मुगलकालीन चित्रकला की प्रमुख विशेषताएं लिखिए उत्तर , मुगल कालीन चित्रकला की क्या विशेषता थी

mughal painting in hindi मुगलकालीन चित्रकला की प्रमुख विशेषताएं लिखिए उत्तर , मुगल कालीन चित्रकला की क्या विशेषता थी ?

प्रश्न: भारतीय चित्रकला की परम्परागत तकनीक पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: चित्रों का निष्पादन परम्परागत चित्रकला तकनीक से किया गया था। रंगों को सटीक माध्यम के साथ जल में मिश्रित करने के पश्चात् इन्हें रेखाचित्र पर लगाया जाता था। पहले खाके को लाल या काले रंग से स्वतंत्र रूप से तैयार किया जाता था और उसके ऊपर सफेद रंग लगाया जाता था। सतह को तब तक भली-भांति चमकाया जाता था, जब तक कि इसमें से बहिर्रेखा स्पष्ट रूप से दिखाई न देने लगे। फिर एक बढ़िया कंूची की सहायता से एक दूसरी बहिर्रेखा खींची जाती थी। पहले पृष्ठभूमि पर रंग किया जाता था और तत्पश्चात् आकाश, भवन और वृक्ष आदि की आकृतियों को सबसे अन्त में रंगा जाता था और इसके बाद एक अन्तिम बहिर्रेखा खींची जाती थी। जब काठकोयले के चूरे को रगड़ कर छिद्रित खाकों की प्रतियां तैयार की जाती थी तब तक प्रथम आरेखण का स्थान बिन्दु- बहिर्रेखा ले लेती थी। चित्र में प्रयुक्त रंग खनिजों और गेरुओं से लिए गए थे। नीला वनस्पति रंग था। लाक्षा-रंजन और लाल कृमिज कीड़ों से लिए गए थे। दग्ध शंख और सफेदा श्वेत वर्ण के रूप में प्रयोग में लिए गए हैं। काजल काले रंग के रूप में प्रयोग किया गया था। गेरू, सिंदर लाक्षा-रंजन और लाल कृमिज लाल रंग के रूप में प्रयोग किए गए थे। नील और लाजवर्द नीले के लिए प्रयोग किए गए थे। पीला गेरू, हरताल और पेओरि (आम के पत्ते खाने वाली गायों के मूत्र से निकाला गया) पीले रंग के लिए प्रयोग किए गए थे। चांदी और सोने का प्रयोग भी किया गया था। टेरावर्टे, मैलकाइट (जंगल) का प्रयोग हरे रंग के रूप में किया गया था जो अन्य वर्णों को मिश्रित करके भी प्राप्त किया जाता था। रंगों में बबूल गोंद ओर नीम गोंद का प्रयोग बंधनकारी माध्यम के रूप में किया जाता था। पशु के बाल से कूंची बनाई जाती थी। बढिया कूंची गिलहरी के बाल से बनाई जाती थी। एक बाल की कूंची सबसे अच्छी होती थी। ताड़ के पत्ते और कागज के अतिरिक्त, काष्ठ और वस्त्र का प्रयोग भी चित्रकला के लिए सामग्री के रूप में किया जाता था।
अठारहवीं शताब्दी के पूर्वादर््ध के पश्चात परम्परागत भारतीय चित्रकला में गिरावट आनी प्रारम्भ हो गई थी और इस शताब्दी के अन्त तक इसने अपनी अधिकांश सजीवता तथा आकर्षण को खो दिया था तथापि पहाड़ी क्षेत्र में चित्रकला ने अपनी गुणवत्ता को उन्नीसवीं शताब्दी के चतुर्थांश तक बनाए रखा था। चित्रकला के पश्चिमी वर्गों और तकनीक के प्रभाव के कारण भारतीय चित्रकला की परम्परागत शैलियां उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरादर््ध में अन्ततः समाप्त हो गई थीं।
प्रश्न: मुगलकालीन चित्रकला के विकास पर एक लेख लिखिए तथा उसकी मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर: भारत में चित्रकला बौद्धधर्म से बहुत प्रभावित और प्रेरित हुई थी। यहां से यह चीन में पहुंची। वहां से मंगोलों के साथ ईरान पहुंची और तैमूरियों के साथ भारत पुनः आ गई। मुगल चित्रकला को तीन भागों में बांटा जा सकता है-
प्ण् उपक्रम काल: बाबर और हुमायूं का काल।
बाबर: बाबरनामा में बिहजाद नामक चित्रकार का उल्लेख बहुत ही प्रशंसनीय शब्दों में किया है। कला समीक्षकों ने इसे पूर्व का राफेल कहा है। बाबर ने अनेक हस्तलिखित ग्रंथों की प्रतिलिपियां चित्रित करवाई थी।
हुमायूं: हुमायूं अपने प्रवास काल के दौरान ईरान से दो चित्रकारों – मीर सैयद अली और ख्वाजा अब्दुल समद ’शिरीनकलम’ को अपने साथ लाया और ’दास्तान ए अमीरहम्जा’ को चित्रित करवाया। इस प्रारम्भिक काल में चीनी-फारसी कला का प्रावधान रहा।
प्प्. उत्कर्ष काल: अकबर और जहांगीर का काल।
अकबर के काल को मुगल चित्रकला का आरम्भ माना जा सकता है। अकबर को अपने पिता के दोनों प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार (मीर सैयद अली, ख्वाजा अब्दुल समद) उत्तराधिकार में प्राप्त हुए। राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने से हिन्दू चित्रकला भी उसके दरबार में प्रविष्ट हुई जिससे ईरानी और भारतीय चित्रकला का समन्वय आरम्भ हुआ। अकबर ने अब्दुल समद के नेतृत्व में एक चित्रशाला विभाग खोला। सभी चित्रकारों को उसके नियंत्रण में रख दिया। अधिकांश चित्र अनेक विशेषज्ञों के सम्मिलित उद्योग से निर्मित है। अबुल फजल 100 उच्चकोटि के दरबारी एवं अन्य चित्रकारों का नाम देता है। इनमें ईरानी कलाकारों में प्रमुख थे – अब्दुल समद, फर्रूखबेग, खुसरों अली, अकारिजा, जमशेद आदि। भारतीय चित्रकारों में दशवंत, बसावन, सांवलदास, ताराचंद, केसूलाल, जगन्नाथ, मुकुन्द, हरिवंश आदि प्रमुख थे। दसवंत का प्रसिद्ध चित्र हैं मजनूं व कृशकाय घोड़ा। अकबर के समय के खानदान-ए-तैमूरियां, दास्तान-द-अमीर हम्जा, रज्मनामा (महाभारत), आशिका, तूतीनामा आदि प्रसिद्ध चित्र हैं। अकबरकालीन चित्रकला की विशेषताएं हैं-
1. वास्तविक दृश्य विधान 2. जीवन सदृश्य रंग-संगति
3. अभिजात्य विलगाव 4. लघुचित्रकारी
5. रंग संयोजन चमक-दमक वाली आदि।
प्प्प्. ह्रास काल: शाहजहां और औरंगजेब का काल।
शाहजहां के धार्मिक विचारधारा का होने के कारण चित्रकला इस्लाम विरोधी थी इसलिए विशेष रूचि न ली। मुहम्मद फखरूला खां, शहजादा दाराशिकोह को चित्रकला का निरीक्षण सौंपा इन्होंने चित्रकारों को प्रश्रय देकर जीवित रखने की कोशिश लेकिन उसकी निर्मम हत्या कर दी गई। औरंगजेब ने जगह-जगह चित्रकारियों पर चूना पुतवा दिया।
अधिकांश मुगल चित्रों के विषय युद्ध, दरबार, सांस्कृतिक दृश्य, पौराणिक गाथा आदि थे। मुगलों ने इस्लाम के धार्मिक विषय पर चित्र नहीं बनाये। हिन्दू व ईसाई धर्म पर कुछ चित्र बनवाये। मुगलकाल में यूरोपीय चित्रकला से प्रभावित चित्रकारों में बसावन, केशवदास, मिशकिन, दौलत व अबुल हसन थे। यूरोपीयन प्रभाव वाले चित्रकारों में ’मिशकिन’ सर्वश्रेष्ठ था। मुगल शैली की चित्रकला की प्रकृति धर्मनिरपेक्ष एवं अभिजात वर्गीय है। उन्होंने सामान्य जन के चित्र नहीं बनाये।
प्रश्न: प्रारम्भिक मुगलकालीन चित्रकला पर एक लेख लिखिए।
उत्तर: बाबर व हुमायूं कालीन चित्रकला प्रारंभिक मुगलकालीन चित्रकला है।
बाबरकालीन चित्रकला
बाबरनामा में बिहजाद नामक चित्रकार का उल्लेख बहुत ही प्रशंसनीय शब्दों में किया गया है। कला समीक्षकों ने इसे ’पूर्व का राफेल’ कहा है। बाबर ने अनेक हस्तलिखित ग्रंथों की प्रतिलिपियां इस शैली में चित्रित करवाई थी।
हुमायूंकालीन चित्रकला
मुगल काल में चित्रकला की नींव वास्तविक रूप से हुमायूँ के काल में पड़ी। अपने ईरान प्रवास के दौरान वह फारसी चित्रकला से प्रभावित हुआ और वह ’मीर सैयद अली’ व ’अब्दुल समद’ ’शिरीनकलम’ को अपने साथ भारत लाया और हम्जानामा या दास्ताने अमीरहम्जा का चित्र संग्रह करवाया। इनके चित्रों में राजस्थानी या उत्तर भारतीय शैली का भी मिश्रण दिखाई देता है। इस प्रारम्भिक काल में चीनी-फारसी कला का प्रावधान रहा। मीर सैय्यद अली हेरात के प्रसिद्ध चित्रकार ’बिहजाद’ का शिष्य था। अब्दुस्समद द्वारा तैयार किये गये कुछ चित्र जहाँगीर द्वारा तैयार की गई ’गुलशन चित्रकारी’ में संकलित हैं।
मुगल चित्रकला का सबसे प्रारम्भिक व महत्वपूर्ण चित्र संग्रह ’हम्जनामा’ है जो ’दस्ताने-अमीर-हम्जा’ के नाम से विख्यात है। इसमें करीब 1200 चित्रों का संग्रह है तथा इसमें 100 चित्रों के 12 खण्ड हैं। इसमें पैगम्बर मुहम्मद के चाचा अमीर हमजा के वीरतापूर्ण कार्यों का संग्रह है। हम्जानामा की शुरूआत हुमायँू ने की व इसे अकबर ने पूरा करवाया। मुल्ला अलाउद्दीन कजवीनी ने अपने ग्रंथ ’नफाइसुल मासिर’ में हम्जनामा को ’हुमायूँ के मस्तिष्क’ की उपज बताया है। हम्जानामा ’मीर सैय्यद अली’ के पर्यवेक्षण में पूरा किया गया। ख्वाजा अब्दुससमद ने भी इसके चित्र बनाये व निर्देशन का कार्य किया। यह मुगल काल की सर्वप्रथम चित्रित पुस्तक है। अब्दुस्समद को बाद में अकबर ने मुल्तान का दीवान नियुक्त किया था। हम्जानामा पाण्डुलिपि के चित्रों की विशेषताएं – विदेशी या विजातीय पेड़ पौधों और उनके रंग-बिरंगे फूल पत्तों, स्थापत्य अलंकरण की बारीकियों, साजों सामान के साथ-साथ स्त्री आकृतियों एवं आलंकारिक तत्वों के रूप में विशिष्ट राजस्थानी या उत्तर भारतीय चित्रकला के लक्षण यत्र-तत्र मिलते हैं।
प्रश्न: ’’अकबर कालीन चित्रकला को मुगल चित्रकला का उत्कर्ष काल कहा जा सकता है।’’ अकबर कालीन चित्रकला की विशेषताओं के संदर्भ में कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर: अकबर के काल में हिन्दू व फारसी शैलियों की मिली-जुली चित्रकला का विकास हुआ। इस काल की कृतियों में शैली के अलावा विषय-वस्तु भी हिन्दू धर्म से ली गई। फारसी कहानियों को चित्रित करने के साथ-साथ महाभारत (रज्मनामा), रामायण आदि से सम्बन्धित विषयों पर भी चित्र बनाए गए। भारतीय दृश्यों पर चित्रकारी करने के रिवाज के बढ़ने से चित्रकारी पर ईरानी प्रभाव कम हुआ। इस युग की चित्रकला की विषय-वस्तु प्राकृतिक दृश्य, फारसी व हिन्दू पौराणिक गाथाओं पर आधारित, दरबारी घटनाएँ, छवि चित्र आदि हैं। फिरौजी, लाल आदि रंगों का प्रयोग बढ़ा तथा ईरानी सपाट शैली की जगह भारतीय वृत्ताकार शैली पनपी। यूरोपीय कला के समावेश से प्रकाश व छाया अंकन विधि का भी प्रयोग बढा। इस युग में भित्ति चित्रों का पहली बार प्रारम्भ हुआ। फतेहपुर सीकरी के भवनों के भित्ति चित्रों पर बौद्ध प्रभाव दृष्टिगत होता है। अकबरनामा, रज्मनामा, ’तूतीनामा’, आशिका, दास्तान-ए-अमीर हम्जा, अनवर-ए-सुहैली, खानदान-ए-तैमूरिया आदि अकबरकालीन मुख्य चित्रांकित ग्रंथ है।
अकबर के काल को मुगल चित्रकला का आरम्भ माना जा सकता है। अकबर को अपने पिता के दोनों प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार (मीर सैयद अली व ख्वाजा अब्दुस्समद) उत्तराधिकार में प्राप्त हुए। राजपूतों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने से हिन्दू चित्रकला भी उसके दरबार में प्रविष्ट हुई जिससे ईरानी और भारतीय चित्रकला का समन्वय आरम्भ हुआ। अकबर ने चित्रकारी के विकास हेतु अब्दुल समद के नेतृत्व में एक अलग विभाग ’तस्बीर खाना’ (चित्रशाला विभाग) का निर्माण करवाया। सभी चित्रकारों को उसके नियंत्रण में रखा। अधिकांश चित्र अनेक विशेषज्ञों के सम्मिलित उद्योग से निर्मित है। ’आईन-ए-अकबरी’ में अबुल फजल 100 उच्चकोटि के दरबारी एवं अन्य चित्रकारों का नाम देता है। ’मीर सैय्यद अली’ व ’अब्दुस्समद’ के अलावा 15 प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम प्राप्त होते हैं इनमें तेरह हिन्दू थे। इनमें ईरानी कलाकारों में प्रमुख थे – अब्दुस समद, फर्रूखबेग, खुसरों अली, अकारिजा, जमशेद आदि। भारतीय चित्रकारों में दसवन्त (एक कहार का बेटा), बसावन, महेश, केशव लाल, मुकुन्द, साँवलदास, फारूख बेग, जमशेद जगत, खेमकरण, हरवंश, मिशकिन, ताराचन्द, जगन्नाथ, राम, माधु आदि प्रमुख थे।
अकबर ने म्यूराल पेंटिग एवं पुस्तकों को सचित्र, विशिष्ट दरबारियों व उनसे सम्बंधित चित्र बनवाएं। रज्मनामा (महाभारत) का चित्रण दसवंत ने किया। बसावन सर्वोत्कृष्ट चित्रकार था। वह रेखांकन रंगों के प्रयोग, छवि-चित्रकारी, भू-दृश्या क चित्रण आदि में सिद्धहस्त था। उसके प्रसिद्ध चित्र है मजनूं व कृशकाय घोड़ा।
प्रारंभ में चित्रों में ईरानी वातावरण और ईरानी शैली की प्रधानता रही। आगे चलकर भारतीय कलाकारों के सम्पर्क से विदेशीपन भारतीयता से समन्वित हो गया और मुगल शैली का विकास हुआ। रज्मनामा (महाभारत), रम्जनामा (रामायण), नलदमन्ती, कालियादमन आदि हिन्दू ग्रंथों का चित्रांकन अकबरकालीन ईरानी चित्रकला के भारतीयकरण का उदाहरण है।
अकबरकालीन चित्रकला की प्रमुख विशेषता हैं-
वास्तविक दृश्य विधान, जीवन सदृश्य रंग-संगति, अभिजात्य विलगाव, लघुचित्रकारी, रंग संयोजन चमक-दमक वाली।
प्रश्न: जहांगीर कालीन चित्रकला की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 
अथवा
जहांगीर के काल में मुगल चित्रकला के विकास की विवेचन कीजिए। 
उत्तर: जहांगीर के समय चित्रकला पूर्ण परिपक्व हो गई। वह स्वयं चित्रकला प्रेमी, पारखी और संरक्षक था। उसके समय अकबरकालीन अनेक चित्रकार बने रहे तथा नये भी भर्ती हुए। आकारिजा, अबुल हसन, मुहम्मद नादिर, मु. मुशद, उस्ताद मन्सूर आदि विदेशी चित्रकार थे।
विशेषताएं
1. पहले हस्तलिखित ग्रंथों को चित्रित करवाया जाता था, जहांगीर ने अब छवि चित्रों पर जोर दिया।
2. छवि चित्र – मानवाकार एवं खड़े व बैठे हुए व्यक्तियों के एकल एवं सामूहिक चित्र।
3. प्रतिमापरक – जैसे शाह अब्बास का स्वागत करते हुए, पुण्यात्मा के सान्निध्य में काल्पनिक सभा।
4. प्राकृतिक दृश्यों का अंकन
5. यूरोपीयन तक्षण कला के रेखाचित्र
6. पूर्णतः भारतीय चित्र
7. बारीक अंकन
8. स्वाभाविक व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग
9. शिकार के चित्रों पर जोर
यूरोपीयन प्रभाव
1. रंग प्रतिरूपण जैसे तकनीकी विषमता
2. गहराई और सही दृश्य विधान का अंकन
3. चित्र विषयों की परास विस्तृत कर चित्रकार और दर्शक की सामान्य अभिवृत्ति को परावर्तित करना।
4. धार्मिक विषयों और प्रतीकों को समायोजित करना।