पादरी किसे कहते हैं | पादरी की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब विलोम शब्द और स्त्रीलिंग Clergy in hindi

Clergy in hindi पादरी किसे कहते हैं | पादरी की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब विलोम शब्द और स्त्रीलिंग क्या होता है ?

पादरी या पुजारी (Clergy): चर्च जैसे पवित्र स्थल को संचालित करने वाले व्यक्ति को ‘‘क्लर्जी‘‘ या पुजारी कहते हैं। 

या

इसाई धर्म में धार्मिक कार्य से सम्बन्धित सभी कार्यों को संपन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान में जिसे यह अधिकार प्राप्त होता है उसे ही पादरी कहा जाता है , अंग्रेजी में पुरुष पादरी को priest और महिला पादरी को priestess कहा जाता है |

अमेरिका में नागरिक धर्म (Civil Religion in America)
अमेरिकी समाज में नागरिक धर्म का सुसंगठित और विकसित स्वरूप देखने को मिलता है। अमेरिका समाज बड़े ही नाटकीय ढंग से 19वीं और 20वीं शताब्दी के आरंभिक दौर के दौरान पश्चिम में राष्ट्रवाद के धर्म का प्रतिनिधित्व करता है।

राष्ट्रवाद के उदय के साथ-साथ यूरोप के सभी देशों में राजनीतिक पुजारियों (कलर्जी) का उदय हुआ। मध्यकाल के पुजारी चर्च के प्रति समर्पित थे और ये पुजारी राष्ट्र के प्रति । पहले बच्चे का जन्म और उसकी पहचान चर्च से जुड़ी होती थी अब उसका संबंध राष्ट्र-राज्य से जुड़ गया। जन्म, विवाह और मृत्यु सभी नागरिक राज्य की हद में आ गए। परिवार, विद्यालय और सामाजिक कल्याण के मामलों का जिम्मा चर्च की जगह नागरिक सरकार

अमेरिका में पहले ईसाई संतों और मसीहों के जन्मदिन समारोह बड़े धूम-धाम से मनाये जाते थे। अब वाशिंगटन, जेफरसन और लिंकन जैसे महान राजनीतिक व्यक्तियों के जन्मदिन पूरे उत्साह और सम्मान के साथ मनाये जाने लगे। इसी प्रकार राष्ट्र के लिए ऐतिहासिक महत्व की महान घटनाओं को भी धार्मिक सम्मान प्राप्त हुआ। हमारे स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के समान 4 जुलाई को एक प्रकार का धार्मिक पर्व घोषित किया गया। इसकी तुलना ईसाई धर्म के ईसा के जन्मोत्सव से की जा सकती है। (निसबेत 1968, 526)

आर.एन.बेलाह ‘‘अमेरिका में नागरिक धर्म‘‘ नामक अपने लेख में (1967ः 1-20) ने लिखा है कि ‘‘ईसाई धर्म एक राष्ट्रीय धर्म है और चर्च तथा सिनेगाग (यहूदी उपासना गृह) ‘‘अमेरिकी जीवन पद्धति के आम धर्म की जरूरत को पूरा करते हैं। कुछ लोगों ने ही यह महसूस किया कि अमेरिका में चर्च के समानान्तर और यहां तक की उससे बिलकुल अलग एक विस्तृत और संगठित नागरिक धर्म मौजूद है।‘‘

निसबेत का मानना है कि अमेरिकी नागरिक धर्म के पास एक विस्तृत और मान्यता प्राप्त सिद्धान्त हैं। जिसमें धर्म सिद्धान्त, धर्मोपदेश और हठधर्मिता भी शामिल है। अन्य देशों की तरह अमेरिका में भी अमेरिकी राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय नागरिक एकता के प्रतीक चिहनों के साथ कई जटिल अनुष्ठान जुड़े हुए हैं।

वे कहते हैं कि इस काल के दौरान आमतौर पर प्रोटेस्टेन्ट मान्यता के अनुयायियों ने कैथोलिकों के विश्वास के प्रतीकों जैसे ईश्वर की मूर्तियों, भित्ति चित्रों, चित्र कलाओं आदि की निन्दा की पर राष्ट्रीय समासेहों में इस प्रकार की साज-सज्जा की आलोचना उन्होंने कभी नहीं की। उनका कहना है कि अमेरिका के सभी सार्वजनिक चैराहों पर दिवंगत राजनीतिक नेताओं की मूर्तियां देखने को मिलती हैं। तत्कालीन सभी यूरोपीय देशों के संबंध में भी यह तथ्य सही है।

हमारे देश में भी ऐसा देखने को मिलता है। स्वतंत्रता के बाद महात्मा गांधी, नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने भारत के लिए अपने प्राणों की आहूति दी थी, इन सभी की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया और उन्हें सम्मान प्रदान किया गया। वे हमारे राष्ट्र के स्वतंत्रता आंदोलन की ऐतिहासिक घटना की जीते जागते मिसाल बन गये।
बेलाह ने अमेरिकियों द्वारा सामुदायिक जीवन में सार्वजनिक अवसरों पर धर्म के उपयोग का परीक्षण किया है। उसने अमेरिका में नागरिक धर्म के महत्व को प्रतिपादित करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपतियों के उद्घाटन भाषण का विश्लेषण किया है। उसने बताया है कि अमेरिका के संस्थापकों खासकर कुछ आरम्भिक राष्ट्रपतियों ने उस समय प्रचलित नागरिक धर्म को एक नया स्वरूप और स्तर प्रदान किया। इस धर्म में ईसाईयत के भी कुछ तत्व थे पर यह ईसाई धर्म नहीं था। जार्ज वाशिंगटन, डम्स, जेफरसन से लेकर बाद तक के राष्ट्रपतियों ने कभी भी अपने उद्घाटन भाषण में ईसा मसीह का नाम नहीं लिया पर यह गौर करने की बात है कि इनमें से कोई भी राष्ट्रपति अपने भाषण में ईश्वर का नाम लेने से नहीं चूका।

बेलाह के अनुसार, नागरिक धर्म का ईश्वर मात्र “एकेश्वरवादी‘‘ नहीं है बल्कि यह मोक्ष और प्रेम के प्रश्न की अपेक्षा व्यवस्था कानून और लोगों के अधिकार से अधिक गम्भीरतापूर्वक जुड़ा हुआ है। (बेलाह 1967ः1-20)

बेलाह में 20 जनवरी 1961 को केनेडी के उद्घाटन भाषण का परीक्षण करते हुए यह पाया कि केनेडी ने दो या तीन स्थानों पर ईश्वर का नाम लिया था। अमेरिका के अन्य राष्ट्रपतियों के भाषण में भी ईश्वर का इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है।

बेलाह कहता है कि ईश्वर शब्द का उल्लेख निश्चित रूप से अमेरिका जैसे धर्मनिरपेक्ष समाज में धर्म की भूमिका को दर्शाता है। इस भाषण और आम जनता के बीच ईश्वर का यह उल्लेख केवल यही बताता है कि यहां धर्म का केवल समारोहिक महत्व है। यह महत्वपूर्ण सामाजिक राजनीतिक मसलों पर बात करने के पूर्व राष्ट्रपति द्वारा समुदाय के अप्रबुद्ध लोगों को संवेदनात्मक रूप से तुष्ट करने के लिए किया गया एक प्रयास भर है।

बेलाह का कहना है कि इन क्रियाकलापों को देखकर कोई यह गलत अनुमान भी लगा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को अपने भाषण में ईश्वर का हवाला देना जरूरी होता है। अन्यथा उसके वोट कम होने की आशंका पैदा हो सकती है। अमेरिकी राष्ट्रपति के पद के लिए धार्मिकता का दिखावा एक मौखिक योग्यता है।

केनेडी के भाषण और उसमें ईश्वर के उल्लेख से अमेरिका में धर्म के अवशेष का पता चलता है। इससे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न सामने आते हैं। मसलन किस प्रकार नागरिक धर्म एक तरफ राजनीतिक समाज और दूसरी तरफ निजी धार्मिक संगठन से जुड़ा हुआ है। अपने भाषण में राष्ट्रपति ने सामान्य अर्थ में ईश्वर का उल्लेख किया है। हालांकि वे खुद कैथोलिक ईसाई धर्म को मानने वाले थे लेकिन उन्होंने कभी भी ईसा मसीह का नाम नहीं लिया।

बेलाह का कहना है कि केनेडी ने ऐसा इसलिए किया कि ईसाई धर्म या किसी भी धर्म का खास उल्लेख करना राष्ट्रपति के अपने निजी जीवन से सम्बन्ध रखता है। इसका उसके सार्वजनिक कार्य से कोई संबंध नहीं है। इस प्रकार धर्म और राज्य के अलगाव का सिद्धांत धार्मिक विश्वास और संगठन की स्वतंत्रता को आश्वासित करता है परन्तु इसके साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र को बिल्कुल अलग-थलग कर देता है जो निश्चित रूप से एक निजी कार्य है। इसे राजनीति जैसे सार्वजनिक कार्य से भी अनिवार्य तौर पर अलग किया जाता है।

इसके बावजूद राष्ट्रपति के भाषण में ईश्वर के संदर्भ को इस रूप में न्यायोचित ठहराया जा
से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रत्येक नागरिक के खास धार्मिक विश्वास के बावजूद धार्मिक विश्वास को लेकर अमेरिकावासियों की एक आम धारणा भी है। अमेरिकी संस्थाओं के विकास में इन आम धारणाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है और इनके द्वारा राजनीतिक क्षेत्र सहित अमेरिकी जीवन की संपूर्ण रचना के लिए, ये धार्मिक आयाम प्रदान करती हैं।

बेलाह का कहना है कि अमेरिकी समाज में पाया जाने वाला यह सार्वजनिक धार्मिक आयाम एक प्रकार के विश्वासों, प्रतीकों और अनुष्ठानों के माध्यम से व्यक्त होता है जो समग्र रूप से अमेरिकी नागरिक धर्म का निर्माण करता है। इस संदर्भ में देखें तो राष्ट्रपति का उद्घाटन एक महत्वपूर्ण समारोह है जो राष्ट्रपति के सर्वोच्च राजनीतिक प्राधिकार की धार्मिक वैधता की संपुष्टि करता है।

केनेडी ने अपने भाषण में कहा था कि “मैं आपके और परम परमात्मा के सामने वही शपथ लेता हूँ जो हमारे पूर्वजों ने लगभग पौने दो सौ वर्ष पहले ली थी।‘‘ यहां शपथ का मतलब पद की शपथ है और इसके साथ-साथ संविधान के प्रति आस्थावान रहने का भी संकल्प है। इस भाषण से पता चलता है कि संविधान के अलावा राष्ट्रपति न केवल लोगों के प्रति बल्कि ईश्वर के प्रति भी निष्ठावान है।

इस प्रकार बेलाह का मानना है कि अमेरिकी राजनीतिक सिद्धांत में सम्प्रभुता जनता में निहित है पर अन्तर्निहित रूप में और अक्सर स्पष्ट रूप में आखिरी संप्रभुता ईश्वर को समर्पित की गई है। इससे पता चलता है कि लोगों की इच्छा अपने आप में गलत और सही का मानदंड नहीं है । एक ओर उच्चतर मानदंड है जिसके अनुरूप इस इच्छा की जाँच की जा सकती है। यह स्वीकार किया गया है कि लोगों की इच्छा संभवतः गलत हो सकती है। इस प्रकार राष्ट्रपति अपनी निष्ठा उच्चतर मानदंड अर्थात ईश्वर को समर्पित करता है।

बेलाह के अनुसार राष्ट्रपति का पूरा भाषण अमेरीकी परम्परा में व्याप्त अन्तर्चेतना या अमेरिकी परम्परा के अर्थ को उजागर करता है। इस चेतना के अनुसार सभी लोग सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से ईश्वर की इच्छा की पूर्ति के लिए पृथ्वी पर आये हैं। यह अमेरिका के संस्थापकों को प्रेरित करने वाला तत्व रहा है और आज भी प्रत्येक पीढ़ी में यह भावना मौजूद है।

बोध प्रश्न 2
प) यूनान और रोमन नगर-राज्यों में नागरिक धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं पर संक्षेप में विचार कीजिए। अपना उत्तर लगभग दस पंक्तियों में दीजिए।
पप) फ्रांसीसी क्रांति के दौरान के बुद्धिजीवियों ने परम्परागत विश्वासों और विचारों को क्यों नकार दिया? क्या वे अधार्मिक थे? लगभग आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) फ्रांसीसी क्रांति के बाद ही सही मायने में राष्ट्रवाद धर्म का रूप ले सका । लगभग आठ पंक्तियों में इसकी व्याख्या कीजिए।
पअ) अमेरिकी राज्य – व्यवस्था और समाज में व्याप्त सार्वजनिक धार्मिक आयाम को निजी धार्मिक आयाम से अलग किया जा सकता है। लगभग दस पंक्तियों में इसकी चर्चा कीजिए।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
प) यूनान में और बाद में रोमन नगर-राज्यों में सर्वप्रथम परिवार में धार्मिक प्रथाएं सम्पन्न की जाती थीं और इसके बाद नगर सरकार या नगर-राज्यों का स्थान आता था । इन नगर-राज्यों के नागरिकों के प्रत्येक परिवार की अपनी पवित्र अग्नि और देवी देवता होते थे। इस पवित्र अग्नि के रखरखाव, सम्मान, उपयोग और पुनर्जीवन से सम्बद्ध अनुष्ठानों को सम्पन्न कराने का उत्तरदायित्व पारिवारिक इकाई का था। हालांकि केवल समृद्ध और सम्पन्न लोग अर्थात मालिक या भूपति ही नागरिक राज्य के अधिकारिक नागरिक माने जाते थे और इस नागरिक धर्म में भाग लेने का अधिकार केवल उन्हें ही था। गंवार और साधारण जनता नागरिक की कोटि में नहीं आते थे और वे पारिवारिक देवता को खुश करने के अनुष्ठान में भाग नहीं ले सकते थे। कभी-कभी वे अपने मालिक के नौकर के रूप में धार्मिक समारोहों में हिस्सा लेते थे।

पप) फ्रांसीसी क्रांति के बुद्धिजीवियों ने परम्परागत विश्वासों और विचारों को नकार दिया क्योंकि ज्ञानोदय के इस काल में एक-एक विचार पर प्रश्न चिह्न लग गया। किसी भी चीज को ज्यों का त्यों या ईश्वर की देन समझकर स्वीकार नहीं किया गया। केवल सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विचारों का ही आलोचनात्मक मूल्यांकन नहीं हुआ बल्कि परम्परागत ईसाई धर्म के धार्मिक विचारों पर भी प्रश्न चिहन लगाया गया। इसके बावजूद हेज का कहना है कि इसका मतलब यह नहीं है कि इन बुद्धिजीवियों में कोई धार्मिक चेतना थी ही नहीं। इन लोगों ने ‘‘तर्क‘‘, ‘‘प्रगति‘‘, ‘‘मानवीयता‘‘, ‘‘सर्वोच्च सत्ता‘‘ और इसी प्रकार की बहुत सी अवधारणाओं के प्रति एक सम्मान भाव प्रकट किया था जिसकी प्रकृति धार्मिक थी।

पपप) फ्रांसीसी क्रांति के दौरान राष्ट्रवाद सही अर्थों में धर्म बना क्योंकि क्रांति के दौरान ही क्रांतिकारियों ने राजनीतिक राज्य की आराधना शुरू की। खुद क्रांति की भी पूजा हुई और नया संविधान और इसके प्रतीक नागरिक धर्म के अंग बन गये । नागरिक राज्य के अधीन राष्ट्रीय पुजारियों का उदय हुआ जिन्हें राज्य अधिकारी का स्तर प्राप्त था ।

पअ) अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था और समाज में पाये जाने वाले सार्वजनिक धर्म से निजी धर्म को अलग किया जा सकता है। सार्वजनिक धर्म का उद्देश्य राष्ट्र और नागरिकता का सम्मान करना है और इसमें इससे सम्बन्धित धार्मिक अनुष्ठान और समारोह शामिल हैं जबकि निजी धर्म प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति किसी खास धर्म का सदस्य है।