जन्म संस्कार क्या है Birth Rites in hinduism in hindi हिंदुओं में जन्म संस्कार कैसे होता है birth ceremony
Birth Rites in hinduism in hindi जन्म संस्कार क्या है हिंदुओं में जन्म संस्कार कैसे होता है birth ceremony किसे कहते है परिभाषा बताइए ?
जन्म और संबद्ध संस्कार (Birth and Related Rites)
सरस्वती के अनुसार ये संस्कार समाजीकरण के संस्कार होते हैं। जब हम जीवन चक्रीय संस्कारों पर गौर करते हैं तो हम देखते हैं कि वे धर्म के मूल तत्व होते हैं। फिर, जीवन चक्रीय संस्कारों का संबंध जीवन के चक्र से अधिक होता है जिसमें जन्म, विवाह और मृत्यु आते हैं। फिर भी, यह आवश्यक नहीं है कि संस्कार इस प्रकार के रेखीय पथ पर चलें। मतलब यह कि जन्म और मृत्यु के बीच कोई स्त्री या पुरुष दो से अधिक तलाक और शादियाँ भी कर सकता है। यह एक सार्वभौमिक सत्य ही है। यही नहीं, हमारी समस्या का एक और पहलू यह है कि जीवन चक्रीय संस्कारों का अध्ययन अकसर गर्भाधान से शुरू होकर गर्भावस्था के दौरान होने वाले विभिन्न संस्कारों से होता हुआ शिशु जन्म तक चलता रहता है। इसके बाद दीक्षा के संस्कार और फिर विवाह तक या विवाह के योग्य होने तक के संस्कार आते है। यह केवल हिंदुओं में ही नहीं बल्कि आदिवासी धर्मों में भी नियमित रूप से होता है और एक सार्वभौमिक प्रघटना सा ही है। हमारे वर्णनों में ‘‘जन्म‘‘ का अर्थ होगा जन्म से संबंधित संस्कार । वैसे ही ‘‘विवाह‘‘ और ‘‘मृत्य‘‘ का अर्थ होगा विवाह और मृत्यु से संबंधित संस्कार ।
हिंदुओं में जन्म संस्कार (Hindu Birth Rites)
हिंदुओं में जन्म और विवाह का अध्ययन करने से पहले एक बार फिर ई.एस.ओ.-12 के खंड 4 की इकाई 15 को पढ़ लेना ठीक रहेगा। इस इकाई में हिंदुओं के सामाजिक संगठन का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है और यह संकेत दिया गया है कि हिंदू धर्म में संस्कारों के पीछे विचारधारा की एक व्यापक पृष्ठभूमि है। राज बाली पांडे ने अपनी पुस्तक ‘‘हिन्दू संस्कार‘‘ (1976) में संस्कारों की निम्न क्रम योजना बताई हैः
प) जन्म से पूर्व के संस्कार
पप) बचपन के संस्कार
पपप) शिक्षा के संस्कार
पअ) विवाह के संस्कार
अ) अंतिम संस्कार
हम जन्म से पूर्व के संस्कारों और बचपन के कुछ संस्कारों की यहाँ चर्चा करेंगे।
जीवन चक्रीय संस्कारों के सामाजिक परिप्रेक्ष्य से जुड़े बिना, चर्चा अर्थहीन होगी। जन्म से पूर्व का सबसे पहला संस्कार गर्भाधान के समय शुरू होता है। गर्भाधान के संस्कार के साथ पुरुष स्त्री के गर्भ में अपना बीज छोड़ता है। इस संस्कार का समय पत्नी के मासिक धर्म के बाद चैथे से सोलहवें दिन तक होता है। जन्म से पूर्व का दूसरा संस्कार ‘‘पुंसवन‘‘ या पुत्र प्राप्ति से संबंधित है। यह संस्कार गर्भावस्था के चैथे महीने में होता था। उस दिन स्त्री उपवास रखती थी और नहा-धोकर नए वस्त्र पहनती थी। बरगद के अंकुरों को पीस कर उनका रस वीर पुत्रों की प्रशंसा में बोले गए छंदों के साथ स्त्री के दाहिने नथुने में डाला जाता था। यह सस्कार गर्भपात को टालने और पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता था।
‘‘सिमंतोन्नय‘‘ संस्कार जन्म से पूर्व का तीसरा संस्कार है। इस संस्कार में स्त्री के केशों में माँग निकाली जाती थी। इसका उद्देश्य दैत्यों को दूर रखना और स्त्री को प्रसन्न रखना होता हैं। यह गर्भावस्था के पाँचवे महीने में किया जाता था। ये सभी संस्कार स्पष्ट रूप से पूर्व सांक्रांतिक संस्कार या विच्छेद के संस्कार होते हैं। ये जन्म के संक्रमण काल से पूर्व होने वाले संस्कार हैं। दहलीज या सांक्रांतिक बिंदु पर आने का तनाव गर्भाधान से लेकर पुंसवन और गर्भावस्था के पाँचवे महीने में होने वाले सिमंतोन्नयन संस्कार तक अधिकाधिक बढ़ता जाता है।
अब हम ‘‘जातकर्म‘‘ अर्थात जन्म के उत्सवों की चर्चा करेंगे। ये बचपन के संस्कार होते हैं। जातकर्म संस्कार नाल काटने से पहले किया जाता था। जन्म की शादी को त्योतिष विचार के लिए दर्ज किया जाता था। ये सांक्रांतिक संस्कार होते हैं और इनमें तनाव तेजी से और स्पष्ट रूप से घटता है और ये संस्कार तनाव के स्तरों को “मेधा-जनन‘‘ और ‘‘आयुष‘‘ संस्कारों तक नियंत्रण में रखते हैं अब हम इन्हीं संस्कारों की चर्चा करेंगे।
मेधा-जनन (Medha & janana) संस्कार पहले दाहिने हाथ की तर्जनी से किया जाता है। पिता सोने की कोई वस्तु हाथ में ले कर बच्चे को शब्द और घी या केवल घी देता था। पिता की दी हुई ये चीजें बच्चे के मानसिक विकास के लिए अच्छी मानी जाती थीं। वे सुंदरता बढ़ाने के लिए, पाचन शक्ति ठीक रखने वाली और प्रतिभा उत्पन्न करने वाली, भी होती थीं। ‘‘आयुष‘‘ संस्कार लंबी आयु सुनिश्चित करने के लिए किया जाता था। इसमें पिता बच्चे के कान में उपयुक्त मंत्र फंकता था। पाँच ब्राहमण बच्चे पर अपनी सांस फूंकते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उनकी सांसों से बच्चे को लंबी आयु प्राप्त होती है। इस तरह यह संस्कार बच्चे की सांस को मजबूत करने और लंबी आयु देने के लिए होता था। अगला संस्कार ‘‘शक्ति‘‘ बढ़ाने के लिए होता था। इसमें पिता उपयुक्त छंद बोलता था।
नाल काटी जाती है, बच्चे को अच्छी तरह से नहलाया-धुलाया जाता है और फिर माँ के स्तन से लगा दिया जाता है। अगला संस्कार ‘‘नामकरण‘‘ संस्कार होता है। जिसमें बच्चे का नाम रखा जाता है। ‘‘गृहसूत्र‘‘ के अनुसार यह संस्कार अनिवार्य नहीं होता लेकिन पद्धतियों में इनका उल्लेख मिलता है। पहले नाम की रचना तय कि जाती थी। ऐसा कहा जाता है कि लड़कों के नाम में सम मात्राएँ होनी चाहिए और लड़कियों के नाम में विषम मात्राएँ। ऐसा माना जाता है कि परिवार की सामाजिक प्रस्थिति नाम में प्रतिबिंबित होती है। नाम चार श्रेणियों में आते हैं। यह बच्चे के जन्म के समय प्रबल नक्षत्रों पर, उस महीने के देवी-देवता पर, परिवार के देवी-देवता पर आधारित होता है और प्यार का नाम होता है।
नामकरण संस्कार सामान्यतया बच्चे के जन्म के बाद 10वें या 12वें दिन होता है। नामकरण संस्कार उत्तर सांक्रांतिक संस्कार होता है। यह समावेशन का संस्कार होता है जिसमें बच्चा 10वें या 12वें दिन एक नाम और उसी के साथ एक अस्मिता प्राप्त कर लेता है। हमने संस्कार के जिन कार्यो का ऊपर अनुभाग (28.3) में वर्णन किया है। उनमें से कुछ हमें इस संस्कार में देखने को मिलते हैं, जैसेः समाजीकरण और धार्मिक योग्यता आदि। यह इसलिए हैं क्योंकि, जैसा कि विश्वास किया जाता है कि माँ और बच्चे को आनुष्ठानिक अंशुद्धता में रहना पड़ता है। जब यह अवधि पूरी हो जाती है तो घर को धो कर शुद्ध किया जाता है। माँ और बच्चे को नहलाया जाता है और संस्कार चलता रहता है। आज जब कुमांऊ के किसी गाँव में बच्चा पैदा होता है तो अशुद्धता की अवधि पूरी हो जाने के बाद एक विस्तृत नामकरण संस्कार किया जाता है। यहाँ तक कि डोम जाति में भी ऐसे अवसर के लिए एक डोम पंडित होता है (कपूर 1988)। नामकरण संस्कार में सामान्यतया यह संस्कार भी शामिल रहता है जिसे मिसक्रमण संस्कार कहते हैं। इस संस्कार में माँ एक ही स्थान पर घूमती है और धरती पर बच्चे के पाँव को छूती है। यह संस्कार वस्तुतः चैथे महीने में किया जाता है।
इसके बाद अगले संस्कार में बच्चे के मुख से कोई भोज्य पदार्थ लगाया जाता है। यह संस्कार नामकरण के छह-सात महीने बाद संपन्न होता है। इसका महत्व बच्चे का दूध छुड़ाने के लिए है। मुंडन संस्कार पाँचवे महीने के बाद किया जाता है। कर्णवेध या कान छेदने का संस्कार बारहवें महीने तक संपन्न किया जाता है। लेकिन शास्त्रों में दिए गए समय का पालन पूरी तौर पर व्यवहार में नहीं हो पाता जब संस्कार समूह में संपन्न होते हैं (कपूरः 1988)। इस तरह नामकरण, मिसक्रमण आदि के सस्कार एक ही समय तक ही अनुष्ठान में संपन्न कर दिए जाते हैं। वैसे इन अनुष्ठानों में शुभ-अशुभ का निश्चित विचार होता है और उनके माध्यम से आध्यात्मिक प्राप्ति की कामना होती है। इन संस्कारों को समाजीकरण के संस्कार और आध्यात्मिक उन्नति के संस्कारों के रूप में देखा जा सकता है। फिर समावेशन के संस्कार भी होते हैं। लेकिन हिंदू व्यवस्था में ये मुख्यता पुण्य और प्रस्थिति के सामाजिक नियंत्रण, उत्कृष्टता, उपचार, जीवन शैली और व्यवसाय के इस प्रकार हिंदुओं में जन्म संबंधी संस्कार गर्भाधान के समय से ही प्रारंभ हो जाते हैं। उसके बाद, पुत्र प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संस्कार होते हैं। दुष्टात्माओं को दूर रखने के लिए भी एक अनुष्ठान होता है जिसमें माँग निकाली जाती है। उस के बाद ही जन्म संबंधी. संस्कारों का विधिवत शुभारम्भ होता है । बाल काटने से पहले जातकर्म अनुष्ठान होता है। इस तरह, अच्छी बौद्धिक बढ़त और लंबे जीवन के लिए अनुष्ठान होते हैं। इन सभी संस्कारों से हिंदू जीवन दर्शन का पता चलता है जिसमें पारिस्थितिकीय पर्यावरण या परिवेश और आध्यात्मिक विश्वासों को व्यक्ति के कल्याण के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस तरह हिंदू धर्म में समावेशन के अनुष्ठान अत्यंत विस्तृत होते हैं।
सीरियाई ईसाइयों में जन्म संस्कार (Syrian Christian Birth Rites)
सीरियाई ईसाइयों में भी जन्म संबंधी संस्कार मुख्यतया समाज में समावेशन के संस्कार होते हैं जो आध्यात्मिक पुण्य और प्रस्थिति अर्जित करने के लिए संपन्न किए जाते हैं। ई.एस.ओ.-12 के खंड 4 की इकाई 17 में सीरियाई ईसाइयों की सामाजिक संरचना के विषय में पर्याप्त विवरण दिया गया है। सीरियाई ईसाइयों में पहला बच्चा सामान्यतया माँ के घर ही जन्म लेता है। गर्भवती महिला प्रसव के कुछ महीने पहले ही अपनी माँ के यहाँ चली जाती है। पुराने समय में गर्भवती युवती की माँ सहित सात महिलाएँ उसे माँ के घर लेकर आती थीं। सीरियाई ईसाइयों में वधू के माँ के यहाँ कुछ समय पहले से लेकर शिशु जन्म के समय तक के अनुष्ठान और रीतियाँ विच्छेदध्संक्रांति पूर्व के संस्कार होते हैं। शिशु का जन्म घर की विवाहित महिलाओं की मदद से और किसी आया की देखरेख में होता है। लड़के का जन्म अत्यधिक खुशी का कारण होता है और इस अवसर पर जोर-जोर से सीटियाँश् बजाई जाती हैं। बच्चे के जन्म का सही समय लिख लिया जाता है। जिससे उस की सही जन्म कुंडली बनाई जा सके। यह रीति सीरियाई ईसाईयों में हिंदुओं से आई है। और वे भी भविष्यफल को अत्यन्त महत्व देते हैं। प्रारंभ में ताड़ के सुखाए पत्ते पर जन्म कुंडली बनाई जाती थी। इसे छोटी-छोटी पट्टियों पर बनाया जाता है और इन पट्टियों को धागे से जोड़ दिया जाता है। इनको लकड़ी के टुकड़ों के बीच जमा कर रखा जाता है। ताड़ के इन पत्तों पर जन्म कुंडली लिखने का काम धातु की सलाई से किया जाता है। सुन्दर अक्षरों में लिखी जन्मकुंडली पर कभी फूल पत्तियाँ भी समा दी जाती हैं। नवजात शिशु को नहलाया जाता है और उसके बाद घर का कोई सदस्य या पादरी उसके कानों में धीमे से ये शब्द कहता हैरू ष्यीशु खीष्ट प्रभुष्। इसके बाद के संस्कार ष्दहलीजष् या संक्रांति के बाद संस्कार अर्थात समावेशन/संक्रांति बाद के संस्कार होते है।
बच्चे को स्वर्ण युक्त शहद की कुछ बूंदे भी पिलाई जाती हैं। इसके लिए बच्चे की नानी या कोई महिला शहद सने पत्थर पर सोने का कोई आभूषण घिसती हैं। यह प्रथा नंबूदरी जाति के लोगों में भी पाई जाती है और इसका जन्म उददेश्य समृद्धि की प्राप्ति होता है।
शिशु के जन्म के सात दिन बाद पति के परिवार जन उसे देखने आते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि अयुग्म लोग ही शिशु को देखने जाएँ अर्थात उनकी संख्या जोड़े में नहीं होनी चाहिए, ऐसा माना जाता है कि ऐसे अवसरों पर जोड़ों की संख्या शुभ नहीं होती। शिशु को देखकर उसकी दादी उसके हाथों में सोना रखती है।
कार्यकलाप 1
जन्म और उससे संबंधित अनुष्ठानों पर अनुभाग 28.4 में अध्ययन कीजिए। अनुभाग 28.4.4 तक के सभी उप अनुभागों को भी पढ़िए। विभिन्न समुदायों में जन्म संबंधी अनुष्ठानों में आपको क्या समानताएं और अंतर दिखाई देते हैं? इस पर एक टिप्पणी लिखिए और संभव हो, तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों से अपनी टिप्पणी का मिलान कीजिए।
इसके बाद गिरजाघर में प्रार्थना सभा और बपतिस्मा या नामकरण की रीति संपन्न की जा सकती है। शिशु के जन्म के लगभग दो महीने बाद पत्नी अपने पति के घर लौट आती है। वह अपने साथ जेवरात, कपड़ों और घर का सामान उपहार के तौर पर लेकर आती है। इन रीतियों का संबंध उत्तर सांक्रांतिकता (चवेजसपउपदंसपजल) से पैदा होता है। इनका काम होता है समाज का समाजीकरण करना। उसका नवीकरण करना और संकट का मिलजुल कर. सामना करने के जरिए सदस्यों को एक-दूसरे के और निकट लाना।
बच्चे की औपचारिक शिक्षा हिन्दुओं जैसे-‘‘जनेऊ‘‘ संस्कार के बाद तीन या चार वर्ष की आयु में ही प्रारंभ होती है। इस संस्कार को संपन्न कराने के लिए पादरी धान से भरी एक पीतल की थाली लेकर बच्चे के पास बैठता है। बच्चे की तर्जनी पकड़ कर पादरी उससे धान में ‘‘यीशु‘‘ लिखवाता है । इस अवसर पर एक छोटी-सी प्रार्थना की जाती है और उसके बाद भोज होता है। ऐसा माना जाता है कि बच्चे को ज्ञान के पथ पर दीक्षित कर दिया गया है और अब वह स्कूल जाना प्रांरभ कर सकता है। शिशु यदि लड़की है, तो उसके सात या आठ वर्ष के होने पर उसके कान छेदे जाते हैं, जिससे वह आभूषण पहन सके । पूर्वोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो चुका है कि जन्म के समय संपन्न होने वाले समावेशन के संस्कार विस्तृत होते हैं। जब प्रसव से लगभग तीन महीने पहले बेटी अपनी माँ के यहाँ जाती है, तो यह एक सांस्कारिक कर्म होता है। लेकिन इसके साथ विधिवत सांस्कारिक कार्य संपन्न नहीं होते। इससे पहले सात महिलाएं गर्भवती युवती को घर लेकर आती हैं। इन और अन्य संस्कारों से यह संकेत मिलता है कि सीरियाई ईसाई पंथ संस्कार की दृष्टि से हिन्दू धर्म से बिल्कुल भिन्न होता है। इनमें कुछ संस्कार तो एक जैसे होते हैं जैसे, समृद्धि की प्राप्ति के लिए बच्चे को स्वर्ण और शहद देना । लेकिन उनमें भी अतिमानवीय शक्तियों को दूर रखने की इच्छा ही प्रकट होती है। जैसा कि हिन्दू समाज में स्पष्ट है यह संस्कार मुख्यतया समाजीकरण, पुष्प और प्रस्थिति, अस्मिता और उत्कृष्टता के विकास के संस्कार होते हैं।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics