बगरू का युद्ध कब हुआ | बगरू का युद्ध में कौन जीता विजय किसकी हुई हारा battle of bagru in hindi

battle of bagru in hindi बगरू का युद्ध कब हुआ | बगरू का युद्ध में कौन जीता विजय किसकी हुई हारा ?

प्रश्न : बगरू का युद्ध ?

उत्तर :  जयपुर के उत्तराधिकार को लेकर ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के मध्य 1748 ईस्वी में पुनः बगरू का युद्ध हुआ। अर्थात बगरू का युद्ध ईश्वरीसिंह के बीच माधोसिंह लड़ा गया था। इस बार पेशवा और होल्कर की सेनाएँ माधोसिंह के पक्ष में थी। अत: बगरू के युद्ध में ईश्वरीसिंह की पराजय हुई। इस युद्ध के बाद जयपुर राज्य का विभाजन हो गया। ईश्वरी सिंह को टोंक , टोडा , मालपुरा सहित पाँच परगने माधोसिंह को देने पड़े और मराठों को युद्ध के हर्जाने के फलस्वरूप एक बड़ी धन राशि देने की मांग भी स्वीकारनी पड़ी। जब ईश्वरीसिंह मराठों को हर्जाना नहीं दे पाया तो मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर जयपुर आ धमका। उनके डर से 1750 ईस्वी में ईश्वरीसिंह को पारा पीकर अपनी जीवन लीला समाप्त करनी पड़ी। सवाई जयसिंह के उत्तराधिकारी का यह दुखद अंत था। वह राजपूताना का एक मात्र शासक था जिसने मराठों के दबाव से आत्महत्या की।

प्रश्न : सवाई जयसिंह की साहित्यिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिये। 

उत्तर : सवाई जयसिंह संस्कृत और फ़ारसी का विद्वान और गणित एवं ज्योतिष का प्रकांड पंडित था। 1725 ईस्वी में नक्षत्रों की शुद्ध सारणी “जीज मुहम्मद शाही” और ज्योतिष ग्रन्थ “जयसिंह कारिका” की रचना की। उसने अनेक विद्वानों को देश विदेश भेजकर गणित ज्योतिष सम्बन्धी ग्रंथों और साधनों को संग्रहित करवाया। उसके दरबारी जगन्नाथ ने यूक्लिड रेखा गति का सिद्धान्त कौस्तुम और सम्राट सिद्धांत , केवलराम ने फ्रेंच लोगोरिथम का विभाग सारणी , नयन मुखोपाध्याय ने अरबी ग्रंथ उकर का और अन्य ग्रन्थों का दुकपक्ष सारणी , मिथ्या जीवछाया सारणी , दुकपक्ष ग्रन्थ आदि नामों से संस्कृत में अनुवाद करवाया। इनसे ज्योतिष और नक्षत्रादी के सही आँकड़े , गृह , गणित तथा यंत्र तैयार करवाए। पुंडरीक रत्नाकर ने जयसिंह कल्पद्रुम नामक ग्रन्थ में उस समय के समाज और राजनितिक घटनाओं का अच्छा चित्रण किया है।

प्रश्न : मिहिर भोज प्रथम की उपलब्धियां बताइये ?

मिहिर भोज इस वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था। यह रामभद्र का पुत्र था। इसकी माता का नाम अप्पा देवी था। इसका सर्वप्रथम अभिलेख वराह अभिलेख है जिसकी तिथि 893 विक्रम संवत (836 ईस्वी) है। इसका अभिलेख ग्वालियर प्रशस्ति है जिससे इस वंश के बारे में काफी जानकारी मिलती है। उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जिसकी स्थायी राजधानी कन्नौज को बनाया। उसके समय के चाँदी तथा ताम्बे के सिक्के जिन पर श्रीमदादिवराह अंकित रहता था , मिले है। कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी में मिहिरभोज की उपलब्धियों पर प्रकाश पड़ता है। अरब यात्री सुलेमान ने मिहिरभोज को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया है जिसने अरबों को रोक दिया था। यह प्रतिहार वंश का ही नहीं वरन प्राचीन भारतवर्ष का एक महान शासक माना जाता है।

प्रश्न :  सवाई प्रतापसिंह के काल में जयपुर की कला के विकास पर एक लेख लिखिए ?

उत्तर : सवाई प्रतापसिंह जो “ब्रजनिधि” (1778-1803 ईस्वी) उपनाम से प्रसिद्ध थे का काल जयपुर की कला के विकास में विशेष रहा। इन्होने 1799 ईस्वी में जयपुर में जगत प्रसिद्ध हवामहल का निर्माण करवाया और जलमहल को पूर्णता प्रदान की। इन्होने विभिन्न कला क्षेत्रों के 22 गुणीजनों की एक संगोष्ठी “बाईसी” को संरक्षण प्रदान किया। संगीत के क्षेत्र में प्रतापसिंह के काल में उल्लेखनीय प्रगति हुई। इन्होनें जयपुर में ब्रह्मर्षि ब्रजपाल भट्ट के नेतृत्व में संगीत सम्मेलन करवाकर “राधा गोविन्द संगीत सार” नामक प्रामाणिक ग्रन्थ लिखवाया। इनके दरबारी राधाकृष्ण ने “राज रत्नाकर” और पुण्डरीक विटल ने “नर्तन निर्णय ” , “राग चन्द्रोदय” , “ब्रज कलानिधि” नामक संगीत ग्रन्थ लिखे।