राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब हुई | प्रारंभ कहाँ से हुआ 1857 revolt in rajasthan in hindi

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प्रश्न : राजस्थान में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 

उत्तर : राजस्थान में ब्रिटिश आधिपत्य के परिणामस्वरूप शासकों की स्वतंत्र सत्ता समाप्त हो गयी थी। राज्य की आर्थिक दशा बदतर हो गयी , प्रशासन में भ्रष्टाचार , शासकों के भोग विलास में वृद्धि , सामन्तों की पद मर्यादा को क्षीण करने का प्रयास , लोगों पर पाश्चात्य विचार और संस्थाएँ थोपने और उनके परम्परागत रीति रिवाजों को समाप्त करने , इसाई धर्म प्रचार निति और उनके सामाजिक सुधारों आदि को जनता ने अपने धर्म और जीवन में घोर हस्तक्षेप माना। इस प्रकार सम्पूर्ण राजस्थान में और सभी वर्गों में ब्रिटिश विरोधी भावना व्याप्त थी इसलिए यहाँ भी विद्रोह का शुभारम्भ हुआ।
क्रांति का प्रसार : राजस्थान में 1857 का शुभारम्भ नसीराबाद छावनी में 28 मई 1857 को हुआ। क्रांतिकारियों ने सैनिक-छावनी और अंग्रेजों के घरों को लूटकर आग लगा दी। क्रन्तिकारी दिल्ली की तरफ कूच कर गए। सामन्तों और जनता की सहानुभूति क्रान्तिकारियों के साथ थी। 3 जून 1857 को हीरा सिंह के नेतृत्व में नीमच छावनी ने विद्रोह कर रास्ते में सरकारी कार्यालयों को तोड़ने फोड़ने और लुटते हुए दिल्ली की तरफ कूच किया। एरिनपुरा छावनी के विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह चाम्पावत ने किया। इन्होने बिथोड़ा और चेलावास के युद्धों में अंग्रेजों को बुरी तरह हराया। चेलावास के युद्ध में तो मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मैक मोसन का सिर काट कर आउवा के किले पर लटका दिया गया। बाद में कर्नल होम्स ने विद्रोहियों को नियंत्रित किया।
कोटा में जन विद्रोह भीषण रहा। यहाँ विद्रोहियों का जनता ने खुला समर्थन किया , पोलिटिकल एजेंट बर्टन का सिर काट दिया और महाराव को नजरबन्द कर महल और नगर पर क्रान्तिकारियों ने अधिकार कर लिया। बाद में करौली राज्य और अंग्रेजी सेना के संयुक्त प्रयासों से ही कोटा मुक्त हो सका। इसके अलावा राजस्थान में सर्वत्र विद्रोह की ज्वाला भड़की।
सामन्तों और जनता ने क्रांतिकारियों का साथ दिया , विशेषकर अलवर , भरतपुर और दौसा के गुर्जरों और मेवों ने खुलकर अंग्रेज विरोधी भावना का प्रदर्शन किया। यहाँ मध्य भारत के क्रांतिकारी नेता तात्यां टोपे का आगमन काफी महत्वपूर्ण रहा। उनके अभियान ने राजस्थान में एक नयी उत्तेजना पैदा की। हालाँकि उसे यहाँ काफी सहायता और समर्थन मिला परन्तु वह सफल नहीं हो सका। उसकी असफलता और गिरफ्तारी से 1857 की महान क्रांति राजस्थान में समाप्त हो गयी।
असफलता के कारण : राजस्थान में 1857 की क्रान्ति की असफलता का प्रमुख कारण राजपूत शासकों का अंग्रेजों को पूर्ण सहयोग और समर्थन करना था। इसके अलावा सर्वमान्य नेता का अभाव , क्रान्तिकारियों के पास धन , रसद और हथियारों की कमी , क्रांति का योजना की बजाय भावना प्रधान होना और नसीराबाद और नीमच छावनी के सैनिकों का सीधे दिल्ली चले जाना आदि भी असफलता के कारण रहे।
परिणाम : विद्रोह के दौरान शासकों का अंग्रेजी सत्ता को समर्थन रहा और सामन्त विद्रोही रहे अत: शासकों को पूर्ण संरक्षण दिया गया और सामन्तों को नष्ट करने की नीति अपनाई गयी। आम जनता के प्रति नृशंसतापूर्ण व्यवहार किया गया जिसका चित्रण सूर्यमल्ल मिश्रण ने वीर सतसई में किया है। सामाजिक सुधारों , चिकित्सा और स्वास्थ्य आदि की तरफ उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाया गया और यातायात , संचार , अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को बढ़ा दिया गया।