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मोतीलाल तेजावत कौन हैं | मोतीलाल तेजावत का उपनाम क्या है का संबंध किस आंदोलन से है motilal tejawat in hindi

मोतीलाल तेजावत का जन्म कब हुआ motilal tejawat in hindi relation मोतीलाल तेजावत कौन हैं | मोतीलाल तेजावत का उपनाम क्या है का संबंध किस आंदोलन से है ?

प्रश्न : मोतीलाल तेजावत कौन थे ?

उत्तर : उदयपुर (कोल्यारी) में जैन परिवार में जन्में मोतीलाल तेजावत ने अत्यधिक करों , बेगार , शोषण और सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध 1921 ईस्वीं में मातृकुण्डिया (चित्तोड़) में आदिवासियों के लिए “एकी आन्दोलन” चलाया। इनके नेतृत्व में नीमडा में (1921 ईस्वीं) एक विशाल आदिवासी सम्मेलन हुआ जिसमें सेना की गोलियों से 1200 भील मारे गए और हजारों घायल हो गए। उनके दिल में शोषित , पीड़ित और बुभूक्षित आदिवासियों के लिए भारी दर्द था। इसी कारण वे जीवन पर्यन्त सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। इन्होने प्रजा मंडल आन्दोलन और भारत छोडो आंदोलन में भाग लिया तथा कई बार जेल गए। अपनी मृत्युपर्यन्त (1963 ईस्वीं) तक निरंतर आदिवासियों के उत्थान के प्रयास करते रहे।
प्रश्न : बिजौलिया किसान आन्दोलन के बारे में जानकारी।
उत्तर : बिजोलिया किसान आंदोलन भारत का प्रथम संगठित , अहिंसात्मक और सफल आन्दोलन था जो 44 वर्षो (1897 – 1941) तक चला। सैकड़ों प्रकार की लागतों , लाग-बाग़ , बैठ बेगार और सामन्ती अत्याचारों और जुल्मों के विरुद्ध भारत में पहली बार संगठित और अहिंसात्मक रूप से विरोध कर अपने हकों की मांग करने की परम्परा बिजौलिया के किसानों ने विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में डाली। माणिक्य लाल वर्मा , रामनारायण चौधरी , जमनालाल बजाज , भागीरथी , तुलसी , विमलादेवी आदि अनेक सक्रीय कार्यकर्ताओं और कृषकों ने सामंतों के जुल्मों और अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया। अंततः 1941 ईस्वीं में किसानों की सभी मांगे मानकर उनकी भूमि उन्हें लौटा दी गयी। यह उनकी शानदार सफलता थी जो अन्य आन्दोलनों के लिए प्रेरणास्रोत बनी।
प्रश्न : बेगूं किसान आंदोलन क्या है ?
उत्तर : बिजोलिया आन्दोलन से प्रेरणा पाकर बेगूं (मेवाड़) के किसानों ने भी अनावश्यक और अत्यधिक करों , लाग-बाग़ , बैठ-बेगार और सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में 1921 ईस्वीं में आन्दोलन शुरू किया। सामन्ती दमन चक्र चलता रहा , यहाँ तक 1923 में किसानों के प्रमुख रुपाजी और कृपाजी सेना की गोलीबारी से शहीद भी हुए , परन्तु किसान अपनी मांगों के लिए जूझते रहे। यद्यपि बेगूं के ठाकुर (अनूप सिंह) ने कृषकों से समझौता करने का प्रयास भी किया परन्तु उसे अमान्य कर बेगूं आंदोलन को बुरी तरह से कुचला गया। मेवाड़ सरकार आंदोलन को दबा नहीं सकी।
प्रश्न : डाबड़ा किसान आन्दोलन का इतिहास क्या है ?
उत्तर : मारवाड़ के सोजत परगने के ‘चन्द्रावल’ गाँव में 1945 में मारवाड़ लोक परिषद के कार्य कर्ताओं ने शांतिपूर्ण सम्मेलन किया। उन पर लाठियों और भालों से हमला किया गया जिनमें अनेक घायल हो गए। 1947 में डीडवाना परगना के ‘डाबडा’ में मारवाड़ लोक परिषद और मारवाड़ किसान सभा का संयुक्त सम्मेलन हुआ। जब यह सम्मेलन आरम्भ हुआ तो उन पर हमला किया गया। जिसमें अनेक लोग घटना स्थल पर ही शहीद हो गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए। इस हत्याकांड की पूरे देश में समाचार पत्रों (बम्बई के ‘वंदेमातरम्’ , जयपुर के ‘लोकवाणी’ , जोधपुर के ‘प्रजा सेवक’ और दिल्ली के ‘हिदुस्तान टाइम्स’) ने निंदा की।