प्रकार्यात्मक विश्लेषण का प्रतिरूप (paradigm in hindi) व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य – यह विभेद क्यों?
(paradigm in hindi) प्रकार्यात्मक विश्लेषण का प्रतिरूप व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य – यह विभेद क्यों ?
प्रकार्यात्मक विश्लेषण का प्रतिरूप (paradigm)
हर समाजशास्त्री के लिए प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए निश्चित प्रतिरूप या पैराडाइम (paradigm) की जरूरत के प्रति सजग होना आवश्यक है। रॉबर्ट मर्टन ऐसे प्रतिरूप की आवश्यकता के प्रति पूर्ण रूप से सजग है। उसके अनुसार प्रतिरूप की सहायता में आधार तत्वों तक सीधे ही पहुंचा जा सकता है और प्रकार्यात्मक विश्लेषण में निहित मान्यताओं (assumptions) को भी समझा जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रतिरूप की मदद से समाजशास्त्री के लिए प्रकार्यात्मक विश्लेषण के राजनीतिक तथा विचारात्मक परिणामों के प्रति संवेदनशील होना संभव हो जाता है।
प्रतिरूप के बिना सिद्धांत को उचित तरीके से नियमबद्ध भी नहीं किया जा सकता। प्रतिरूप से ही समाजशास्त्रीय विश्लेषण में प्रयुक्त मान्यताएं (assumptions), अवधारणाएं और मूल संकल्पनाएं हमारे सामने आ पाती हैं। इससे समाजशास्त्रीय अनुसंधान में मनमानेपन और निरुद्देश्यता की संभावना कम हो जाती है।
प्रकार्यात्मक विश्लेषण के प्रतिरूप से विश्लेषण करने का तरीका क्या हो, किन बातों का अध्ययन करना है, किन पर ज्यादा ध्यान देना है और पारंपरिक एवं परिवर्तनवादी दृष्टिकोणों के वैचारिक द्वंद्व में विश्लेषण विशेष की जगह कहां पर है यह निर्धारित करना है – ऐसे सभी प्रश्नों पर प्रकार्यात्मक विश्लेषण के प्रतिरूप से हमें मदद मिलती है। आइए इन प्रतिरुपों पर विचार करें।
वे तथ्य जिनके प्रकार्य देखे जा सकते हैं
आपके लिए यह जानना जरूरी है किस प्रकार की समाजशास्त्रीय सामग्री का प्रकार्यात्मक विश्लेषण किया जा सकता है। क्या प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए सभी उपयुक्त हैं – चाहे वे सांस्कृतिक गतिविधियां हों, अनुष्ठान हों, सामाजिक संस्थाएं हों, मशीने हों या व्यक्ति हों? मर्टन का कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए पहली शर्त यह है कि विश्लेषण के लिए उपयुक्त तत्व को मानकीकृत (standardised) रुप से विन्यासित (patterned) होना चाहिए, जैसे सामाजिक भूमिकाएं, संस्थागत विन्यास, सामाजिक प्रक्रियाएं, सांस्कृतिक विन्यास, सांस्कृतिक भावनाएं, सामाजिक प्रतिमान, सामाजिक संरचना, सामाजिक नियंत्रण उपाय आदि।
इस प्रकार, नियमित रूप से चलने वाली गतिविधि को प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए चुना जा सकता है। उदाहरण के लिए प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए क्रिकेट, विवाह धार्मिक अनुष्ठान या राज्य के दमनकारी तंत्र को चुना जा सकता है। यह इसलिये क्योंकि ये सारे उदारहण मानकित स्वरूप वाले सामाजिक तथ्य (items) हैं। लेकिन प्रकार्यात्मक विश्लेषण के लिए व्यक्ति विशेष की स्वभावगत संवेदनशीलता को नहीं चुना जा सकता क्योंकि यह समाज की नियमित एवं मानकित गतिविधि का उदाहरण नहीं है।
निष्पक्ष परिणामों की अवधारणाएं
मर्टन का यह विचार तो आपको मालूम ही है कि सामाजिक तथ्य के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों परिणाम हो सकते है।। समाजशास्त्री के रूप में हमारा काम इन परिणामों का समग्र रूप से आकलन करना है।
दूरदर्शन के प्रकार्यात्मक विश्लेषण को ही लें। इसमें सकारात्मक प्रकार्य स्पष्ट है। यह आपको दुनिया भर की जानकारी देता है और दुनिया को आपके करीब लाता है, लेकिन इसके नकारात्मक प्रकार्य भी देखे जाने चाहिए। यह उपभोक्तावाद (consumerism) और हिंसा को भी कभी-कभी बढ़ावा देता है। इस तरह उचित निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें दूरदर्शन के दोनों तरह के प्रकार्यों पर ध्यान देना चाहिए।
जिसका प्रकार्य देखा जा रहा है उस इकाई की अवधारणा
इस तथ्य की पूरे समाज के लिए सकारात्मक या नकारात्मक भूमिका होनी जरूरी नहीं है। कुछ तथ्य एक समूह या उपसमूह के लिए सकारात्मक हो सकते हैं और दूसरे के लिए नकारात्मक।
उदाहरण के लिए दूरदर्शन द्वारा क्रिकेट पर पूरा मैच दिखाए जाने का एक प्रकार्य यह हो सकता है उस समय अपराध संख्या कम हो जाए। यह इसका सकारात्मक प्रकार्य है परन्तु इसका नकारात्मक दुष्प्रकार्य भी हो सकता है। इससे काम करने की जगह पर लोगों की कार्यक्षमता कम हो सकती है क्योंकि अपना काम छोड़कर अक्सर लोग मैच देखने लगते हैं। इसलिए मर्टन का कहना है कि किसी सामाजिक तथ्य के सकारात्मक या नकारात्मक होने के बारे में यह देखना आवश्यक है कि प्रकार्यात्मक परिणामों को पूरे समाज की दृष्टि से जाँचा जा रहा है या समाज के एक उप-समूह की दृष्टि से।
समाजशास्त्री को यह नहीं मानना चाहिए कि उसका काम सामाजिक ढांचे के मात्र स्थिर पक्षों का विश्लेषण करना है। समाजशास्त्री को समाज के ढांचे में आ रहे परिवर्तनों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। मर्टन का कहना हैं कि प्रकार्यात्मक विश्लेषणकर्ता को सामाजिक परिवर्तनों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। आपको मालूम ही है कि कुछ भी स्थिर या अपरिहार्य नहीं है और प्रकार्यात्मक विकल्प संभव है। विश्लेषणकर्ता को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हर सामाजिक तथ्य की सकारात्मक भूमिका नहीं होती। अनेक सामाजिक और सांस्कृतिक तथ्यों के नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। मर्टन का कहना है कि नकारात्मक दुष्प्रकार्यों का होना सामाजिक संरचना में तनाव की स्थिति को बताता है। ऐसे दुष्प्रकार्यों के अध्ययन के आधार पर सामाजिक गतिकी और परिवर्तन का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
प्रकार्यात्मक विश्लेषण के वैचारिक दृष्टिकोणों में समस्याएं
अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण प्रायः “रूढ़िवादी‘‘ या ‘‘प्रतिक्रियावादी‘‘ प्ररिप्रेक्ष्य से ओत-प्रोत होते हैं। लेकिन मर्टन का कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अपना कोई अंतर्निहित वैचारिक दृष्टिकोण नहीं होता है। आप किस तरीके से उसे इस्तेमाल करें यह आप पर निर्भर करता है, जैसे उदाहरण के लिए, अगर आप प्रकार्य के सकारात्मक परिणामों पर ही ध्यान दें तो आपके विश्लेषण परिणाम अति रूढ़िवादी वैचारिकता के पक्ष में होंगे। दूसरी और, अगर आप नकारात्मक दुष्प्रकार्यों की ओर ही ध्यान दें तो अपने विश्लेषण के परिणाम आपको अति क्रांतिकारी काल्पनिक आदर्श समाज या यूटोपिया (नजवचपं) की ओर ले जाएंगे। एक व्यावहारिक उदाहरण लें । एक समाजशास्त्री के रूप में आप जाति व्यवस्था के सकारात्मक प्रकार्यों को ही देखें। जैसे जाति-व्यवस्था प्रतियोगिता की भावना पर रोक लगाती है और इससे व्यवस्था का निश्चित क्रम बना रहता है। जाति-व्यवस्था हर व्यक्ति को स्वधर्म (अपने धर्म) द्वारा निर्धारित पेशा चुनने का निर्देश देती है अतरू पेशे की दौड़ के तनाव और समग्र व्यक्तित्व के न बन पाने की स्थिति नहीं आती। यदि आपने विश्लेषण में इस तरह जाति-प्रथा के सकारात्मक पक्ष को देखा है तो आपने अति-रूढ़िवादी वैचारिकता अपनाई है। लेकिन अब आप जाति व्यवस्था के नकारात्मक दुष्प्रकार्यों पर भी ध्यान दें तो आप पर रूढ़िवादिता का आरोप नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि नकारात्मक दुष्प्रकार्यों पर ध्यान देने का अर्थ है परिवर्तन का समर्थन । मर्टन का कहना है कि प्रकार्यात्मक विश्लेषण की अपने आप में कोई वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं होती। यह तो मुख्यतयरू प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का प्रयोग करने के तरीके का प्रश्न है। दूसरा प्रश्न है प्रकार्यों में विभेद का। इसकी चर्चा अगले भाग में की जा रही है। अगले भाग को पढ़ने से पहले सोचिए और करिए 1 को पूरा करें।
सोचिए और करिए 1
अपने समाज में जातिवाद पर ध्यान दीजिए, इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रकार्यों की समीक्षा कीजिए। दो पृष्ठ की टिप्पणी में इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रकार्यों की सूची बनाइए। संभव हो तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणियों से अपनी टिप्पणी की तुलना कीजिए।
व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्य – यह विभेद क्यों?
मर्टन के प्रकार्यात्मक विश्लेषण को अव्यक्त प्रकार्य की अवधारणा ने नया अर्थ दिया। उसने इसे व्यक्त प्रकार्य से अलग करके देखा। मर्टन के अनुसार, यही विभेद उसके प्रकार्यात्मक विश्लेषण की विशेष बात है और इससे दुनिया को देखने की दृष्टि से परे हमारी पहुंच हो जाती है। अव्यक्त प्रकार्य की धारणा से सामाजिक विश्वासों व गतिविधियों को समझने के लिए नया परिप्रेक्ष्य मिलता है। इस प्रकार “तर्कपूर्णता‘‘ और ‘‘तर्कहीनता‘‘ तथा ‘‘नैतिकता‘‘ और ‘‘अनैतिकता‘‘ के प्रचलित अर्थों को अब दूसरी तरह से भी समझा जा सकता है। क्योंकि कथित रूप में ‘‘अनैतिक‘‘ अथवा ‘‘विवेकहीन‘‘ कार्यकलाप में हमें भी अव्यक्त रूप में कोई न कोई आवश्यक सामाजिक कार्य की पूर्ति का आभास हो सकता है। इस तरह सामाजिक ज्ञान और खोज का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
‘‘तर्कहीन‘‘ लगने वाली बातें सार्थक हो जाती हैं
अव्यक्त और व्यक्त प्रकार्यों के विभेद से समाजशास्त्री का विश्लेषण बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर हमें अव्यक्त प्रकार्यों की समझ होगी तो हमें ऐसी हर बात को जिसका कोई तुरंत या व्यक्त तथा सकारात्मक परिणाम नहीं है, सीधे-सीधे ‘‘तर्कहीन‘‘ करार करने में हिचक होगी। हमारे सामने कहीं ज्यादा गहरे प्रश्न उठेंगे, जैसे “तर्कहीन‘‘ लगने वाली बात आज तक क्यों बनी है?
तभी हमें संभवतः तर्कहीन कहे जाने वाले कार्य या विश्वास के पीछे छिपे और अव्यक्त अर्थ को समझने की आवश्यकता महसूस होगी। मर्टन ने होपी जनजाति के एक उदाहरण से अपनी बात समझाने का प्रयास किया है। होपी जनजाति के लोग अच्छी वर्षा होने के लिए अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान को धर्मनिरपेक्ष, तर्कशील लोग कितना महत्व दे सकते हैं? निश्चय ही इस अनुष्ठान से वर्षा नहीं होती। वर्षा का किसी अनुष्ठान या पूजा-पाठ से कोई मतलब नहीं है। तुरंत हमारे लिए यह निष्कर्ष निकालना आसान हो जाता है कि होपी अनुष्ठान आदिवासियों का एक तर्कहीन अंधविश्वास है।
इसी बिंदु पर तुरंत मर्टन इस निष्कर्ष पर पहुंचने से हमें रोकता है। जल्दबाजी में यह निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए कि इस संस्कर से कुछ प्राप्त नहीं होता। मर्टन कहता है कि हम इस संस्कर का गहरा छिपा हुआ अर्थ समझें। अनुष्ठान से वर्षा तो नहीं होती लेकिन इससे होपी जनजाति के बिखरे सदस्य एक जगह जमा होकर सामूहिक रूप से कार्य करते हैं। उनकी एकजुटता मजबूत होती है और उनके समाज या जाति में एकता आती है। यह मामूली उपलब्धि नहीं है। यही इस अनुष्ठान का अव्यक्त प्रकार्य है।
खोज के नए सवालों का उदय
अभी तक की गई चर्चा से आपको स्पष्ट हो गया होगा कि समाजशास्त्री का काम आम व्यक्तियों की भांति नहीं होता। अव्यक्त प्रकार्यों की धारणा के प्रति सजग हो अपने विशिष्ट प्रशिक्षण के आधार पर उनके लिए खोज के नए सवालों में जाना संभव है। समाज के सदस्य आमतौर पर व्यक्त और सामने होने वाले प्रकार्यों के बोध तक ही अपने को सीमित रखते हैं और गहरे तथा छिपे हुए परिणामों के बारे में सोचते भी नहीं हैं और न जानते हैं। लेकिन समाजशास्त्री के लिए बाहर से ही नजर आने वाले परिणामों से संतुष्ट होना संभव नहीं है। उनकी रुचि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों के गहरे अर्थ और आयामों की तलाश में होती है। इसलिए उनका ध्यान ऐसे सामाजिक तथ्यों पर जाता है जिनमें दुनियादारी वाली व्यवहारिकता परखने वाले लोगों की जरा भी दिलचस्पी नहीं होती क्योंकि ऐसे लोग प्रायरू सीधे-सीधे काम से मतलब रखते हैं।
इसी बात को समझने के लिए एक उदाहरण लें। मान लीजिए कि आप केवल गंभीर “कलात्मक‘‘ फिल्मों के शौकीन किसी व्यक्ति से बात कर रही हैं। उसकी राय में “व्यावसायिक‘‘ (commercial) फिल्मों में केवल बकवास होती है, लेकिन अगर आप मर्टन द्वारा बताए अव्यक्त प्रकार्यों की समझ रखती हैं तो आप बुद्धिजीवी के तर्क की कायल नहीं होंगी क्योंकि व्यावसायिक फिल्मों की कहानी, संगीत, नृत्य, रोमांस और लड़ाई के दृश्यों की “निरर्थक बकवास‘‘ में भी आप पाएंगी कि लोग सनातन विश्वासों और आस्थाओं की छवि पा रहे हैं। ये विश्वास हैं – मातृत्व की गरिमा, अंततः अच्छाई की बुराई पर जीत, बदमाश का हारना आदि। तेजी से बदलती दुनिया में ये विश्वास और आस्थाएं समाप्त हो सकती हैं। व्यावसायिक फिल्मों का अव्यक्त प्रकार्य समाज को आस्थाहीनता की ऐसी विस्फोटक स्थिति से बचाना है। ये फिल्में विस्फोटक स्थिति से बचाने के लिए ‘‘सुरक्षा वाल्वं‘‘ की तरह काम करती हैं और लोगों की आस्था मजबूत बनाती हैं। मर्टन द्वारा सुझाई गई इस दृष्टि से देखने पर समाजशास्त्रीय अनुसंधान का एक नया क्षेत्र (व्यावसायिक फिल्मों का अध्ययन) खुलता है। इस बिंदु को पूरी तरह आत्मसात करने हेतु सोचिए और करिए 2 को पूरा करें।
सोचिए और करिए 2
होली जैसे सामाजिक-धार्मिक त्यौहार के अव्यक्त प्रकार्यों को समझने का प्रयास कीजिए कि कैसे यह विश्लेषण अनुष्ठानों, रिवाजों और त्यौहारों के प्रति आपकी दृष्टि को व्यापक बनाता है। होली के व्यक्त और अव्यक्त प्रकार्यों के बारे में एक पृष्ठ की टिप्पणी लिखिए और संभव हो तो अपने अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों की टिप्पणियों से इसकी तुलना कीजिए।
समाजशास्त्रीय ज्ञान का विस्तार
स्पष्ट है कि अव्यक्त प्रकार्य की समझ रखने वाले समाजशास्त्री का ज्ञान के विकास में सकारात्मक योगदान होता है। अगर समाजशास्त्री व्यक्त प्रकार्यों से ही संतुष्ट हो जाए तो उसके पास कुछ नई बात कहने का कुछ नहीं रहेगा। इसलिए, मर्टन ने कहा है कि अव्यक्त प्रकार्यों के विभेद से समाजशास्त्रीय ज्ञान का क्षेत्र व्यापक होता है।
मर्टन ने इस सिलसिले में एक बड़े रोचक उदाहरण की चर्चा की है। वह रसाहरण वेब्लेन (Veblen) की प्रसिद्ध पुस्तक थ्योरी ऑफ द लेंजर क्लास (1989) से लिया गया है जिसमें लेखक ने शानदार वस्तुएं खरीदने के तरीकों के पीछे छिपे अव्यक्त प्रकार्य की समीक्षा की है। वेब्लेन को समझने से पहले, एक साधारण प्रश्न का उत्तर तलाशना बेहतर होगा – लोग कारों, टेलीविजनों, वाशिंग मशीनों यहां तक कि धुलाई के साबुनों के नये-नये मॉडलों को बहुत ज्यादा महत्व क्यों देते हैं?
लोग महंगी, आकर्षक पैकिंग वाली उपभोक्ता वस्तुएं क्यों खरीदना चाहते हैं? यह हमेशा कहा जा सकता है कि लोग कार परिवहन की सुविधा के लिए खरीदते हैंय टेलीविजन इसलिए खरीदते हैं कि इसके कार्यक्रमों से दुनिया भर की राजनीति, संस्कृति आदि की जानकारी मिलती है। निश्चय ही उपभोक्ता वस्तुओं के ये व्यक्त प्रकार्य हैं और उपभोक्ताओं को इनकी पूरी जानकारी है।
हर व्यक्ति को यह बात मालुम है। अब इस क्षेत्र में समाजशास्त्री का क्या योगदान है? मर्टन ने कहा है कि वेब्लेन के विश्लेषण से पता चलता है कि किस तरह समाजशास्त्री द्वारा उपभोग के तरीकों के व्यक्त प्रकार्यों से आगे जाकर अध्ययन किया जाता है और ऐसी नयी बातें बताई जाती हैं जो सामान्य व्यक्ति की समझ से पूरी तरह भिन्न हैं। वेब्लेन के अनुसार लोग नये मॉडल की कार या टेलीविजन सिर्फ परिवहन की सुविधा या दुनिया के बारे में जानने के लिए ही नहीं खरीदते, बल्कि इन्हें खरीदने से उनके ऊँचे सामाजिक स्तर की भी पुष्टि होती है। कीमती चीजें खरीदने का अव्यक्त प्रकार्य है ऊंचे सामाजिक स्तर की पुष्टि । मर्टन के अनुसार इसी तरीके से समाजशास्त्री द्वारा दुनिया के बारे में तथा विश्वासों, सांस्कृतिक गतिविधियों और जीवन-शैली के परिणामों के बारे में हमारे ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होता है।
स्थापित नैतिक मूल्यों को चुनौती मिलती है
जो बातें “अनैतिक‘‘ लगती है, उनके बने रहने के पीछे भी उनके अव्यक्त प्रकार्य होते हैं। इसीलिए मर्टन का कहना है कि हमेशा समाज के स्थापित नैतिक मूल्यों से सर्वदा सहमत होना उचित नहीं है क्योंकि जब तक कथित रूप से ‘‘अनैतिक‘‘ गतिविधियों या संस्थाओं के अव्यक्त प्रकार्यों की किसी वैकल्पिक गतिविधि या संस्था से पूर्ति नहीं होती, नैतिक मानदंड निरर्थक और बिल्कुल व्यर्थ होते हैं। ये कोई सामाजिक उद्देश्य नहीं पूरा करते, मात्र सामाजिक औपचारिक भर रह जाते हैं।
मर्टन अमरीकी समाज से एक उदारहण देता है । सरकारी लोकतंत्र जो नहीं कर पाता वह “अनैतिक‘‘ राजनैतिक तंत्र पूरा करता है। अमरीकी लोकतंत्र में अलग-अलग पहचान वाले मतदाताओं की जगह उन्हें एक सामूहिक पहचान मात्र से जाना जाता है। लेकिन राजनीतिक तंत्रश् समाजशास्त्रीय दृष्टि से जागरूक होने के नाते हर मतदाता को परिवेश विशेष में रहने वाला, अपनी अलग पहचान वाली समस्याओं और जरूरतों वाला व्यक्ति मानता है। इस तरह समूह मात्र को पहचानने वाले समाज में राजनैतिक तंत्र एक मानवीय एवं व्यक्तिगत ढंग से जरूरतमंद लोगों की मदद करने का महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य करता है।
मर्टन का अर्थ स्पष्ट है। उसके अनुसार, कथित रूप से ‘‘अनैतिक‘‘ गतिविधि की आलोचना तब तक निरर्थक है जब तक प्रकार्यात्मक अर्थों में एक ‘‘नैतिक‘‘ विकल्प को सामने न रखा जा सके।
इस प्रकार नैतिकता अथवा अनैतिकता पर आधारित समालोचना विकल्प के बिना अपने आप में पर्याप्त नहीं होती है।
चर्चा के इस पड़ाव पर आकर अब बोध प्रश्न 3 पूरा करें तथा इस इकाई की पाठ्य सामग्री का सारांश पढ़ें।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics