प्रेत आत्मा क्या होती है | प्रेत और आत्मा में अंतर किसे कहते है अर्थ मतलब बताइए soul and spirit in hindi

difference between soul and spirit in hindi प्रेत आत्मा क्या होती है | प्रेत और आत्मा में अंतर किसे कहते है अर्थ मतलब बताइए ?

प्रेत एवं आत्माएं (Spirits and Souls)
बिरहोर के लिए ऊपर, नीचे अथवा चारों तरफ की हर चीज या तो प्रेत या अलौकिक तत्वों द्वारा ही प्राणवान है। प्रत्येक जीव आत्मा या आत्माओं द्वारा प्राणवान है। प्रेत अनेक प्रकार की चीजों में निवास करते हैं। उनमें से अधिकांश निष्क्रिय होते हैं किन्तु फिर भी सक्रिय प्रेतों तथा ऊर्जाओं की संख्या अच्छी खासी है। इनमें सबसे प्रमुख प्रेत उनके मूल देश की पहाड़ियों, जंगलों तथा झरनों के प्रेत हैं। इसके अलावा तेजी से बढ़ती संख्या में मृत व्यक्तियों के प्रेत हैं। सभी को भोजन और आहार चाहिए। बिरहोर प्रेतों, जिन्हें प्रार्थना तथा बलि के जरिये शांत किया जा सकता है, तथा व्यक्तित्वहीन शक्तियों अथवा ऊर्जाओं, जिन्हें मंत्र, धमकी या इसी तरह के अन्य उपायों द्वारा नियंत्रित, दूर किया अथवा खत्म किया जा सकता है, इनके बीच के भेद को समझते हैं। इन सभी को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा जा सकता है:
क) साधारण प्रेत (General Spirits)
1) सिंगबौंगा अथवा सर्वोच्च प्रेत, जिसका प्रतीक चिह्न सूर्य है, जो कि सामान्यतः एक उदासीन दर्शक अथवा गवाह के रूप में रहता है और आमतौर पर जो मनुष्य को कोई हानि नहीं पहुंचाता बल्कि कभी-कभी बुराई से उसकी रक्षा भी कर सकता है।
2) बुढ़ी माई अथवा प्रेत मां, काली माई, देवी माई तथा सिंदूर से रंगे एक लकड़ी के टुकड़े द्वारा मूर्त रूप में प्रकट होने वाली अन्य देवियाँ भाग्य, संतान तथा भोजन प्रदान करने वाली हैं।
3) चंडी तथा शिकार के अन्य प्रेत । किसी पेड़ के नीचे एक चट्टान अथवा पत्थर के टुकड़े को चंडी तथा उसके सहायक प्रेतों के निवास स्थान के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया जाता है, जो कि शिकार का प्रेत है। बंदरबीर तथा हनुमानबीर बंदरों को पकड़ने में सफलता दिलाते हैं।

इन प्रेतों में से कुछ हिन्दू सर्वेश्वरवाद से भी संबद्ध हैं, उदाहरण के लिए चण्डी, काली माई, हनुमान, महादेव आदि।
4) महाली छाती, एक स्त्री प्रेत, जंगली बिल्ली तथा गोधिका छिपकली जैसे छोटे शिकारों की संरक्षक देवी, यह उन जानवरों का शिकार करने में सफलता दिलाती है, जिन्हें बरसात के मौसम में पकड़ा जाता है।
ख) कुल कबीले के प्रेत (Clan Spirits)
1) ओरा-बौंगा अथवा बुरू-बौंगा, विभिन्न पहाड़ियों के प्रेत हैं जो कि विभिन्न बिरहोर कबीलों के मूल धरों के निर्माण करने वाले के रूप में प्रतिष्ठित हैं, रोगों से मुक्ति दिलाने वाले, जिन्हें प्रकृति के ऊपर कुछ शक्तियां प्राप्त हैं, जैसे- वर्षा और तूफान लाने व रोकने की शक्ति।
2) लरन्किया प्रेत, लड़ाकू जिसकी सहायता से प्राचीन काल में कबीले के पूर्वजों ने अन्य कबीलों से लड़ाइयाँ लड़ी थीं। युद्ध अभियानों का आयोजन किया था।
3) मनीता अथवा लगने वाला प्रेत जैसे- माई अथवा मेहामाया, महादेव तथा अनेक दूसरे, जिन्हें या तो छोटी फूस की झोपड़ी अर्थात बौंगा-ओरा में अथवा परिवार के टाण्डा के साधारण (जामा) स्थान से अलग तौर पर प्रतिष्ठित किया जाता है। मनीता को उस समय बनाया जाता है, जबकि महामारी फैल रही हो तथा नाया द्वारा बीमारी रोके जाने के बाद वायदे के अनुसार बलि चढ़ा दी जाती है।
ग) परिवार के प्रेत (Family Spirits)
1) हपरोम अथवा पुरखों के प्रेत, बिरहोर परिवारों के उन मृत व्यक्तियों के प्रेत जिन्हें उम्बुल-अदेर संस्कार द्वारा झोपड़ी के भीतरी मंडप में स्थापित किया जाता है । यद्यपि वे आमतौर पर अपने उत्तराधिकारियों को बुजुर्गों वाला संरक्षण प्रदान करते रहते हैं, फिर भी मुसीबत की घड़ियों में उनसे मशवरा नहीं लिया जाता और न ही उन्हें भविष्यवाणी करने की शक्ति प्राप्त है।
2) परिवार का मनीता भूत अथवा लगने वाला भूत उन प्रेतों से मिलकर बनता है जो कि परिवार पर बार-बार पड़ने वाली विपत्तियों व दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं।
घ) समूह-प्रेत अथवा संगी भूत (Group Spirits or Sangi Bhut): जाहेर बुरी, माई, काली माई, देवी दरहा, महादेव तथा अनेक दूसरे देवी-देवताओं को संगी भूतों में शामिल किया गया है। ये वे प्रेत हैं, जिनके लिए जनवरी-फरवरी के महीने में साल में एक बार समूचे टाण्डा अथवा भोजन-समूह द्वारा बलि चढ़ाई जाती है साथ ही जब टाण्डा में या उसके आसपास के क्षेत्रों में कोई महामारी फैलती है, तब भी बलि दी जाती है।
च) व्यक्तिगत संरक्षक प्रेत अथवा शक्ति भूत (Individual Tutelary or Sakti Bhuts)ः केवल मती ही अपने भीतर महादेव, माई देवी, दुर्गा आदि जैसे किसी किसी विशिष्ट देवी-देवता को शक्ति-भूत के रूप में आत्मसात करे रहता है। शक्ति भूतों को अरहईया भूतों की संज्ञा दी गई है। वे लोगों को जान से मार सकते हैं अथवा अन्य कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं।
छ) मामूली प्रेत अथवा निंगच्चा भूत (Minor Spirits or Ningchha Bhut): इस श्रेणी में मानव प्रेत आते हैं जिन्हें हापरोमों की श्रेणी से बाहर रखा गया हो जैसे- उन आदमियों के भूत अथवा प्रेत जिनकी पत्नियां अपने मासिक धर्म की अवधि में मर गई हो, किचिन अथवा मासिक धर्म के दौरान मरने वाली औरतों के प्रेत, ब्रह्म भूत अथवा अविवाहित लोगों के प्रेत हैं जिन्हें रखैलपन के अंतर्गत नौकरानी बना कर रखा गया हो, मुआ अथवा सांप के काटने से मरने वाले लोगों के प्रति, चुरिन अथवा गर्भवस्था के दौरान मरने वाली औरतों के प्रेत, तथा तात्विक प्रेत जैस- सतबाहिनी अर्थात सात बहने तथा बिन्दी हरा । ये डोलते रहने वाले प्रेत हैं जिनका कोई निश्चित निवास नहीं है।
ज) औरतों का मनीता भूत (Manita Bhut of Women): सामान्यतः केवल पुरुष ही प्रेतों को बलि चढ़ाने का काम करने तथा उनके साथ कथित व्यक्तिगत संबंध रखने के पात्र हैं। कुछ मामलों में औरतें भी कुछ प्रेतों को बलि चढ़ाने का काम कर सकती हैं। यह विशेषतौर पर उस समय ही होता है, जबकि वह किसी ऐसे जानवर अथवा मुर्गी के सिर का मांस खा ले जिसकी किसी प्रेत के समक्ष बलि दी गई हो । चूंकि इससे वह प्रेत उस पर लग जाता है और उसके तथा उसके परिवार के लिए मुसीबतों का कारण बन जाता है। अतः वह उस प्रेत को मनीता के रूप में अपना लेती है और समय-समय पर उसके समक्ष आवश्यक बति चढ़ाती रहती है।
झ) आत्माएं अथवा उम्बुल (Souls or Umbul): जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उम्बुल अथवा मृत व्यक्ति की छाया आत्माओं के संसार में प्रवेश कर जाती है। एक आदमी की दो आत्माएं होती हैं- एक पुरुष की और एक स्त्री की। वे जीवन की भांति मृत्यु होने पर ही एकबद्ध रहती हैं और जब वे मृत्यु द्वारा वर्तमान शरीर का त्याग कर देती हैं, तो वे पुनः किसी दूसरे शरीर में एक साथ प्रवेश कर जाती हैं। जब कोई व्यक्ति सपना देखता है, तो पुरूष की आत्मा विभिन्न व्यक्तियों व स्थानों का भ्रमण करने के लिए शरीर से बाहर निकल जाती है जबकि स्त्री वाली आत्मा शरीर का दायित्व लेकर तैनात रहती है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि जब कोई बिरहोर अपनी झोपड़ी के बाहर चला जाता है, तो उसकी पत्नी झोपड़ी का दायित्व संभाले रखती है। जब तक पुरुष आत्मा वापस लौट आती है, तब तक शरीर को सोने की अवस्था में माना जाता है। किन्तु जब उसे लौटने में जरूरत से ज्यादा देर हो जाती है, तो स्त्री आत्मा भी शरीर के बाहर निकलकर अपने साथी को खोजने चल पड़ती है और इस तरह शरीर मृत हो जाता है। कुछ मतियों को, अपनी पारिवारिक आत्माओं की सहायता से भटकती आत्माओं को वापस बुला लेने और इस तरह जीवन को वापस लाने की शक्ति प्राप्त होने की मान्यता है। जब किसी तूफान में कोई बिरहोर जंगल में मर जाता है, तो संभावना यह रहती है कि उसकी मौत अस्थायी है अतः किसी तूफान की चपेट में आकर मारे गए किसी बिरहोर के अंतिम संस्कार को कुछ बिरहोर उसकी मृत्यु के तीन-चार दिन बाद तक के लिए स्थगित कर देते हैं।

 व्याख्या रहित धर्म (Religion without Explanation)
बिरहोर धर्म जैसा कि हमने देखा, विश्व में प्रेत शक्तियों की उपस्थिति में जड़ जमाये बैठी समझ पर आधारित है। जीवन की सबसे प्रमुख समस्या व्यक्तिगत एवं सामूहिक कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए इन शक्तियों से संबंध रखना है। बिरहोर समाज द्वारा प्राप्त किया गया समाधान, अधिक निश्चित तथा समर्थ निजी प्रेतों के साथ साहचर्य एवं संवाद कायम करना तथा अधिक अनिश्चित तथा व्यक्तित्वहीन प्रेतों का मुकाबला करने और संस्कारों, समारोहों, मंत्रों व निषेधों के जरिये नियंत्रण, निष्कासन अथवा बचाव के तरीके अपनाना है। किन्तु जनजातीय धर्म प्राकृतिक घटनाओं तथा जीवन की गतिविधियों का अंतिम कारण नहीं माना जाता है।

बिरहोरों का सर्वोच्चतम प्रेत, सिंग-बोंगा, विश्व की रचना करने वाला है किन्तु वह विश्व का निर्देशन करने में कोई सक्रिय भूमिका नहीं निभाता। साथ ही मनुष्यों के मामलों में भी सक्रिय नहीं रहता। अन्य प्रेत, मित्रतापूर्ण अथवा गैर-मित्रतापूर्ण, सौभाग्य एवं दुर्भाग्य के स्रोत हैं। किन्तु किसी भी प्रेत की परिकल्पना एक ऐसे ईश्वर के रूप में नहीं की गई है, जिसे ईसाई धारणा के अनुसार विश्व की रचना करने तथा उस पर शासन करने वाला माना जाता है और जो मनुष्यों को पुरस्कार अथवा सजा सुनाता है।

बिरहोर प्रेतों को मनुष्यों जैसी भूख एवं इच्छाओं के अनुरूप ढाला गया है। वे जानवर के मांस के भोजन तथा उसकी नियमित आपूर्ति के लिए उत्सुक रहते हैं। फिर भी, प्रेत-शक्तियों को एक अलग श्रेणी का दर्जा दिया गया है। यह निश्चित तौर पर पवित्रता के जनजातीय दृष्टिकोण की तरफ संकेत करता है किन्तु पवित्र अथवा अलौकिक की कोई परिघटनात्मक परिभाषा नहीं देता। दूसरे शब्दों में, जनजातीय धर्मों के पीछे कोई धर्मशास्त्र अथवा धार्मिक दर्शन का स्वरूप मौजूद नहीं है।

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परिघटनात्मकता: इसका अंग्रेजी शब्द “फिनामिनोलौजी‘‘ ग्रीक शब्द “फिनीन‘‘ से लिया गया है, जिसका अर्थ है-‘‘दिखाना” । इसी शब्द से ‘‘फिनौमिनन अथवा परिघटना‘‘ शब्द बना है जिसका अर्थ है ‘‘वह जो प्रकट होती है ।‘‘ इसी दृष्टि से, फिनोमिनोलौजी को शाब्दिक अर्थों में परिघटना अथवा प्रकट होने वाली चीजों के अध्ययन के तौर पर समझा जा सकता है। इसलिए इसके अंतर्गत पारंपरिक दर्शनशास्त्र एवं विज्ञान का विशाल क्षेत्र भी शामिल है। 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक, एडमंड हसर्ल का नाम इसी शास्त्र के साथ जुड़ा हुआ है।

आप फिनोमिनोलौजी तथा समाजशास्त्र के साथ इसके संबंधों के बारे में और अधिक अध्ययन अपने स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में करेंगे।

बिरहोर लोगों की अलौकिक शक्तियों की विविधता में विश्वास की भी व्याख्या नहीं हो पाई। है। धर्म की और अधिक जटिल अवस्थाओं में, विश्व को चलाने वाली शक्तियों की परिकल्पना एक ही ईश्वर के रूप में की गई है, हालांकि उसके अनेक रूप हैं बिरहोरों में, जैसा कि हमने देखा, स्वयं को ध्यान मग्न अवस्था में ले जाकर एक आदमी प्रेतों की दुनिया के साथ सीधे संवाद कर सकता है। मती किसी खास प्रेत की इच्छाओं व मांगों के बारे में जान लेता है और मनुष्य तथा प्रेत के बीच पारस्परिक समझ विकसित कर लेता है। नाया

प्रेतों के साथ एक कामचलाऊ संबंध कायम करने में अपनी जनजाति के लोगों की सहायता करने के लिए कर्मकाण्ड कराता है। साधारण मनुष्य भी सोते समय प्रेतों की दुनिया में पहुँच जाता है। और सभी बिरहोर बलि दिए गए पशु का भोजन करने से प्रेत के साथ एकाकार हो जाते हैं। फिर भी वे अद्वैतवाद के सिद्धांत के रचयिता नहीं बन पाए अर्थात यह विश्वास कि ईश्वर एक है, जैसा कि हिन्दू दार्शनिक शंकर का मानना था।

बोध प्रश्न 2
प) किसी भी एक साधारण प्रेत की व्याख्या लगभग छह पंक्तियों में कीजिए।
पप) बिरहोरों द्वारा पहचाने गए प्रेतों में से वे कोन-सी दैवीय शक्तियाँ हैं, जो कि हिन्दू देवी-देवताओं से संबद्ध हैं? उन्हें लगभग दो पंक्तियों में सूचीबद्ध कीजिए।
पपप) बिरहोरों द्वारा पूजे तथा शान्त किए जाने वाली प्रेत-संसार की प्रकृति क्या है? लगभग छह पंक्तियों में विवेचन कीजिए।
पअ) बिरहोर धर्म एक तत्व-मीमांसा रहित धर्म है। लगभग दस पंक्तियों में विवेचना कीजिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) बिरहोरों द्वारा विश्वास किए जाने वाले सामान्य प्रेतों में से एक है सिंगबौंना अथवा सर्वोच्च प्रेत । इस प्रेत का प्रतीक सूर्य है और सामान्यतः इसे एक निष्क्रिय दर्शक माना जाता है जो कि साधारणतया मनुष्यों को कोई हानि नहीं पहुंचाता और कभी-कभी बुराई से उनकी रक्षा कर सकता है।

पप) बिरहोरों द्वारा मान्यता प्राप्त कुछ देवी-देवता हिन्दू देवी-देवताओं से संबद्ध हैं, जैसे देवी, काली मां, चंडी, हनुमान, सतवाहिनी।

पपप) कुछ प्रेत निष्क्रिय हैं तथा कुछ सक्रिय जो खासतौर पर नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे प्रेत जो कि मनुष्यों को नुकसान नहीं पहुंचाते तथा उसकी रक्षा कर सकते हैं, प्रार्थना तथा बलियाँ चढ़ाकर शान्त कर दिए जाते हैं। वे जिन्हें प्रकृति पर कुछ शक्तियां प्राप्त हैं, और मनुष्यों को हानि पहुंचा सकते हैं, मंत्रों, धमकियों अथवा ऐसे ही अन्य तरीकों से काबू कर लिए जाते हैं, हटा दिए जाते हैं अथवा शान्त कर दिए जाते हैं।

पअ) बिरहोर धर्म को व्याख्यारहित धर्म कहा जाता है क्योंकि यद्यपि बिरहोर अनेक प्रेतों अथवा अलौकिक शक्तियों में विश्वास करते हैं, किन्तु इन शक्तियों की अभी तक कोई व्याख्या नहीं की गई है। वे सर्वोच्च प्रेत सिंहबौंगा में यकीन करते हैं जो कि सृष्टि का रचयिता है। किन्तु यह रचयिता विश्व के संचालन में सक्रिय भाग नहीं लेता अथवा मनुष्यों के मामलों में भागीदारी नहीं करता। इस प्रेत अथवा अन्य किसी प्रेत को, चाहे वह भाग्य की दृष्टि से अच्छा हो या बुरा, इसकी तुलना विश्व के रचयिता एवं शासक की ईसाई समझ पर आधारित ईश्वर की अवधारणा के साथ नहीं की जा सकती। बिरहोर धर्म में ईश्वर के अस्तित्व की धर्मशास्त्रिय व्याख्या, अथवा ज्ञान, पवित्रता अथवा पवित्रता के सिद्धांत की दृष्टि से इसमें किसी सैद्धांतिक व्याख्या का अभाव है।