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केन्द्रकीय भ्रूणपोष (nuclear endosperm in hindi) कोशिकीय (cellular endosperm) हीलोबियल प्रकार का भ्रूणकोष (helobial endosperm)

(nuclear endosperm in hindi) केन्द्रकीय भ्रूणपोष कोशिकीय (cellular endosperm) हीलोबियल प्रकार का भ्रूणकोष (helobial endosperm) क्या है परिभाषा किसे कहते है ?

भ्रूणपोष (endosperm in hindi): आवृतबीजी पौधों में द्विक निषेचन क्रिया होती है जिसमें क्रमशः युग्मक संलयन और त्रिसंलयन पाया जाता है। युग्मक संलयन के परिणामस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है जिससे भ्रूण का परिवर्धन होता है , जबकि त्रिसंलयन से प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है जिससे भ्रूणपोष का परिवर्धन होता है। अधिकांश पौधों में भ्रूणकोष त्रिगुणित होता है।

प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक अंड के ठीक नीचे स्थित होता है। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण द्वितीयक केन्द्रक और नरयुग्मक केन्द्रक के संलयन के फलस्वरूप होता है। इस केंद्रक के बनते ही इसमें विभाजन प्रारंभ हो जाते है जिससे भ्रूणपोष का विकास तेजी से होता है और यह शीघ्र ही परिवर्धनशील भ्रूण को घेर लेता है।
आर्किडेसी , ट्रेपेसी और पोड़ोस्टीमेसी कुलों को छोड़कर शेष सभी आवृतबीजियो में भ्रूणपोष पाया जाता है। कुछ पौधों जैसे – चना , मटर और सेम आदि में सम्पूर्ण भ्रूणपोष का उपयोग भ्रूण के विकास में पोषण हेतु कर लिया जाता है। अत: इनके बीज में भ्रूणपोष नहीं होता और ऐसे बीजों को अभ्रूणपोषी बीज कहते है। इन बीजों में संचित खाद्य पदार्थ बीजपत्रों में उपस्थित होते है और इनका उपयोग अंकुरण के समय किया जाता है। इसके विपरीत कुछ अन्य पौधों जैसे – गेहूँ , धान , मक्का , नारियल और अरण्डी के बीजों में भ्रूणपोष पाया जाता है। अत: इन बीजों को भ्रूणपोषी बीज कहा जाता है। कोशिका विभाजन विज्ञान की दृष्टि से अधिकांश पौधों में भ्रूणपोष (3n) होता है। इन तीन अगुणित केन्द्रकों में से दो ध्रुवीय केन्द्रकों के रूप में मादा युग्मकोदभिद से प्राप्त होते है लेकिन विभिन्न प्रकार के आवृतबीजी भ्रूणकोषों से ध्रुवीय केन्द्रकों की संख्या अलग अलग होती है। अत: इनमें विकसित होने वाले भ्रूणकोष की प्रकृति भी भिन्नता दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर ओइनोथेरा में केवल एक ध्रुवीय केन्द्रक होता है। अत: यहाँ द्विनिषेचन के बाद 2n भ्रूणपोष बनता है। वही दूसरी तरफ पेपेरोमिया के भ्रूणकोष में 8 ध्रुवीय केन्द्रक पाए जाते है , इनमें 9n भ्रूणपोष बनता है।
भ्रूणपोष की कोशिकाएँ सामान्यतया क्लोरोफिल रहित होती है लेकिन कुछ पौधों के भ्रूणपोष में क्लोरोफिलयुक्त कोशिकाएँ पायी जाती है , जैसे – क्राइनम और रेफेनस की जातियाँ। सामान्यतया भ्रूणपोष कोशिकाएँ समव्यासी होती है तथा इनमें प्रचुर मात्रा में खाद्य संचित रहता है। खाद्य की प्रकृति और इसका अनुपात विभिन्न जातियों में भिन्न भिन्न हो सकता है।
एकबीजपत्री पादपों जैसे – घास , मक्का , गेहूँ और अन्य कुछ पौधों में भ्रूणपोष का परिधीय कोशिका स्तर एधा सदृश होता है जो अन्दर की तरफ नवकोशिकाएँ बनाता है , जिनमें मांड की प्रचुर मात्रा संचित रहती है। बीज के परिपक्व होने के समय यह विभाजन रुक जाता है तथा बाहरी कोशिका स्तर में एल्यूरोन कण संचित हो जाते है।

भ्रूणपोष के प्रकार (types of endosperm in hindi)

भ्रूणपोष की परिवर्धित विधि के आधार पर ये तीन प्रकार के होते है –
1. केन्द्रकीय (nuclear)
2. कोशिकीय (cellular)
3. हीलोबियल (helobial)
डेविस (1966) के अनुसार अध्ययन किये गए 288 आवृतबीजी कुलों में से 250 कुलों के आँकड़े उपलब्ध है। इनमें से 161 कुलों में केन्द्रकीय , 72 कुलों में कोशिकीय तथा केवल 17 कुलों में हीलोबियल प्रकार का भ्रूणपोष पाया जाता है। कोशिकीय भ्रूणपोश मुख्यतः द्विबीजपत्री जबकि हीलोबियल भ्रूणपोष एकबीजपत्री कुलों में पाया जाता है।
प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन के पश्चात् इसके पुत्री केन्द्रकों में भी पुनरावृत विभाजन होते है। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन के पश्चात् भित्ति का निर्माण होता है या नहीं इसके आधार पर भ्रूणपोष का वर्गीकरण केन्द्रकीय , कोशिकीय अथवा हीलोबियल के रूप में किया जाता है।
1. केन्द्रकीय भ्रूणपोष (nuclear endosperm in hindi): इस प्रकार के भ्रूणपोष के विकास में प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का प्रथम विभाजन और उसके बाद के अनेक विभाजन संपन्न होने के बाद भी सन्तति केन्द्रकों के आसपास कोशिका भित्ति का निर्माण नहीं होता।
अत: भ्रूणपोष की प्रमुख संरचना में अनेक स्वतंत्र केन्द्रक कोशिका द्रव्य में निलम्बित पाए जाते है। कुछ पौधों , जैसे – लिम्नेथस और ऑक्सीस्पोरा में ये केन्द्रक अंत तक स्वतंत्र रहते है और विकासशील भ्रूण के द्वारा इनका उपयोग भी इसी रूप में किया जाता है लेकिन अधिकांश उदाहरणों में कुछ विभाजनों के पश्चात् प्रत्येक मुक्त केन्द्रक के चारों तरफ कोशिका भित्ति का निर्माण हो जाता है।
इनमें भित्ति निर्माण सामान्यतया परिधि से केंद्र की तरफ अर्थात अभिकेन्द्रकी क्रम में होता है जिससे कुछ समय बाद भ्रूणपोष कोशिकीय प्रकृति का हो जाता है। वैसे कुछ पौधों जैसे – फेसिओलस में कोशिका भित्ति का निर्माण भ्रूण के चारों तरफ और क्रोटोलेरिया में बीजाण्डद्वारीय सिरे पर होता है। बाकी बचे केन्द्रक स्वतंत्र रूप से कोशिका द्रव्य में निलम्बित रहते है।
विभिन्न आवृतबीजियों के भ्रूणपोष में मुक्त केन्द्रकी विभाजनों में विविधता देखी गयी है। उदाहरण के तौर पर प्रिमुला , मैन्गीफेरा और सिट्रस आदि में सैकड़ो भ्रूणपोष केन्द्रक विभाजन के बाद निर्मित होकर भ्रूणपोष की परिधि पर व्यवस्थित हो जाते है। इसके बाद ही इनमें भित्ति का निर्माण प्रारंभ होता है लेकिन केलोट्रोपिस और रेफ्लेशिया में जब 8-16 युक्त केन्द्रक बनते है तो इसके बाद ही इनके आस पास भित्ति निर्माण हो जाता है। इसके विपरीत कार्डियोस्पर्म्स और ट्रापीओलियम आदि कुछ पौधों में भ्रूणपोष हमेशा मुक्तकेन्द्रकी रहता है। भ्रूणपोष में भित्ति का निर्माण निम्नलिखित चार प्रकार से हो सकता है –
(1) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के विभाजन के पश्चात् कोशिकाओं की एकपरिधीय परत बनती है। इसके बाद इस परत की कोशिकाओं में निरंतर परिनतिक विभाजन होते है जिससे सम्पूर्ण भ्रूणपोष की गुहिका कोशिकाओं से भर जाती है।
(2) इस प्रकार में भी कोशिकाओं की परिधीय परत बनती है और परत की सभी कोशिकाएँ केन्द्रीय भाग की तरफ अग्रसर होकर भ्रूणपोष के मध्य में मिल जाती है। इसके बाद ये बड़ी और सुदिर्घित कोशिकाएँ विभाजित होकर छोटी छोटी कोशिकाओं में बँट जाती है। उदाहरण – बोकेनिया , युफोर्बिया।
(3) इस स्थिति में भित्ति का निर्माण बीजाण्डद्वारीय सिरे से प्रारंभ होता है लेकिन निभागीय सिरे की तरफ उपस्थिति केंद्र स्वतंत्र रहते है। उदाहरण – पोलीगोनम और रूमेक्स।
(4) इस प्रकार में केन्द्रक भ्रूणपोष के कोशिका द्रव्य में निलम्बित रहते है और भित्ति का निर्माण भ्रूणपोष के सभी भागों में एक साथ प्रारंभ होता है। भ्रूणपोष केन्द्रकों में भित्ति की यह एक अनूठी और दुर्लभ प्रक्रिया है जो केवल कुछ ही पौधों जैसे – इरेंथस , टाको आदि में पायी जाती है।
भ्रूणपोष के सभी केन्द्रक आकार में बराबर नहीं होते है। सामान्यतया निभागीय सिरे पर उपस्थित केन्द्रक बड़े और बीजाण्डद्वारीय सिरे के केन्द्रक छोटे होते है।
नारियल केन्द्रकीय प्रकार के भ्रूणपोष का एक प्रमुख उदाहरण है। इसके बड़े भ्रूणपोष में अनेक भ्रूणपोश केन्द्रक दूध जैसे द्रव में निलम्बित रहते है। इसे द्रव्य सिन्सीशियम कहते है। भ्रूणपोष के आकार में जैसे जैसे वृद्धि होती है तो इसके साथ ही इनके केन्द्रकों में भी विभाजन होते रहते है। कभी कभी स्वतंत्र केन्द्रकों के अतिरिक्त सिंसीशियम में अनेक बहुकोशीय और बहुकेन्द्रीय संरचनाएँ भी पायी जाती है। धीरे धीरे यह कोशिकाएँ और मुक्त केन्द्रक भ्रूणपोष की परिधि पर एकत्र हो जाते है और परिधि से केन्द्रक की तरफ कोशिकाओं की परतों का निर्माण प्रारंभ हो जाता है। इसे नारियल की कच्ची गिरी कहते है। इन कोशिकाओं में कुछ और विभाजन होते है , जिससे भ्रूणपोष की मात्रा में वृद्धि होती है।
कोशिकाओं का निर्माण तब प्रारंभ होता है जब फल 100 मिमी लम्बा हो जाता है। परिपक्व नारियल में उपस्थित तरल भ्रूणपोष कोमल और दुधिया होता है इसमें केन्द्रक निलम्बित नहीं होते।
सुपारी (ऐरेका कटेचू) में भी भ्रूणपोष का विकास लगभग नारियल के समान ही होता है लेकिन इसमें भ्रूणकोष की सम्पूर्ण गुहिका विरूपित भ्रूणपोष द्वारा घेर ली जाती है और अंत में ये कठोर और दृढ हो जाती है। इसे चर्विताभ भ्रूणपोष कहते है।

2. कोशिकीय भ्रूणपोष (cellular endosperm)

इस प्रकार के भ्रूणपोष परिवर्धन में प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक के प्रथम तथा इसके बाद होने वाले सभी केन्द्रकीय विभाजन के साथ साथ कोशिका द्रव्य का विभाजन भी भित्तियों द्वारा होता है। अत: कोशिकीय भ्रूणपोष के विकास की किसी भी अवस्था में स्वतंत्र केन्द्रक नहीं पाए जाते है। संभवतः प्रथम केन्द्रकीय विभाजन के बाद कोशिका द्रव्य का विभाजन अनुप्रस्थ भित्ति निर्माण द्वारा होता है।
लेकिन कुछ प्रजातियों में प्रथम विभाजन लम्बवत अथवा तिर्यक भित्ति द्वारा होता है।
श्नार्फ (schnarf 1929) ने कोशिकीय भ्रूणपोष के अंतर्गत प्रथम और द्वितीय विभाजन भित्तियों के निर्माण के आधार पर कोशिकीय भ्रूणपोष को पाँच उप श्रेणियों में विभेदित किया है –
(1) ऐडोक्सा प्रकार – इसमें प्राथमिक भ्रूणपोष के सभी विभाजन लम्बवत होते है। परिणामस्वरूप 4 उदग्र लम्बी बेलनाकार कोशिकाएँ बनती है।
(2) वर्बेस्कस प्रकार – यहाँ प्रथम कोशिका भित्ति अनुप्रस्थ और द्वितीय लम्बवत तल में बनती है।
(3) एनोना प्रकार – यहाँ प्रथम , द्वितीय और तृतीय विभाजन अनुप्रस्थ होते है और चार सन्तति कोशिकाएँ एक पंक्ति में बनती है।
(4) मायोसोटिस प्रकार – यहाँ प्रथम विभाजन तिरछा होता है परिणामस्वरूप दो असमान कोशिकाएँ बनती है।
(5) कुछ पौधों में भित्ति निर्माण का कोई विशेष क्रम नहीं पाया जाता है।

3. हीलोबियल प्रकार का भ्रूणकोष (helobial endosperm)

यह केन्द्रकीय और कोशिकीय प्रकार के मध्य की संरचना है। यहाँ प्रथम अनुप्रस्थ विभाजन के बाद एक भ्रूणपोष गुहा दो बड़े प्रकोष्ठों में विभक्त हो जाती है। सामान्यतया बीजाण्डद्वारीय प्रकोष्ठ , निभागीय प्रकोष्ठ की तुलना में बड़ा होता है। निभागीय प्रकोष्ठ का केन्द्रक सामान्यतया अविभाजित रहता है अथवा फिर इसमें बहुत थोड़े विभाजन होते है। बीजाण्डद्वारिय प्रकोष्ठ में अनेक केन्द्रक बन जाने के कारण केन्द्राभिसारी क्रम में यहाँ भित्ति निर्माण होता है और यह सम्पूर्ण प्रकोष्ठ कोशिकीय हो जाता है।
निभागीय प्रकोष्ठ का केन्द्रक विभाजित न होकर या तो विघटित हो जाता है या केवल कुछ ही सन्तति केन्द्रक बनाता है। ये भी आगे चलकर विघटित हो जाते है। निभागीय प्रकोष्ठ में अब एक बड़ी रिक्तिका बन जाती है और कोशिका द्रव में भी पूर्णतया विघटित होकर नष्ट हो जाता है। अब जो खाली हुआ स्थान है , यह बीजाण्डद्वारीय प्रकोष्ठ में बने हुए कोशिकीय भ्रूणपोष के द्वारा भर दिया जाता है।
हैलोबियल भ्रूणपोष की उपस्थिति एकबीजपत्री पौधों में गण हीलोबियेल्स के सदस्यों का प्रमुख लक्षण है।