जंक डीएनए किसे कहते है | व्हाट इस जंक डीएनए परिभाषा क्या है इन हिंदी junk dna in hindi meaning

what is junk dna in hindi meaning and definition जंक डीएनए किसे कहते है | व्हाट इस जंक डीएनए परिभाषा क्या है इन हिंदी ?

पुनरावर्ती अनुक्रम (Repetitive sequence)
यूकेरियोटिक जीवों में डीएनए के कुछ भाग में न्यूक्ल्यिोटाइड के पुनरावर्ती अनुक्रम मिलते हैं जिन्हें जंक (junk) डीएनए कहते हैं जो बेकार होता है परन्तु यह कहीं-कहीं नसों की बीमारी से जोड़ा जाने लगा है। 1979 में खुराना में जैविक रूप से सक्रिय जीन का संश्लेषण किया।
जीन वास्तव में प्रोटीन निर्माण करने के लिये अपने अन्दर सूचना निहित करते हैं परन्तु यह प्रोटीन निर्माण नहीं करते। जीन के न्यूक्लियोटाइड का क्रम ही प्रोटीन में अमीनो अम्लों का क्रम निर्धारित करता है। प्रोटीन दूसरे प्रोटीन, जिन्हें एन्जाइम (eæyme) कहते हैं से निर्मित होते हैं जो जीनों को मार्गदर्शक (guide) के रूप में इस्तेमाल करते हैं। एक प्रोटीन दूसरे प्रोटीन को जीन के न्यूक्लियोटाइड क्रम के बिना निर्मित नहीं कर सकता, परन्तु मात्र निर्देश भी प्रोटीन निर्माण के लिये पर्याप्त नहीं है।
जीन गुणसूत्रों पर स्थित नहीं होते हैं। बल्कि गुणसूत्र डीएनए के एक लम्बे अणु से निर्मित होता है जिस पर हिस्टोन प्रोटीन बन्धा रहता है। इसे क्रोमेटीन सूत्र कहते हैं। यह 30 दउ मोटाई का होता है। क्रोमेटीन सूत्र की संरचनात्मक इकाई न्यूक्लियोसोम कहलाती है जो आठ हिस्टोन प्रोटीन कोर के चारों ओर कुण्डलित डीएनए द्वारा एक 11 दउ मोटाई द्वारा निर्मित होती है। एक जीन डीएनए की एक वह लम्बाई है जो अमीनों अम्लों की एक श्रृंखला के रूप में अनुदित (translate) होती है। जीन तथा बन्ध प्रोटीन (the bound proteins) ही वास्तव में गुणसूत्र है। जीन खुद को प्रतिकृति (replicate) नहीं करते। प्रोटीन (एन्जाइम) जीन को मार्गदर्शक के रूप में इस्तेमाल करके जीन की प्रतिकृति (replicate) करते हैं।
डीएनए में प्रोटीन निर्माण व जीवों की संरचना निर्माण की सूचना निहित रहती है, इसके अतिरिक्त एन्जाइम, हारमोन्स, एन्टीबाडीज इत्यादि भी डीएनए के ही प्रकार्य हैं।
गुणसत्र में जीन के विस्थल (loci) नियत स्थान पर होते हैं। मक्का में कुछ ऐसे जीन देखे गये मिक्लिनटाक, 1950) जो अपना स्थान एक गुणसूत्र पर एक जगह से दूसरी जगह तथा एक गुणसूत्र से दूसरे गुणसूत्र पर बदलते रहते हैं। स्थान परिवर्तन करने वाले ऐसे जीनों कों जम्पिग जीन अथवा ट्रांसपोजोन कहते हैं।
जीन अर्थात डीएनए के न्यूक्लियोटाइड के अनुक्रम में एक क्षार से दूसरे क्षार के द्वारा परिवर्तन संभव है जैसे जीन पर ळ।ळ अमीनो अम्ल ग्लूटामिक अम्ल को कोडित करता है। इसमें उत्परिवर्तन (mutation) द्वारा क्षार परिवर्तन होने से GAG ls GTG में परिवर्तन होने से यह ग्लूटामिक अम्ल के बजाय वेलीन अम्ल को कोडित करेगा। जीन में होने वाला व्युत्परिवर्तन जाति में विभिन्नता उत्पन्न करता है।
न्यूक्लिक अम्ल, डीएनए व आरएनए के पात्रे संश्लेषण (invitro synthesis) क्रमशः खुराना, ओकोआ व कार्नबर्ग के पश्चात् खुराना व उनके साथियों ने 1970 में एलेनिल-स्थानान्तरण आरएनए (alanyl&transfer RNA) का जीन का पात्रे संश्लेषण करने में सफलता प्राप्त की। तत्पश्चात पुनर्योगज डीएनए तकनीक (Recombinant DNA Technique) द्वारा नये जीन पैदा (संश्लेषित) किये जाने लगे। नये जीन द्वारा बीमारी ग्रस्त जीन को हटाने अथवा फायदेमंद जीन को जोड़ने के लिये पुनर्योगज (recombinant) डीएनए पर निरन्तर शोध हो रहे हैं।
जीन वास्तव में डीएनए के द्विकुण्डलित दोहरे तंतुओं (double stranded DNA in double heliÛ) से निर्मित होते हैं। एक तंतु दूसरे तंतु का पूरक (complement) होता है। यह दोनो तंतु अलग होकर अपने-अपने साथी तंतु का पुर्ननिर्माण कर लेते हैं।
जीन के कई युग्मविकल्पी भी मौजूद रहते हैं। आज जीन को विलग (isolate) करके नये जीव में रख कर उन्हें पुनर्निर्मित (reproduce) किया जा रहा है जिसे जीन क्लोनिंग कहते हैं। यह कृषि के क्षेत्र में, मानव की आनुवंशिक बीमारियों का उपचार करने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहे हैं व पुनर्योजित डीएनए तकनीक द्वारा जीनोमिक लाइब्रेरी का निर्माण हो रहा है।
जीन क्लोनिंग में एक समान एक जैसे कार्बन कॉपी समान जीव जन्तुओं को निर्मित किया जा रहा है। आज भेड़, बछड़ा, चूहा इत्यादि के क्लोन तैयार हो चुके हैं। क्लोनिंग से तैयार जीव जन्तुओं को ट्रांसजिनिक जीव (transgenic organism) कहते हैं। मानव क्लोनिंग की अभी हाल ही में 2002 में सफलतापूर्वक करने की घोषणा हो चुकी है। पादप में क्लोनिंग आनुवंशिक रूप से रूपान्तरित कपास बीटी, टमाटर फ्लोअर सेवर (Flaur S) इत्यादि उत्पादित हो चुका है। मानव में खराब जीन की जगह स्वस्थ व सक्रिय जीन को प्रतिस्थापित (replace) करना ही जीन थेरेपी (Gene Therapy) कहलाता है। मानव जीनोम । प्रोजेक्ट भी सन् 2003, दिसम्बर में पूरा हो चुका है जिससे मानव के जीनोम का मानचित्र विकसित करना संभव है।
आण्विक (Molecular Technology)
पुनर्योगज डीएनए व उच्च तकनीक के साथ ही आण्विक बायोलॉजी के क्षेत्र में तीव्र गति से प्रगति हुई है।
ऑटोरेडियोग्राफी एक प्रकार की ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा कोशिका में उपस्थित रेडियोधर्मी आइटोप को चिन्हित करके पहचाना जा सकता है। इसके लिये कशिका या किसी भी अंग या सम्पर्ण जीव को रेडियोधर्मी घोल से उपचारित करके इनमें रेडियोधर्मी पदार्थ का प्रवेश करवाकर उसे भी रेडियोधर्मी बना दिया जाता है। इसके लिये साधारणतया टिट्रियम (3H), कार्बन (14़C) व फास्फोरस (32P) तथा सल्फर (35S) का उपयोग किया जाता है। इन रेडियोधर्मी कोशिकाओं अथवा ऊतकों के सेक्शन को फोटोग्राफिक इमल्शन से कोट (coa ted) करके अंधेरे में कुछ महीनों के लिये रख लिया जाता है यह इन इमल्शन को विकसित करने पर काले बिन्दु उभरते हैं। यह बिन्द उस जगह को चिन्हित करते हैं जहाँ रेडियोधर्मी पदार्थ उपस्थित थे। ऊतकों के अभिरंजित सेक्शन को माइक्रोस्कोप द्वारा देखा जा सकता है। विभिन्न जीवाणुओं के अपचयन के लिये निम्न रेडियोधर्मी पदार्थों का उपयोग करते हैं।

डीएनए 3H- थाइमिडीन
आरएनए 3H- यूरिडीन
प्रोटीन 3H- अमीनो अम्ल
पोलिसेक्राइड 3H- मेनोज

जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस: डीएनए, आरएनए व प्रोटीन के मिश्रण को जैल इलैक्ट्रोफोरेसिस द्वारा अलग करके चिन्हित किया जाता है। इस विधि द्वारा डीएनए अथवा आरएनए के विभिन्न आकार के खण्ड विशिष्ट एन्जाइम ‘‘रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्ऐिज द्वारा अलग किये जा सकते हैं। इलैक्ट्रोफोरेसिस की प्रक्रिया छोटे डीएनए खण्ड प्राप्त करने हेतु पॉलीएक्रिलेमाइड जैली (polyacrylamid gel) अथवा बड़े खण्ड (20 ज्ञइ) प्राप्त करने के लिये एगरोज जैली (Agarose gel) का उपयोग करते हैं न्यूक्लिक अम्ल की पहचान करने लिये जैली में इथीडियम ब्रोमाइड रंजक मिला दिया जाता है जो दो संलग्न क्षारों के बीच में बंध कर न्ट किरणों की उपस्थिति में लाल प्रतिदीप्ति उत्पन्न करके रेडियोचिन्हित न्यूक्लिक अम्लों को ऑटो रेडियोग्राफी द्वारा चिन्हित करता है। उदासीन चभ् पर विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करने पर डीएनए व आरएनए पर ऋणाात्मक आवेश होने से यह धनात्मक सिरे पर एकत्रित होते हैं।
सदर्न विधि द्वारा किसी भी डीएनए खण्ड पर उपस्थित क्षार अनुक्रमों को ज्ञात किया जा सकता है। सर्वप्रथम रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम द्वारा डीएनए को खण्डों में विभाजित करके इलैक्ट्रोफोरेसिस द्वारा विभिन्न आकार के खण्ड उत्पन्न करते हैं। इन्हें जैल पर से गुजारा जाता है। जैल पर उपस्थित क्षार द्वारा डीएनए खण्ड विगुणित (denatured) अर्थात अलग हो जाते हैं। इन्हें नाइट्रोसेल्यूलोजिक फिल्टर पेपर पर स्थानान्तरित करने पर डीएनए खण्ड अलग होकर सूखे ब्लोटिंग पेपर पर ऊपर आकर स्थायी रूप से चिपक जाते हैं।
इस फिल्टर पेपर (डीएनए खण्ड युक्त) को ज्ञात डीएनए अनुक्रम, जिन्हें प्रोब (probe) कहते है, से उपचारित करने पर यह उन स्थानों पर स्पष्ट पट्टिकायें (bands) उत्पन्न करते हैं जहा प्राब के पूरक डीएनए अनुक्रम जैल में उपस्थित रहते हैं।
इस ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा टांस जीन (जीन अभियान्त्रिकी द्वारा स्थानान्तरित जीन) की उपस्थिति डीएनए फिंगर प्रिन्टिंग अथवा जीन मानचित्र ज्ञात किये जा सकते हैं।
नादर्न विधि में आरएनए खण्डों को माप के आधार पर पृथक किया जाता है जबकि वेस्टर्न ब्लॉटिग तकनीक द्वारा प्रोटीन्स को पृथक करके चिन्हित करते हैं।
डीएनए खण्ड पर उपस्थित क्षार अनुक्रमों को ज्ञात करने की विधि ही डीएनए अनुक्रमण कहलाता है। यह मेक्सम एवं गिल्बर्ट तथा सेंगर (1978) तकनीक द्वारा संभव होता है। सेगर विधि में द्विलड़ीय डीएनए के 3′ या 5′ सिरे को रेडियोचिन्हित करके विकृतिकरण (denaturation) पश्चात एकलड़ीय डीएनए मिश्रण प्राप्त कर लेते हैं तत्पश्चात डीएनए खण्डों को विशिष्ट क्षार विदलन (base specific cleavage) द्वारा ज्ञात किया जाता है।
रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम द्वारा डीएनए के विभिन्न आकार के पृथक हुए खण्डों को प्रतिबंधित खण्ड लम्बाई बहुरुपिता (RELP) कहते हैं। इन्हें पृथक करने के पश्चात इन्हें रेडियोचिन्हित डीएनए प्रोब (ज्ञात अनुक्रम) युक्त विलयन में रखते हैं।
प्रोब पूरक डीएनए से संकर (hybrid) बनाता है जिसे ऑटोरेडियोग्राफी द्वारा ज्ञात कर लिया जाता है। इस तरह त्म्स्च् द्वारा किसी भी जीन की पहचान करने के पश्चात पृथक किया जा सकता है।