभक्षियों,
आदि में चलता जाता है।
5) पौधों को खाने वाला जीव शाकभक्षी कहलाता है तथा प्राणियों का आहार करने वाला मांसभक्षी।
6) जो जीव स्वयं अपना भोजन बना सकते हैं स्वपोषी कहलाते हैं तथा जो अन्य जीवों को खाते हैं वे विषमपोषी कहलाते हैं।
7) ऐसा परजीवी कीट जो वास्तविक परजीवी से भिन्न होता है परजीव्याभ कहलाता है। इसका आकार लगभग परपोषी के ही बराबर होता है और यह अपने परपोषी को तुरंत नहीं मारता, यह अपना जीवन चक्र परपोषी पर आंशिक रूप में ही पूरा करता है। परभक्षी अपने शिकार से ज्यादा बड़ा होता है। यह अपने शिकार को तुरंत ही मार डालता है और आजीवन स्वतंत्र रहता है।
8) एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर पर स्थानांतरण होते हुए लगभग 90ः ऊर्जा की हानि होती है।
9) चूंकि प्रत्येक पोषण स्तर पर लगभग 90ः ऊर्जा की हानि होती रहती है, इसलिए आगे बढ़ते जाते पोषण स्तर के साथ-साथ जैवसंहति घटती जाती है।
10) किसी आवास में जैविक समुदायों में होने वाली क्रमबद्ध एवं भविष्यवाणी किया जा सकने वाला परिवर्तन पारिस्थितिक अनुक्रमण कहलाता है।
11) कृषि पारितंत्र में पारिस्थितिकी अनुक्रमण चरम अवस्था तक इसलिए नहीं पहुँच पाता क्योंकि फसल काटते ही इसका अंत हो जाता है।
12) श्र-आकृति की समष्टि वृद्धि समष्टि में तीव्र बढ़वार दर्शाती है क्योंकि उसमें आरम्भ में पर्यावरण प्रतिरोध नहीं होता। जब पर्यावरण प्रतिरोध आता है समष्टि में एकदम गिरावट आ जाती है। इसके विपरीत ै-आकृति की वृद्धि में समष्टि में धीरे-धीरे वृद्धि होती है क्योंकि इसमें पर्यावरण प्रतिरोध आरम्भ से ही होता है। इसमें समष्टि एकदम से नहीं गिरती वरन् धारक क्षमता के इर्द-गिर्द घटती-बढ़ती रहती है।
13) कृषि पारितंत्र में कम विविधता होती है क्योंकि फसल-इतर पौधों को हटाया जाता रहता है।
14) जीव की जनन, उत्तरजीविता, संख्या-वृद्धि आदि की जन्मजात क्षमता को जैविक विभव कहते हैं।
15) वे तमाम पर्यावरण कारक जिनसे किसी प्रजाती की व्यष्टियों की मृत्यु होती है, पर्यावरण प्रतिरोध कहलाते हैं।
16) जब कभी बाह्यगत पीड़क किसी नए देश में पहुंचते हैं तो उनके प्राकृतिक शत्रु पीछे छूट गए होते हैं। इसलिए उन्हें पर्यावरण प्रतिरोध का कम सामना करना पड़ता है और . उनकी समष्टि में भारी वृद्धि होती है।
17) जैविक मृत्युता कारक घनत्व निर्भर तरीके से अथवा घनत्व स्वतंत्र तरीके वे कार्य कर सकते हैं।
18) खेत में बहुत बड़ा क्षेत्र होता है और उसमें फसल पौधों की संख्या बहुत बड़ी होती है। हम सभी पौधों के तमाम कीट को गिन सकना असम्भव है। अतः प्रतिचयन करना पड़ता है।
19) पौधे के छोटे से छोटे भाग अथवा क्षेत्रफल जिस पर कीटों को गिना जा सकता है, को प्रतिचयन इकाई कहते हैं। प्रतिचयन इकाइयों के संग्रहण को प्रतिचयन कहते हैं।
20) प्रति इकाई.- क्षेत्रफल पर किसी प्रजाति की तमाम व्यष्टियों को गिना जाना निरपेक्ष समष्टि आकलन कहते हैं।
21) स्तरित यादृच्छिक प्रतिचयन में, असमांग खेत को समांग स्तरों में बांट लिया जाता है। तदुपरांत प्रत्येक स्तर में से उसके क्षेत्रफल के अनुपात में प्रतिचयन छांटे जाते हैं।
22) क्रमबद्ध प्रतिचयन कैसे कैसे किया जाएगा यह दो बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है – पीड़क का स्थानगत वितरण तथा आर्थिक क्षति स्तर। इसमें प्रतिचयन का आकार निश्चित नहीं किया जाता। पीड़कों के प्रति प्रबंधन निर्णयों को लेने में यह बहुत उपयोगी होता है।
23) मृत्युता कारक जिस पर किसी भी प्रजाति की समष्टि गतिकी निर्भर होती है, मृत्युता विप्रधान मृत्युता कारक कहलाता है।
24) पीड़कों द्वारा होने वाली हानियों का निर्धारण इसलिए किया जाता है कि उनका आपेक्षिक महत्व पता चल सके तथा बच सकने वाली हानियों की मात्रा मालूम हो सके।
25) प्राप्रयोग्य उत्पादन तब मिल पाता है जब जल तथा पोषकों की सीमितता हो मगर पीड़क प्रतिबल नहीं होता। इसके विपरीत वास्तविक उत्पादन तब मिल पाता है जब जल तथा पोषक बाध्यताओं के अतिरिक्त पीड़क प्रतिबल भी वहां मौजूद हो।
26) देखिए अनुभाग 7.7.2 27) देखिए अनुभाग 7.11.4 28) देखिए अनुभाग 7.9