भक्तिकाल के प्रमुख कवि के नाम और रचना | भक्ति काल की विशेषताएं प्रवृत्तियां लिखिए परिस्थितियाँ

bhakti kaal ke kavi in hindi भक्तिकाल के प्रमुख कवि के नाम और रचना | भक्ति काल की विशेषताएं प्रवृत्तियां लिखिए परिस्थितियाँ  क्या है ? परिभाषा किसे कहते है ?

भक्तिकाल (1350-1650 ई.)
भक्तिकाल की दो धाराएँ हैं-निर्गुण धारा, सगुण धारा।
निर्गुण धारा के दो उपविभाग हैं-सन्त काव्य धारा, सूफी काव्य धारा । सगुण धारा की दो शाखाएँ हैं-कृष्ण भक्ति शाखा, राम भक्ति शाखा ।
निर्गुण धारा
(प) सन्त काव्य धारा
इसे ‘ज्ञानाश्रयी शाखा‘ भी कहते हैं। इसके प्रमुख कवि और उनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं
संत काव्य धारा के प्रमुख कवि एवं उनकी कृतियाँ
कवि काल कृतियाँ
1. कबीर (1398-1518 ई.) साखी, सबद, रमैनी।इन तीनों का संकलन ‘बीजक‘ नाम से कबीर के शिष्य धर्मदास ने किया।
2. रैदास (1398-1448 ई.) रविदास की बानी।
3. गुरु नानक (1469-1538 ई.) जपुजी, रहिरास, असा-दी-वार सोहिला- गुरु ग्रन्थ साहब में नानक के पद संकलित हैं।
4. हरिदास निरंजनी (1455-1543 ई.) अष्टपदी, जोगग्रन्थ, ब्रह्मस्तुति,
हंस प्रबोध।
5. दादू दयाल (1544-1603 ई.) हरडे वाणी, अंगवधू ।
6. मलूकदास (1574-1682 ई.) ज्ञानदीप,रतनखान, भक्तिविवेक, राम अवतार लीला, ध्रुव-चरित ।
7. सुन्दरदास (1596-1689 ई.) ज्ञानसमुद, सुन्दर विलास।

संतकाव्य की विशेषताएँ
1. निर्गुणोपासना, 2. अद्वैतवादी दर्शन,
3. बाह्याडम्बरों का खण्डन, 4. जाति-प्रथा का विरोध,
5. नारी विषयक दृष्टिकोण, 6. अपरिष्कृत भाषा,
7. शान्त रस की प्रधानता।
(पप) सूफी काव्य धारा
सूफी काव्य को प्रेमाख्यानक काव्य, प्रेमगाथा काव्य परम्परा, प्रेममार्गी शाखा भी कहा जाता है।

हिन्दी सूफी काव्य के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
प्रमुख कवि रचना रचनाकाल
ऽ मुल्ला दाउद चंदायन 1379 ई.
ऽ कुतुबन मृगावती 1503 ई.
ऽ जायसी पह्मावत 1540 ई.
ऽ मंझन मधुमालती 1545 ई.
ऽ शेखनवी ज्ञानदीप 1619 ई.
ऽ नूर मुहम्मद अनुराग बाँसुरी 1764 ई.
ऽ नूर मुहम्मद इन्द्रावती 1744 ई.

सूफी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ
1. मुसलमान कवि, 2. मसनवी शैली,
3. अलौकिक प्रेम की व्यंजना, 4. कथा संगठन का सौन्दर्य,
5. लोक पक्ष एवं हिन्दू संस्कृति का चित्रण,
6. वस्तु वर्णन, 7. भाव एवं व्यंजना,
8. खण्डन-मण्डन का अभाव 9. प्रबन्ध काव्यों की रचना
10. अरबी भाषा का प्रयोग
11. वियोग वर्णन की प्रधानता।
सगुण धारा
(प) कृष्ण भक्ति शाखा
इस भक्ति शाखा के 5 प्रमुख सम्प्रदाय हैं।
कृष्ण भक्ति के सम्प्रदाय
सम्प्रदाय प्रवर्तक
1. बल्लभ सम्प्रदाय बल्लभाचाय
2. निम्बार्क सम्प्रदाय निम्बार्काचाय
3. राधाबल्लभ सम्प्रदाय हित हरिवंश
4. हरिदासी (सखी) सम्प्रदाय स्वामी हरिदास
5. चैतन्य (गौड़ीय) सम्प्रदाय चैतन्य महाप्रभु

अष्टछाप-अष्टछाप की स्थापना गोस्वामी विट्ठलनाथ ने 1565 ई. में की। इसमें जो आठ कवि थे, उनमें से चार बल्लभाचार्य के शिष्य थे-सूरदास, कुंभनदास, परमानंददास, कृष्णदास और शेष चार विट्ठलनाथ के शिष्य थे-गोविन्द स्वामी, छीत स्वामी, नन्ददास, चतुर्भुजदास। इन आठ कवियों पर विट्ठलनाथ ने अपने आशीर्वाद की छाप लगाकर ‘अष्टछाप‘ का गठन किया। कृष्ण भक्त कवियों की चर्चा चैरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ वाबन वैष्णवन की वार्ता (दोनों के रचयिता गोकुलनाथ), भक्तमाल (नाभादास), भावप्रकाश (हरिराय), वल्लभ दिग्विजय (यदुनाथ) में की गई है।
पुष्टि मार्ग-बल्लभाचार्य का दार्शनिक मत शुद्धाद्वैत है तथा ये पुष्टिमार्गी थे। पुष्टि मार्ग की स्थापना विष्णुस्वामी ने की थी। पोषणं तदनुग्रह को पुष्टि कहा जाता है। ईश्वर की कृपा ही पुष्टि है। कृष्ण भक्त कवि पुष्टिमार्गी कवि थे।
कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएँ
1. कृष्ण लीला का वर्णन,
2. प्रेम लक्षणा भक्ति,
3. सौन्दर्य चित्रण,
4. प्रकृति चित्रण,
5. रीति तत्व का समावेश,
6. मुक्तक काव्य की रचना,
7. ब्रजभाषा का प्रयोग।
भ्रमर गीत परम्परा
उद्धव-गोपी संवाद को भ्रमर गीत नाम दिया गया है। इसमें प्रेम, भक्ति सगुणोपासना का समर्थन तथा ज्ञान, योग, निर्गुणोपासना का खण्डन है। कृष्ण भक्त कवियों ने कृष्ण के बाल रूप (माधुर्य रूप) का चित्रण किया, किशोर जीवन की लीलाएँ चित्रित की। महाभारत के योगेश्वर कृष्ण का चित्रण इसमें नहीं हुआ।
कृष्ण भक्ति धारा के प्रमुख कवि एवं रचनाएँ
कवि काल कृतियाँ
1. सूरदास (1478-1583 ई.) सूरसागर, सूरसारावली,
साहित्य लहरी।
2. नंददास (1533-1583 ई.) रस मंजरी, अनेकार्थ मंजरी,
रूप मंजरी, भ्रमरगीत, रास
पंचाध्यायी।
3. श्रीभट्ट युगल शतक।
4. ध्रुवदास (1573-1643 ई.) ब्रजलीला, दानलीला,
मानलीला, सिद्धान्त
विचारलीला।
5. स्वामी हरिदास (1478-1573 ई.) केलिमाल, सिद्धान्त के पद ।
6. मीराबाई (1498-1546 ई.) नरसीजी का मायरा, गीत
गोविन्द टीका, राग सोरठ के पद । रैदास इनके गुरु थे।
7. रसखान (1533-1ई.) सुजान रसखान, प्रेम वाटिका,
दान लीला।
(पप) राम भक्ति शाखा
हिन्दी राम भक्ति काव्य का मूल स्रोत संस्कृत में वाल्मीकि द्वारा रचित ‘रामायण‘ महाकाव्य है। श्री सम्प्रदाय (रामानुजाचार्य), ब्रह्म सम्प्रदाय (मध्वाचार्य) रामभक्ति के दो सम्प्रदाय थे। रामानुजाचार्य की परम्परा में राघवानन्द और रामानंद हुए। धनुष-वाण धारी राम के लोकरक्षक स्वरूप की उपासना का प्रारम्भ उन्होंने ही किया। हिन्दी में राम काव्य के प्रमुख कवि हैं-
1. तुलसीदास (1532-1623 ई.)-रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली, पार्वतीमंगल, जानकी मंगल, वैराग्य संदीपनी, रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्नावली, बरवै रामायण। रामचरितमानस (1574 ई.) तुलसी द्वारा रचित अवधी भाषा का महाकाव्य है। इसकी रचना लगभग 2 वर्ष 7 माह में हुई। यह अयोध्या, काशी, चित्रकूट में लिखा गया। रामचरितमानस में सात काण्ड हैं-बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड। विनय पत्रिका मुक्तक शैली में ब्रजभाषा में रचित काव्य ग्रन्थ है तथा इसमें 269 पद हैं।
2. ईश्वरदास-भरत मिलाप, अंगद पैज।
3. लालदास-अवध विलास।
4. अग्रदास-ध्यानमंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना बावनी, पदावली।
राम काव्य की प्रवृत्तियाँ-
1. राम शक्ति शील, सौन्दर्य से युक्त मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तथा विष्णु के अवतार हैं।
2. दास्य भाव की भक्ति।
3. समन्वयवादी प्रवृत्ति।
4. नैतिक एवं पारिवारिक मूल्यों का समर्थन ।
5. नारी विषयक दृष्टिकोण ।
6. प्रबन्ध रचना की प्रवृत्ति ।
7. विविध काव्य शैलियाँ।
8. अवधी भाषा का प्रयोग।
9. दोहा, चैपाई, सोरठा, कवित्त, सवैया, छन्दों का प्रयोग ।
10. रस एवं अलंकार योजना ।
तुलसी राम भक्ति काव्य परम्परा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे इसी कारण उनके बाद राम काव्य परम्परा क्षीण हो गयी क्योंकि कविगण सोचते थे कि यदि उन्होंने राम काव्य पर रचना की तो यहाँ कवि तुलसीदास से उनकी तुलना अवश्य की जाएगी और उनके आगे वे टिक नहीं सकेंगे। केवल केशव ने रामचन्द्रिका नामक महाकाव्य की रचना की जो अपनी क्लिष्टता एवं हृदयहीनता के कारण श्रामचरितमानसश् की बराबरी नहीं कर सकता । आधुनिक काल में मैथिलीशरण गुप्त ने रामकथा के उपेक्षित पात्र उर्मिला के विरह का निरूपण करने हेतु ‘साकेत‘ नामक महाकाव्य की रचना की।