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राजस्थान के प्रमुख युद्ध | राजस्थान इतिहास के प्रमुख युद्ध एवं सम्बंधित प्रश्नोत्तरी ट्रिक पीडीएफ famous battles of rajasthan in hindi

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राजस्थान के प्रमुख युद्ध और उनकी जानकारी या इतिहास –

युद्ध का नाम

वर्ष या सन

युद्ध के बारे में जानकारी

अजमेर का युद्ध

1024

महमूद गजनवी ने अजमेर पर आक्रमण किया और गढ़ बींठली का घेरा डाला परन्तु घायल हो जाने पर वह घेरा उठाकर अनहिलवाडा चला गया।

आनासागर का युद्ध

1135

अरणोराज ने मुसलमान आक्रमणकारियों को हरा कर युद्ध स्थल पर आनासागर (अजमेर) झील का निर्माण करवाया।

गौरी का आक्रमण

1178

आबू के परमार नरेश धरणीवराह धारावर्ष ने मुहम्मद गौरी को हराया। मुहम्मद गौरी ने नाडोल और किराडू लूटा।

कायन्द्रा का युद्ध

1178

मुहम्मद गौरी कायन्द्रा (सिरोही राज्य) में नाडोल के कीर्तिपाल चौहान से लड़ता घायल हुआ।

पृथ्वीराज का गुजरात आक्रमण

1187

तृतीय पृथ्वीराज ने गुजरात पर आक्रमण किया और आबू के परमार शासक धारावर्ष को हराया।

तराइन का प्रथम युद्ध

1191

पृथ्वीराज ने थानेश्वर के निकट तरावड़ी (तराइन) के मैदान में मुहम्मद गौरी को प्रथम बार हराया।

तराईन का द्वितीय युद्ध

1192

तरावड़ी का दूसरा युद्ध हुआ जिसमें पृथ्वीराज मुहम्मद गौरी से हारा तथा मार डाला गया। बीसलदेव के सरस्वती मंदिर को तोडा गया। शहाबुद्दीन गौरी ने अजमेर आकर पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज को गद्दी पर बैठाया परन्तु गौरी के लौट जाने पर पृथ्वीराज का छोटा भाई हरिराज , गोविन्दराज को हरा कर स्वयं को अजमेर का स्वतंत्र शासक घोषित कर , राजगद्दी पर बैठ गया।

चंदावर का युद्ध

1194

कन्नौज का जयचंद मुहम्मद गौरी से इटावा के पास चन्दावर में हारा और मारा गया।

ऐबक का अजमेर आक्रमण

1194

कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर पुनः कब्ज़ा कर चौहानों के स्वतंत्र राज्य को समाप्त किया और वहां मुसलमान शासक नियुक्त किया।

रणथम्भौर का युद्ध

1301

रणथम्भौर पर अलाउद्दीन खिलजी का कब्जा होने पर हम्मीर देव चौहान ने आत्महत्या कर ली।

चित्तोड़ युद्ध

1303

अल्लाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ विजय की तथा अपने पुत्र खिज्र खां को चित्तोड़ का हाकिम अथवा गवर्नर नियुक्त किया और चित्तोड़ का नाम “खिज्राबाद” रखा।

जालौर का युद्ध

1311-12

कान्हड़दे चौहान मारा गया। अल्लाउद्दीन ने जालौर पर कब्जा किया।

भटनेर का युद्ध

1398

भटनेर के भाटी राजपूत शासक राय दूलचन्द ने तैमूर के सामने आत्मसमर्पण किया। भटनेर नगर जला कर भस्म कर दिया गया तथा वहां की जनता को मार डाला गया।

नागौर का युद्ध

1423

राव चूंडा का नागौर के भाटियों , सांखलों और मुसलमानों के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में राव चूंडा वीरगति को प्राप्त हुआ।

सारंगपुर का युद्ध

1437

मेवाड़ के महाराणा कुम्भा तथा मालवा (मांडू) के सुल्तान महमूद खिलजी के मध्य सारंगपुर का युद्ध हुआ , जिसमें राणा सांगा की विजय हुई।

कुम्भलगढ़ का युद्ध

1443

महाराणा कुम्भा और मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी के बीच कुम्भलगढ़ के निकट युद्ध हुआ। महमूद विफल होकर लौटा।

कोसाणा का युद्ध

1492

जोधपुर नरेश सातल का कोसाणा के पास अजमेर के मल्लू खां के साथ युद्ध हुआ। यवन सेनापति घडुला मारा गया। तब से राजस्थान में घडुले के मेले का प्रचलन हुआ।

खातौली का युद्ध

1517

दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी और मेवाड़ के महाराणा सांगा के मध्य बूंदी के निकट “खातोली का युद्ध” हुआ जिसमें महाराणा साँगा की विजय हुई।

बारी का युद्ध

1518

बारी (धौलपुर) के युद्ध में महाराणा सांगा ने इब्राहीम लोदी को हराकर बूंदी राज्य जीता।

गागरोन का युद्ध

1519

मेवाड़ के राणा सांगा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के मध्य गागरोण का युद्ध हुआ जिसमें मालवा सुल्तान की पराजय हुई।

बयाना का युद्ध , फरवरी

1527

मेवाड़ के राणा सांगा और मुग़ल सम्राट बाबर के बीच फरवरी , 1527 में भरतपुर के निकट बयाना का युद्ध हुआ जिसमें बाबर के पक्ष की हार हुई।

खानवा का युद्ध

1527

महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा के मैदान में युद्ध हुआ जिसमें महाराणा सांगा की हार हुई। डूंगरपुर के रावल उदयसिंह रावत , रतनसिंह चुंडावत तथा हसनखां मेवाती आदि वीरगति को प्राप्त हुए। भारत में पहली बार इस युद्ध में बारूद का प्रयोग हुआ।

पहोबा / साहेबा युद्ध

1542

जोधपुर के राव मालदेव और बीकानेर के राव पैतसी के मध्य 1542 ईस्वीं में साहेबा / पहोबा का युद्ध हुआ जिसमें राव मालदेव की विजय हुई।

समेल गिरि का युद्ध

1544

राव मालदेव तथा शेरशाह की सेनाओं के मध्य समेल का युद्ध हुआ। राव मालदेव की सेना इस युद्ध में हारी। शेरशाह ने मारवाड़ , चित्तौड़ , नागौर और अजमेर पर कब्जा किया। इस युद्ध के दौरान शेरशाह ने कहा कि “मैं एक मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत खो बैठता”

हरमाड़ा का युद्ध

1557

हरमाड़ा के युद्ध में मालदेव तथा हाजी खां की सम्मिलित सेना ने राणा उदयसिंह और उसके सहायक मेड़ता के जयमल को पराजित किया। डूंगरपुर के महारावल आसकरण ने महाराणा का साथ दिया।

चित्तौड़ का युद्ध

1568

चितौड़ के किले का द्वार खोला जाकर मुगल सेना से संघर्ष किया गया। अकबर ने चित्तौड़गढ़ पर कब्ज़ा किया। गढ़ के रहने वाले लगभग 30000 निहत्थे व्यक्ति क़त्ल किये गए और चित्तौड़ एक अलग सरकार बनाया गया।

हल्दीघाटी का युद्ध

1576

महाराणा प्रताप और मुग़ल सेनापति मानसिंह कच्छवाहा के मध्य हल्दीघाटी में युद्ध हुआ। मानसिंह विजयी हुआ।

कुम्भलगढ़ का युद्ध

1578

अकबर ने (1577 ईस्वीं) शाहबाज खां के नेतृत्व में एक सेना मेवाड़ की तरफ भेजी। शाहबाज खां ने 1578 ईस्वीं में कुम्भलगढ़ पर आक्रमण किया। वर्ष 1578 और 1579 में शाहबाज खां ने दो बार तथा मेवाड़ पर आक्रमण किया परन्तु यह असफल रहा। 1580 में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को मेवाड़ अभियान पर भेजा परन्तु वह भी सफल नहीं हो सका।

दिवेर का युद्ध

1582

अमरकाव्य के अनुसार 1582 ईस्वीं में राणा प्रताप ने मुगलों के विरुद्ध दिवेर (कुम्भलगढ़) पर जबरदस्त आक्रमण किया। यहाँ का सूबेदार अकबर का काका सेरिमा सुल्तान खां था। इस यूद्ध में मेवाड़ की शानदार सफलता के कारण शेष जगहों से मुग़ल सेनायें भाग खड़ी हुई। कर्नल टॉड ने इस युद्ध को प्रताप के गौरव का प्रतीक माना तथा मेवाड़ का माराथन की संज्ञा दी।

मतीरे की राड़ (युद्ध)

1644

बीकानेर और नागौर के शासकों की सेना के मध्य मतीरे की राड़ (लड़ाई) हुई।

धर्मत का युद्ध

1658

धर्मत (मध्यप्रदेश) के युद्ध में दारा की सेना हारी। शाहपुरा नरेश सुजानसिंह तथा कोटा नरेश मुकन्दसिंह धर्मत के युद्ध में मारे गए।

सामूगढ़ का युद्ध

1658

बूंदी का राव शत्रुशालसिंह सामूगढ़ के युद्ध में मारा गया। शाहजादा दारा सामुगढ़ के युद्ध में औरंगजेब से हारा।

खुजवाहा का युद्ध

1659

जोधपुर नरेश जसवन्तसिंह , खजुवाहा का युद्ध प्रारंभ होने के पूर्व ही शाह शूजा के इशारे पर औरंगजेब की सेना में लूट मार कर मारवाड़ चला गया।

दौराई का युद्ध

1659

औरंगजेब और दारा शिकोह के मध्य दौराई (अजमेर के निकट) का युद्ध हुआ जिसमें दारा हारा। औरंगजेब ने तारागढ़ (अजमेर) पर कब्ज़ा किया।

मुग़ल सिसोदिया राठौड़ युद्ध

1678

1678 ईस्वीं में जब महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु जमरूद में हो गयी तो औरंगजेब ने मारवाड़ पर अधिकार स्थापित करने के प्रयत्न आरम्भ कर दिए , जिसके फलस्वरूप 1679 ईस्वीं तक उसका पूर्ण अधिकार मारवाड़ पर स्थापित हो गया। मुगलों के विरुद्ध सिसोदिया राठौड़ संघ बना।

जाजऊ का युद्ध

1707

औरंगजेब के पुत्रों मुअज्जम और आजम के मध्य जाजऊ के मैदान में युद्ध हुआ। इस युद्ध में कोटा का रामसिंह मारा गया।

सामूगढ़ का युद्ध

1713

जहांदारशाह तथा फर्रुखसियर के मध्य हुए सामुगढ़ युद्ध के अंत में चुडामन जाट ने दोनों पक्षों को लूटा।

मन्दसौर का युद्ध

1733

सवाई जयसिंह का मराठों से मन्दसौर के पास युद्ध हुआ। जयसिंह को युद्ध में असफल होने पर मराठों को चौथ देने का समझौता करना पड़ा।

मगवाणा का युद्ध

1741

जोधपुर नरेश अभयसिंह और उसके भाई बख्तसिंह द्वारा जयपुर नरेश जयसिंह के साथ मगवाणा के मैदान में युद्ध हुआ , जिसमें जोधपुर की सेना ने जयपुर की सेना को काफी नुकसान पहुँचाया।

बिचोड़ का युद्ध

1745

बूंदी नरेश उम्मेदसिंह ने जयपुर की सेना को बिचोड़ (बूंदी) के युद्ध में हराया।

राजमहल का युद्ध

1747

जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर सवाई जयसिंह के दोनों पुत्रों ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के बीच 1747 ईस्वीं में राजमहल का युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में ईश्वरी सिंह के पक्ष की विजय हुई।

मानपुर का युद्ध

1748

जयपुर नरेश ईश्वरी सिंह और अहमदशाह अब्दाली के मध्य मानपुर में युद्ध हुआ। अब्दाली हारा।

बगरू का युद्ध

1748

बगरू गाँव के पास माधोसिंह कच्छवाहा ने मल्हारराव होल्कर , उदयपुर के महाराणा और जोधपुर के अभयसिंह राठौड़ की सम्मिलित सेना के साथ जयपुर के ईश्वरी सिंह से युद्ध किया। ईश्वरीसिंह इस युद्ध में हारा और उसने होल्कर की शर्तों को स्वीकार कर लिया।

पीपाड़ का युद्ध

1750

बख्तसिंह और रामसिंह की सेना के मध्य पीपाड़ के निकट युद्ध हुआ जिसमें रामसिंह जीता। इस युद्ध में रामसिंह की सहायता जयपुर नरेश ईश्वरी सिंह ने और बख्तसिंह की सहायता मीरबख्शी सलावत खां ने की।

गंगारडा का युद्ध

1754

जोधपुर नरेश विजयसिंह , बीकानेर नरेश गजसिंह और किशनगढ़ नरेश बहादुरसिंह गंगारडा के युद्ध में जयअप्पा से हारे।

कांकोड का युद्ध

1759

रणथम्भौर के किले पर कब्ज़ा करने के लिए कान्कोड़ के मैदान में जयपुर और होल्कर की सेना के मध्य युद्ध हुआ।

माबन्डा का युद्ध

1767

भरतपुर और जोधपुर की सेना माबन्डा स्थान पर जयपुर और मरहठों की सेना से हारी।

कामा का युद्ध

1768

जयपुर नरेश माधोसिंह और जवाहरसिंह के मध्य कामा के निकट युद्ध हुआ जिसमें जवाहरसिंह की हार हुई।

लक्ष्मणगढ़ का युद्ध

1778

मिर्जा नजफखा और अलवर के प्रतापसिंह के मध्य लक्ष्मणगढ़ में युद्ध हुआ जो लगभग 2 माह चला। अन्त: में (6 जुलाई) को अलवर नरेश प्रतापसिंह का मिर्जा नजफ से समझौता हुआ।

उज्जैन का युद्ध

1769

महाराणा अरिसिंह तथा महाराणा राजसिंह (द्वितीय) के पुत्र रतनसिंह की सेना के मध्य उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे युद्ध हुआ। माधवसिंह सिंधिया ने रतनसिंह का पक्ष लिया। इस युद्ध में मरहठों ने महाराणा अरिसिंह की सेना को हराया। झाला जालिमसिंह को मरहठों ने कैद कर लिया परन्तु बाद में 60000 रुपये देकर छुड़वा लिया गया।

तुंगा का युद्ध

1787

लालसोट के निकट तुंगा के युद्ध में जोधपुर और जयपुर की सम्मिलित सेना ने मराठों को हराया।

हडक्याखाल का युद्ध

1788

हडक्याखाल के मैदान ने मराठों और सिसोदियों के मध्य युद्ध हुआ जिसमें सिसोदिया हारे।

जयपुर मराठा युद्ध

1789

जयपुर और मराठों के मध्य घमासान युद्ध हुआ। राजपूत सेना हारी और पाटण के किले में जाकर इसने शरण ली। राजपूतों की राजपूती इस युद्ध में समाप्त हो गयी।

पाटण का युद्ध

1790

सिंधिया की सेना ने जोधपुर नरेश , जयपुर नरेश और इस्माईल बेग कोपाटण के युद्ध में हराया।

मेडता का युद्ध

1790

जोधपुर नरेश और मरहठों के मध्य मेड़ता का युद्ध हुआ। जोधपुर नरेश विजयसिंह मरहठों से हारा। जोधपुर नरेश विजयसिंह ने मराठों से संधि हो जाने पर , मराठों को अजमेर और 60 लाख रुपये देने तय किये। रुपयों के एवज में मारोठ , नावा , मेड़ता , सोजत , सांभर और परबतसर की आमदनी सौप दी गयी।

डंगा का युद्ध

1790

मेड़ता के पासडंगा नामक स्थान पर 10 सितम्बर 1790 को सिंधिया के सेनानायक डी.बोइन ने जोधपुर के शासक विजयसिंह राठौड़ की सेना को पराजित किया। युद्ध के परिणामस्वरूप सांभर की संधि (5 जनवरी 1791) हुई , जिसके अनुसार अजमेर शहर और दुर्ग और 60 लाख रुपये मराठों को देना तय हुआ। राठौड़ सेना को भयंकर क्षति उठानी पड़ी तथा उसका मनोबल टूट गया।

लाखेरी का युद्ध

1793

लाखेर के युद्ध में होल्कर की सेना का सर्वनाश हो गया। इस युद्ध से उत्तर भारत में सिंधिया और होल्कर की प्रतिद्वन्द्वता का निर्णय हो गया।

मालपुरा का युद्ध

1800

लकवादादा ने जयपुर की सम्मिलित सेना को मालपुरा के निकट हराया। बीकानेर नरेश सूरतसिंह ने जयपुर की सहायता के लिए सेना भेजी थी।

लसवाड़ी का युद्ध

1803

अलवर के लसवाड़ी गाँव के मैदान में मराठों और अंग्रेज सेनापति लेक की फौजों के मध्य युद्ध हुआ , जिसमें सिंधिया और पेशवा की सम्मिलित फ़ौज की करारी पराजय हुई। अलवर ने इस युद्ध में अंग्रेजों का साथ दिया। युद्ध में लड़ी अलवर की इस सेना में प्रसिद्ध शायर मिर्जा ग़ालिब के पिता भी शामिल थे।

बनास का युद्ध

1804

जसवन्तराव होल्कर और कर्नल मानसन के मध्य बनास नदी पर घोर युद्ध हुआ जिसमें कर्नल मानसन के बहुत से सैनिक मारे गए।

बैर का युद्ध

1805

लार्ड लेक ने होल्कर , सिंधिया और अमीरखां की सम्मिलित सेना को बैर (भरतपुर राज्य) में हराया।

गिंगोली का युद्ध

1807

जयपुर और जोधपुर की सेना के मध्य पर्बतसर की घाटी में (गिन्गोली) युद्ध हुआ। जोधपुर की सेना हारी।

मांगरोल का युद्ध

1821

मांगरोल के युद्ध में कोटा नरेश महारावल किशोरसिंह कर्नल टॉड और जालिमसिंह की फ़ौज से हारा। महारावल हारकर नवम्बर 12 को नाथद्वारा चला गया और वहां कोटा राज्य को श्रीनाथजी के नाम अर्पण कर दिया।

बासमणी का युद्ध

1835

बीकानेर और जैसलमेर नरेशों के बीच सुलह शुई।

बिथोडा का युद्ध

1857

जोधपुर महाराजा तख़्तसिंह की तरफ से ओनाडसिंह पंवार तथा राजमल लोढ़ा और अंग्रेज लेफ्टिनेंट हीथकोट का क्रांतिकारीयों के साथ 8 सितम्बर 1857 को आउवा के निकट बिथोड़ा (पाली) का युद्ध हुआ। जोधपुर और अंग्रेज सेना ने भारी शिकस्त खाई।

चेलावास का युद्ध

1857

18 सितम्बर 1857 को चेलावास नामक स्थान पर क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। क्रांतिकारी फिर विजयी हुए। युद्ध के दौरान अंग्रेज मैसन मारा गया। क्रांतिकारियों ने उसका सिर धड़ से अलग कर आउवा में घुसाया तथा बाद में उसे किले के दरवाजे पर टांग दिया।