न्यू मूर द्वीप विवाद क्या है | न्यू मूर द्वीप विवाद किन देशों के बीच आइलैंड new moore island dispute between india and bangladesh
new moore island dispute between india and bangladesh in hindi न्यू मूर द्वीप विवाद क्या है | न्यू मूर द्वीप विवाद किन देशों के बीच आइलैंड ?
न्यू मूरे द्वीप विवाद
भारत और बांग्लादेश के बीच कुछ क्षेत्रों के स्वामित्व संबंधी विवाद भी रहे हैं। इनमें न्यू मूरे द्वीप विवाद, तीन बीघा गलियारे से जुड़ी समस्या और बेलोनिया सेक्टर में मुहुनिया चार में हुए संघर्ष शामिल हैं। इन तीनों में न्यू मूरे द्वीप विवाद अभी भी प्रमुख समस्या के रूप में बना हुआ है। बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मूरे द्वीप के अंतर्गत दो से १२ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रा आता है जो समुद्री ज्वार भाटों पर निर्भर करता है। भारत के सबसे करीबी तटीय क्षेत्रा से वह करीब ५२०० मीटर की दूरी पर और बांग्लादेश के तट से ७००० मीटर पर स्थित है। १२ मार्च १९८० को द्वीप पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद से ही सारी समस्याएं पैदा हुईं। बांग्लादेश ने भारत के स्वामित्व पर ही सवाल उठा दिया। इस समस्या की हालांकि कई स्तरों पर चर्चा हो चुकी है, फिर भी इसका समाधान नहीं हो सका है।
भारत-बांग्लादेश संबंधों पर तीन बीघा गलियारे के विवाद के चलते भी प्रतिकूल असर पड़ा है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान इस छोटे से भारतीय परिक्षेत्रा को बांग्लादेश को पट्टे पर दे दिया गया था, लेकिन इस समझौते का क्रियान्वयन नहीं हो सका चूंकि इसके लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत पड़ती।
अन्य द्विपक्षीय मुद्दे
भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद के अन्य मुद्दों में एक चकमा शरणार्थियों की समस्या है जिन्होंने भारत के राज्य त्रिपुरा में शरण ले रखी है। १९९४ में हुई वार्ता के मुताबिक इन चकमा शरणार्थियों को त्रिीपुरा से वापस बांग्लादेश की चिट्टगोंग पहाड़ियों में भेज दिया गया। कई को वापस भेज दिया गया है और कई अभी भी वापसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
भारत के सामने एक अन्य चुनौती इस समय वे बांग्लादेशी शरणार्थी हैं जिनमें से अधिकांश गरीब तबकों से हैं और भारत के विभिन्न हिस्सों में आकर बस गए हैं। एक आकलन के मुताबिक इनकी संख्या दस लाख से भी ज्यादा है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। भारत के कई बार अनुरोध के बावजूद बांग्लादेश सरकार इन्हें वापस बुलाने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। भारत सरकार के पास इन्हें बांग्लादेश प्रत्यर्पित करने के लिए ठोस कदम उठाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
सारांश
भारतीय विदेश नीति की प्राथमिकताओं में से एक रहा है कि अपने पड़ोसियों के साथ मिल कर रणनीतिक तौर पर सुरक्षित, राजनीतिक रूप से स्थिर और सौहार्दपूर्ण तथा आर्थिक सहयोग के माहौल का निर्माण किया जाए। भारत ने अपने पड़ोसियों से मित्राता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों के बारे में जैसा ऊपर बताया गया है, इससे साफ संकेत मिलता है कि भारत संघर्ष से बचना चाहता है, अंतरराष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है और सभी पड़ोसियों से मित्राता कायम रखना चाहता है। भारत के कई पड़ोसी गुट निरपेक्ष हैं और उन्होंने शांति की दिशा में भारत की पहल का माकूल जवाब भी दिया है। इसके बावजूद भारत के सामने संघर्ष के कई क्षण आए और कई नियमित युद्ध भी हुए। पाकिस्तान के साथ मित्रावत संबंध बनाए रखने के लिए भारत ने कई बार बिना किसी प्रतिदान की उम्मीद किए एकतरफा पहल की (जैसे पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का ‘गुजराल सिद्धांत‘, जो कहता है कि अपने पड़ोसियों को आप जो कुछ दे सकते हैं वो दें और बदले में किसी चीज की उम्मीद न करें, चूंकि आप उनकी तुलना में बड़े देश हैं। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर बस सेवा, आगरा शिखर सम्मेलन इत्यादि)। पाकिस्तान ने भारत पर बदले में करगिल युद्ध थोप दिया और सीमा पार आतंकवादी कार्रवाइयों में इजाफा कर दिया। पाकिस्तान लगातार कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में लगा हुआ है। भारत की संसद पर हमला भी पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने ही किया था। वास्तव में, पाकिस्तान हर संभव तरीके से भारत में अस्थिरता लाने की कोशिश कर रहा है। अपने पड़ोसी देश के खिलाफ आतंकवाद को समर्थन देने वाले देश के रूप में पाकिस्तान एक बेहतरीन उदाहरण है।
अपने अन्य पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध मधुर हैं। नेपाल और श्रीलंका में गठित नई सरकारों ने भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने और समझौते करने का संकल्प दोहराया है। भारत लगातार इस क्षेत्रा में आर्थिक और राजनीतिक सहयोग के लिए माहौल बनाने में अपने प्रयास जारी रखे हुए है। भारत और इसके पड़ोसियों के बीच नैकट्य का सबसे अच्छा उदाहरण नेपाल नरेश और वहां के प्रधानमंत्री की मार्च २००३ में हुई भारत यात्रा थी। इसी तरह श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भी हाल ही में भारत का दौरा किया था। पाकिस्तान को अगर छोड़ दें, तो शक्तिशाली चीन समेत सभी पड़ोसियों के साथ भारत के मधुर संबंध कायम हैं। यह भारत की पड़ोसियों से अच्छे संबंधों में आस्था का परिचायक है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
वी.पी. दत्त (१९८४). इंडियाज फॉरेन पॉलिसी, नई दिल्ली: विकास।
एम. रसगोत्रा, वी.डी. चोपड़ा और के.पी. मिश्रा (१९९०), इंडियाज फॉरेन पालिसी इन १९९०. नई दिल्लीः पैट्रियट प्रकाशन ।
ललित मानसिंह. (१९९८). इंडियाज फॉरेन पॉलिसी-एजेंडा फॉर दि २१फस्ट सेंचुरी. दूसरा खंड, नई दिल्लीः कोणार्क प्रकाशन।
आर.के. खिलनानी (२०००). रिस्टक्चरिंग इंडियाज फारेन पोलिशी, नई दिल्लीः कॉमनवैल्थ।
जे. एन. दीक्षित (२००२) इंडियाज फॉरेन पॉलिसी-चैलेंज ऑफ टेररिज्म, नई दिल्लीः ज्ञान।
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