गोंडावन (great indian bustard in hindi) , गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्या है , गोडावण को राज्य पक्षी कब घोषित किया गया

(great indian bustard in hindi) गोंडावन , गोडावण का वैज्ञानिक नाम क्या है , गोडावण को राज्य पक्षी कब घोषित किया गया , क्यों होता है ?

गोंडावन (great indian bustard)

वर्गीकरण (classification)

संघ – कार्डेटा

समूह – क्रेनिएटा

उपसंघ – वर्टीब्रेटा

विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा

अधिवर्ग – टेट्रापोडा

वर्ग – एवीज

गण – ग्रुइफार्मीज

वंश – आर्डिओटिस

जाति – नाइग्रीकेप्स

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

सामान्यतया संसार में मुख्य रूप से गोंडावन को तीन जातियां – अर्डियोटिस कोरी अफ्रीका में , अर्डियोटिस ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया में और अर्डियोटिस नाइग्रीकेप्स भारत में पायी जाती है। यह लगभग 3.5 फुट तक ऊँचा (लगभग एक मीटर ऊँचा) और 30 पौंड वजन का पक्षी है। इन तीनों जातियों में इस वंश की अन्य जातियों की अपेक्षा अत्यधिक समानता पायी जाती है , जिससे यह ज्ञात होता है कि इन तीनों का विकास एक ही पूर्वज से हुआ है और प्राकृतिक दशाओं के निरंतर बदलते रहने के कारण ये तीनों पृथक होती चली गयी। यह प्राय: सूखे घास के मैदानों में 3 अथवा 4 पक्षियों के झुण्ड में पाया जाता है। चूँकि यह एक बड़ा पक्षी है इसलिए इसे एक बड़े वातावरण की आवश्यकता होती है। यह अपने वास स्थलों में बमुश्किल नजर आता है। लेकिन फिर भी भारत में पाए जाने वाले गोंडावन की संख्या में पिछले कुछ वर्षो में अप्रत्याशित कमी आयी है। यह भारत के 5 राज्यों से और पाकिस्तान के चार राज्यों से पूरी तरह विलुप्त हो चूका है। 2001 में राजस्थान में इसकी संख्या लगभग 131 थी जो घटकर 2002 और 2003 में क्रमशः 97 और 85 रह गयी है। यह राजस्थान के रेगिस्तान में पाया जाता है और इस राज्य का यह राजकीय पक्षी है। इस राजकीय पक्षी का एक डाक टिकट 01/11/1980 में (जिसका क्रमांक – 0986 है) ग्रेट इन्डियन बस्टर्ड (great indian bustard) के नाम से जारी किया गया था। यह बड़ा , लम्बे पैरों वाला पक्षी है। इसकी गर्दन और शरीर का निचला भाग सफ़ेद रंग का और ऊपरी भाग भूरे रंग का होता है। इसके सिर पर एक काले रंग का क्राउन पाया जाता है। नर और मादा बाह्य आकारिकी में सामान्यतया एक समान प्रतीत होते है लेकिन नर के सिर पर पाया जाने वाला क्राउन मादा के क्राउन से बड़ा होता है। इनके प्रजनन स्वभाव के बारे में अभी तक बहुत कम ज्ञात है। मादा एक बार में केवल एक अंडा देती है।

कोलम्बा लिविआ या कबूतर (columba livia or pigeon)

वर्गीकरण (classification) :

संघ – कॉर्डेटा

समूह – क्रेनिएटा

उपसंघ – वर्टीब्रेटा

विभाग – ग्नैथोस्टोमेटा

अधिवर्ग – टेट्रापोडा

वर्ग – एवीज

उपवर्ग – नियोर्निथीज

अधिगण – नियोग्नैथी

गण – कोलम्बीफोर्मीज

वंश – कोलम्बा

जाति – लिविआ

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

कोलम्बा सामान्य रूप से भारत , प्रशांत महासागर के तट के वन्य प्रदेश तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाने वाला प्राचीन पक्षी है जो इओसिन काल से पृथ्वी पर रह रहा है। यह अपना घोंसला मनुष्य के घरों , पुराने खंडहरों , गोदामों आदि में बनाता है। यह वर्ष भर प्रजनन करता है। इसका शरीर सिर , ग्रीवा , धड और पुच्छ चार भागों में बंटा होता है। सिर में आगे की ओर एक पतली चोंच होती है। नेत्र बड़े , गोल , सुविकसित निमेषक झिल्ली वाले होते है। अग्रपाद डेनों (wings) में रूपांतरित होते है जिनके अन्दर कंकाल के अलावा उड़ान के पंख (रेमिनीज) भी पाए जाते है। पश्चपाद द्विपाद चलन के लिए रूपांतरित होते है। इसके अंडे सफ़ेद और कैल्सियम के कवच से बने होते है। यह पालतू पक्षी है। इसका उपयोग प्राचीन काल में सन्देश वाहक के रूप में किया जाता था।

खरगोश (rabbit)

वर्गीकरण (classification) :

संघ – कॉर्डेटा

समूह – क्रैनिएटा या वर्टीब्रेटा

उपसंघ – ग्नैथोस्टोमेटा

अधिवर्ग – चतुष्पादा

वर्ग – मैमेलिया

उपवर्ग – थिरिया

गण – लैगोमॉर्फा

वंश – ओरिक्टोलैगस

जाति – क्यूनिकुलस

स्वभाव और आवास (habits and habitats)

स्तनी वर्ग में खरगोश का वर्गीकरण गण लैगोमार्फा में होता है। इस गण के सभी सदस्य शाकाहारी है अत: इन सदस्यों में श्वदंत अथवा कैनाइन दाँतो का अभाव होता है।
शशक की संसार में अनेक जातियां पायी जाती है। हमारे देश में लीपस श्रेणी की जातियाँ , जिन्हें खरहा कहते है , अधिक पायी जाती है। सामान्यतया शशक बस्ती से दूर खेतों में अथवा जंगलों में पाए जाते है। खरहा एकान्तवासी होता है। यह झाड़ियों और घासफूस में छिछला गड्डा बनाकर रहता है। यह सरल स्वभाव का जन्तु है। शत्रुओं से बचने के लिए यह दिन के समय बिल में छिपा रहता है और भोजन की खोज में सामान्यतया सूर्यास्त के पश्चात् बिल से बाहर आता है। अत: इसे संध्याचर या रात्रिचर कहते है। इसकी औसत आयु 8 वर्ष की होती है।
छ: महीने का शशक वयस्क होकर जनन करने लगता है। एक मादा एक वर्ष में चार अथवा पाँच बार और एक बार में दो से पांच तक बच्चे देती है।