रीतिकाल के कवि और रचनाएँ लिखिए | रीतिकाल की विशेषताएँ बताओ परिभाषा परिस्थितियाँ ritikal ke kavi kaun hai
ritikal ke kavi kaun hai in hindi रीतिकाल के कवि और रचनाएँ लिखिए | रीतिकाल की विशेषताएँ बताओ परिभाषा परिस्थितियाँ क्या है , नाम परिभाषा किसे कहते है ?
रीतिकाल (1650-1850 ई.)
अन्य नाम-उत्तर मध्यकाल, श्रृंगार काल, अलंकृत काल, कलाकाल। रीति निरूपण (काव्यांगों के लक्षण, उदाहरण वाले ग्रन्थ-रीति ग्रन्थ या लक्षण ग्रन्थ कहे जाते हैं) की प्रधानता होने से आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे रीतिकाल नाम दिया।
रीतिकाल को पहले उत्तर मध्यकाल कहा जाता था, परन्तु शुक्ल जी ने रीति की प्रमुखता को लक्ष्य कर इसका नाम रीतिकाल रखा। उनके अनुसार इस काल के कवियों में रीति निरूपण की प्रमुखता परिलक्षित होती है। श्रृंगार काल नाम विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने दिया तथा अलंकृत काल – मिश्रबंधुओं ने कला की प्रधानता देखकर कुछ विद्वानों ने इसे कला काल नाम भी दिया है।
रीतिकाल के वर्ग
रीतिकालीन कवियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है-
1. रीतिबद्ध-जिन्होंने लक्षण ग्रन्थ (रीति ग्रन्थ) लिखकर रीति निरूपण किया, जैसे-देव, केशवदास, चिन्तामणि आदि ।
2. रीतिमुक्त-जो रीति के बंधन से पूरी तरह मुक्त हैं, जैसे-घनानन्द, बोधा, आलम, ठाकुर।
3. रीति सिद्ध-जिन्हें रीति की जानकारी थी, परन्तु उन्होंने लक्षण ग्रन्थ नहीं लिखा, जैसे-बिहारी। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी हैं। उनके ग्रन्थ का नाम है सतसई । बिहारी सतसई का सम्पादन रत्नाकर ने ‘बिहारी रत्नाकर‘ के नाम से किया है। बिहारी सतसई के दोहों की कुल संख्या 713 है। अन्य दोहे अप्रामाणिक हैं।
रीतिकाल के प्रमुख कवि
कवि रचनाएँ
1. चिन्तामणि कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी,
रस विलास।
2. भूषण शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक, शिवाबावनी,
अलंकार प्रकाश।
3. मतिराम ललित ललाम, मतिराम सतसई, अलंकार
पंचाशिका, रसराज।
4. बिहारी सतसई।
5. देव भावविलास, रस विलास, भवानी विलास, कुशल विलास, प्रेम तरंग, काव्य रसायन, देव शतक, राधिका विलास ।
6. घनानन्द वियोग बेलि, सुजान हित प्रबन्ध, प्रीति पावस, कृ पाकन्द निबन्ध ।
7. बोधा विरह वारीश, इश्कनामा।
8. पद्माकर पद्माभरण, जगद्विनोद, गंगालहरी, प्रबोध पचासा, कवि पच्चीसी।
9. ग्वाल कवि रसिकानन्द, यमुनालहरी, रसरंग, दूषणदर्पण, अलंकार भ्रम भंजन, दृगशतक ।
10. सेनापति कवित्त रत्नाकर।
11. केशव रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया, विज्ञान गीता, जहाँगीर जस चन्द्रिका।
केशव को रीतिकाल का पहला कवि तथा चिन्तामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने माना है। केशव को कठिन काव्य का प्रेत कहा जाता है। उन्हें सर्वाधिक सफलता संवाद निरूपण में मिली है। वस्तुतः रीतिग्रंथों की अविरल परम्परा केशव के पचास वर्षों बाद चिंतामणि से प्रारम्भ हुई । इसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है तथा केशव को रीतिकाल का प्रथम कवि।
रीतिकाल में कुछ प्रबन्ध काव्य भी लिखे गए, यथा-
लेखक प्रबन्ध काव्य
चिन्तामणि -रामाश्वमेध, कृष्णचरित, रामायण मण्डन -जानकी जू को ब्याह, पुरन्दर माया
कुलपति मिश्र -संग्राम सार
सुरति मिश्र -रामचरित, श्रीकृष्ण चरित
गुमान मिश्र -नैषध चरित
रामसिंह -जुगल विलास
पद्माकर -हिम्मत बहादुर विरुदावली
ग्वाल कवि -हम्मीरहठ, विजय विनोद, काव्य पच्चीसी, छत्र प्रकाश
चंद्रशेखर वाजपेयी -हम्मीर हठ
रीतिकालीन नाटक
जसवंत सिंह -प्रबोध चंद्रोदय नाटक
नेवाज – शकुंतला नाटक
सोमनाथ – माधव विनोद नाटक
देव – देवमाया प्रपंच नाटक
ब्रजवासी दास – प्रबोध चंद्रोदय नाटक
रीतिकाल की प्रवृत्तियाँ
1. रीति निरूपण, 2. शृंगारिकता, 3. अलंकरण की प्रधानता, 4. चमत्कार प्रदर्शन, 5. बहुज्ञता प्रदर्शन, 6. भक्ति एवं नीति निरूपण, 7. नारी भावना, 8. प्रकृति चित्रण 9. ब्रज भाषा का प्रयोग, 10. मुक्तक काव्य रचना, 11. दोहा, सवैया, कवित्त छन्दों का प्रयोग।
रीतिमुक्त काव्य-धारा के कवियों में विरह वर्णन की प्रधानता है। घनानन्द सुजान से प्रेम करते थे। उन्होंने अपने काव्य में स्वअनुभूति का चित्रण प्रमुखता से किया । भाषा के लक्षक एवं व्यंजक बल की सीमा इन्हीं को पता थी। घनानंद के काव्य में में लाक्षणिक पदावली प्रयुक्त है।
9.4 आधुनिक काल (1850 ई.- अब तक)
आधुनिक काल के जनक के रूप में भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का नाम लिया जाता है। आधुनिक काल में गद्य की प्रधानता देखकर शुक्लजी ने इसे गद्यकाल नाम दिया है। आधुनिक काल को दो भागों में बाँटा जा सकता है-आधुनिक काल का पद्य, आधुनिक काल का गद्य ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल में गद्यरचना की प्रवृत्ति प्रधान होने से इसे गद्यकाल नाम दिया है, परन्तु इस नामकरण से ऐसा आभास होता है कि इस काल में पद्य लिखा ही नहीं गया । इसलिए इसे आधुनिक काल कहना अधिक उपयुक्त है। वस्तुतः आधुनिक काल में जितने सशक्त गद्य की रचना हुई उतने ही सशक्त पद्य की भी रचना हुई इसलिए आधुनिक काल को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (अ) पद्य भाग, (स) गद्य भाग।
1. आधुनिक काल की कविता (पद्य)
आधुनिक काल की कविता (पद्य) को मोटे तौर पर निम्नलिखित 7 भागों (युगों) में विभक्त कर सकते हैं।
(प) भारतेन्दु युग (1850 – 1900 ई.)
(पप) द्विवेदी युग (1900 – 1920 ई.)
(पपप) छायावादी युग (1920 – 1936 ई.)
(पअ) प्रगतिवादी युग (1936 – 1943 ई.)
(अ) प्रयोगवादी युग (1943 – 1953 ई.)
(अप) नयी कविता (1953 – 1965 ई.)
(अपप) नवगीत (1965 ई. के उपरान्त)
(प) भारतेन्दु युग
भारतेन्दु युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
कवि काल कृतियाँ
1. भारतेन्दु (1850-1885 ई.) प्रेममालिका, प्रेमसरोवर,
गीतगोविन्द, वर्षाविनोद,
विनय प्रेम पचासा।
2. बदरीनारायण (1855-1938 ई.) जीर्णजनपद, आनन्द अरुणोदय, चैधरी ‘प्रेमघन‘
मयंक महिमा, लालित्य लहरी, वर्षा बिन्दु।
3. प्रतापनारायण (1856-1894 ई.) प्रेमपुष्पावली, मन की लहर,
मिश्र लोकोक्ति शतक, श्रृंगार विलास।
4. जगमोहन सिंह (1857-1899 ई.) प्रेम सम्पत्ति लता, श्यामलता,
श्यामासरोजिनी, देवयानी।
5. अम्बिकादत्त (1858-1900 ई.) पावस पचासा, हो हो होरी,
व्यास बिहारी विहार।
6. राधाकृष्णदास (1865-1907 ई.) भारत बारहमासा, देश दशा,
रहीम के दोहों पर कुण्डलियाँ।
7. राधाचरण गोस्वामी नवभक्तमाल
भारतेन्दु युग आधुनिक काल का प्रवेशद्वार है, कविता रीतिकालीन विषयों को छोड़कर नये विषयों पर होने लगी। कविता की भाषा ब्रजभाषा ही रही। भारतेंदु जी ने कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र चंद्रिका, बाला बोधिनी पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
इन पत्रिकाओं के अतिरिक्त इस काल की अन्य प्रसिद्ध पत्रिकाएँ इस प्रकार हैं-
पत्रिका का नाम प्रकाशन वर्ष प्रकाशन स्थान सम्पादक का नाम हिन्दी प्रदीप (1877 ई.) इलाहाबाद बालकृष्ण भट्ट
ब्राह्मण (1883 ई.) कानपुर प्रताप नारायण मिश्र
प्रजाहितैषी आगरा राजा लक्ष्मण सिंह
(पप) द्विवेदी युग
महावीरप्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका के सम्पादक के रूप में हिन्दी (कविता) पर पर्याप्त प्रभाव डाला और तमाम कवियों को काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली को अपनाने की प्रेरणा दी। ‘प्रिय प्रवासश् (हरिऔध)और ‘साकेत‘ (मैथिलीशरण गुप्त) द्विवेदी युग के दो महाकाव्य हैं। इस काल को जागरण सुधार काल भी कहा जाता है।
द्विवेदी युग के प्रमुख कवि और कृतियाँ
1. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ (1865-1947 ई.)-प्रिय प्रवास (1914), वैदेही वनवास (1940 ई.), रस कलश (1940), चुभते चैपदे (1932 ई.), चोखे चैपदे (1932 ई.)।
2. मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964 ई.)-जयद्रथ वध (1910), भारत भारती (1912), पंचवटी (1925), साकेत (1931), यशोधरा (1932), द्वापर (1936), जय भारत (1952), विष्णुप्रिया (1957)।
3. राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण‘ (1868-1915 ई.)-स्वदेशी कुण्डल, मृत्युंजय, बसंत वियोग, राम-रावण, विरोध।
4. गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही‘ (1883-1972 ई.)-कृषक क्रन्दन, प्रेम पचीसी, त्रिशूल तरंग, करुणा कादम्बिनी।
5. रामनरेश त्रिपाठी (1889-1962 ई.)-मिलन, पथिक, मानसी, स्वप्न ।
6. माखनलाल चतुर्वेदी (1889-1968 ई.)-हिम किरीटिनी, हिमतरंगिनी, युगचारण, समर्पण।
7. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन‘ (1897-1960 ई.)-कुंकुम, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, हम विषपायी जनम के।
8. सुभद्राकुमारी चैहान (1905-1948 ई.)-त्रिधारा, मुकुल ।
9. श्यामनारायण पाण्डेय-हल्दी घाटी, जौहर ।
10. श्रीधर पाठक (1859-1928 ई.)-कश्मीर सुषमा, देहरादून, भारत गीत ।
11. जगन्नाथदास ‘रत्नाकर‘ (1866-1932 ई.)-उद्धवशतक, गंगावतरण, शृंगारलहरी, हिंडोला, हरिश्चन्द्र ।
द्विवेदी युग की प्रसिद्ध पत्रिकाएँ.
1. नृसिंह (1907 ई.) कलकत्ता अम्बिका प्रसाद
वाजपेयी (साप्ताहिक)
2. अभ्युदय (1907 ई.) प्रयाग मदन मोहन मालवीय
(साप्ताहिक)
3. कर्मयोगी (1909 ई.) प्रयाग सुन्दर लाल (साप्ताहिक)
4. मर्यादा (1909 ई.) प्रयाग कृष्णकान्त मालवीय
(साप्ताहिक)
5. प्रताप (1913 ई.) कानपुर गणेश शंकर विद्यार्थी
(साप्ताहिक)
6. प्रभा (1913 ई.) खण्डवा कालूराम (मासिक)
7. सरस्वती (1900 ई.) पहले काशी महावीर प्रसाद द्विवेदी
से बाद में प्रयाग से (मासिक)
8. समालोचक(1902 ई.) जयपुर चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी‘
(मासिक)
9. इन्दु (1909 ई.) काशी अम्बिका प्रसाद गुप्त
(मासिक)
10. पाटलिपुत्र (1914 ई.) पटना काशी प्रसाद जससवाल
(मासिक)
हिन्दी का पहला समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड (1826 ई.) में कलकत्ता से बाबू जुगल किशोर के सम्पादकत्व ने प्रकाशित हुआ यह साप्ताहिक पत्र था।
द्विवेदी युगीन प्रवृत्तियाँ
1. राष्ट्रीयता, 2. इतिवृत्तात्मकता,
3. नैतिकता एवं आदर्शवाद, 4. प्रकृति चित्रण,
5. सामाजिक समस्याओं का चित्रण, 6. काव्य रूपों की विविधता,
7. खड़ीबोली को काव्य भाषा के रूप में अपनाना,
8. विविध छन्दों का प्रयोग ।
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