जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं | जनसंख्या विस्फोट की परिभाषा क्या है population explosion in hindi meaning

population explosion in hindi meaning definition essay जनसंख्या विस्फोट किसे कहते हैं | जनसंख्या विस्फोट की परिभाषा क्या है ?

उत्तर : जब जनसंख्या कम समय में अधिक तेजी के साथ बढती है तो इसे जनसंख्या का विस्फोट कहते है | जैसे मान लीजिये की एक साल में किसी देश में एक करोड़ जनसंख्या बढ़ रही है लेकिन कुछ कारणों से पिछले साल की जनसंख्या 5 करोड़ बढ़ गयी तो हम इसे जनसंख्या विस्फोट कह सकते है |

जनसंख्या विस्फोट
भारत में समस्याओं को उत्पन्न करने वाला अन्य सामाजिक कारक, जनसंख्या विस्फोट है। भारत में जनसंख्या इस शताब्दी के दौरान खूब बढ़ी है। आम लोगों के लिए विकास और कल्याण कार्यक्रम, बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में लोगों तक नहीं पहुँच पाए हैं। परिणामस्वरूप जन-सामान्य, जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, को विकास कार्यक्रमों से मिले लाभ संभावना से बहुत नीचे रहे हैं।

जनसंख्या में वृद्धि होने से भारत में गरीबी, बेरोजगारी और निरक्षरता की समस्या और गहरी हुई है। यह एक सच्चाई है कि इन समस्याओं से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जनसंख्या का एकदम बड़ा आकार भी एक ऐसा कारक है जो विभिन्न प्रकार की बढ़ती हुई समस्याओं के लिए जिम्मेदार होता है। जाति या जनजाति का आकार जितना बड़ा होगा, राष्ट्रीय एकता के दाव पर अपनी संकीर्ण या जातीय पहचान को जोरदार ढंग से व्यक्त करने की प्रवृत्ति उतनी ही बड़ी होगी।

भारत में पर्याप्त संख्या में शारीरिक रूप से विकलांग भी हैं। वे जीवित रहने का लिए समाज पर पूर्णतया आश्रित हैं। देश में इतनी अधिक संस्थाएँ नहीं है कि शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को विभिन्न आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जा सके। उनमें से तो बहुत से भिखारी बनकर सड़कों पर भीख माँगने लग जाते हैं जो कि एक अन्य सामाजिक समस्या है।

भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या से जमीन, पूँजी और जंगल के संसाधनों के लिए माँग बढ़ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में, जमीन की भूख बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय वित्त व्यवस्था पर बढ़ते हुए बोझ के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, ग्रामीण विकास, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़ी जातियों, युवाओं और महिलाओं आदि के कल्याण जैसे कल्याणकारी कार्यक्रमों और सामाजिक सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ईंधन और इमारती लकड़ी की आवश्यकता तथा फसल उपजाने एवं रहने के लिए जमीन की भूख, धीरे-धीरे वन संपदा समाप्त करती जा रही है। वन क्षेत्रों को धीरे-धीरे अनवरत वनों के उजड़ने से उत्पन्न पारिस्थितिकीय असंतुलन के प्रतिकूल प्रभाव – वर्षा की बदलती हुई स्थिति, बढ़ते हुए भू-रक्षण, बाढ़, पशुओं के लिए चारे और गरीब लोगों के लिए जलाने की लकड़ी की भारी कमी के रूप में स्पष्टतः दिखाई देते हैं।

कोष्ठक 3.01
भारत में राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में जनसंख्या, वृद्धि, लिंग अनुपात, घनत्व और साक्षरता दर
राज्य/संघ शासित प्रदेश आबादी वृद्धि दर
1991-01 सेक्स अनुपात घनत्व साक्षरता दर
कुल पुरूष महिला
भारत
जम्मू एवं कश्मीर
हिमाचल प्रदेश
पंजाब
चण्डीगढ़
उत्तरांचल
हरियाणा
दिल्ली
राजस्थान
उत्तर प्रदेश
बिहार
सिक्किम
अरूणाचल प्रदेश
नागालेैंड
मणिपुर
मिजोरम
मेघालय
असम
पश्चिम बंगाल
झारखण्ड
उड़ीसा
छत्तीसगढ़
मध्य प्रदेश
गुजरात
दमन एवं द्वीव
दादर नागर हवेली
महाराष्ट्र
आंध्र प्रदेश
कर्नाटक
गोवा
लक्ष्यद्वीप
केरला
तमिलनाडु
पांडिचेरी
अंडमान निकोबार
त्रिपुरा 1,027,015247
10,069,917
6,007,248
24,289,296
900,914
8,479,562
21,082,989
13,782,957
56,473,112
1,66,052,859
82,878,796
570,493
1,091,117
1,988,636
2,388,634
891,058
2,306,069
26,638,407
80,221,171
26,909,428
36,706,920
20,795,956
60,385,118
50,596,992
158,059
220,451
96,752,247
75,727,541
52,733,958
1,343,998
60,595
31,838,619
62,110,839
973,829
356,265
3,191,168 21.34
29.04
17.53
19.76
40.33
19.20
28.06
46.31
28.33
25.80
28.43
32.98
26.21
64.41
30.02
29.18
29.94
18.85
17.84
23.19
15.94
18.06
24.34
22.48
55.59
59.20
22.57
13.86
17.25
14.89
17.19
9.42
11.19
20.56
26.94
15.74 933
900
970
874
773
964
861
821
922
898
921
875
901
909
978
938
975
932
934
941
972
990
620
921
709
811
922
978
964
960
947
1058
986
1001
846
950 324
99
103
482
7,903
159
477
9294
165
389
880
76
13
150
107
42
103
340
904
338
236
154
158
258
1411
449
314
275
275
363
1894
819
478
2029
43
304 65.37
54.46
77.13
69.95
81.76
72.28
68.59
81.82
61.03
57.36
47.53
69.68
54.74
67.11
68.87
88.49
63.31
64.28
69.22
54.13
63.61
65.2
64.09
69.97
81.1
60.3
77.27
61.11
67.04
82.32
87.52
91.0
73.5
81.5
81.2
73.66 75.85
65.75
86.02
75.63
85.65
84.01
79.25
87.37
76.46
70.23
60.32
76.73
69.07
71.77
77.87
90.6
66.14
71.9
77.58
67.9
76.0
77.8
76.7
80.50
88.4
76.3
86.27
70.85
76.3
88.9
93.1
94.2
82.3
89.0
86.0
81.47 54.16
41.82
68.8
63.55
76.65
60.26
56.31
75.0
44.34
42.9
33.6
61.49
44.24
61.92
59.7
86.0
61.41
56.30
60.22
39.4
51.0
52.4
50.3
58.60
70.4
43.0
67.5
51.17
57.49
75.5
81.5
87.8
64.5
74.0
75.3
65.4

स्रोत: भारतीय जनगणना, 2001
बोध प्रश्न 2
प) धर्म और राजनीति पर चार पंक्तियाँ लिखिए।
पप) चार पंक्तियों में जाति और शिक्षा के बीच संबंध का वर्णन कीजिए।
पपप) केंद्र और राज्य स्तर पर भाषा की समस्या पर चार पंक्तियों में विवेचन कीजिए।
पअ) क) जनजातियों और ख) अल्पसंख्यकों की समस्याओं का उल्लेख तीन-तीन पंक्तियों में कीजिए।
क) ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
ख) ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
अ) जनसंख्या दबाव के पाँच प्रमुख परिणामों का उल्लेख कीजिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) भारतीय समाज बहु-धार्मिक समाज है। औपनिवेशिक काल में विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच विशेषकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संबंधों को राजनीतिक रंग दे दिया गया था। इससे संप्रदायवाद नाम की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला जो कि आपसी संदेहों, सांप्रदायिक विचारधाराओं, सत्ता, सेवा और संसाधनों के लिए स्पर्धा के कारण और भी मजबूत हुई है।

पपद्ध पारंपरिक भारतीय प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा, मुख्यतया ऊंची जातियों तक सीमित हुआ करती थी। इससे बड़े पैमाने पर प्रत्येक के लिए शिक्षा का प्रसार न हो सका। यह भारत में व्यापक स्तर पर फैली निरक्षरता के कारणों में से एक है।
पपप) भारत में उच्च शिक्षा, प्रशासन और कूटनीतिक के लिए अंग्रेजी संपर्क भाषा के रूप में बनी रही। शिक्षण के माध्यम एवं प्रशासन के लिए केंद्र स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी के बीच संबंध का प्रश्न है और राज्य स्तर पर प्रश्न अंग्रेजी, हिंदी और क्षेत्रीय भाषा के बीच है।
पअ) क) भारत में अनेक जन-जातियाँ हैं और वे भारत की जनसंख्या का लगभग सात प्रतिशत है। वे अपने रीति-रिवाजों के अनुसार बिल्कुल भिन्न होते हैं। उन्हें अलग-थलग रखा जाता है और उनका शोषण किया जाता है। वे विजनजातीयकरण की समस्या का सामना भी कर रहे हैं।
ख) भारत में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यक रहते हैं। कभी-कभार जातियों और जनजातियों को भी निर्दिष्ट क्षेत्रों के अंतर्गत अल्पसंख्यक के रूप में माना जाता है।
अ) क) विकास और कल्याण कार्यक्रमों पर प्रतिकूल प्रभाव,
ख) गरीबी,
ग) निरक्षरत,
घ) जमीन, पूँजी, जंगल और अन्य संसाधनों पर बढ़ता हुआ दबाव,

भारतीय जनसंख्या की विजातीयता
भारत एक विजातीय समाज है – जहाँ अनेक धर्म, जातियाँ एवं भाषायी और जनजातीय समूह हैं। भारतीय जनसंख्या का यह विजातीय स्वरूप भारत में बहुत सी सामाजिक समस्याओं का कारण रहा है।

धर्म
समाज के बहु-धर्मावलंबी स्वरूप तथा विभिन्न धर्मों के बीच होने वाले संघर्ष से भारत में सांप्रदायिक समस्याओं को बढ़ावा मिला है। भारत में संप्रदायवाद – अंतर्धार्मिक समूहों के विकृत संबंधों के रूप में -विशेष रूप से हिंदुओं और मुसलमानों के बिगड़े संबंधों के रूप में, एक गंभीर समस्या है। यह समस्या ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में मुसलमानों के आक्रमण, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रारंभिक संघर्ष, ब्रिटिश शासन और सांप्रदायिक विभाजन को प्रोत्साहित करने की उनकी नीति, राजनीतिक सत्ता, सेवा और संसाधनों के लिए स्पर्धा के साथ जुड़ी हुई है।
धीरे-धीरे संप्रदायवाद की समस्या ने हिंदू और सिखों के संबंधों को भी प्रभावित किया है। भारत में एक बड़ी संख्या में सिख रहते हैं। उनकी अधिकांश आबादी देश के अपेक्षाकृत विकसित क्षेत्र पंजाब में है। पंजाब में सांप्रदायिक राजनीति और आगे चलकर आतंकवाद का उदय किस प्रकार हुआ, इसे समझने के लिए इस क्षेत्र (पंजाब) में शक्तिशाली समुदाय के रूप में तथा समूचे राष्ट्र में अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में उनके होने जैसे तथ्य पर ही विचार करना समीचीन होगा। इस संदर्भ में इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि पंजाब में हिंदुओं और सिखों में आतकंवाद के कुहासे में भी काफी समझदारी और मैत्री भाव दिखाया है। धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा में सभी धर्मों को समान माना जाता है और एक धर्म का दूसरे धर्म से कोई भेद नहीं होता है। जैसा कि मिर्डाल ने कहा है, ‘‘ढुलमुल नीति वाले राज्य की नीति ने और सांप्रदायिक संगठनों के विरुद्ध कठोर निर्णय न लेने की प्रवृत्ति ने भी भारत में संप्रदायवाद की समस्याओं को बढ़ावा दिया है। धर्म का प्रयोग करके चुनाव जीतने के पक्ष पर ध्यान केंद्रित करने से भी भारत में स्वातंत्र्योत्तर काल में सांप्रदायिकता में वृद्धि हुई है।

जाति
भारतीय सामाजिक ढांचे का दूसरा तत्व जाति प्रणाली है। जाति प्रणाली ने भारतीय समाज को बहुत से समूहों में बाँट दिया है जिससे उनके बीच विभिन्न प्रकार से और विभिन्न अंशों में सबंधों पर प्रभाव पड़ा है। यह भारत में विभिन्न सामाजिक समस्याओं का मूल कारण है। एक समस्या के रूप में जातिवाद से एक जाति का दुसरी जाति से भेदभाव उत्पन्न होता है और सर्वहितवाद के सिद्धांत का उल्लंघन करके एक जाति के लोगों द्वारा अपनी जाति के लोगों का पक्ष लेने की विशिष्टतापरक प्रवृत्ति उत्पन्न होती है। जाति के आधार पर सामाजिक-राजनीतिक हैसियत प्राप्त करने की प्रथा और जाति को ध्यान में रखकर शिक्षा और रोजगार के मामले में पक्ष लेना और विरोध करना जाति की प्रमुख विशेषताएँ हैं। भारत की सामाजिक स्थिति के अंतर्गत कमजोर वर्गों के लिए उठाए गए कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए कोई भी जाति का मानदण्ड अपनाने का औचित्य ठहरा सकता है। साथ ही ऐसे कल्याणकारी उपायों से तनाव और विवाद उत्पन्न हुए हैं जिससे कि जातिवादी प्रवृत्तियाँ उजागर हुई हैं।

जाति प्रणाली से भारत में शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पारंपरिक रूप से जाति ने शिक्षा के लिए लोगों की योग्यता को निर्धारित किया। पारंपरिक प्रणाली के अंतर्गत शिक्षा, ऊंची जातियों का ही परम अधिकार मानी जाती थी। इस परंपरा के अंतर्गत ज्ञान को ऊंची जातियों तक ही सीमित कर देने के दुराग्रह से जन सामान्य को शिक्षा नहीं मिल पाई। यह भारत में बड़े पैमाने पर निरक्षरता की समसया के कारणों में से एक है।

भाषा
भारतीय समाज का दूसरा पहलू यह है कि उसमें बहुत सी भाषाएँ बोली जाती हैं जिससे भिन्न-भिन्न भाषायी समुदायों के बीच प्रायः विवाद उत्पन्न होता है। भारत ने भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करके सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ को स्वीकार कर लिया है जिससे भाषायी पहचान बनाने का प्रोत्साहन मिला है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि एक राष्ट्र के रूप में भारत एक ऐसी राष्ट्रभाषा अपनाने में असमर्थ रहा है जो सभी को स्वीकार्य हो और जो संपर्क भाषा के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य कर सके। ऐतिहासिक कारणों से उच्च शिक्षा, प्रशासन और कूटनीति के लिए अंग्रेजी अभी भी, संपर्क भाषा के रूप में बनी हुई है। इस संदर्भ में इसका संबंध दो स्तरो पर है:

ऽ राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी के संबंध का प्रश्न है, और
ऽ .राज्य स्तर पर अंग्रेजी, हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के संबंध का प्रश्न है।

इस विशिष्ट भाषायी स्वरूप से उत्पन्न स्थिति ने बहुत से राज्यों के बीच सीमा विवादों और शैक्षिक संस्थाओं में शिक्षण के माध्यम के प्रश्न जैसी समस्याओं को उत्पन्न किया है। इन सभी मुद्दों से राष्ट्रीय एकता पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इनसे तनाव और विवाद उत्पन्न हुए हैं।

 जनजातियाँ
भारत, जनजातियों की बड़ी आबादी वाला देश है। भारत में जनजातियों का समाज एक समान नहीं है। वे जीवन पद्धति, बाहरी दुनिया से संपर्क कल्याण और विकास कार्यक्रमों को अपनाने की दृष्टि से बिल्कुल भिन्न हैं। जनजातियों को एक लम्बे अरसे से भारतीय समाज की मुख्यधारा से अलग रखा गया है जो कि उनके पिछड़ेपन का कारण है। इसके अलावा उन गैर-जनजातियों ने विभिन्न प्रकार से उनका शोषण किया जिनके वे संपर्क में आए हैं। एक तरफ गैर-जनजाति के लोगों ने आर्थिक उपलब्धि के लिए जनजातियों का शोषण किया, दूसरी तरफ वे विजनजातीयकरण की समस्या का सामना कर रहे हैं जिससे जनजातीय संस्कृति और जीवन-पद्धति के खो देने या उसका ह्रास होने की समस्या उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में भारत की जनजातियों की मुख्य समस्या पिछड़ापन, शोषण, विजनजातीयकरण, जातीय तनाव, विभिन्न प्रकार के जनजातीय आंदोलन तथा भारत के कतिपय भागों में जनजातियों के बागी हो जाने की है।

 अल्पसंख्यक
भारतीय समाज में व्याप्त विषमता से भारत में अल्पसंख्यकों की समस्या उत्पन्न हुई है। भारत में पहचाने गए प्रमुख अल्पसंख्यक समाज, धार्मिक और भाषायी हैं। धार्मिक अल्पसंख्यकों की समस्या राष्ट्रीय स्तर पर मानी जा सकती है तथा भाषायी अल्पसंख्यकों की प्रासंगिकता राज्य स्तर पर है। धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के अलावा जातीय गैर जनजातीय समाज भी, परिस्थिति विशेष में एक समाज का दूसरे समाज से पारस्परिक संबंधों के संदर्भ में अल्पसंख्यक समाज का दर्जा पा सकते हैं।