परिवार किसे कहते हैं | समाज में परिवार की परिभाषा क्या है , अर्थ मतलब विशेषता कार्य प्रकार family in hindi

family in hindi meaning and definition परिवार किसे कहते हैं | समाज में परिवार की परिभाषा क्या है , अर्थ मतलब विशेषता कार्य प्रकार ?

परिवार
परिवार एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण सामाजिक इकाई है जिसमें सदस्य पारस्परिक बंधनों, भूमिकाओं और बाध्यताओं के तंत्र में रहते हैं, अर्थात् यहाँ बच्चे जन्म लेते हैं, यहाँ छोटे बच्चों का पोषण होता है तथा उनका समाजीकरण होता है (अर्थात् परंपरा, संस्कृति, धार्मिक और सामाजिक मूल्यों का संचरण होता है) ताकि वे समाज में विभिन्न भूमिकाएं निभा सकें। परिवार पीढ़ियों को आगे बढ़ाने तथा निजी संपत्ति के हस्तांतरण का काम करता है। प्रजनन में परिवार की भूमिका वंशक्रम और धार्मिक निर्देशों/प्राथमिकताओं के विन्यास से जुड़ी होती है। वंश दो प्रकार के होते हैं: पितृवंश परंपरा और मातृवंश परंपरा। पितृवंश परंपरा की वंशक्रम प्रणाली में परिवार की संपत्ति पुरुष संतान द्वारा हस्तांतरित होती है, उदाहरण के लिए पिता से पुत्र को। मातृवंशक्रम प्रणाली में संपत्ति का हस्तांतरण महिला द्वारा होता है जैसे माता से पुत्री को।

धार्मिक प्रथाओं की विभिन्न परंपराओं में शोधकार्य, ‘‘शक्ति‘‘ (देवियों) की उपासना की मातृसत्तात्मक विरासत और विश्वास यह दिखाते हैं कि वंशक्रम का पितृवंश परंपरा का स्वरूप देवताओं का अस्तित्व और महिलाओं की आजादी पर नियंत्रण आदि आर्य परंपराएँ थीं, जिन्हें उदार देशीय परंपराओं पर थोपा गया। आजकल केरल के नायर समुदाय, उत्तर-पूर्व के खासी, पूर्वी भारत के गारो और लक्ष्यद्वीप की कुछ जनजातियों को छोड़कर अन्य सभी समुदायों में पितृवंश पंरपरा की वंशक्रम प्रणाली प्रचलित है। भारत के सभी भागों में देवी माताओं की उपासना की जाती है।

पितृवंश परंपरा से निकटतम रूप से जुड़ी हुई पतिस्थानिक प्रथा है, अर्थात् विवाह के बाद पति के गाँव/निवास/परिवार में महिला के निवास का स्थानांतरण। पुत्र अपने पिता के साथ रहते हैं। इसीलिए संपत्ति कानून पुत्रियों को अचल संपत्ति के अधिकार से वंचित करते हैं, चूंकि ऐसी संपत्ति विवाह होने पर उनके पति के परिवार को चली जाएगी इसलिए महिलाओं को चल संपत्ति (जैसे जेवरात) का कुल हिस्सा दिया जाता है जिसे दहेज के नाम से जाना जाता है। भौतिक संसाधनों से जुड़ यही कारण है कि लड़की का जन्म चिंता का विषय माना जाता है।

इसके अलावा, धार्मिक ग्रंथ विशेषकर हिंदू धर्म में पुत्रों को वरीयता दी गई है। मनु की संहिता के अनुसार व्यक्ति केवल अपनी पत्नी की पवित्रता और इसके माध्यम से अपने पुत्रों की पवित्रता की रक्षा करने से ही योग्यता प्राप्त कर सकता है। पिता की चिता को अग्नि देने के लिए तथा श्राद्ध द्वारा पैतृक वंशजों की आत्मा की शांति के लिए पुत्र का होना आवश्यक है और इससे पिता और पैतृक वंशज मोक्ष (पुनर्जन्म से मुक्ति) प्राप्त कर सकते हैं। महिलाओं की भूमिका पुरुष वंशक्रम निरंतरता के लिए पुत्र को जन्म देना है ताकि आनुष्ठानिक कार्य सुविधापूर्वक होते रहें। पुरुष और महिला भूमिकाओं का यह पदक्रम बच्चों के देखभाल, शिक्षा, आजादी, अधिकार और न्याय के मामले में पुत्री की उपेक्षा की जाती है। सद्भावपूर्ण, समतावादी और सहमति की ऐसी इकाई के रूप में परिवार जो सामाजिक व्यवस्था बनाए रखता है, ऐसे परिवारों के महिलाओं से संबंधित कई प्रेक्षणों में समाजशास्त्री अंधकार में ही रहे हैं। परिवार में महिलाओं के अनुभव पुरुषों के अनुभवों से भिन्न होते हैं।

 परिवार के अंतर्गत समाजीकरण
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, समाजीकरण संस्कृति, परंपरा, सामाजिक मूल्यों और प्रतिमानों के हस्तांतरण का कार्य करता है। परिवार में पैतृक समाजीकरण के अलावा विभिन्न अभिकरण, जैसे- स्कूल, समकक्षी समूह, साहित्य और फिल्म प्रारंभिक समाजीकरण और प्रौढ़ समाजीकरण में भूमिका निभाते हैं। लड़कियाँ और लड़के अलग-अलग समाजीकरण पाते हैं जो विषम भूमिकाओं और संबंधों को और स्थायी बनाते हैं। लड़के उच्च शिक्षा और क्षमता प्राप्त करते हैं ताकि वे ‘‘पालनकर्ता‘‘ की भूमिका निभा सकें और लड़कियों को प्रारंभिक अवस्था से ही घरेलू कामकाज में लगाया जाता है, उन्हें कम शिक्षा दी जाती है, कष्ट सहना, कठोर परिश्रम करना और निम्न आत्म-सम्मान विकसित करना सिखाया जाता है। लड़कों को स्थायी प्रस्थिति मिलती है जबकि लड़कियों को परिवार के गौण सदस्यों के रूप में देखा जाता है। बहुत कम परिवारों में लड़कियों को अपना व्यक्तित्व और सम्मान विकसित करने के अवसर दिए जाते हैं।

यह देखा गया है कि स्कूली पुस्तकें माता की छवि ‘‘गृहिणी‘‘ के रूप में चित्रित करती हैं और पिता की ‘‘पालनकर्ता‘‘ के रूप में, लड़के बंदूक, ट्रक के खिलौने से खेलते हैं और लड़कियाँ गुड़ियों से खेलती है। यद्यपि कई स्कूल खेलकूद में लड़कों और लड़कियों दोनों को प्रोत्साहित करते हैं, परंतु खेल के भी नियत धारणाओं वाले विन्यास हैं, लड़के फुटबाल, बास्केट बॉल और क्रिकेट खेलते हैं और लड़कियाँ रस्सी कूदना खेलती हैं तथा सीमित खेलों में शामिल होती हैं। महिलाओं और लड़कियों के बारे में संचार माध्यम के संदेश नियत धारणाओं वाली लैंगिक छवि चित्रित करते हैं ताकि उद्योग अपना मार्केट बनाए रख सके (उप-भाग 19.4.4 में आगे और विस्तार से चर्चा की गई है)।

सोचिए और करिए 1
स्कूल, और परिवार में विभेदक समाजीकरण के बारे में अपने (पुरुष अथवा महिला के रूप में) अनुभव पर एक निबंध लिखिए। अपने निबंध की तुलना अपने अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों के निबंधों से करिए।