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विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण की विधियाँ , भू-तरंग , व्योम , आकाश तरंग संचरण क्या है

प्रश्न 1 : विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण की विधियाँ समझाइये।
उत्तर : विद्युत चुम्बकीय तरंगों के संचरण की विधियाँ निम्न है ’
1. भू-तरंग संचरण:- कम आवृत्ति की तरंगों के प्रेषक के लिए ऐन्टिना की लम्बाई अधिक लेनी पडती है। ऐसे ऐन्टिना पृथ्वी सें ज्यादा ऊचाई पर लगाना सम्भ्ज्ञव नहीं है ये कम ऊँचाई पर स्थित होते है इनसे चलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगे पृथ्वी के पृष्ठ के सहारे चलती है ये पृथ्वी में विद्युत धारा उत्पन्न करती है। इसलिए पृथ्वी इनका अवशोषण करती रहती है अतः इस विधि से ज्यादा दूरी तक तरंगों का सम्प्रेषण सम्भव नहीं है।
2. व्योम संचरण विधि– इस विधि में तरंगों को आकाश की ओर भेजते है। जब ये तरंगे आयन मण्डल में पहुंचती है। तो आयन मण्डल इनको परावर्तित कर देता है। पुनः पृथ्वी द्वारा परावर्तित तरंगे आयन मण्डल की ओर जाती है। और वहाँ से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर आ जाती है इस प्रकार बार बार परावर्तन से काफी दूरी तक तरंग भेजी जा सकती है। इस विधि से 30 मेधाहर्टज से ज्यादा आवृत्तियों का सम्प्रेषण नहीं कर सकते। क्येांकि इससे अधिक आवृत्ति की तरंगे आयन मण्डल को पार कर जाती है पृथ्वी पर नहीं लौटती है आयन मण्डल की ऊँचाई 65 किलोमीटर से लेकर 400 किलोमीटर तक होतीहै। आयन मण्डल में आयन और इलेक्ट्रान प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। इनका निर्माण सूर्य से प्राप्त उच्च ऊर्जा में पाये जाते है। पराबैंगनी, तरंगों के गैस के अणुओं से टकराने से होता है ये गैंस के अणु आयनित हो जाते है और आयन मण्डल का निर्माण करते है।
3. आकाश तरंग संचरण:- इस विधि से 40 मेगाहर्टज से अधिक आवृतियों का सम्प्रेषण करते है। टाॅवर पर लगे ऐन्टिना द्वारा इन तरंगों का सम्प्रेषण करते है। पृथवी गोल होने के कारण दृष्टि रेखीय तरंगे ज्यादा दूरी तक नहीं पहुच पाती है यदि प्रेषित टाॅवर की ऊँचाई एच टी (Ht) और अभिग्राही टाॅवर की ऊँचाई एचआर है।
संचार उपग्रह भी आकाश तरंग संचरण विधि में काम आता है। प्रेषित तंरगे आयन मण्डल को पार करके संचार उपग्रह के अभिग्राही तक पहुचती है यहाँ प्रवृर्धित करके पृथ्वी पर पुनः भेज दी जाती है