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एक दलीय व्यवस्था क्या है | एक दलीय शासन व्यवस्था किसे कहते हैं single party system in india in hindi

single party system in india in hindi एक दलीय व्यवस्था क्या है | एक दलीय शासन व्यवस्था किसे कहते हैं ?

दलीय व्यवस्थाओं के प्रमुख प्रकार
लोकतन्त्र में विभिन्न राजनीतिक दल विविध प्रकार के विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए, प्रायः लोकतन्त्र में अनेक राजनीतिक दल होते हैं। किन्तु व्यवहार में, प्रत्येक देश की अपनी व्यवस्था और परिस्थितियों के अनुसार दलों की संख्या कम या अधिक होती है। उदाहरण के लिए, इंगलैण्ड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में दो-दलीय व्यवस्था पाई जाती है, जबकि भारत तथा फ्रांस सहित अनेक देशों में बहु-दलीय व्यवस्थाएँ हैं। दूसरी ओर, चीन जैसे साम्यवादी देशों अथवा अधिनायकवादी देशों में एक ही दल होता है। अतः यह आवश्यक है कि विभिन्न दलीय प्रणालियों की समीक्षा की जाए।

एक-दलीय व्यवस्था
एक-दलीय व्यवस्था का आधार यह है कि किसी देश की जनता की संप्रभु इच्छा का निवास एक नेता तथा उससे सम्बद्ध अभिजन अथवा कुलीन (मसपजम) वर्ग में होता है। यह अधिनायकवादी विचार सबसे पहले कुछ राजतन्त्रों में और फिर तानाशाही देशों में व्यक्त किया गया। परन्तु, हाल में कुछ लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ भी इस ओर आकर्षित हुई हैं। तानाशाह को सत्ता पर एकाधिकार चाहिए, ताकि कोई उसे चुनौती न दे सके, इसलिए वह (अपने दल के अतिरिक्त) सभी दलों को भंग कर देता है। यद्यपि इन व्यवस्थाओं में भी जनादेश के मुखौटे के रूप में चुनाव करवाए जाते हैं, परन्तु मतदाताओं के समक्ष कोई विकल्प नहीं होता। उन्हें एकमात्र उम्मीदवार के पक्ष में ही मतदान करना पड़ता है।

विभिन्न एक-दलीय व्यवस्थाओं की कुछ अपनी विशेषताएँ हो सकती हैं, परन्तु उन सभी की कुछ सामान्य विशेषताएँ होती हैं। ये हैंरू (1) ऐसा दल, सरकारी दल होता है, क्योंकि इसका नेता वही व्यक्ति होता है जिसका देश पर तानाशाही शासन होता है, तथा जिसका सत्ता पर एकाधिकार होता हैय (2) इस एकमात्र दल का सदस्य बने बिना कोई भी नागरिक किसी महत्वपूर्ण सरकारी पद पर नियुक्त नहीं हो सकता हैय (3) यह दल लोगों में नेता की विचारधारा की मान्यता सुनिश्चित करता है, और इस कार्य के लिए जनता को “शिक्षित‘‘ (पदकवबजतपदंजम) किया जाता हैय तथा (4) यह विशिष्ट वर्गीय (अभिजन) व्यक्तित्व का प्रतीक होता है। एक-दलीय व्यवस्था में पार्टी का कार्य प्रमुख राजनीतिक प्रश्नों पर मतदाताओं (जनता) की इच्छा को जानना नहीं होता। परन्तु, इसका कार्य लोगों में अनुशासन और आज्ञाकारिता सुनिश्चित करना होता है। इसका संगठन और कार्यविधि राजनीतिक न होकर सैनिक ही अधिक होती है।

इसलिए यह स्पष्ट है कि एक-दलीय व्यवस्था निश्चित रूप से अधिनायकवादी सिद्ध होती है। सम्बद्ध राजनीतिक व्यवस्था के एकमात्र दल के रूप में इसकी सत्ता सार्वभौमिक होती है। सभी नीतियों का निर्धारण पार्टी के निर्देशों के अनुसार ही होता है। पार्टी का प्रत्येक आदेश ब्रह्म-वाक्य माना जाता है। पार्टी ही सभी कानूनों का स्रोत होती है, तथा मानवीय एवं सामाजिक जीवन का कोई भी पक्ष इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। अतः, इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि, एक-दलीय व्यवस्था में भाषण, अभिव्यक्ति, प्रेस एवं संघ बनाने की स्वतन्त्रता के अधिकारों का दमन कर दिया जाता है। परिणामस्वरूप, समाज और राज्य के मध्य अंतर लगभग समाप्त हो जाता है, तथा समाज को राज्य पूरी तरह अपने अधीन कर लेता है। इस प्रकार के दल की स्थापना 1922 में मुसोलिनी के नेतृत्त्व में इटली में फासी व्यवस्था के साथ हुई थी। मुसोलिनी ने अपनी फासी पार्टी के अतिरिक्त अन्य सभी दलों को भंग कर दिया। जब 1933 में जर्मनी में हिटलर सत्ता में आया तो उसने भी अपनी नाजी पार्टी के अतिरिक्त सभी विरोधियों को समाप्त कर दिया। हिटलर ने 1934 में स्वयं अपनी पार्टी में से अनेक प्रमुख सदस्यों को निकाल दिया, या उन्हें गोली मरवाकर उनकी हत्या करवा दी क्योंकि वे दलीय हित के लिए कार्य नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार, पूर्व सोवियत संघ में मात्र साम्यवादी दल (कम्युनिस्ट पार्टी) को कार्य करने की अनुमति थी, तथा 1936 और 1938 में उसमें से अनेक प्रमुख सदस्यों को निष्कासित कर दिया गया था।

एक और भी स्थिति है। उत्तर-औपनिवेशिक युग में, अनेक अफ्रीकी-एशियाई देशों में भी ष्जनता की इच्छाष् पर आधारित एक-दलीय व्यवस्थाओं की स्थापना हुई थी। इनमें कुछ प्रमुख देश थेरू घाना, केन्या अथवा कीनिया, तन्जानिया, तुर्की, मौक्सिको इत्यादि। तुर्की में तो 1923 से लेकर 1946 तक जनवादी गणतन्त्रीय दल (च्मवचसमश्ेत्मचनइसपबंद च्ंतजल) ने लोकतन्त्र को नष्ट किए

यूनियन (ज्।छन्) की स्थापना की थी, वह एक-दलीय लोकतन्त्र का एक अन्य अच्छा उदाहरण थी। तन्जानिया में तानू (ज्।छन्) ही एकमात्र मान्यता प्राप्त पार्टी थी किन्तु फिर भी तन्जानिया के मतदाताओं को यह स्वतन्त्रता थी कि वे पार्टी (ज्।छन्) के किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में वोट कर सकते थे, क्योंकि पार्टी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में अपने एक से अधिक उम्मीदवार खड़े करती थी। केन्या पि, 1969 में सरकार ने एकमात्र विपक्षी दल श्केन्या अफ्रीकन पीपल्स यूनियनश् (ज्ञमदलं ।तिपबंद च्मवचसमश्े न्दपवद) पर तो प्रतिबंध लगा दिया था, परन्तु इस पार्टी के सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया था।

इस प्रकार, एक-दलीय प्रणाली को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है। (1) अधिनायकवादी (तानाशाही) एक-दलीय व्यवस्थाय तथा (2) गैर-अधिनायकवादी एक-दलीय व्यवस्था। परन्तु,समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि सभी एक-दलीय प्रणालियाँ तानाशाही प्रवृत्ति की होती हैं। एक दलीय प्रणाली अपनी ही प्रकार के दर्शन और जीवन-शैली की घोषणा करती हैं और समस्त समाज को उसी के अनुरूप कार्य करना होता है। जैसा कि बार्कर का कहना है, ‘‘एक-दलीय व्यवस्था की लोकतान्त्रिक आलोचना केवल उद्देश्यों की आलोचना नहीं, जीवन की समस्त प्रक्रिया की आलोचना है।‘‘ वास्तव में, सत्ता पर एक ही दल का एकाधिकार (monopoly) समस्त सभ्यता के लिए एक गम्भीर खतरा है।

बोध प्रश्न 2
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
2) विभिन्न राजनीतिक दलीय-व्यवस्थाओं के गुण-दोषों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) राजनीतिक दल वर्गीय हितों में एकता स्थापित करते हैं। वे चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़े करके लोकतन्त्र के प्रति योगदान करते हैंय वे राजनीतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। वे शासन करते हैं या फिर विपक्ष में बैठकर सरकार को उसके दोष बताते हैं।
2) एक दलीय प्रणाली अक्सर तानाशाही प्रणाली होती है यह प्रणाली लोगों की स्वतन्त्रता नष्ट करती है। दो-दलीय प्रणाली जनता के समक्ष दो विकल्प पेश करती है और स्थायित्व प्रदान करती है। परन्तु इसमें अन्य विचारों को पनपने का अवसर नहीं मिलता। बहु-दलीय व्यवस्था में विभिन्न विचार स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त किए जाते हैं, परन्तु स्थायित्व नहीं होता।