ईंधन की परिभाषा क्या है ? ईंधन किसे कहते है , कितने प्रकार होते है , उपयोग fuel meaning in hindi

fuel meaning in hindi , ईंधन की परिभाषा क्या है ? ईंधन किसे कहते है , कितने प्रकार होते है , उपयोग |

ईंधन

 वे पदार्थ जिन्हें जलाकर ऊष्मा उत्पन्न की जाती है, उन्हें ईंधन कहा जाता है, जैसे- कोयला, लकड़ी, डीजल, पेट्रोल, केरोसीन, लकड़ी, द्रवित पेट्रोलियम गैस इत्यादि।

 ईंधनों का सबसे अच्छा वर्गीकरण उनकी भौतिक अवस्था के आधार पर होता है। भैतिक अवस्था के आधार पर ईंधन तीन प्रकार के होते हैं- ठोस, द्रव एवं गैसीय ईंधन।

(प)  ठोस ईंधनः लकड़ी, कोयला, कोक, चारकोल (काष्ठ कोयला या लकड़ी का कोयला) तथा पैराफिन वैक्स (मोम), ठोस ईंधन हैं।

(पप)  द्रव ईंधन या तरल ईंधनः कैरोसिन (मिट्टी का तेल), पेट्रोल, डीजल, ऐल्कोहल तथा द्रवित हाइड्रोजन, द्रव या तरल ईंधन हैं।

(पप) गैसीय ईंधनः प्राकृतिक गैस, तरल पेट्रोलियम गैस, कोल गैस, जल गैस, बायो गैस (गोबर गैस), ऐस्टिलीन तथा हाइड्रोजन गैस, गैसीय ईंधन हैं।

प्रमुख ईंधन

 गोबर गैसः गीले गोबर के सड़ने पर ज्वलनशील मीथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयंत्र में गोबर से गैस बनाने के पश्चात् शेष रहे पदार्थ (स्लरी) का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है।

 प्रोड्यूसर गैसः यह गैस लाल तप्त कोक पर वायु प्रवाहित करके बनाई जाती ला) है। इसमें मुख्यतः कार्बन मोनोऑक्साइड ईंधन का काम करती है।

 रॉकेट ईंधनः रॉकेट में उपयोग किये जाने वाले ईंधन को नोदक कहते हैं। यह नोदक ऑक्सीडाइजर के संयोग से बनता हैय जैसेतरलीय ऑक्सीजन, सभी नोदकों को तीन वर्गों में रखा जाता है।

(प)  ठोस नोदकः ठोस ईंधन, जैसे- पॉली ब्यूटाडीन और एक्राइलिक अम्ल का उपयोग ऑक्सीडाइजर के साथ होता हैय जैसे- एल्युमीनियम परक्लोरेट, नाइट्रेट या क्लोरेट उच्च दहन तापक्रम होने के कारण मैग्नीशियम या एल्युमीनियम को भी ठोस ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। इस तरह के नोदक को संयुक्त नोदक भी कहा जाता है।

(पप)  तरलीय नोदकः अल्कोहल, तरलीय हाइड्रोजन, तरलीय अमोनिया, कैरोसीन तेल, हाइड्रोजीन और बोरोन के हाइड्राइड का उपयोग तरलीय नोदक से अधिक शक्ति प्रदान करता है और इसका नियन्त्रण, प्रवाह को नियंत्रित करके किया जाता है। मिथाइल नाइट्रेड, नाइट्रोमीथेन, पेरोक्साइड आदि भी उपयोगी तरलीय नोदक हैं।

(पपप)  मिश्रित नोदकः मिश्रित राकेट नोदक में ठोस ईंधन एवं तरलीय ऑक्सीडाइजर का उपयोग किया जाता है। इसमें एक सामान्य संघटक हैं। विभिन्न राष्ट्रों द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण नोदक का उपयोग किया जाता है, जो इस प्रकार हैं- रूस द्वारा प्रोटॉन नोदक का उपयोग किया जाता है, जो कैरोसीन एवं तरलीय ऑक्सीजन से बना होता है। सैटर्न बूस्टर (अमेरिकन रॉकेट) में भी कैरोसीन एवं ऑक्सीजन के संयोग से बना ईंधन उपयोग किया जाता है। एस. एल. वी.-3 और ए. एस. एल. वी. नामक भारतीय रॉकेट द्वारा प्रथम अवस्था में ठोस नोदक का उपयोग किया गया और तृतीय अवस्था

में तरलीय नोदक का उपयोग किया गया है।

 कैरोसीन या पैराफीनः यह 11 से 12 कार्बन परमाणुओं वाले हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है। इसका क्वथनांक 160°-250° तक होता है। इसका प्रयोग जेट विमान में किया जाता है। साधारण कैरोसीन घरेलू कार्यों में प्रयुक्त होता है। डीजल रू यह 13-25 कार्बन परमाणुओं वाले हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होता है। इसका क्वथनांक 220°-250° होता है। यह डीजल इंजनों में प्रयुक्त होता है।

 पेट्रोलियमः पेट्रोलियम एक विशेष गंध युक्त भूरे-काले रंग का गाढ़ा तेल होता है। यह पृथ्वी के भीतर चट्टानों के नीचे पाया जाता है। यह एक प्राकृतिक ईंधन है। प्राकृतिक रूप में इसे कच्चा तेल या अपरिपक्व तेल भी कहते हैं। पृथ्वी के नीचे पाये जाने के कारण इसे खनिज तेल भी कहते हैं।

 अपरिष्कृत पेट्रोलियम का इसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। अतः इसके निरंतर प्रभाजी आसवन द्वारा औद्योगिक उपयोग के विभिन्न प्रभाज प्राप्त किये जाते हैं। यह प्रक्रिया परिष्करण कहलाती है। प्रभाजी आसवन से प्राप्त प्रभाज निम्न हैं- ऐस्फाल्ट (डामर) पैराफिन मोम, स्नेहक तेल, ईंधन तेल, डीजल, कैरोसिन (मिट्टी का तेल), पेट्रोल तथा पेट्रोलियम गैस।

 संपीड़ित प्राकृतिक गैसः यह मुख्यतः मेथेन होती है (95प्रतिशत)। इसमें मेथेन के साथ थोड़ी मात्रा में इथेन और प्रोपेन भी रहती है। प्राकृतिक गैस एक अच्छा ईंधन है। यह धुआँ रहित ज्वाला के साथ जलती है, जिससे प्रदूषण नहीं होता। इसके जलने पर कोई विषैली गैस भी नहीं बनती। इसका प्रयोग वाहनों में होता है। इसे ‘पर्यावरण मित्र‘ कहा जाता है।

 द्रवित या तरल पेट्रोलियम गैसः यह एथेन, प्रोपेन, ब्यूटेन का मिश्रण है, लेकिन इसका मुख्य अवयव, ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन है। इसका ऊष्मीय मूल्य काफी उच्च होता है। इसलिए यह एक अच्छा ईंधन है, यह धुआँ रहित ज्वाला के साथ जलती है तथा जलने पर इससे कोई विषैली गैस उत्पन्न नहीं होती।

 गैस के सिलिण्डर में गैस रिसाव का पता लगाने के लिए एक तीक्ष्ण गंध वाला पदार्थ एथिल मर्केप्टन मिला देते हैं। इसमें हाइड्रोजन सल्फाइड के समान गंध होती है, जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। एल. पी. जी. वायु से मिलकर विस्फोटक मिश्रण बनाती है।

 कोल गैसः इसमें 54 प्रतिशत हाइड्रोजन, 35 प्रतिशत मीथेन, 11 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड, 5 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन एवं 3 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड आदि गैसों का मिश्रण होता है। कोल गैस, कोयले के भंजक आसवन द्वारा बनाई जाती है। यह वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है।

 प्रोड्यूसर गैसः यह मुख्यतरू नाइट्रोजन व कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों का मिश्रण है। इसमें 60 प्रतिशत नाइट्रोजन, 30 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड व शेष कार्बन डाइऑक्साइड व मीथेन गैस होती है। इसका उपयोग ईंधन, कांच व इस्पात बनाने में किया जाता है।

 वाटर गैसः यह कार्बन मोनोऑक्साइड व हाइड्रोजन गैसों का मिश्रण होती है। इससे बहुत अधिक ऊष्मा निकलती है। इसका प्रयोग अपचायक के रूप में ऐल्कोहल, हाइड्रोजन आदि के औद्योगिक निर्माण में होता है।

 गैसोलीनः इससे हेक्सेन्स, हेप्टेन्स तथा ऑक्टेन्स उत्पन्न होते हैं। इसे पेट्रोल भी कहा जाता है। कार के उपयोग में लाये जाने वाले पेट्रोल की गुणवत्ता को उसके एण्टी नॉक गुण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पेट्रोल सैम्पल में एण्टीनॉक गुणों को उसके ऑक्टेन नंबर वैल्यू द्वारा ज्ञात किया है।

 किसी पेट्रोल सैम्पल का ऑक्टेन नम्बर जितना अधिक होता है, उसका एन्टीनॉकिंग गुण उतना ही अधिक होगा तथा वह उतना ही अधिक उपयोगी होगा। ऑक्टेन नंबर का सबसे अधिक मान 100 होता है। ऑक्टेन नंबर बढ़ाने के लिए पेट्रोल में ट्रेटा एथाइल लैड मिलाया जाता है।

ईंधनों के ऊष्मीय मान

किसी ईंधन का ऊष्मीय मान इस कथन का मापक है कि ईंधन कितना उपयोगी है। जिस ईंधन का ऊष्मीय मान अधिक होता है, वह उतना ही अच्छा और उपयोगी होता है।

प्रमुख ईंधनों के ऊष्मीय मान

ईंधन ऊष्मीय मान

लकड़ी 17 किलो जूल प्रति ग्राम कोयला

कोयला 25-33 किलो जूल प्रति ग्राम

चारकोल 33 किलो जूल प्रति ग्राम

गोबर के उपले 6-8 किलो जूल प्रति ग्राम

कैरोसिन 48 किलो जूल प्रति ग्राम

ऐल्कोहल 30 किलो जूल प्रति ग्राम

बायोगैस 35-40 किलो जूल प्रति ग्राम

मिथेन 55 किलो जूल प्रति ग्राम

एल.पी.जी. 55 किलो जूल प्रति ग्राम

हाइड्रोजन 150 किलो जूल प्रति ग्राम