ICGEB in hindi icgeb full form in hindi | इन्टरनेशनल सेन्टर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग व बायोटेक्नोलॉजी क्या है ?
उत्तर : ICGEB का पूरा नाम International Centre For Genetic Engineering And Biotechnology है और इसका हिंदी में फुल फॉर्म इन्टरनेशनल सेन्टर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग व बायोटेक्नोलॉजी है |
जैवप्रौद्योगिकी (Biotechnology)
परिचय (Introduciton)
आज के इस वैज्ञानिक युग में हम प्रतिपल विज्ञान द्वारा प्रदत्त साधनों का उपयोग कर रहे हैं। मानव जीवन के हर परिप्रेक्ष्य में चाहे वह चिकित्सा, कृषि, संचार, ऊर्जा, रक्षा, परिवहन अथवा अंतरिक्ष से सम्बन्ध रखता हो विज्ञान व प्रौद्योगिकी के बिना कोई भी उपलब्धि संभव नहीं है।
प्रकार्यात्मक परिभाषा (Functional definition)
बायोटेक्नोलॉजी शब्द की उत्पत्ति बायोलोजी व टेक्नोलॉजी शब्दों को जोड़ने से हुई है। जैविक कारक जैसे सूक्ष्मजीव, जीव एवं पादप कोशिकाओं या उनके नियंत्रित उपयोग द्वारा मनुष्य के लिए उपयोगी उत्पाद अथवा सेवाओं का उत्पादन बाायोटेक्नोलॉजी कहलाता है।
बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग करके मानव अपना जीवन सुविधापूर्वक व्यतीत करने में सफल हुआ है। इसमें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के सिद्धान्तों का उपयोग करके जीवित जीवों अथवा उनके अवयवों द्वारा बड़े पैमाने पर उपयोगी उत्पाद बनाने में मानव ने महारथ हासिल की है। इस प्रक्रिया में जन्तु व पादप कोशिकाओं के पात्रे-संवर्धन (in-vitro culture) द्वारा उत्पाद प्राप्त किये जाते हैं।
आधुनिक भारत के पुनर्निमाण में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की महत्ता को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विज्ञान की इन क्षेत्रों को उन्नत स्वरूप प्रदान करने का कार्य प्रारम्भ किया। इसके लिए सर्वप्रथम भारत सरकार ने 1982 में राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी बोर्ड (NBTB) की स्थापना की जो डिर्पाटमेन्ट ऑफ साइन्स व तकनीक के तहत (D.k~ S.T.) के तहत कार्य करता था।
1986 से NBTB के स्थान पर एक सम्पूर्ण जैव प्रौद्योगिकी डिपार्टमेन्ट (DBT) मिनिस्ट्री ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नोलॉजी के अन्तर्गत कार्य कर रहा है। इसका मुख्य कार्य जैवप्रौद्योगिकी से सम्बन्धित कार्यो की परिकल्पना व अवकलोकन करना तथा उसके उद्देश्यों को जनोपयोगी बनना है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के आव्हान पर विकासशील देशों को सहायता प्रदान करने के लिए श्इन्टरनेशनल सेन्टर फॉर जेनेटिक इन्जीनियरिंग व बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) के दो केन्द्र गठित किये गये एक दिल्ली में व दूसरा इटली में। दिल्ली का यह केन्द्र 1987 से कार्य कर रहा है।
क्ठज् ने जैव प्रौद्योगिकी के उच्चतर अध्ययन के लिए मुख्यतया निम्न केन्द्र स्थापित किये हैं
(1) इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इन्स्टीट्यूट (IARI) नई दिल्ली। इस एग्रीकल्चर संस्थान में स्वर्गीय राजीव गांधी ने लाल बहादुर सेन्टर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन बायोटेक्नोलॉजी का उद्घाटन किया था। यह केन्द्र 1993 से कार्य कर रहा है।
(2) तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (TNAU) कोयम्बटूर,
(3) जी. बी. पंत युनिवर्सिटी-पंतनगर।
HHR ने नई दिल्ली में 1980 के दशक में एक नया प्रभाग खोला है जो पादप जेनेटिक रिसोर्स (PGR) के नाम से जाना जाता है। PGR जर्मप्लाज्म के प्रशीतन के कार्य से सम्बन्धित है।
क्ठज् ने राइजोबिया का बडे पैमाने पर उत्पादन करने में सफलता हासिल की है जिसस मुख्य फसलों को समय पर राइबोबिया उपलब्ध करवाया जा सके। DBT ने पादप मोलीक्यूर बाइलोजी (molecular biology) को प्रोत्साहन के द्वारा उन्नत बनाने हेत निम्न इन्स्टीट्यूट में 6 केन्द्र स्थापित किये है-
(1) जवाहर लाल यूनिवर्सिटी-नई दिल्ली
(2) उस्मानिया यूनिवर्सिटी- हैदराबाद
(3) बोस इन्स्टीट्यूट–कोलकाता
(4) नेशनल बोटेनिकल रिसर्च इन्स्टीटयूट-लखनऊ
(5) मदुरै कामराम यूनिवर्सिटी-मदुरै
(6) तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (TANU)
DBT के अन्तर्गत जो सरकारी व गैर सरकारी संस्थायें कार्यरत हैं उनकी मान्यता है कि जैव प्रौद्योगिकी के कार्य को मुख्यतःया निम्न क्षेत्रों में किया जाना चाहिए
(1) चिकित्सा जैव प्रौद्योगिकी
(2) पादप मोलीक्यूलर बायोटेक्नोलॉजी व कृषि जैव प्रौद्योगिकी
(3) पादप कोशिका संवर्धन, एक्वाकल्चर व मेरीन जैव प्रौद्योगिकी
(4) ईंधन, चारा, जैव ऊर्जा व जीनी संरचना का अध्ययन
(5) वेटरनरी जैव प्रौद्योगिकी आदि।
पादप ऊतक संवर्धन की मूलभूत अभिमुखतायें
(Basic aspects व fplant tissue Culture)
पादप ऊतक संवर्धन का अर्थ पादप कोशिकाओं, ऊतकों या अंगों का पात्रे (invitro) संवर्धन है। पादप ऊतक संवर्धन वनस्पति विज्ञान की अन्य शाखाओं के समान अलग शाखा नहीं है अपितु यह प्रायोगिक प्रक्रियाओं का चरणबद्ध संग्रह है। इसके द्वारा वियुक्त कोशिकाओं अथवा ऊतकों को निर्जमित व नियंत्रित अवस्था में उपयुक्त संवर्धन माध्यम पर उगाया जाता है जिससे कैलस या भ्रूणाभ व अन्ततः नवोद्भिद पादपक बनते हैं।
1902 गारलैब हेबरलैंड जर्मन वनस्पतिज्ञ: इन्होनें श्लाइडन व शॉन के कोशिका सिद्धान्त पर नॉप (Knop) के विलयन में सर्वप्रथम पेप्टोन, शर्करा व एस्परेजीन का प्रयोग करते हुए पर्ण की बाह्यत्वचा, रोम, खम्भ ऊतक व मज्जा की कोशिकाओं का संवर्धन किया। यह पोषक माध्यम पर कुछ काल तक जीवित रहीं पर आगे विभाजित नहीं हुई।
1939 पी. नॉबेकोर्ट
(P.k~ Nobecourt) फ्रांसीसी वनस्पतिज्ञ: इन्होंने बताया कि पादप ऊतकों को असीमित काल तक पोषक माध्यम पर संवर्धित किया जा सकता है।
1939 पी. आर. गाथरे
(P.R.k~ Gatheret) फ्रांसीसी वैज्ञानिकः इन्होंने मूलाग्र संवर्धन पर कार्य किया। इसके पश्चात इन्होंने घाव भरने की प्रक्रिया पर कार्य करने के लिए कुछ पादपों की एधा को पोषक माध्यम पर रखा। कुछ काल पश्चात् इनमें कैलस निर्मित हो गये। इन्होंने ऑक्सिन व यीस्ट के निष्कर्ष विटामिन ‘बी‘ की उपस्थिति रिपोर्ट की।
1941 वॉन ऑवरबीक
(Van Overbeck) इन्होंने धतूरा के भ्रूण संवर्धन (embryo culture) में नारियल के दूध की महत्वपूर्ण भूमिका प्रदर्शित की।
1942 व्हाईट व ब्रान
(White and Braun) इन्होंने संकर निकोटिआना के क्राउन गॉल पर शोध किया।
1948 स्टीवर्ड, कैपलिन व मिलर Stward, Kaplin, and Miller) इन्होंने गाजर के कर्तीतक पर अध्ययन के दौरान 2.4D को पोषक पदार्थ के रूप में प्रयोग किया। इन्होंने 2.4D व नारियल के पानी का इस्तेमाल करके आलू व गाजर के ऊतकों में प्रचुरोद्भवन प्रदर्शित किया।
1950 स्कूग व मिलर
(Skoog and Miller) इन्होंने बताया कि पादप ऊतक संवर्धन में साइटोकाइनिन पूर्णशक्त (titopotent) कोशिका में कोशिका विभाजन तेज करता है।
1950 जार्ज मोरेल
(George Morel) सर्वप्रथम एकबीजपत्री पादप रॉयल फर्न का संवर्धन यीस्ट निष्कर्ष तथा नारियल पानी के उपयोग से किया।
1952 गोरेल एवं मार्टिन
(Morel and Martin) मेरीस्टेम संवर्धन तकनीक विकसित करके डहेलिया के वायरस मुक्त पादप प्राप्त किए।
1953 म्यूर (Muir) कैलस को द्रव माध्यम पर स्थानान्तरित करके हिलाने पर एकल कोशिकायें प्राप्त की जिन्हें निलंबन संवर्धन कहा जाता है तथा यह तकनीक पृथकित एकल कोशिका संवर्धन कहलाती है।
1959 जे. राइनर्ट जर्मन वनस्पतिज्ञ थे जिन्होंने गाजर की जड़ से अलग की गयी मृदुतकीय कोशिकाओं का सफलतापूर्वक संवर्धन करके कायिक (vegetagive) भ्रूण प्राप्त किए।
1960 इ.सी. कॉकिंग
(E.C.k~ Cocking) यह इंगलैण्ड के वनस्पतिज्ञ थे जिन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सर्वप्रथम विकर (eæyme) का उपयोग करके प्रोटोप्लास्ट प्राप्त करने की तकनीक विकसित की।
1965 वासिल तथा हिल्डीब्रांड (Vasil and Hildibrandt) इन्होंने निकोटिआना में एकल कोशिका संवर्धन तकनीक द्वारा पूर्ण पादप को पुनर्जनित करने में सफलता प्राप्त की।
1968 तोशियो