सामाजिक नृशास्त्र (social anthropology) और नृजाति शास्त्र (ethnology) in hindi मानव शास्त्र अंतर
social anthropology and ethnology in hindi difference सामाजिक नृशास्त्र और नृजाति (मानव शास्त्र) क्या है अंतर बताइए ?
समाज का विज्ञान बनाम समाजशास्त्र
रैडक्लिफ-ब्राउन का सैद्धांतिक दृष्टिकोण उसके ए नेचुरल साइंस ऑफ सोसाइटी नामक निबंध में दिया गया है। मानव के मनोवैज्ञानिक अध्ययनों की प्रतिक्रिया में उसके सामने तुलनात्मक समाजशास्त्र के रूप की एक अंतर्दृष्टि थी, जिसके अनुसार तुलनात्मक समाजशास्त्र को सारे सामाजिक विज्ञानों में प्रधान विषय माना जाना चाहिए। यहां हमने पहले इस बात की चर्चा की है कि कैसे उसने सामाजिक नृशास्त्र के लिए एक अलग स्थान बनाया। दूसरे भाग में हमने उसके क्षेत्रीय शोधकार्य पर चर्चा की है। तीसरे भाग में रैडक्लिफ-ब्राउन को एक सिद्धांतवादी के रूप में देखा गया है।
सामाजिक नशास्त्र का विशिष्ट स्थान
जैसा कि आपने इकाई 24 और 25 में पढ़ा है रैडक्लिफ-ब्राउन की यह पक्की धारणा थी कि सामाजिक नृशास्त्र को अपना स्वरूप विज्ञान के तरीके पर ढालना होगा। इसकी पद्धतियां, अवधारणाएं और निष्कर्ष पूर्ण रूप से वैज्ञानिक, निष्पक्ष और जाँच के योग्य होने चाहिए। रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक नृशास्त्र (social anthropology) और नृजाति शास्त्र (ethnology) के बीच स्पष्ट अंतर किया है। नृजाति शास्त्री अनुमानों पर आधारित इतिहास (conjectural history) की रचना के कार्य में लगे थे, जो उसकी दृष्टि में एकदम अवैज्ञानिक कार्य था। आपने इकाई 25 में पढ़ा था कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने यह बात जोर देकर कही कि आदिवासी जनजातियों के अध्ययन के लिए ऐतिहासिक विवरण आवश्यक नहीं है। यह कैसे हुआ? प्रश्न उठाने की जगह रैडक्लिफ-ब्राउन ने दर्खाइम की तरह ये जानना अधिक उचित समझा कि इसका अभिप्राय क्या है? अर्थात् जिस पहलू का अध्ययन किया जाए उसका अर्थ समझ में आना चाहिए। संक्षेप में, रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने समय में प्रचलित उस प्रवृत्ति के विरुद्ध आवाज उठाई जिसमें किसी भी विषय का अध्ययन ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि में करने पर जोर दिया जाता था। उसने जिन समाजों का अध्ययन किया, उनके समसामयिक महत्व पर विशेष बल दिया तथा उन समाजों का एककालिक (Synchronic) अध्ययन किया।
रैडक्लिफ-ब्राउन सामाजिक परिवेश की मनोवैज्ञानिक शब्दावली में व्याख्या करने के बारे में भी सतर्क था। मलिनॉस्की के विपरीत उसने मनोवैज्ञानिक व्याख्याओं से बचना उचित समझा। हमने यह बात बार-बार कही है कि किस प्रकार मलिनॉस्की का प्रकार्यात्मक सिद्धांत जीववैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणों की ओर अधिक झुका हुआ था। रैडक्लिफ-ब्राउन इस जाल से बचा रहा। उसकी दृष्टि में सामाजिक नृशास्त्र का संबंध, मुख्य रूप से, जीव वैज्ञानिक प्रकार्यों के बजाय सामाजिक प्रकार्यों से था क्योंकि समाज में हमारा संबंध व्यक्ति के जैविक अस्तित्व के बजाय सामाजिक अस्तित्व से होता है (देखिए कूपर 1975ः 86)।
सामाजिक नृशास्त्र के लिए अलग क्षेत्र निर्धारित करने के प्रयास के बावजूद रैडक्लिफ-ब्राउन अपने आपको विज्ञान की पृष्ठभूमि से अलग नहीं कर सका। इसका आभास उसकी इस बात से मिलता है कि उसने वैज्ञानिक पद्धतियों, सुदृढ़ अवधारणाओं और समाज के बारे में नियमों को जैं इसके साथ-साथ ही उसके इन विचारों को दकियानूसी समझा जाने लगा।
फिर भी इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि सामाजिक नृशास्त्र में रैडक्लिफ-ब्राउन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उसने वस्तुतः भावी पीढ़ी के प्रतिभाशाली विद्वानों के लिए मार्ग प्रशस्त किया (इस विषय में आपको भाग 26.4 में जानकारी दी गई है)। औरों को रास्ता दिखाने के पहले उसने स्वयं भी क्षेत्रीय शोधकार्य किया। आइए, इस बारे में कुछ जानें ।
रैडक्लिफ-ब्राउन का क्षेत्रीय शोधकार्य
पिछली इकाइयों को पढ़कर आपने मलिनॉस्की और रैडक्लिफ ब्राउन की आज के सामाजिक नृशास्त्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका को समझा होगा। अब तक आपको यह ज्ञात हो गया होगा कि जिस क्षेत्रीय शोधकार्य को आजकल व्यवहार में लाया जाता है, उसे इतना महत्वपूर्ण स्थान मलिनॉस्की ने ही दिलाया। रैडक्लिफ-ब्राउन ने भी पर्याप्त मात्रा में क्षेत्रीय शोधकार्य किया। लेकिन, बहुत से विद्वानों का विचार है कि मलिनॉस्की के प्रचुर और जीवन्त क्षेत्रीय शोधकार्य की तुलना में रैडक्लिफ-ब्राउन के क्षेत्रीय शोधकार्य की गुणवत्ता नगण्य है।
एडम कूपर (1975ः 60) के शब्दों में रैडक्लिफ-ब्राउन का क्षेत्रीय शोधकार्य “सर्वेक्षण करना और उसमें से नृजाति-विवरण के लिए किसी तरह शोध-सामग्री निकालना था। यह मलिनॉस्की द्वारा ट्रॉब्रिएण्ड द्वीपवासियों के बीच किए गए शोधकार्य की तुलना में कुछ भी नहीं था।‘‘ उदाहरण के लिए, अंडमान द्वीप समूह में अपने पहले क्षेत्रीय अध्ययन में रैडक्लिफ-ब्राउन (1964) ने वहां की स्थानीय भाषा को सीखने का भरसक प्रयत्न किया। लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अंत में, उसने हिंदुस्तानी भाषा के माध्यम से सामग्री एकत्र करनी शुरू की, लेकिन उस भाषा को वहां के स्थानीय लोग अच्छी तरह से नहीं समझते थे। वह अपने क्षेत्रीय शोधकार्य में तभी कुछ प्रगति कर पाया, जब उसे वहाँ अंग्रेजी-भाषा समझने वाला एक व्यक्ति मिला और वह उसके लिए संपर्क व्यक्ति का काम करने लगा।
अंडमान द्वीपवासियों के बीच उनके रहन-सहन और रीति-रिवाजों में घुल-मिल कर काम करने के बजाय रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने आपको उनसे अलग रखा और उनसे दूरी बनाए रखी जो उसके क्षेत्रीय शोधकार्य में स्पष्ट झलकती है। आस्ट्रेलिया में 1910 में किए गए क्षेत्रीय शोधकार्य का मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रेलियाई लोगों की जटिल नातेदारी व्यवस्था के बारे में जानकारी एकत्र करना था। इस काम के लिए उसने अपने दल के लोगों के साथ बर्नियर द्वीप में कई महीने बिताए। यह ऐसी जगह थी, जहाँ बंदियों के लिए बने अस्पताल में रतिज रोगग्रस्त आदिवासियों का इलाज होता था।
रैडक्लिफ-ब्राउन ने अंशतः इन रोगी आदिवासियों की स्मृतियों के आधार पर कुछ विशिष्ट प्रकार के उन आदिवासियों की नातेदारी व्यवस्था का कुछ आधा-अधूरा सा मॉडल तैयार किया। वह उनकी नातदारी की तात्विक संरचनाओं की खोज में इतना तल्लीन हो गया कि उसने ऑस्ट्रेलिया में उस समय पाई जाने वाली बहुत सी जनजातियों का अध्ययन करने पर कोई ध्यान नहीं दिया।
रैडक्लिफ-ब्राउन का विशेष ध्यान इस बात पर था कि कैसे उपलब्ध तथ्यों को तर्कसंगत, स्पष्ट, सैद्धांतिक सांचे में ढाला जाए। आश्चर्य नहीं कि इस प्रक्रिया में वह जीते-जागते इंसानों को और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं, विचारों और मूल्यों को भूल गया। इसकी तुलना में मलिनॉस्की ने अपने क्षेत्रीय शोधकार्य में द्वीपवासियों की मानवता, उनके मनोभावों, अभिप्रेरणाओं और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में उभार कर हमारे सामने ला दिया। इस विषय में कहा जा सकता है कि मलिनॉस्की के क्षेत्रीय शोधकार्य में विषय-सामग्री तो पर्याप्त मात्रा में थी, लेकिन उसके विश्लेषण के लिए उसके पास उपयुक्त परिप्रेक्ष्य नहीं था। इसके विपरीत, रैडक्लिफ-ब्राउन के पास उपयुक्त परिप्रेक्ष्य तो था लेकिन उसके पास विषय-सामग्री का अभाव था। पिछली इकाइयों में यह बात बार-बार जोर देकर कही गई है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक नृशास्त्र को सैद्धांतिक प्रेरणा और दृढ़ अवधारणाएं प्रदान की ताकि क्षेत्रीय शोधकार्य अधिक बारीकी से और सम्बद्ध तरीके से किया जा सके।
रैडक्लिफ-ब्राउन का सैद्धांतिक योगदान
आपने पिछली इकाइयों में पढ़ा कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक संरचना और प्रकार्य की जिन अवधारणाओं को परिष्कृत किया वे क्षेत्रीय शोधकर्ताओं द्वारा एकत्र की हुई सामग्री की व्याख्या करने में सहायक होती है। आइए, हम एक बार फिर इन अवधारणाओं की तुलनात्मक रूप से समीक्षा करें।
प) सामाजिक संरचना और प्रकार्य
मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने पूर्ववर्ती विकासवादियों की धारणा के विपरीत आदिम समाज के लोगों के अस्तित्व को जीवंत हस्तियों के रूप में स्वीकार किया। विकासवादियों की दृष्टि में आदिम समाज विकास की श्रृंखला में मात्र एक कड़ी की भाँति है। परंतु दोनों अर्थात् मलिनॉस्की व रैडक्लिफ-ब्राउन ने अटकलबाजियों और अनुमान पर आधारित इतिहास को अस्वीकार किया और आदिम लोगों के अध्ययन को उन्हीं के संदर्भ में करने को प्राथमिकता दी। ये दोनों ही विचारक सामाजिक नृशास्त्र की प्रकार्यवादी विचारधारा से जुड़े थे। इन्होंने आदिम समाजों से संबंधित सामाजिक संस्थाओं और उनके रीति-रिवाजों का अध्ययन उन समाजों के लिए उनकी प्रासंगिकता एवं मूल्यों अथवा प्रकार्यों के संदर्भ में करना चाहा। लेकिन जहाँ मलिनॉस्की की प्रकार्य संबंधी धारणा मुख्य रूप से शरीर-क्रिया और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं पर आधारित थी (दखिए इकाई 22), वहां रैडक्लिफ-ब्राउन की रुचि सामाजिक प्रकार्यों या समाज के अस्तित्व की दशाओं में थी।
हमने आपको पहले ही बताया है कि रैडक्लिफ-ब्राउन के विचारों पर दिखिए इकाई 24) दर्खाइम के समाजशास्त्र का स्पष्ट प्रभाव था। रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार धार्मिक अनुष्ठानों, रीति-रिवाजों तथा उनकी कार्य पद्धतियों और विश्वासों को उस सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जहाँ से वे आए हैं और जिस तरह से उन्होंने उस सामाजिक व्यवस्था को एकीकृत किया और उसे बनाए रखा। पहले की हमारी चर्चा से, जिसमें आदिम समूहों में ‘मामा‘ की भूमिका पर जानकारी दी गई है, यह बात खूब अच्छी तरह स्पष्ट हो जाती है (दखिए इकाई 25)।
सोचिए और करिए 1
यदि आपको एक समूह विशेष का नृशास्त्रीय अध्ययन करना हो तो आपका तरीका क्या होगा- मलिनॉस्की का अनुसरण करना और वैयक्तिक रुचियों और सामाजिक व्यवस्था दोनों का ध्यान रखना या रैडक्लिफ-ब्राउन के रास्ते पर चलना और केवल समाज के अस्तित्व की दशाओं के बारे में ही सोचना। इस अभ्यास को करने के लिए चुने अपने तरीके पर एक पृष्ठ की टिप्पणी लिखिए।
लेकिन जहां एक ओर मलिनॉस्की का सैद्धांतिक प्रयास प्रकार्य की धारणा के साथ समाप्त हो जाता है, वहां रैडक्लिफ-ब्राउन के पास इसके अतिरिक्त सामाजिक संरचना का सुविकसित विचार है। रैडक्लिफ-ब्राउन के अनुसार सामाजिक संरचना का अर्थ सामाजिक संबंधों का वह तंत्र है जो समाज का निर्माण करने वाले व्यक्तियों द्वारा बनाया जाता है। सामाजिक संरचना के वर्णन से प्रकार्य का विचार और अधिक स्पष्ट और व्याख्यात्मक हो जाता है। इकाई 25 के भाग 25.4 में पहले ही इस बात को अच्छी तरह से स्पष्ट किया जा चुका है।
आइए, अब हम देखें कि मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन, दोनों ने नृशास्त्रियों की भावी पीढ़ियों को किस प्रकार प्रभावित किया। परंतु पहले आप बोध प्रश्न 2 का हल कीजिए।
बोध प्रश्न 2
प) रैडक्लिफ-ब्राउन का क्षेत्रीय शोधकार्य मलिनॉस्की के क्षेत्रीय शोधकार्य से किस तरह भिन्न है? अपने प्रश्न का उत्तर चार पंक्तियों में लिखिए।
पप) मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के प्रकार्य संबंधी विचारों में अंतर स्पष्ट कीजिए। अपना उत्तर तीन पंक्तियों में लिखिए।
बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) रैडक्लिफ-ब्राउन ने जिन लोगों का अध्ययन किया, उनसे उसने कुछ अलगाव और दूरी बनाए रखी। इसलिए उसका शोधकार्य कभी-कभी नीरस, निर्जीव और बेकार-सा दिखाई देता है। दूसरी ओर, मलिनॉस्की ने अपने क्षेत्रीय शोधकार्य में समाज विशेष से अपने आपको पूरी तरह सम्बद्ध रखा, इसलिए उसका क्षेत्रीय शोध विवरण सजीव और विस्तृत जानकारी से परिपूर्ण है।
पप) मलिनॉस्की ने प्रकार्य की व्यवस्था मुख्य रूप से शरीर रचना और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के संदर्भ में की है। दूसरी ओर, रैडक्लिफ-ब्राउन ने समाज की आवश्यकताओं अथवा अस्तित्व के लिए आवश्यक दशाओं की चर्चा की है।
मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के मार्गदर्शन में नृशास्त्रीय
शोधकार्य का विकास
इंग्लैंड में बीसवीं शताब्दी के तीसरे और चैथे दशक में नृशास्त्रीय शोधकार्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। इस अवधि में मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के नेतृत्व में नृशास्त्रियों ने पहले प्रकार्यवादी और बाद में संरचनात्मक प्रकार्यवादी दृष्टि से समाजशास्त्रीय सामग्री एकत्र की और उनकी एकदम नये ढगं से व्याख्या की। अत्यधिक सावधानी से किए गए इन क्षेत्रीय शोधकार्यो में मलिनॉस्की का स्पष्ट प्रभाव झलकता है। दूसरी ओर अमूर्तीकरण (abstraction) द्वारा सिद्धांत निर्माण के प्रयासों में हमें रैडक्लिफ-ब्राउन का पूरा प्रभाव दिखता है। हमने यहां संक्षेप में समाजशास्त्रीय विचारधारा के विकास के सृजनात्मक चरण की मुख्य-मुख्य बातों की जांच की है।
मलिनॉस्की का प्रभाव
नृशास्त्र के क्षेत्र में मलिनॉस्की का बहुत ही सशक्त प्रभाव रहा है। संस्कृति और आवश्यकताओं से संबंधित उसका सैद्धांतिक दृष्टिकोण चाहे हमें अब प्रेरणा न दे लेकिन अभी भी शोध पद्धति और दार्शनिक विषयों में उसकी रुचि का मलिनॉस्की की स्मृति में प्रति वर्ष आयोजित भाषणों में बार-बार उल्लेख होता है। उसके विद्यार्थियों पर उसके विचारों का बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा जो आपको मैन एंड कल्चर नामक पुस्तक में देखने को मिलता है। इस पुस्तक का संपादन उसके विद्यार्थी रेमंड फर्थ (1957) ने किया था। इस संकलन में विद्वानों के निबंध शामिल हैं। ये विद्वान हैंः ऑड्रे. आई. रिचर्ड्स, रॉल्फ पिडिंगटन, टालकट पार्सन्स, फिलिस कैबरी, जे आर फर्थ, ई. आर लीच, आई शपीरा, मेयर फोर्टीस, एस एफ नाडेल, रेमंड फर्थ, लूसी मेयर और एच इयन हॉम्बिन । मलिनॉस्की के छात्रों और सहयोगियों द्वारा लिखे हुए ये निबंध इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि मलिनॉस्की के विचारों का उनके कार्यों और रचनाओं पर कितना प्रभाव था। इस संकलित कृति का अभिप्राय मलिनॉस्की की प्रशंसा करना नहीं था बल्कि इसका उद्देश्य समसामयिक समाजशास्त्र में मलिनॉस्की के योगदान और उसकी प्रासंगिकता का मूल्यांकन करना था।
विशिष्ट समाजों के गहन समाजशास्त्रीय अध्ययनों को पूरा करने के क्षेत्रीय शोधकार्य की तकनीकों को विकसित करने के उसके प्रयास को इवन्स प्रिचर्ड (1951), फर्थ (1951) और इससे पूर्व रिचर्ड्स (1939) आदि ने भरपूर सराहा। सन् 1929 से 1940 के बीच लिखे गए नृजाति विवरण में मलिनॉस्की के प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण के भरपूर उपयोग की जानकारी मिलती है।
निष्कर्षो को उदाहरण देकर सिद्ध करने की उसकी विधि का बाद के विद्धानों ने भी अनुकरण किया। उदाहरण के लिए, फर्थ की पुस्तक वी द टिकोपिया (1936) में और शपीरा की पुस्तक मेरिडलाइफ इन एन अफ्रीकन ट्राइब (1940) जैसी मोटी किताबों में परिवार संस्था की व्याख्या प्रकार्य के संदर्भ में है। इनमें प्रजनन और समाजीकरण के प्रकार्य सामाजिक जीवन के अन्य पहलुओं से जोड़े गए हैं। इसी तरह, रिचर्ड्स (1939) ने उत्तरी रोडेशिया की बेम्बा जनजाति के आर्थिक कार्यकलापों का विवरण देते हुए भरण-पोषण अथवा आजीविका प्रदान करने वाले प्रकार्यों का वर्णन किया। इन विशालकाय पुस्तकों में जो लंबे-लंबे विवरण दिए गए हैं, वे वास्तव में मलिनॉस्की पद्धति पर आधारित हैं। इनमें सामाजिक संगठन की धारणा और इससे संबंधित सिद्धांतों की कमी है। आधारभूत वास्तविकताओं के वर्णन से ही समझ लिया जाता है कि सामाजिक संगठन की अवधारणा को बता दिया गया है। दूसरे शब्दों में, इन पुस्तकों में विश्लेषण और वर्णन के बीच का मिश्रित रूप प्रस्तुत होता है जो मलिनॉस्की की विद्वत्ता का सामान्य अभिलक्षण है।
मलिनॉस्की के पास विश्व के विभिन्न भागों से विद्यार्थी आते थे, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत भी शामिल हैं। इनमें हॉग्बिन, हार्ट पिडिंगटन, कैबरी और स्टैनर ऑस्टेलिया व न्यूजीलैंड से थे। शायद आप मलिनॉस्की के भारतीय विद्यार्थी के बारे में कुछ जानकारी पाना चाहें। ये थे‘ डी. एन. मजूमदार जिन्होंने टी. सी. हाडेंसन के मार्गदर्शन में सन् 1935 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी-एच डी. का शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। उन्होंने 1937 में इस काम पर आधारित पुस्तक ए ट्राइब इन ट्रांजीशनः ए स्टडी इन कल्चर पैटर्नस प्रकाशित की। मलिनॉस्की के पदचिहों पर चलते हुए इस पुस्तक में प्रकार्यात्मक पद्धति समग्रतावादी (holistic) दृष्टिकोण को अपनाया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि मजूमदार (1947ः 1) मलिनॉस्की के संस्कृति के विचार पर लटू हो गए जिसे मलिनॉस्की ने जैविक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के प्रति सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित किया था।
रैडक्लिफ-ब्राउन का प्रभाव
रैडक्लिफ-ब्राउन पहले पहल 1920 में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुआ, जब उसे दक्षिणी अफ्रीका के केपटाउन विश्वविद्यालय में नृशास्त्र का विभाग आंरभ करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस प्रकार, उसके जीवन के एक नए दौर की शुरुआत हुई जिसमें उसने अपना जीवन अध्यापन, लेखन, सिद्धांतों के निर्माण और नई पीढ़ी के सामाजिक नृशास्त्रियों को प्रशिक्षित करने में लगाया। केपटाउन में उसने अफ्रीकी भाषाओं और अफ्रीकी विषयों के अध्ययन का विद्यापीठ स्थापित किया। सन् 1926 में वह सिडनी में नियुक्ति के लिए ऑस्ट्रेलिया चला गया। वहां उसने पूर्व स्नातक छात्रों के लिए एक पाठयक्रम आंरभ किया। इसके अलावा, उसने वहां आदिम जातियों के बारे में कई अनुसंधान परियोजनाएं शुरू की और ओशिएनिया नामक एक नई पत्रिका आरंभ की। सन् 1931 में वह शिकागो गया। उस समय अमरीका में नृशास्त्र के क्षेत्र में लोवी (स्वूपम) और क्रोबर (Kroeber) का दबदबा था। मनोविश्लेषण के विकास ने संस्कृति और व्यक्तित्व के अध्ययनों को बहुत लोकप्रिय बना दिया था। रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने संरचनात्मक प्रकार्यवादी विचार से अमरीकी नृशास्त्र में एक नई विचार-पद्धति का आरंभ किया। इस समय ऐगन, वार्नर और टैक्स जैसे विद्वानों ने रैडक्लिफ-ब्राउन की सैद्धांतिक पद्धति का प्रतिनिधित्व किया।
सन् 1937 में रैडक्लिफ-ब्राउन इंगलैंड लौटा जहाँ ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय में सामाजिक नृशास्त्र के नये पीठ पर उसे नियुक्त किया गया। उसके स्वदेश लौट आने के कुछ समय बाद ही मलिनॉस्की इंगलैंड से बाहर चला गया था। अतः रैडक्लिफ-ब्राउन ने नृशास्त्र के क्षेत्र में मलिनॉस्की के स्थान पर नेतृत्व ग्रहण किया। एडम कूपर (1975ः 75) के शब्दों में, “मलिनॉस्की द्वारा प्रतिपादित सार्थकता, स्पष्टता और समाजशास्त्र के विरोध में उठे अभियान की चुनौती का नेता बना — रैडक्लिफ-ब्राउन ।” मलिनॉस्की की सैद्धांतिक कमजोरी ने बहुत से क्षेत्रीय शोध करने वालों को अपेक्षाकृत अधिक सैद्धांतिक व समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की आवश्यकता की ओर प्रवृत किया। ऐसा लगता था कि इस आवश्यकता की पूर्ति रैडक्लिफ-ब्राउन ही कर सकता था।
रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रस्तावित समाजशास्त्रीय व्याख्या की उपयोगिता अभी सिद्ध की जानी थी। धीरे-धीरे सामाजिक नृशास्त्रियों द्वारा समाजशास्त्रीय विश्लेषण के माध्यम से समाजशास्त्रीय संरचनाओं का परीक्षण किया गया। इन परीक्षणों के परिणाम प्रतिभापूर्ण संबंधों (monographs) के रूप में सामने आए। ये प्रबंध थेरू बेटसन का नवेन (1936), इवन्स प्रिचर्ड का विचक्राफ्ट, ओरेकल्स एंड मैजिक अमंग द अंजादे (1973)।
ऑक्सफर्ड में रैडक्लिफ-ब्राउन का सेवाकाल इवन्स-प्रिचर्ड और मेयर फोर्टीज की सहभागिता में बहुत अधिक उपयोगी रहा। उन्होंने कई पुस्तकें प्रकाशित करवाई, जो मुख्य रूप से राजनीतिक संरचना और नातेदारी से संबंधित थीं। सन् 1940 में उन्होंने अफ्रीकन पोलिटिकल सिस्टम्स प्रकाशित की। उसी साल इवन्स-प्रिचर्ड ने दि नुअर और दि पोलिटिकल सिस्टम ऑफ दि अनुआक नामक दो मोनोग्राफ निकाले । सन् 1951 में फोर्टीज ने तालेसी समुदाय पर दो पुस्तकें प्रकाशित की।
इन्ही वर्षों में इवन्स-प्रिचई ने क्रमशः सिरेनाइका के सानुसी और नुआर नातेदारी के बारे में अध्ययन प्रकाशित किए। इस तरह, रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपने नेतृत्व में ब्रिटिश सामाजिक नृशास्त्र के क्षेत्र को एक नया सैद्धांतिक ढांचा, मुख्य रूप से राजनीतिक सरंचना और नातेदारी में रुचि के क्षेत्र प्रदान किये। इनका परिणाम उस समय के कुछ सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली अध्ययनों के रूप में सामने आया।
आपको यह जानने में रुचि होगी कि रैडक्लिफ-ब्राउन का भारत के जाने-माने समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास पर गहरा प्रभाव पड़ा। श्रीनिवास ने डी. फिल का अपना शोध प्रबंध रैडक्लिफ-ब्राउन के मार्गदर्शन में ऑक्सफर्ड में पूरा किया था। इस शोध प्रबंध का शीर्षक थाः रिलीजन एंड सोसाइटी अमंग दि कुर्गस ऑफ साउथ इंडिया (1952) अपने इस शोध प्रबंध में उन्होंने धर्म और सामाजिक गठन के बीच संबंधों को देखने का प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप संस्कृतिकरण जैसी महत्वपूर्ण अवधारणा हमारे सामने आई। भारत में गांवों के अध्ययन के आंदोलन का नेतृत्व करते हुए श्रीनिवास ने भारतीय गांव का अध्ययन रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित सामाजिक संरचना की अवधारणा के संदर्भ में किया। इस प्रक्रिया में प्रभावशाली जाति जैसी महत्वपूर्ण संकल्पनाओं का विकास हुआ।
बोध प्रश्न 3
प) मलिनॉस्की की विद्वत्ता के एक ऐसे अभिलक्षण के बारे में बताइए जो मलिनॉस्की और उसके अनुयायियों में समान था।
पप) कॉलम ‘क‘ में दी हुई मदों का कॉलम ‘ख’ से मिलान कीजिए।
क ख
प) ओशिएनिया अ) श्रीनिवास
पप) कुर्ग आ) फोर्टीज
पपप) नावेन इ) इवन्स प्रिचर्ड
पअ) हालेन्सी ई) बेट्सन
अ) नुअर उ) रैडक्लिफ-ब्राउन
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 3
प) अत्यधिक सावधानी से तैयार किया हुआ नृजातिविवरण ।
पप) प) उ
पप) अ
पपप) ई
पअ) आ
अ) इ
बीसवीं सदी के तीसरे-चैथे दशक के बाद नशास्त्रीय शोध का विकास
हमने बार-बार यह बताने का प्रयास किया है कि मलिनॉस्की अपने ढंग के सामाजिक नृशास्त्र को विश्लेषणात्मक रूप प्रदान करने में असफल रहा। उसने जिन संकल्पनाओं का इस्तेमाल किया। वे पर्याप्त रूप से विकसित नहीं की गई थीं। इसमें संदेह नहीं कि उसने जिन समाजों का अध्ययन किया, उनके बारे में उसने बहुत व्यापक और रोचक सामग्री इकट्ठी की, लेकिन वह उस सामग्री को ठोस सैद्धांतिक सांचे में नहीं ढाल सका। यदि हम इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखें तो रैडक्लिफ-ब्राउन के प्रयासों को अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है। रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक संरचना और प्रकार्य जैसी संकल्पनाओं के प्रयोग के साथ कुछ हद तक अमूर्तीकरण आंरभ किया। परन्तु वह अपने इस प्रयास में बहुत अधिक सफल नहीं हुआ। उसने सामाजिक संरचना के स्वरूप को केवल मूर्त व्यक्तियों के बीच अन्योन्यक्रियाओं और संबंधों के संदर्भ में देखा। वास्तव में, जिस अमूर्तीकरण स्तर का उसने प्रचार किया, वह उस तक स्वयं भी नहीं पहुँच पाया। जिस कार्य को रैडक्लिफ-ब्राउन नहीं कर सका, उसे सफलतापूर्वक करने का श्रेय इवन्स-प्रिचर्ड को है।
इवन्स-प्रिचर्ड ने सामाजिक संरचना के विचार को आगे बढ़ाया। उसने कहा कि इसका अभिप्राय मुख्य रूप से परिवार, जनजाति अथवा राष्ट्र जैसे समाज के निरतर चलने वाले स्थायी वर्ग से होता है। उसने इस बात को समझाया कि सामाजिक नुशास्त्री को सामाजिक संरचना के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए व्यक्तियों के बीच होने वाली अन्योन्यक्रियाओं के पर्यवक्षण पर नहीं रुक जाना चाहिए। इसके लिए अमूर्तीकरण के उच्चतर स्तर पर जाना आवश्यक होगा। दि नुअर (1940) नामक अपने अध्ययन में उसने नुअर समाज की खंडीय (ेमहउमदजंतल) संरचना को प्रदर्शित किया, जिसमें विभिन्न वर्ग आपस में सामाजिक संरचना के विभिन्न स्तरों पर कहीं एक हैं और कहीं दूसरे संदर्भ में परस्पर विरोधी हैं। इस तरह से उसने सामाजिक संरचना को समझने के लिए उच्चतर स्तर के अमूर्तीकरण का आश्रय लिया। वस्तुतः इवन्स-प्रिचर्ड ने रैडक्लिफ-ब्राउन के प्रकार्यवाद को अस्वीकार करके विशुद्ध संरचनावाद को प्रवर्तित किया।
एक और महत्वपूर्ण प्रगति का द्योतक था — संरचनावादी क्लॉड लेव-स्ट्रॉस का विशद् शोधकार्य। लेवी-स्ट्रॉस ने भाषा-शास्त्र के क्षेत्र से बहुत-कुछ प्रेरणा लेकर सामाजिक संरचना के विचार को अमूर्तीकरण के उच्चतम स्तर तक पहुचाया। उसने संरचना और सामाजिक संबंधों के बीच अंतर किया। साथ में, उसने ऐसे विश्लेषणात्मक मॉडल तैयार किए जिनकी मदद से वास्तविक सामाजिक संबंधों की तुलना की जा सकती है और उनमें अंतर दिखाया जा सकता है। लेवी-स्ट्रॉस द्वारा किए गए नातेदारी और मिथक के अध्ययन आगे चलकर समाजशास्त्र में बहुत प्रभावशाली हुए।
संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि रैडक्लिफ-ब्राउन ने मलिनॉस्की के प्रकार्यवाद का परिष्कार करके उसे संरचनात्मक प्रकार्यवाद में बदल दिया। रैडक्लिफ-ब्राउन के पदचिह्नों पर चलते हुए इवन्स-प्रिचर्ड ने अपने सैद्धांतिक ढांचे में कहीं अधिक बड़े स्तर पर अमूर्तीकरण किया और संरचनावाद का विकास किया। फ्रांस में लेवी-स्ट्रॉस के कार्य ने संरचनावाद को नया आयाम दिया। आज समाजशास्त्र में सरंचनावाद के उत्तरवर्ती विकास की अवस्था आ गई है। बहुत से विद्वानों ने साहित्य, भाषा, गणित जैसे ज्ञान-विज्ञान की बहुत-सी शाखाओं से प्रेरणा ली है। परिणामस्वरूप समाजशास्त्र में रोमांचकारी सैद्धांतिक प्रगति हुई है। इस विषय में विस्तार से चर्चा इस पाठ्यक्रम के दायरे से बाहर है। आशा है कि एम.ए. स्तर के पाठ्यक्रम में इस विकास की चर्चा अवश्य होगी।
रैडक्लिफ-ब्राउन के बाद हुए विकास के संक्षिप्त विवरण ने शायद आपको यह ख्याल दिया हो कि प्रकार्यवाद मलिनॉस्की के साथ ही समाप्त हो गया। लेकिन वास्तव में ऐसी बात बिल्कुल नहीं है, क्योंकि प्रकार्यवाद इसके बाद भी फलता-फूलता रहा। आज भी समाज विज्ञान में यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है। इस विषय में अमेरिकन समाजशास्त्री टॉल्कट पार्सन्स और रॉबर्ट के मर्टन का महत्वपूर्ण योगदान है। खंड 7 में इनके योगदान के बारे में चर्चा की जाएगी।
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