विश्व व्यापार संगठन क्या है | उद्देश्य , विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक कौन है सम्बन्ध World Trade Organization in hindi
World Trade Organization in hindi विश्व व्यापार संगठन क्या है | उद्देश्य , विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक कौन है सम्बन्ध किसे कहते है , कार्य परिभाषा |
विश्व व्यापार संगठन
उरुग्वे चक्र को 1990 में अर्थात् शुरू होने के चार सालों के भीतर ही, पूरा हो जाना था। किन्तु जब कई विवादास्पद मुद्दों पर गतिरोध पैदा हो गया तो गैट के डायरेक्टर जनरल आर्थर डंकल को हस्तक्षेप करना पड़ा। गतिरोध दूर करने के लिए उन्होंने एक मसौदे का प्रस्ताव किया। यह डंकल मसौदा के नाम से जाना जाता है। मजाक में लोग इसे डी डी टी (डंकल ड्राफ्ट टैक्स्ट) कहते हैं । डंकल प्रस्तावों में घरेलू और निर्यात सब्सिडी कम करने, तथा तटकर बाधा के रूप में कोटा व्यवस्था और तटकर द्वारा मात्रात्मक अंकुश प्रणाली के नाम गिनाये गये थे। भारत के मामले में प्रस्ताव में कहा गया था कि अब उसके लिए अपने कॉपीराइट एवं ट्रेडमार्क नियमों का अनुपालन जरूरी नहीं रह गया। ऐसे प्रावधानों का मतलब था कि भारत अपने पेटेंट कानून में बदलाव लाए ताकि वह पेरिस कन्वेंशन के साथ संगति बिठा सके । गैट के तहत प्राधिकृत बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था तथा डंकल प्रस्तावों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पश्चिम के उन्नत औद्योगिक देशों का वर्चस्व कायम रखने की कोशिश की गयी है। गैट उरुग्वे चक्र तथा डंकल मसौदे में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भूमिका पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। मालूम हो कि ये कंपनियां तीसरी दुनिया के देशों का शोषण करती है तथा उन देशों के साथ-साथ पूरे विश्व व्यवस्था में गरीब और अमीर के बीच मौजूदा खाई को बढ़ाती है।
15 अगस्त को सदस्य राज्यों ने डंकल पर हस्ताक्षर कर दिए। सात सालों की गहन मंत्रणा के बाद 1994 में भारतीय मंत्रिमंडल ने उरुग्वे चक्र के गैट समझौतों का अनुमोदन कर दिया । गैट समझौते का महत्त्वपूर्ण पहल विश्व गापार संगठन की स्थापना के रूप में सामने आया। यह गैट की उत्तराधिकारी संस्था है। पांच सौ पृष्ठों के समझौते के फलस्वरूप जिस विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई है, उससे विश्व व्यापार के बहुपक्षीय कारण के नए दौर का सूत्रपात हुआ है। विश्व व्यापार संगठन पहली जनवरी 1995 से प्रभावी है तथा इसकी हैसियत विश्व बैंक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के बराबर है। यह संधि सभी 117 सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी है। इन राज्यों में दो तिहाई अल्पविकसित राज्य है। संगठन से अपेक्षा की जाती है कि वह व्यापारिक पक्षों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाएगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि खेल के नियमों का पालन किया जाये। इसके तहत विवाद निवारण एजेंसी का भी गठन किया जाना है यह देखना अभी बाकी है कि अल्पविकसित देश (इसमें विशाल बाजार के साथ भारत भी शामिल है) पश्चिम के ताकतवर औद्योगिक देशों के साथ प्रतियोगिता में कैसे मुकाबला करते हैं।
बोध प्रश्न 1
टिप्पणी क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर की तुलना कीजिए।
1) अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की परिभाषा कीजिए।
2) अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण से आप क्या समझते हैं ?
3) ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था का निर्माण किन परिस्थितियों में हुआ था?
4) ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
5) अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के बारे में आप क्या जानते हैं ?
6) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सांगठनिक ढाँचे क्या हैं?
7) आई बी आर डी पर एक टिप्पणी लिखिए।
8) गैट के बारे में टिप्पणी कीजिए।
9) उरुग्वे चक्र समझौते का परीक्षात्मक विश्लेषण कीजिए।
10) विश्व व्यापार संगठन पर एक टिप्पणी लिखिए।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था वह होती है जिसकी प्रक्रियाओं का निर्धारण राष्ट्रीय अर्थशास्त्र करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के बिल्कुल अलग प्रदर्शनी का फल होती है।
2) अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण का मतलब है कि राष्ट्र स्तरीय अर्थशास्त्र का अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पूरी अर्थव्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय बाजार शक्तियों से निर्देशित है।
3) तीस के दशक की भयंकर मंदी, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा व्यवस्था का अचानक ठप्प हो जाना और विध्वंसकारी द्वितीय विश्वयुद्ध ने मिलकर ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था का निर्माण किया था।
4) ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संचार के लिए स्थिर विनिमय दर की परिकल्पना की गयी थी। सभी देश इस प्रस्ताव पर सहमत थे वे कि विनिमय दर को प्रतिशत कम या ज्यादा, से नीचे रखने अथवा बराबरी कायम रखने तथा अपनी मुद्राओं का स्वर्ण के अनुरुप ढालने का अपनी सुविधा के अनुसार प्रयास करेंगे।
5) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक संघटन है जो व्यापार के विस्तार को आसान बनाने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है ताकि रोजगार और माली हालत में बेहतरी आये।
6) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सांगठनिक ढाँचे के अंग हैं, बोर्ड आव गवर्नर्स, अधिशासी बोर्ड,प्रबंध निदेशक तथा कार्यरत कर्मचारी।
7) इसकी स्थापना 1945 में हुई थी। यह विश्व बैंक है।
8) गैट की स्थापना सदस्य राज्यों के बीच निष्पक्ष और मुक्त बाजार को बढ़ावा देने के लिए की गई थी।
9) विकासशील देशों की कीमत पर विकसित देशों के हितों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लीए ये वार्ताएँ आयोजित हुई थी।
10) विश्व व्यापार संगठन ने गैट को विस्थापित कर दिया है और यह पहली जनवरी 1955 से प्रभावी
उत्तर ब्रिटेन वुड्स विकास
1950 से लेकर अब तक विश्व अर्थव्यस्था के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हैं। पहली क्षेत्रीय आर्थिक उपव्यवस्थाओं का विकास तथा दूसरी बहुराष्ट्रीय निगमों का विकास जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है। बहुराष्ट्रीय निगम राष्ट्रीय सीमाओ से बंधे नहीं होते, अपितु पूरा विश्व ही उनका कार्यक्षेत्र होता है । सही है, बहुराष्ट्रीय निगम भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में सहायक होते हैं, किन्तु उनसे राष्ट्रीय आर्थिक स्वायत्तता के लिए खतरा भी पैदा हो सकता है। क्षेत्रीय आर्थिक क्रियाकलापों की शुरुआत पूँजीवादी औद्योगिक दुनिया के केन्द्र अर्थात पश्चिमी यूरोप के देशों में हुई थी। 90 के दशक में यूरोपीय अर्थव्यवस्था के साझे बाजार से शुरु होकर यूरोपियन यूनियन के रूप में तब्दील हो गयी। प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया में ऐसी आर्थिक अव्यवस्थाएं प्रकट हुई। न्यूयार्क, टोक्यो और लंदन में वित्तीय और प्रतिभूति बाजारों का उद्भव क्षेत्रीयकरण एवं अंतक्षेत्रीय गठबंधन के जरिये भूमंडलीकरण लक्षण है। बहुराष्ट्रीय निगम भूमंडलीकरण के कारण और प्रभाव दोनो हैं। विश्व बाजार एवं अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक तंत्र के उदय ने अंतर्राष्ट्रीय फर्मों के लिए माकूल माहौल तैयार किया। शुरु में ऐसी कंपनियों में प्रमुखता अमरीकी कंपनियों की भी और कभी-कभी उनका वर्चस्व विश्व अर्थव्यवस्था के एक पूरे क्षेत्र पर कायम था। मानकता का निर्धारण और उसे सब पर थोपने का काम भी यही कंपनियाँ करती थी। अमरीका की कंपनी आई बी एम इसका पुरातन उदाहरण है। एक समय ऐसा था जब दुनिया के कल कंप्यूटर बाजार में इसका हिस्सा 80 प्रतिशत था और वह अपनी प्रभावी स्थिति का इस्तेमाल कर मानक गुणवत्ता को परिभाषित करती थी। ऐसा वह अपना बाजार कायम रखने अथवा बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने तथा स्पर्द्धा लाभ अजित करने के लिए करती था। युद्धोत्तर काल में बहुराष्ट्रीय निगमों की संख्या, व्यापकता एवं विविधता में बढ़ोतरी हुई है। आज स्थिति यह है कि बैंकिंग, तेल, मोटरकार तथा अन्य क्षेत्रों में लिप्त इन कंपनियों के बीच परिवर्तनीय संतुलन स्थापित है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विकास होने से अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अजीब जटिल पारस्परिक निर्भरता पैदा हुई है। निवेश, पूँजी गतिमानता तथा प्रौद्योगिकी नियंत्रण के क्षेत्र में भी कई मुश्किल समस्याएं पैदा हुई हैं इससे सबसे बड़ी बात यह हुई कि एक नये प्रबंधकीय वर्ग का उदय हो गया। यह वर्ग कपंनियों और देशों के बीच चक्कर लगाता रहता है।
युद्धोत्तर विश्व अर्थव्यवस्था की तीन स्पष्ट विशेषताएँ हैं। विश्व अर्थव्यवस्था में अमरीका की वर्चस्ववादी स्थिति और भूमिका, 1969 से 1970 के बीच विश्व निर्यात में अल्पविकसित (विकासशील भी) देशों के हिस्से का ह्रास, और विश्व व्यापार में हिस्सेदारी के लिहाज से केन्द्रीय रूप से नियोजित अर्थव्यवस्थाओं अथवा समाजवादी देशों का अलग थलग पड़ना। इन देशों यानी समाजवादी अर्थव्यवस्थाओं को न तो मार्शल एड मिला न ही वे ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था में शामिल हुए। युद्ध के बाद वाले काल में जब इन अर्थव्यवस्थाओं की सेहत ठीक हो रही था, तब दुनिया मंदी के दौर से गुजर रही थी। चूंकि खाड़ी के तेल उत्पादक देशों ने तेल की कीमत बढ़ा दी थी अतः ऊर्जा का दाम लगातार बढ़ता जा रहा था। 1971 में अमरीका ने सोने के साथ डॉलर की निश्चित परवर्तनीयता स्थगित कर दी। नतीजन विश्व व्यापार और वित्त के क्षेत्र में परिवर्तन विनिमय दर की व्यवस्था कायम होने लगी। यह उस आरंभिक योजना के विपरीत था जो नीयत अनुरूपता और नियंत्रित सम्मेजन प्रविधि पर आधारित थी। ब्रिटेनवुड्स व्यवस्था के खत्म हो जाने पर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के केन्द्रीय बैंकों को मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करना पड़ा ताकि विनिमय दर की परिवर्तनीयता को एक सीमा के अंदर रखा जा सके तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में कुछ स्थायित्व फिर से कायम किया जा सके।
पिछले बीसेक सालों में विश्व अर्थव्यवस्था में अमरीका की धोंस कुछ कम हुई है। तथापि डॉलर प्रधान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की भूमिका में कायम है और यही कारण है कि वह मौद्रिक एवं व्यापार के क्षेत्र के केन्द्र में आज भी टिका हुआ है। अमरीका आज भी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की संस्थाओं, बहुपक्षीयता तथा व्यापार उदारीकरण के प्रति प्रतिबद्ध है। लेकिन पश्चिमी भूख खासकर जर्मनी और जापान के बड़ी आर्थिक ताकतों के रूप में उभरने से युद्धोत्तर काल में आर्थिक ताकतों का वितरण कुछ हद तक बदल गया है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics