ब्रेटन वुड्स समझौता का क्या अर्थ है | ब्रेटन वुड्स सम्मेलन किस वर्ष हुआ Bretton Woods System in Hindi
Bretton Woods System in Hindi ब्रेटन वुड्स समझौता का क्या अर्थ है | ब्रेटन वुड्स सम्मेलन किस वर्ष हुआ ?
ब्रिटेन वुड्स तथा व्यवस्था
इस वयवस्था के तहत यह स्वीकार किया गया था कि व्यापारिक और आर्थिक स्थायित्व के लिए नियत विनियतं दर ही सबसे कारगर उपाय है। इस प्रकार सभी देशों ने सहमति जतायी कि वे अपनी मुद्राओं का स्तर्ण के साथ साम्य स्थापित करेंगे तथा विनियम दर को इस साम्य के एक प्रतिशत, कम या ज्यादा के अंतर रखेंगे। नियमों से मुक्त व्यवस्था को और बढ़ावा मिला क्योंकि सभी सदस्यों ने प्रतिबद्धता तथा मुक्त व्यापार को प्रश्रय देने में अपनी रुचि दिखाई देती है। इन नियमों को लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को प्राधिकृत किया गया तथा सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन के मुख्य साधन के करने की भूमिका भी उसी की थी।
युद्धोत्तर पुनर्निर्माण को आसान बनाने के लिए 10 खरब डालर की पूँजी के आधार पर आई बी आर डी अथवा विश्व बैंक का गठन हुआ। इस संगठन से अपेक्षा की गयी थी कि वह अपने कोष से ऋण का आबंटन करेगा तथा अपने कोष में वृद्धि के लिए प्रतिभूति जारी करेगा। तथापित यूरोप का विनाश इतना अधिक था कि उसके विशाल घाटे को पाटने में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की ऋणदेयता नाकाफी साबित हुई। 1947 तक यह बात साफ हो गई थी कि 5.70 करोड़ डालर मूल्य के अमरीकी अंशदान के अलावा आई बी आर डी के पास ऋण देने के लिए कोई दूसरा धन नहीं है। 1947 में संयुक्त राज्य अमरीका ब्रिटेन वुड्स व्यवस्था से उत्पन्न हुई आर्थिक खाई को पाटने के लिए तत्पर हुआ और आगामी दो वर्षों में एक तरफे अमरीकी प्रबंधन के आधार पर एक नयी अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था कायम हो गई। 1947 से लेकर 1958 तक विकसित होने वाली इस व्यवस्था में डालर को मानक मुद्रा माना गया (स्वर्ण के बदले)। विविध सहायक कार्यक्रमों के जरिये अमरीका डॉलर के बहिर्गमन को प्रोत्साहित करता रहा। क्योंकि इसके पास विशाल व्यापार संतुलन अधिराशि थी। अमरीका द्वारा शुरू किये गए प्रमुख साहायय कार्यक्रम थे।
ऽ यूरोपीय पुनर्निर्माण के लिए मार्शल योजना, तथा ग्रीस एवं टर्की की सहायता के लिए टूमैन योजना। शीतयुद्ध की वजह से भी डॉलर की तरलता बढ़ी क्योंकि अमरीका अपने सैन्य मित्रों तथा दुनिया भर में तैनात अमरीकी सैनिक टुकड़ियों का खर्च वहन करता था। शीतयुद्ध पर भारी सैनिक खर्च आता था और इस खर्च का अधिकांश भाग अमरीका द्वारा मुहैया कराया जाता था। इस प्रकार डॉलर विश्व मुद्रा बन गयी और अमरीका दुनिया का केन्द्रीय कर्जदाता था। वह अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था के लिए डॉलर निर्गत करने लगा।
ब्रिटेन वुड्स सम्मेलन की स्थापना कि थी:
1) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अंतर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या का निवारण करेगा यानी सदस्य राज्यों को भुगतान संतुलन के घाटे से तथा अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक असंतुलन की समस्याओं से निपटने में मदद करेगा।
2) अंतर्राष्ट्रीय पुनर्गठन एवं विकास बैंक (आई बी आर डी) विविध राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण एवं विकास में दीर्घकालिक पूँजी सहायता के जरिये मदद करेगा, तथा
3) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन व्यापार के उदारीकरण की दिशा में कार्य करेगा।
आई एम एफ व आई बी आर डी, जो ब्रिटेन वुड्स के जुड़वा शिशु के नाम से भी जाने जाते हैं, की स्थापना 1946 में की गयी थी। किन्तु प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (आई टी ओ) ठोस रूप नहीं ले सका। इसके बदले गैट (जनरल एग्रीमेंट ऑर टैरिफ एण्ड ट्रेक) की स्थापना की गयी। 1995 में गठित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू टी ओ) वस्तुतः लम्बे खींचे गैट समझौतों की परिणति है। मालूम हो, गैट के तत्वाधान में ऐसे समझौते पहले काफी दिनों से चल रहे थे।
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