शिक्षा का निजीकरण की परिभाषा | शिक्षा का कंप्यूटरीकरण तथा निगमीकरण अर्थ क्या है privatization of education in hindi
privatization of education in hindi definition meaning शिक्षा का निजीकरण की परिभाषा | शिक्षा का कंप्यूटरीकरण तथा निगमीकरण अर्थ क्या है ? computerisation education system in india ?
शिक्षा का कंप्यूटरीकरण तथा निगमीकरण
उन्नीसवीं शताब्दी में अन्य उदार लोकतंत्रों की भाँति ऑस्ट्रेलियावासियों की धारणा भी यही थी कि ज्ञान के केन्द्रों (विश्वविद्यालय आदि) को व्यावहारिक एवं आर्थिक अनिवार्यताओं से रोधित होना चाहिए। महान् विद्वान अंग्रेज जे. एस. मिल का मत था कि विश्वविद्यालय का लक्ष्य, ‘ज्ञान की महान् रूपरेखा को आगे बढ़ाने‘‘ पर केन्द्रित होता है। ज्ञान, अपना उद्देश्य स्वयं ही होता है। इस मत अब घिसा-पिटा माना जाता है। अन्य देशों की भाँति ऑस्ट्रेलिया में भी शिक्षा व्यवसायोन्मुख हो गई है। विश्वविद्यालयों और उद्योग जगत में निर्णायक गठबंधनों के विकास की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है। कॉलिन साइम्स के अनुसार विश्वविद्यालय तेजी से बहुराष्ट्रीय (निगमों) के बोध एवं विकास के प्रभाग बनते जा रहे हैं।‘‘
व्यवसायोन्मुख शिक्षा पद्धति के उदय ने युदाय के लिये, न केवल अपने देश में वरन अंतर्राष्ट्रीद बाजार में भी रोजगार के इसके अभिप्राय यह नहीं है कि पारंपरिक स्नातक को रोजगार मिल ही नहीं रहे। यह बात दूसरी है कि उन्हें मनचाहे क्षेत्रों में रोजगार न मिल पा रहे हों। उदाहरण के लिये, ऑस्ट्रेलिया में, स्नातक उपाधिधारियों को आज भी फुटकर दुकानदारी और निर्माण कार्यों के क्षेत्रों में काम तो मिल रहे हैं किन्तु वे अनिवार्यतः उन्हीं क्षेत्रों में नहीं हैं, जिनके लिये उन्हें प्रशिक्षण दिया गया था। कंप्यूटरीकरण तथा निगमीकरण के दो बल, जो एक दूसरे के साथ काम करते हैं, अब तेजी पकड़ने लगे हैं। कुछ आलोचक तर्क देते हैं कि सूचना प्रौद्योगिकी, रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के स्थान पर घटा रही है। लॉज (स्वकहम) ने कहा है, ‘यदि आप विश्वविद्यालयों को वाणिज्यिक संस्थाएँ बना रहे हैं तो आप उस सब कुछ को मिटाए दे रहे हैं जो उन्हें मूल्यवान बनाता है।‘‘ लॉज का सुझाव है कि वर्तमान प्रवृत्ति की दिशा, बदली जाए तो अधिक अच्छा रहेगा। ‘विश्वविद्यालयों के स्वरूप पर आधारित उद्योग का नमूना तैयार किया जाए। कारखानों को कॉलेजों की सदस्य संस्थाएँ बनाया जाए।‘ किन्तु, सूचना प्रौद्योगिकी क्रान्ति और आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान युग में, किसी भी सूरत में, शिक्षा, निगमित संसार या भूमंडलीकरण से अछूती रह ही नहीं सकती।
विश्व के अन्य भागों की भाँति ऑस्ट्रेलिया में भी शिक्षण संस्थाएँ बदल रही हैं। सार्वजनिक बनाम निजी तथा राज्य बनाम बाजार की विभेदक रेखाएँ पूर्णतः समाप्त हो गई हैं। मूल्योन्मुखी उदारता प्रेरक शिक्षा प्रदान करने के लिये जिन शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गई थी, वे आज के आर्थिक बाजार में स्वरूप एवं व्यवहार की दृष्टि से विशेष प्रकार के निगमों की तरह हो गई हैं। शिक्षा के क्षेत्र में निजी अभिकरणों की बढ़ती हुई भूमिका में बाजारीकरण की प्रवृत्ति स्पष्ट है। शिक्षण संस्थाओं और अपरिमित निगमित गतिविधियों में स्पर्धा की निरंतर वृद्धि हो रही है। शिक्षण संस्थाओं को धन की आवश्यकता होती है जिसे निगमित निकाय उपलब्ध कराते हैं और बदले में अपनी इच्छा के अनुरूप शिक्षा की प्रकृति एवं शर्ते तय करते हैं जिनमें पारम्परिक उदार शिक्षा के लिये कम से कम तथा व्यवसायीकरण, प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी तथा इसी प्रकार की अन्य शिक्षा धाराओं के लिये .. अधिक से अधिक स्थान एवं अवसर जुटाए जाते हैं।
बोध प्रश्न 5
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तर से अपने उत्तर मिलाइए।
1) शिक्षा का निगमीकरण क्या है।
बोध प्रश्न 5 उत्तर
1) शिक्षा पर व्यापारिक निकायों का नियंत्रण निरंतर बढ़ता जा रहा है, कारखानों को कॉलेजों की संबद्ध संस्थाएँ बनाया जा रहा है तथा सूचना-प्रौद्योगिकी के युग में शिक्षण संस्थाओं और शिक्षा पर नियंत्रण करने वाले निगमों में स्पर्धा बढ़ रही है। (अधिक विवरण के लिए भाग 27.6 देखें)
गुणवत्ता नियंत्रण
उपर्युक्त प्रवृत्तियों से संबंधित ध्यान देने योग्य एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा गुणवत्ता नियंत्रण है। अनेक विश्वविद्यालयों ने विदेशों में चलाए जा रहे कार्यक्रमों की गुणवत्ता को लेकर चिंता जताई है। मेजबान देश में भी विदेशी प्रदायकों द्वारा चलाए जा रहे शैक्षिक कार्यक्रमों की गुणवत्ता को लेकर छात्रों के अभिभावकों और शिक्षकों के मन में चिंता रहती है। उनका प्रश्न होता है कि क्या विदेशी प्रदायकों द्वारा मेजबान देश में चलाए जा रहे कार्यक्रम गुणवत्ता की दृष्टि से उसी स्तर के हैं जिस स्तर के मूल विश्वविद्यालय में होते हैं। वे यह तो मानते हैं कि विदेशों से संबद्ध इन कार्यक्रमों ने अतर्राष्ट्रीय शिक्षा तक स्थानीय छात्रों की पहँच बढ़ाई है किन्तु वे प्रश्न करते हैं कि कहीं गुणवत्ता एवं समानता की कीमत पर तो ऐसा नहीं हो रहा। साथ ही यह प्रश्न भी उठता है कि कहीं कम सुविधा प्राप्त स्थानीय छात्रों को विदेशी प्रदायकों द्वारा दी जा रही घटिया स्तर की शिक्षा के लिये महँगा मूल्य तो नहीं चुकाना पड़ रहा हैं।
अनेक ऑस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालयों ने भी ऐसी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने अपनी साझीदार संस्थाओं एवं विदेशों शैक्षिक कार्यक्रमों के गहन निरीक्षण (उवदपजवतपदह) की माँग की है जिससे गुणवत्ता नियंत्रण और ऑस्ट्रेलिया की ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठा सनिश्चित की जा सके। ऑस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालयों पर इस बात के लिये लगातार दवाब बढ़ रहा है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके पाठ्यक्रमों तथा उनकी उपाधियाँ किसी प्रकार अन्य देशों के ऐसे ही कार्यक्रमों से गुणवत्ता में कम न हों।
भूमंडलीय बाजार, गुणवत्ता के मुद्दे, अंकन-पद्धति (ंबबतमकपजपवद) एवं स्पष्टता आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिये, 21 विश्वविद्यालयों का समुदाय (द यूनिवर्सिटीज 21 कन्सोर्टियम) जिसके सदस्यों में अनेक ऑस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालय भी शामिल हैं, ऐसी परियोजनाओं पर एकमत हुआ है जिनमें शिक्षण की उत्कृष्टता कोय छात्रों की गतिशीलता, व्यावसायिक स्थानान्तरण क्षमता, लचीले ज्ञान, पहचान एवं श्रेष्ठ प्रशासनिक व्यवस्थाओं के आधार पर अध्यापन की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय उपाधियाँ प्रदान की जाएँ।
बोध प्रश्न 4
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तर से अपने उत्तर मिलाइए।
1) ऑस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालयों की विदेशों में चल रही गतिविधियाँ कौन-कौन सी हैं?
2) शिक्षा के निगमित एवं वास्तविक प्रदायकों की भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
बोध प्रश्न 4 उत्तर
1) ऑस्ट्रेलिया के बाहर शैक्षणिक केन्द्रों की स्थापना- या तो एक ही परिसर की शाखाओं के जाल के रूप में या ऑस्ट्रेलिया में एक अंतर्राष्ट्रीय परिसर तथा चुने हुए बाजारों के रूप में। उनमें, स्नातक पूर्व एवं स्नाकोत्तर, दोनों स्तरों पर ऑस्ट्रेलिया के छात्र भी आकर्षित होते हैं तथा अन्य देशों के छात्र भी। (अधिक विवरण के लिए उपभाग 27.5.3 देखें)
2) निगमित प्रदायक वे कंपनियाँ हैं (जैसेय कॉलगेट, मॅक्डोनल्ड आदि) जिन्होंने अपने विश्वविद्यालय स्थापित किए हैं। वास्तविक प्रदायक, ष्बिना ईट गारे का दृष्टिकोण है। यह इंटरनेट आदि का उपयोग करने वाला बहुमाध्यमी ढाँचा होता है। (अधिक विवरण के लिए. उपभाग 27.5.2 देखें)
शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीयकरण
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है?
अंतरराष्ट्रीयकरण क्यों?
पूर्व व्यापी अंतरराष्ट्रीयकरण
अंतरराष्ट्रीयकरण की अभिप्रेरणा
अंतरराष्ट्रीयकरण संबंधी कुछ अनुभव
ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीयकरण की नीति का विकास
ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीयकरण के मुख्य मुद्दे
समाज को भूमंडलीकरण की चुनौतियाँ
निगमित एवं वास्तविक प्रदायकों की भूमिका
विदेशों में शैक्षणिक केन्द्रों का विकास
गुणवत्ता नियंत्रण
शिक्षा का कंप्यूटरीकरण तथा निगमीकरण
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर विकसित नई प्रवृत्तियों पर विचार किया गया है। इनमें से एक मुख्य प्रवृत्ति, ‘उच्च शिक्षा‘ का अंतर्राष्ट्रीयकरण है। इस प्रवृत्ति का परीक्षण, अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए ऑस्ट्रेलिया द्वारा किए गए प्रयत्नों, सद्गुणोन्मुखी शिक्षा के स्थान पर ‘रोजगारोन्मुखी शिक्षा के कारण शिक्षा पद्धति में हुए परिवर्तन तथा उसके परिणामस्वरूप ऑस्ट्रेलियायी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली में आए परिवर्तनों के आधार पर किया जाएगा। इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात् आप:
ऽ उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण का अर्थ तथा उसकी पद्धति का विवरण दे सकेंगे,
ऽ रोजगारोन्मुखी अधिगम की ओर ले जाने वाले शिक्षा के नए कार्यस्थलीय दृष्टिकोण की व्याख्या कर सकेंगे,
ऽ उच्च शिक्षा में पूर्वव्याप्त अंतरराष्ट्रीयकरण का पुनः स्मरण कर सकेंगे,
ऽ ऑस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण की नीति का विश्लेषण कर सकेंगे, तथा
ऽ ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण से संबंधित मुख्य मुद्दों को पहचान सकेंगे।
प्रस्तावना
विश्वव्यापी बाजारों के उदय, उत्पादन के क्षेत्र में नए ज्ञान के प्रयोग, व्यवसायों में नई कुशलता की आवश्यकता, कार्य की गुणवत्ता की परिवर्तित प्रकृति तथा मानवीय प्रयास के सभी क्षेत्रों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकियों के प्रवेश के आधार पर तेजी से परिवर्तित होते हुए आज के विश्व की एक विशिष्ट पहचान बनी है। परिणामस्वरूप ज्ञानार्जन की नई अवधारणा की आवश्यकता हुई है। दीर्घकालीन अधिगम, सूचना तक सरल पहुँच, ज्ञान के एकीकरण तथा शक्तिशाली बहुमाध्यमी अधिगम उपकरणों की उपलब्धता ने पहले से ही शिक्षण संस्थाओं को निर्दिष्ट दिशा में विकसित करना प्रारंभ कर दिया है। उच्च-शिक्षा पद्धति आज जितनी जटिल है उतनी पहले कभी नहीं रही। अध्यापक की भूमिका, अब, ‘शिक्षक‘ के बजाय ‘सरलीकारक‘ (ंिबपसपजंजवत) के रूप में पुनरिभाषित की जा चुकी है। नई सूचना प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ दूरियों और स्थानों का विशेष महत्त्व नहीं रह गया है। पारंपरिक पुस्तकालयों का स्थान अब वास्तविक पुस्तकालय लेने लगे हैंय कक्षाध्यापन का स्थान, वैब-ब्राउसिंग ने ले लिया है। शिक्षण संस्था अब ऐसा स्थान नहीं रह गया है जहाँ शिक्षक और शिक्षार्थी आमने-सामने बैठकर विचार विमर्श करते हों। प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों की विभाजक रेखाएँ अब असंगत हो गई हैं। वस्तुतः शिक्षा पद्धतिय विशेषकर उच्च शिक्षा पद्धति, राज्यों और राष्ट्रों की सीमाओं को लाँधने लगी है। अतः विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षा के अन्य संस्थानों ने इन नए लक्षणों के अनुरूप अपने को दालना प्रारंभ किया है जिसके लिये निर्विवाद रूप से प्रशासन एवं प्रबंधन की नई विधियों की आवश्यकता पड़ी है।
वर्तमान समय में विश्वविद्यालय अनेक नाटकीय परिवर्तनों से गुजर रहे हैं। ज्ञानार्जन-पद्धति में आए एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को, ‘अधिगम का कार्यस्थलीय दृष्टिकोण‘ कहा जाता है। कॉलिन साइमस के अनुसार, इस प्रवृत्ति से उस उदार विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर संकट मँडराने लगा है जो अर्थव्यवस्था से असंबद्ध था और जहाँ ज्ञान-प्राप्ति को उपयोग की अपेक्षा सद्गुण समन्वित अधिक माना जाता था। पारंपरिक विश्वविद्यालय का स्थान व्यावसायिक विश्वविद्यालय लेता जा रहा है जिसका उद्देश्य ‘रोजगारोन्मुखी शिक्षा‘ प्रदान करना है। उच्च शिक्षा को घेरती हुई प्रतीकात्मक अर्थव्यवस्था की श्विज्ञापनकारी एवं प्रोन्नति समर्थक कार्यनीतियों के माध्यम से विश्वविद्यालय के इस नए रूप के आविर्भाव का प्रमाण मिलता है।
संसार भर में, उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण विविध संदर्भो में देखा जाता है। विश्व के अधिकतर देश उच्च शिक्षा तथा शोध की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीयकरण सहयोग को अपरिहार्य मानते हैं और इसी कारण अंतर्राष्ट्रीयकरण के शैक्षिक तर्क का समर्थन करते हैं। फिर भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता तथा दीर्घकालीन या प्रत्यक्ष आर्थिक लाभों से संबद्ध आर्थिक तर्क निरंतर अधिक से अधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
राष्ट्रों की सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय निकायों तथा उच्च शिक्षा की संस्थाओं की कार्यसूचियों में अंतर्राष्ट्रीयकरण का स्थान बहुत ऊँचा है। लगता है कि सार्वदेशिक ज्ञानार्जन एवं उच्च शिक्षा-पद्धति की दिशा में एक ऐसा प्रयत्न चल रहा है जिसमें स्थानीय एवं भूमंडलीय प्रभावों के मिश्रण से नए आधुनिक विश्व तथा नए (सूचना) युग के संदर्भ मेंय समाज, अर्थव्यवस्था एवं ज्ञान, भुंडलीय परिवेश के भाग हों।
अब से पहले शिक्षा का मुख्य महत्त्व राष्ट्र एवं राज्य की प्रशासनिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना था जो राष्ट्र के विकास की पहचान का अनिवार्य पक्ष होता था। आज ज्ञानार्जन अंतर्राष्ट्रीय हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा विनिमय पर आज विशेष जोर है। संस्थाएँ अपने शोध कार्य और शिक्षण के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये अपनी-अपनी कार्यनीतियों का विकास कर रही हैं।
इस इकाई में आप शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के अनेक पक्षोंय उसके अर्थय अभिप्रेरणा और ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण से संबंधित विविध मुद्दों के विषय में अध्ययन करेंगे।
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